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प्रस्तुतीकरण
द्वारा हिन्दी हिक्षक:-रामे श्वर
प्रसाद
पद:- टी.जी.टी
केन्द्रीय हिद्यालय ओ.एन.जी.सी.
अंकलेश्वर
मेघ आए
जीवनी :- सिे श्व रदयाल सक्से ना / पररचय
जन्म:- 15 हसतं ब र 1927
ननधन:- 24 हसतं ब र 1983
जन्म स्थान :- हजला बस्ती, उत्तर प्रदे ि, भारत
कु छ प्रमु ख कृ नियााँ :- काठ की घं हटयााँ , बााँ स का पु ल , गमम
ििाएाँ ।
नवनवध :- कहिता सं ग्र ि खाँ हटय ं पर टाँ गे ल ग के हलए का साहित्य अकादमी
पु र स्कार सहित अने क प्रहतहित सम्मान और पु र स्कार से हिभ हतत।।
पंक्तियााँ :-
मेघ आये बडे बन-ठन के, साँवर के।
आगे-आगे नाचिी - गािी बयार चली
दरवाजे-क्तखडनकयााँ खुलने लगी गली-गली
पाहुन ज्यं आये हयं गााँव में शहर के।
मेघ आये बडे बन-ठन के, साँवर के।
भावाथथ:-
बादल बडे सज-धज के और सुंदर वेष धारण करके आ
गए हैं । उनके आगे आगे नाचिी-गािी हुई हवा चल पडी है । मनयरम
मेघयं कय दे खने के नलए गली-गली में दरवाजे-क्तखडनकयााँ खुलने लगे
हैं ।ऎसा लगिा है ,जैसे गााँव में शहर के मेहमान सज-धज कर आए
हयं।बादल इस प्रकार बन-साँवर कर आ गए हैं ।
आशय यह है नक वषाथ ऋिु आ गई है । बादल आकाश में सज गए हैं ।
हवा भी मस्ती में चलने लगी है । लयगयं ने वषाथ की प्रिीक्षा में अपने घर
के दरवाजे और क्तखडनकयााँ खयल नदए हैं । सब ओर बादलयं के बरसने
की चाह है ।
काव्य-स ंदयथ :-
•प्रकृहत का मानिीकरण हकया गया िै। मानिीकरण अलंकार िै।
•भाता हचत्रात्मक तथा प्रिािपणम िै। िणमन में निीनता और ताजगी िै।
•आगे-आगे और गली-गली में पुनरूक्ति प्रकाि अलंकार िै।
•बन-ठन,नाचती-गाती जैसे िब्द-युग् ं के कारण कहिता में गहत आ गई िै।
•कहि ने मेघ क ििरी मेिमान के रूप में,ििा क आनंहदत हप्रया के रूप में तथा सारे
गााँ ि िाहसय ं क उत्साि में मग्न हदखाया िै ।
पंक्तियााँ:-पेड़ झुक झााँकने लगे गरदन उचकाये
आाँ धी चली, धल भागी घाघरा उठाये
बााँ की हचतिन उठा नदी, हठठकी, घाँघट सरके।
मेघ आये बड़े बन-ठन के, साँिर के।
बादल आकाि में सज-धज के आ गए िैं । उधर आाँ धी
चलने लगी िै । पेड़ ििा के कारण ऎसे झुक गए िैं मान िे गदम न
उचका कर मेघ ं की ओर झााँ कने लगे ि ।ं धल ऎसे भाग रिी िै मान
क ई ग्रामीण बाला उत्साि से घाघरा उठाए भागी जा रिी ि । नदी
मेघ ं क हतरछी नजर ं से दे खकर हठठक गई-सी लगती िै । क्तिय ं ने
अपने घाँघट ख ल हदए िैं ।
भावाथथ :-
आिय यि िै हक मेघ आकाि में सुि हभत िैं । ििा के कारण पेड़
नीचे क झुक गए िैं । धल-भरी आाँ धी चल पड़े िै । ऎसे समय में नदी
का म ड़ बड़ा सुिाना लग रिा िै ।
काव्य स द
ं यम
•प्रकृहत का मानिीकरण हकया गया िै।
•पेड़ ं का झााँकना, धल का घाघरा उठाकर भागना, नदी का हठठकना, काल्पहनक और
नाटकीय प्रय ग िै ।
•भाता हचत्रात्मक ि ने के साथ-साथ प्रिािपणम भी िै।
•अनुप्रास और लघु िब्दािली के कारण काव्य में गहत आ गई िै।
पंक्तियााँ:- बढे ़े़ पीपल ने आगे बढ कर जुिार की
‘बरस बाद सुहध लीन्ही’
ब ली अकुलाई लता ओट ि हकिार की
िरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
मेघ आये बड़े बन-ठन के, साँिर के।
भावाथथ :-
बादल आकाि में सज-धज के आ गए िैं ।पीपल के बढे
पेड़ ने झुककर मान उसे नमस्कार हकया। गमी से व्याकुल लता
हकिाड़ के पीछे हछपकर मान उलिाने के स्वर में ब ली-रे मेघ,तुमने
त ितम-भर बाद िमारी सुध ली िै । गााँ ि का तालाब मेघ के आने की
खुिी में आनंदमग्न ि कर पानी की परात भर लाया।
आिय यि िै हक िताम ऋतु िै । मेघ आकाि में सजे हुए िैं ।पीपल का
पुराना िृक्ष ठं डी ििा के झ क
ं ं से झुक गया िै । प्यासी लताएाँ पानी
बरसने की आिा से खुि िैं । तालाब का पानी भी आज लिरें ले रिा
िै । सारी प्रकृहत प्रसन्न िै ।
काव्य स ंदयथ
•परा दृश्य कल्पनापणम एिं मन रम िै।मेघ सजा-साँिरा मेिमान िै। मानिीकरण
अलंकार िै ।
•भाता प्रिािपणम, अनुप्रासमयी तथा सरस िै।
•ब्रज भाता के संिाद से कहिता और भी मन िारी बन पड़ी िै।
पंक्तियााँ:-हक्षहतज अटारी गदरायी दाहमहन दमकी
‘क्षमा कर गााँ ठ खुल गयी अब भरम की’
बााँ ध टटा झर-झर हमलन अश्रु ढरके
मेघ आये बड़े बन-ठन के, साँिर के।
भावाथथ:-आकाि में बादल इस तरि सघन ि कर छा गए िैं,जैसे अहतहथ के
आगमन पर अटारी पर ल ग ं का जमघट लग जाता िै ।हबजली दमक उठी िै ।क्षमा
कर ।िमारे भ्रम की की गााँ ठ खुल गई िै ।िमें भ्रम था हक तुम निीं बरस गे।पर तुम
बरस पङे ि ।झर-झर की आिाज मे तुम्हारा प्रेम उमड़ पड़ा िै ।इस प्रकार िताम के
बादल सज-साँिर कर आकाि में छा गए िैं ।
आिय यि िै हक आकाि में दर तक बादल ं का जमघट लगा िै । अब िे धारासर बरस
पेङ िैं ।
काव्य स ंदयथ
•कहि ने एक-एक दृश्य में मेघ-रूपी अहतहथ,और प्रतीक्षा कर रिे गााँििाहसय ं का प्रेम
हदखाया िै ।
•अनुप्रास,स्वरमैत्री और पुनरूक्ति प्रकाि अलंकार का प्रय ग हुआ िै।
•िताम ऋतु का दृश्य साकार ि उठा िै।
धन्यवाद