साहिबे-िजरू और भक्त के बीच अन्तरमन संवाद नोट : इस प्रश्नोंतरी की आधारशिला स्वतः प्रस्फुररत भाव िैं जो सुबि सैर करते िुए जब मन.

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Transcript साहिबे-िजरू और भक्त के बीच अन्तरमन संवाद नोट : इस प्रश्नोंतरी की आधारशिला स्वतः प्रस्फुररत भाव िैं जो सुबि सैर करते िुए जब मन.

साहिबे-िजरू और भक्त के बीच
अन्तरमन संवाद
नोट : इस प्रश्नोंतरी की आधारशिला
स्वतः प्रस्फुररत भाव िैं जो सुबि सैर करते
िुए जब मन के तार प्रभु से जड
ु े थे प्रसाद
स्वरूप शमले ।
• साहिबे-िजरू : -- बच्चू ! तम
ु किााँ िो ?
• भक्त : -- साहिब जी !मैं तम्
ु िारे पास िूाँ ।
• साहिबे-िजरू : -- तम
ु ने मझ
ु े याद ककया, तम
ु ने
प्राथथना कक तुम मुझे से शमलना चािते िो और बात
करना चािते िो ।
• भक्त : -- िााँ प्राथथना तो मैं िर रोज़ करता िूाँ और
आप से शमल कर अपनी समस्याओं का ननदान
चािता िूाँ ।
• साहिबे-िजरू : -- मैंने तम्
ु िारी प्राथथना सन
ु ी । ज़रा
स्पष्ट तो करो कक तुम क्या चािते िो ।
• भक्त : -- साहिब जी ! मैं मंझधार में फंसा िूाँ,
कैसे बािर आऊाँ ? मैं बिुत व्यस्त रिता िूाँ, मेरा
जीवन एक चलती कफरती गनतववधी बन गया िै , मैं
अपनी समस्याओं का कारण निी जानता मेरा जीवन
इतना मुश्श्कलों भरा क्यो िै , क्या करू ?
• साहिबे-िजरू : -- जीवन में तालमेल बना कर चलो
तुम ,पररवार और मैं सब एक िी व्यापक पररवार के
सदस्य िैं , जीवन की वववेचना एक िी नज़ररये से
करना बन्द कर दो । जीवन का
व्यापक,
व्याविाररक और बदलती पररस्थनतयों के अनस
ु ार
समय समय पुनावथलोकन करते रिो और आगे बडो ।
• भक्त -- साहिब जी आप किााँ बसते िै और आप
को कैसे जब जािे शमल सकते िै ?
• साहिबे-िजरू : -- बच्चू ! मैं तो सदा तेरे हदल में
रिता िूाँ तू ज़रा हदल मे झाक के तो दे ख , तेरा मन
मेरा कमप्यट
ू र िै श्जसके प्राथथना के तार मेरे से जड
ु े
िुए िैं बच्चू ! तू सांध संगत को जो भी किता िै व
ननिान साहिब पर खडा िो िोता िै मै तेरी ओर
झांकता रिता िूाँ । कई लोग भुझे मश्न्दर गरु द्वारे
मश्स्जद या धमथस्थल में ढूडते रिते िै मैं सब जगि
शमलता िूाँ जो मझ
ु े मन से याद कर बल
ु ाता िै । मैं
मश्न्दर गरु द्वारे मश्स्जद मे भी शमलता िूाँ । विााँ
भक्त जन सामहु िक रूप मे एकत्रित िोते िैं और उन
में मांनशसक एकरूपता बनी िोती िै ।
• भक्त : -- प्रभु! आप का कोई धमथ िै ?
