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मंगलाठटक
अर्हन्तो भगवन्त इन्रमहर्ता: सिद्धाश्च
सिद्धीश्वरा:
आचार्ाह जिनशािनोन्नततकरा: पज्
ू र्ा
उपाध्र्ार्का: ।
श्रीसिद्धान्तिुपाठका: मुतनवरा:
रत्नत्रर्ाराधका:
पञ्चैते परमेजठठन: प्रततहिनं कुवहन्तु ते
मंगलम ् ।।१ ।।
Title: िे व-स्तुतत
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आर्ा, आर्ा, आर्ा तेरे
30.
िरबार में …
मनर्र तेरी मरू ततर्ां…
31.
रं ग मा रं ग मा…
32.
िगिानंिन जिन
असभनंिन…
33.
पद्मिद्म पद्मापि पद्मा…
चन्रानन जिन चन्रनाथ
34.
के…
तेरी शीतल-शीतल मूरत
35.
लख…
तुझे प्रभु वीर कर्ते र्ैं… 36.
आि मैं मर्ावीर िी…
37.
म्र्ारा आिीश्वर िी…
38.
मैं तेरे ह ग
ं आर्ा रे …
भावना की चन
ु री…
प्रभु िी अब ना भटकेंगे… 39.
मन भार्े चचत र्ुलिार्े…
शुद्धात्मा का श्रद्धान र्ोगा… 40.
वीतरागी िे व तुम्र्ारे …
41.
तुम िैिा मैं भी बन
42.
िाऊं…..
आर्े तेरे द्वार िन
ु ले…
तनरखत जिनचन्र-विन… 43.
िे खो िी आिीश्वर स्वामी
44.
…
ओ िगत के शाजन्तिाता…
ओ शाजन्तनाथ भगवन… 45.
46.
पारि प्रभु का िशहन
47.
र्ोगा...
रोम रोम में नेसम कंु वर… 48.
49.
जिनवर-आनन-भान …
50.
घड़ि-घड़ि पल-पल ….
चँवलेश्वर पारिनाथ …. 51.
52.
पारि प्र्ारा लागो
53.
54.
55.
56.
नेसम जिनेश्वर...
शौरीपुर वाले शौरीपुर
वाले…
अशरीरी सिद्ध भगवान…
करलो जिनवर का
गुणगान…
श्री अरर्ं त छबब लखख
हर्रिै ..
रोम रो्म पल
ु ककत र्ो
िार्…
चार् मुझे र्ै िशहन की…
श्री जिनवर पि ध्र्ावें िे
नर…
पंच परम परमेठठी िे खे…
वन्िों अद्भत
ु चन्रवीर
जिन…
िरबार तुम्र्ारा मनर्र
र्ै …
एक तम्
ु र्ीं आधार र्ो िग
में …
ततर्ारे ध्र्ान की मूरत…
मेरे मन-मजन्िर में
आन…
तनरखो अंग-अंग जिनवर
के…
आओ जिन मंहिर में
आओ…
प्रभु र्म िब का एक…
धन्र्-धन्र् आि घ़िी…
वीर प्रभु के र्े बोल…
आि र्म जिनराि…
तनरखी तनरखी मनर्र …
तोरी पल पल…
तेरे िशहन िे मेरा…..
स्वामी तेरा मुख़िा …
तेरी शांतत छवव…
आि िी िुर्ानी …
प्रभु िशहन कर िीवन ….