• साहिबे-िजरू : -- बच्चू ! मेरा ,तुम्िारा और मेरे
व्यापक पररवार श्जस का िम सभी हिस्सा िै , िम
सब का एक िी धमथ िै , मानवता ।मैं आिीवाथद दे ते
समय मन के भावों को दे खता िूाँ , यि निी दे खता
कक उस मानव ने ककस मां के पेट से जन्म शलया िै
, ककसी प्रकार का भेदभाव निी करता । भक्त जिााँ
मझ
ु े याद करते िैं मैं उन्िे उसी रूप मे विााँ शमलता िूाँ
। मेरा एक रूप व स्वरूप निी मेरे बिुत रूप िैं भक्त
मझ
ु े श्जस रूप मे शमलना चािे शमल सकते
• िैं ।
• भक्त: -- भक्तो को ननिान साहिब पर िी प्राय
शमलते िो, ऐसा मैने दे खा और पाया ।
• साहिबे-िजरू : िााँ कुछ भक्तों को मैं ननिान साहिब
पर िी शमलता िूाँ , मेरे प्यारे मुझे ननिान साहिब पर
पा कर खि
ु िो जाते िै उनकी खि
ु ी मेरे शलये अिम
िै , यि मेरा वप्रय स्थान िै ।
• भक्त: --क्या िम आप को दनु नया के ककसी भी कोने
से आप तक अपनी प्राथथना पिुचााँ सकते िै ?
• साहिबे-िजरू : -- मेरे भक्त मुझे दनु नयााँ के ककसी
कोने से अपने मन चािे ननिान साहिब के दिथन कर
आपनी प्राथथना मझ
ु तक पिुचा सकते िैं ।
• भक्त : -- िम इतने नाखि
ु क्यो िैं ?
• साहिबे-िजूर : -- बच्चू ! तुम आज को आने
वाला कल समझते िो, तुम बीते िुए कल के
बारे में सोचते रिते िो, चचन्ता करना तुम्िारी
आदत बन गई िै ,इसी कारण से तुम नाखुि
िो ।
• भक्त : -- िम चचन्ता कैसे न करे जब िमारे चारों
ओर अननश्श्यतता
बनी िुई िै ।
• साहिबे-िजरू : -- अननश्श्यतता तो सवाथगीण िै पर
चचन्ता करना व न करना तुम पर ननभथर िै । दख
ु
का आना व न आना िम पर ननभथर िै । जीवन मे
शमली अनभ
ु नू तयां बिुत मित्वपण
ु थ िै । ये एक
अध्यापक का काम करती िैं। जीवन का एक उद्देष्य
िोना चाहिये कक जीवन की समस्याओं को अनभ
ु वों से
साफ सुथरा कर अपने उद्देष्य को की ओर बडना। यि
िमारी मांनशसक िश्क्त और आन्तररक ऊजाथ को
बढाता िै । िमे समस्याओं से लडने की ताकत
शमलती िै ।
• भक्त : -- आप ने श्जन को इन्साफ करने की
श्जम्मेदारी दी िै वे न्याय क्यों निी करते ?
• साहिबे-िजरू : -- मैने तो इन के िाथ मे न्याय
करने के शलये कलम दी िै श्जस मे रिमत की
शसिाई भरी िै पर वे रूपया पैसा कमाना,
साफाररि व ररश्वत को अपना कर अपनी चेब
भरना चािते िै ,जानतवाद और आरक्षण ने
गरीबे को और गरीब बना हदया िै ।
• भक्त : -- आप ने श्जन को इन्साफ करने की
श्जम्मेदारी दी िै वे न्याय क्यों निी करते ?
• साहिबे-िजरू : -- मैने तो इन के िाथ मे न्याय
करने के शलये कलम दी िै श्जस मे रिमत की
शसिाई भरी िै पर वे रूपया पैसा कमाना,
साफाररि व ररश्वत को अपना कर अपनी चेब
भरना चािते िै ,जानतवाद और आरक्षण ने
गरीबे को और गरीब बना हदया िै ।
• भक्त : -- िम चचन्ता कैसे न करे जब िमारे चारों
ओर अननश्श्यतता
बनी िुई िै ।
• साहिबे-िजरू : -- अननश्श्यतता तो सवाथगीण िै पर
चचन्ता करना व न करना तुम पर ननभथर िै । दख
ु
का आना व न आना िम पर ननभथर िै । जीवन मे
शमली अनभ
ु नू तयां बिुत मित्वपण
ु थ िै । ये एक
अध्यापक का काम करती िैं। जीवन का एक उद्देष्य
िोना चाहिये कक जीवन की समस्याओं को अनभ
ु वों से
साफ सुथरा कर अपने उद्देष्य को की ओर बडना। यि
िमारी मांनशसक िश्क्त और आन्तररक ऊजाथ को
बढाता िै । िमे समस्याओं से लडने की ताकत
शमलती िै ।
• भक्त : -- ज़रा बताओ तो मंझधार से बािर
कैसे आऊ ?
• साहिबे-िजरू : -- बच्चू !अगर तुम बािरी ओर
दे खो गे तो तुम निी जान पाओ गे कक तुम
किााँ जा रिे िो अगर तुम अपने अन्दर दे खों
गे तो आप जागररत िो जाओं गे, आंखे बािरी
रौिनी दे ती िै जबकक हृदय बािरी और अन्दर
सब ओर रौिनी दे ता िै ।
• भक्त : -- कई बार सफलता न शमलने पर
ननराि िो जाता िूाँ ,मै क्या करू ?
• साहिबे-िजरू : -- बच्चू ! सफलता दस
ू रों द्वारा
प्रयोग ककया गया मापदं ड िै , सन्तुश्ष्ट तुम्िारा
मापदं ड िै , , तुम अपने उद्देष्य की ओर बढते
चलों, दस
ु रों को मत दे खो, ऊन की समय
सीमा की ओर मत दे खो ।
• भक्त : -- साहिब जी! आप को कौन सी चीज़
अचधक वप्रय िै ?
• साहिबे-िजरू : -- भक्त की प्राथथना केवल प्राथथना
।
• भक्त : -- साहिब जी! मेरे गरीबननवाज़!
नीमाननयो के मान! नीओटयां दी ओट!
नीआसरे यां दे आसरे ! मेरी लाज राखो मुझे तो
लट
ू शलया हदल वालो ने ।
• साहिबे-िजूर: -- बच्चू ! श्जतना बांटो गे उस से
कई गन
ु ा बडता चला जाये गा।
• भक्त: -- साहिबजी जब मै प्राथथना िब्दों मे
बयान निी करना चािता तो मैं क्या करू ?
• साहिबे-िजरू : -- तुम मझ
ु े प्राथथना मौन भाव मे
करो और मै तुम्िारे मन की लकीरों को स्वयं
पड लू गा ।
• भक्त: -- कभी कभी मै दरबार निी आ पाता, मै
ववदे ि मे िोता िूाँ कभी मेरा स्वास्थय मुझे चलने
कफरने निी दे ता और कई बार सेवादार मुझे आप का
अमत
ृ प्रसाद उस भाव मे निी दे ते मैं श्जस भाव मे
विााँ उपश्स्थत िूाँ । मैं ऐसी पररश्स्थती मे क्या
करू ?
• साहिबे-िजरू : -- तू चचन्ता न कर दनु नयााँ के ककसी
भी स्थान से अपने मन से प्रभु के चरणों मे समवपथत
िो कर अपने को ननिान साहिब के सामने पा कर
एक साफ सथ
ू रे लोटे मे पानी भर के खडा िो कर
विी से प्राथथना करना ,मै तुम्िे अमत
ू ा ।
ृ बना दग
प्राथथना श्जतने प्यार से करे गा उतना िी अमत
ृ
प्रभाविाली िो गा ।
• भक्त : --कई बार मैं यि जानना चािता िूाँ कक
मैं कोन िू ,मैं यिां क्यो िूाँ , मुझे इन प्रश्नों
का उत्तर निी शमल पाता ।
• साहिबे-िजरू : --ऐसा जानने का प्रयास मत करो
कक आप कौन िैं यि जानने का प्रयास करो
कक तुम क्या बनना चािते िो ,यि जानना
बन्द कर दो कक मैं कोन िूाँ, यि जीवन खोज़
का ववषय निी, जीवन सज
ृ निीलता की ववषय
वस्तु िै ।
• भक्त : -- मैं जीवन मे सवोत्तम कैसे बन
सकता िूाँ ?