तेरी िन्
ु िर मरू त……
57. वधहमान ललना िे कर्े …
58. वतहमान को वधहमान की
आवश्र्कता…
59. नाथ तुम्र्ारी पूिा में िब…
60. भव भव रुले र्ैं…
61. करता र्ूँ तुम्र्ारा िुमरण…
62. भटके र्ुए रार्ी को प्रभु…
63. र्रो पीर मेरी बत्रशला…
64. तू ज्ञान का िागर र्ै …
65. हिन रात स्वामी तेरे गीत
गाऊं…
66. छोटा िा मंहिर बनार्ेंगे…
Title: शास्त्र
भजतत/जिनवाणी स्तुतत
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जिनवाणी अमत
ृ रिाल…
धन्र् धन्र् वीतराग वाणी…
िांची तो गंगा र्र् …
शांतत िुधा बरिाए …
माँ जिनवाणी बिो…
शरण कोई नर्ीं …
ओंकारमर्ी वाणी तेरी…
जिनवैन िुनत, मोरी भूल भगी…
आि मैं परम पिारथ पार्ौ…
धन्र् धन्र् र्ै घ़िी आिकी…
धन्र् धन्र् जिनवाणी माता…
िन
ु कर वाणी जिनवर की...
र्े जिनवाणी माता! तुमको लाखों प्रणाम…
जिनवाणी माता रत्नत्रर् तनचध…
जिनवाणी माता िशहन की बसलर्ाररर्ाँ…
महर्मा र्ै , अगम जिनागम की…
चरणों में आ प़िा र्ूँ, र्े द्वािशांग वाणी…
र्े शाश्वत िुख का प्र्ाला…
िब एक रतन अनमोल र्ै …
मां जिनवाणी तेरो नाम…
जिनवाणी मां जिनवाणी मां…
जिनवाणी िग मैर्ा…
Title: गुरु-भजतत
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ऐिे मतु नवर िे खें…
धन धन िैनी िाधु…
कबधौं समलै मोहर् श्रीगुरु ….
धतन मुतन जिन…
धतन मुतन तनि…
परम हिगम्बर र्ती….
ऐिे िाधु िुगुरु कब समसल र्ैं…
परम गुरु बरित ज्ञान झरी…
वे मुतनवर कब समली र्ैं उपगारी…
परम हिगम्बर मतु नवर िे खे…
िंत िाधु बन के ववचरँ…
धन्र् मन
ु ीश्वर आतम हर्त….
म्र्ारा परम हिगम्बर मुतनवर….
तनत उठ ध्र्ाऊँ, गुण गाऊँ…
र्ै परम-हिगम्बर मुरा जिनकी…
र्ोली खेलें मुतनराि सशखर वन में…
ऐिा र्ोगी तर्ों न अभर्पि पावै…
श्री मुतन राित िमता िंग…
तनर्ग्रंथों का मागह...
शद्ध
ु ातम तत्व ववलािी रे …
शाजन्त िध
ु ा बरिा गर्े गरु
ु …
Title: पंचकल्र्ाणक भिन
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सलर्ा आि प्रभु िी ने िनम िखी….
सलर्ा ररषभ िे व अवतार…
बािै छै बधाई रािा …
चन्रोज्वल छवव अववकार स्वामी िी …
सलर्ा प्रभू अवतार िर्िर्कार …
ववषर्ों की तठृ णा को छोड…
बािे कुण्डलपुर में बधाई…
चगरनारी पर तप कल्र्ाणक…
घर घर आनंि छार्ो…
हिव्र् ध्वतन वीरा खखराई…
भेष हिगम्बर धार…
Title: तीथह वंिना/पवह/िैनधमह
भिन
णमोकार भिन
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लर्रार्ेगा-लर्रार्ेगा…
लर्र लर्र लर्रार्े…
श्रीजिनधमह ििा िर्वन्त
......
भावों में िरलता…
िर्ाँ रागद्वेष िे रहर्त
तनराकुल…
िैन धमह के र्ीरे मोती…
आिा अपने धमह की तू
रार् में…
बडे भाग्र् िे र्मको
समला जिन धमह…
र्े धरम र्ै आतम ज्ञानी
का…
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पवहराि पर्ष
ूह ण आर्ा
…
िीर्रा...िीर्रा...िीर्रा
…
चलो िब समल
सिधचगरी चसलए…
िम्मेि सशखर पर मैं
िाऊंगा…
िांवररर्ा पारिनाथ
सशखर ….
ऊंचे ऊंचे सशखरों वाला
…
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िप िप रे नवकार मंत्र
तू …
णमोकार नाम का र्े
कौन…
मंत्र नवकारा हृिर्…
मंत्र नवकार र्में प्राणॊ
िे…
बने िीवन का मेरा
आधार रे …
Title: अध्र्ात्म/वैराग्र्
भिन
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ममता की पतवार ना तोडी ...
चेतन तँू ततर्ुँ काल ....
भार्ा थारी बावली ...
ध्र्ान धर ले प्रभू ....
िीव! तू भ्रमत ....
धोली र्ो गई रे काली ....
भिन बबन र्ोंर्ी ....
मेरे कब ह्वै वा हिन की िुघरी…
और अबै न कुिे व िुर्ावै…
ऐिा मोर्ी तर्ों न अधोगतत िावै…
र्म तो कबर्ुँ न तनि घर आर्े….
आतम रप अनप
ू म अद्भत
ु …
अपनी िुचध भूल आप…
जिर्ा कब तक उलझेगा…
कबधौं िर पर धर डोलेगा…
मैं र्ूँ आतमराम…
मन मर्ल में िो…
कार्े पाप करे कार्े …
िो आि हिन र्ै वो …
िंिार मर्ा अघिागर में …
कर्ा मानले ओ ….
तो़ि वववषर्ों िे…..
िुनो जिर्ा र्े ितगुरु ….
र्म तो कबर्ूँ न हर्त उपिार्े ….
र्म तो कबर्ुँ न तनिगुन भार्े ….
र्म न ककिीके कोई न र्मारा…
तनिपुर में आि मची र्ोरी…
आओ रे आओ रे ज्ञानानंि की डगररर्ा…
तर्ूं करे असभमान िीवन…
30. मैं िशहन ज्ञान स्वरपी र्ूं…
31. चेतन अपनो रप तनर्ारो…
32. तू िाग रे चेतन िे व…
33. चेतन अपनो रप तनर्ारो…
34. मोर् की महर्मा िे खो तर्ा तेरे…
35. अपने में अपना परमातम…
36. िे खा िब अपने अंतर को…
37. मार्ा में फ़ंिे इंिान…
38. पाना नर्ीं िीवन को…
39. अब गततर्ों में नार्ीं रुलेंगे…
40. शास्त्रों की बातों को मन िे…
आर्ा, आर्ा, आर्ा तेरे
िरबार में …
आर्ा, आर्ा, आर्ा तेरे िरबार में बत्रशला के िल
ु ारे ।
अब तो लगा मझिार िे र्र नाव ककनारे ॥
अथा िंिार िागर में फ़ंिी र्ै नाव र्र् मेरी,
फ़ंिी र्ै नाव र्र् मेरी।
ताकत नर्ीं र्ै और िो पतवार िंभारे ॥ अब तो...
ििा तफ़
ू ान कमों का नचाता नाच र्ै भारी,
नचाता नाच र्ै भारी।
िर्े िख
ु लाख चौरािी नर्ीं वो िाते उचारे ॥ अब तो...
पततत पावन तरण तारण, तम्
ु र्ीं र्ो िीन िख
ु भन्िन,
तम्
ु र्ीं र्ो िीन िख
ु भन्िन।
बबगडी र्िारों की बनी र्ै तेरे िर्ारे ॥ अब तो...
तेरे िरबार में आकर न खाली एक भी लौटा,
न खाली एक भी लौटा।
मनोरथ परू िें "िौभाग्र्" िे ता ोक तम्
ु र्ारे ॥ अब तो...