• साहिबे-िजरू : --बीत गये कल की असफलताओं
पर अफसोस मत करो , भववष्य को उद्देष्य
बनाओ और आगे बडो ।
• साहिबे-िजरू : -- अगर मैं तम
ु से पछ
ु ू कक तुम्िे क्या
चाहिये तो तुम्िारी चाित क्या िो गी ?
• भक्त : --साहिबे-िजरू ,मैं जािता िूाँ कक मेरे मन के
बगीचे में एक ऐसा मश्न्दर बना दो श्जसे मैं िर रौज़
मन के बगीचे में आप के आिीवाथद से सजाये तरि
तरि के अनोखे और रं ग त्रबरं गे अनुभूनत फूल आप
को अवपथत कर प्राथथना कर सकू । मेरी तमन्ना िै कक
दनु नयााँ के ककसी भी भाग में रिते िुए मैं आप के
वप्रयजनों की सेवा कर सकू जो कई कारण-वि आप
तक निीं पिुच पाते ।
• साहिबे-िजरू : -- क्या तुम यि वायदा ननभा
पाओ गे ?
• भक्त : -- सेवा करना मेरा काम, मेरी सेित
मेरे तन और मेरे मन को ठीक रखना आपका
काम । साहिबे-िजरू : -- तथाअस्तु
• भक्त : -- आप से बात कर के अच्छा लगा
आप का बिुत बिुत धन्यवाद . मैं अब प्रसन्न
िूाँ कक मैं अब नये अध्याय से नये जीवन की
िरू
ु आत कर पाऊाँ गा ।
• साहिबे-िजरू : -- ववश्वास बनाये रखो और डर
को अपने जीवन से भगा दो, िन्काओं पर
ववश्वास न करो और अपने ववश्वास पर िक
न करो, जीवन एक रह्‍स्यपुणथ सचाई िै ,जीवन
कोई समस्या निी ।
• भक्त : -- अश्न्तम प्रश्न , कई बार मेरी प्राथथना का उत्तर
निी शमलता , ऐसा क्यों ?
• साहिबे-िजरू : -- जो भक्त अपन मन मश्न्दर मे उपजे फूलो से
मेरा सम्मान करता िै तथा मेरी सांध संगत को सम्मान दे ता
िै तथा ऊन की ककसी रूप मे सेवा करता िै , तन से मन से ,
तथा अपनी कमाई के कुछ भाग को लंगर मे लगाता िै ,मझ
ु े
बिुत वप्रय लगता िै मैं उस की झोली मन मरु ादों से भर दे ता
िूाँ , समवपथत भाव मे प्रस्तुत प्राथथना कभी भी त्रबना उत्तर के
निी िोती ,कई बार इस का उत्तर नकारात्मक िोता िै , वि
तुम्िारे अथवा सावथजननक हित मे निी िोता , तम
ु उसे
उत्तर न शमलना मान लेते िो । समपथण और सिज भाव मे
प्रस्तत
ु प्राथथना मेरे पास जल्दी और सीधा पिुचने का गरु िै ।
मै अब आिा करता िूाँ कक अब तुम यि मागथ अपनाओ गे
कफर जल्दी िी मझ
ु से पन
ु ः शमल पाओ गे, मै तम्
ु िे अवश्य
शमलू गा ।