मनर्र तेरी मरू ततर्ां…
मनर्र तेरी मरू ततर्ां, मस्त र्ुआ मन मेरा।
तेरा िशह पार्ा, पार्ा, तेरा िशह पार्ा॥
प्र्ारा प्र्ारा सिंर्ािन अतत भा रर्ा, भा रर्ा।
उि पर रप अनप
ू ततर्ारा, छा रर्ा, छा रर्ा।
पद्मािन अतत िोर्े रे , नर्ना उमगे र्ैं मेरे।
चचत्त ललचार्ा, पार्ा। तेरा िशह पार्ा..
तव भजतत िे भव के िख
ु समट िाते र्ैं, िाते र्ैं।
पापी तक भी भव िागर ततर िाते र्ैं, ततर िाते र्ैं।
सशव पि वर् र्ी पार्े रे , शरणाआगत में तेरी।
िो िीव आर्ा, पार्ा। तेरा िशह पार्ा..
िांच कर्ूं कोइ तनचध मझ
ु को समल गर्ी,समल गर्ी।
जििको पाकर मन की कसलर्ां खखल गर्ी, खखल गर्ी।
आशा परू ी र्ोगी रे , आश लगा के ववृ द्ध।
तेरे द्वार आर्ा, पार्ा। तेरा िशह पार्ा..
रं ग मा रं ग मा…
रं ग मा रं ग मा रं ग मा रे
प्रभु थारा र्ी रं ग मा रं ग गर्ो रे ।
आर्ा मंगल हिन मंगल अविर,
भजतत मा थारी र्ूं नाच रह्र्ो रे ॥ प्रभु थारा..
गावो रे गाना आतम राम का,
आतम िे व बल
ु ार् रह्र्ो रे ॥प्रभु थारा..
आतम िे व को अंतर में िे खा,
िख
ु िरोवर उछल रह्र्ो रे ॥प्रभु थारा..
भाव भरी र्म भवना र्े भार्ें,
आप िमान बनार् सलर्ो रे ॥प्रभु थारा..
िमर्िार में कुन्िकुन्ि िे व,
भगवान कर्ी न बल
ु ार् रह्र्ो रे ॥प्रभु थारा..
आि र्मारो उपर्ोग पलट्र्ो,
चैतन्र् चैतन्र् भासि रह्र्ो रे ॥प्रभु थारा..
िगिानंिन जिन असभनंिन…
िगिानंिन जिन असभनंिन, पिअरववंि नमंू मैं तेरे ।।टे क ।।
अरुणवरन अघताप र्रन वर, ववतरन कुशल िु शरन बडेरे ।
पद्माििन मिन-मि-भंिन, रं िन मतु निन मन असलकेरे ।।१ ।।
र्े गुन िन
ु मैं शरनै आर्ो, मोहर् मोर् िख
ु िे त घनेरे ।
ता मिभानन स्वपर वपछानन, तम
ु ववन आन न कारन र्े रे ।।२ ।।
तुम पिशरण गर्ी जिनतैं ते, िामन-िरा-मरन-तनरवेरे ।
तम
ु तैं ववमख
ु भर्े शठ ततनको, चर्ुँ गतत ववपत मर्ाववचध पेरे ।।३ ।।
तुमरे असमत िग
ु ुन ज्ञानाहिक, ितत महु ित गनराि उगेरे ।
लर्त न समत मैं पततत कर्ों ककम, ककन शशकन चगररराि उखेरे ।।४
।।
तुम बबन राग िोष िपहनज्र्ों, तनि तनि भाव फलैं ततनकेरे ।
तुम र्ो िर्ि िगत उपकारी, सशवपथ-िारथवार् भलेरे ।।५ ।।
तुम िर्ाल बेर्ाल बर्ुत र्म, काल-कराल व्र्ाल-चचर-घेरे ।
भाल नार् गण
ु माल िपों तम
ु , र्े िर्ाल, िख
ु टाल िबेरे ।।६ ।।
तुम बर्ु पततत िप
ु ावन कीने, तर्ों न र्रो भव िंकट मेरे ।
भ्रम-उपाचध र्र शम िमाचधकर, `िौल' भर्े तुमरे अब चेरे ।।७ ।।
पद्मिद्म पद्मापि पद्मा…
पद्मिद्म पद्मापि पद्मा, मजु ततिद्म िरशावन र्ै ।
कसल-मल-गंिन मन असल रं िन, मतु निन शरन िप
ु ावन र्ै ।।
िाकी िन्मपरु ी कुशंबबका, िरु नर-नाग रमावन र्ै ।
िाि िन्महिनपरू ब षटनव, माि रतन बरिावन र्ै ।।१ ।।
िा तपथान पपोिाचगरर िो, आत्म-ज्ञान चथर थावन र्ै ।
केवलिोत उिोत भई िो, समथ्र्ाततसमर-नशावन र्ै ।।२ ।।
िाको शािन पंचाननिो, कुमतत मतंग नशावन र्ै ।
राग बबना िेवक िन तारक, पै तिु रुषतुष भाव न र्ै ।।३ ।।
िाकी महर्मा के वरननिों, िरु गुरु बवु द्ध थकावन र्ै ।
`
िौल' अल्पमतत को कर्बो जिसम, शशक चगररंि धकावन र्ै ।।४ ।।
चन्रानन जिन चन्रनाथ के…
चन्रानन जिन चन्रनाथ के, चरन चतरु -चचत ध्र्ावतु र्ैं ।
कमह-चक्र-चकचरू चचिातम, चचनमरू त पि पावतु र्ैं ।।टे क ।।
र्ार्ा-र्ूर्ू-नारि-तंब
ु र, िािु अमल िि गावतु र्ैं ।
पद्मा िची सशवा श्र्ामाहिक, करधर बीन बिावतु र्ैं ।।१ ।।
बबन इच्छा उपिे श माहर्ं हर्त, अहर्त िगत िरिावतु र्ैं ।
िा पितट िरु नर मतु न घट चचर, ववकट ववमोर् नशावतु र्ैं ।।२ ।।
िाकी चन्र बरन तनितु तिों, कोहटक िरू तछपावतु र्ैं ।
आतमिोत उिोतमाहर्ं िब, ज्ञेर् अनंत हिपावतु र्ैं ।।३ ।।
तनत्र्-उिर् अकलंक अछीन ि,ु मतु न-उडु-चचत्त रमावतु र्ैं ।
िाकी ज्ञानचजन्रका लोका-लोक माहर्ं न िमावतु र्ैं ।।४ ।।
िाम्र्सिंध-ु वद्धहन िगनंिन, को सशर र्ररगन नावतु र्ैं ।
िंशर् ववभ्रम मोर् `िौल' के, र्र िो िगभरमावतु र्ैं ।।५ ।।
तेरी शीतल-शीतल मरू त लख…
तिह : तेरी प्र्ारी-प्र्ारी िूरत
तेरी शीतल-शीतल मरू त लख,
कर्ीं भी निर ना िमें, प्रभू शीतल ।
िरू त को तनर्ारें पल पल तब,
छबब िि
ू ी निर ना िमें! प्रभू शीतल ।।टे र ।।
भव ि:ु ख िार् िर्ी र्ै घोर, कमह बली पर चला न िोर ।
तुम मख
ु चन्र तनर्ार समली अब, परम शाजन्त िख
ु शीतल ोर
तनि पर का ज्ञान िगे घट में भव बंधन भी़ि थमें ।। प्रभू शीतल ।।१ ।।
िकल ज्ञेर् के ज्ञार्क र्ो, एक तम्
ु र्ी िग नार्क र्ो ।
वीतराग िवहज्ञ प्रभू तुम, तनि स्वरप सशविार्क र्ो ।
`िौभाग्र्' िफल र्ो नर िीवन, गतत पंचम धाम धमे। ।प्रभू शीतल ।।२ ।।
तझ
ु े प्रभु वीर कर्ते र्ैं…
तिह : र्े मेरा प्रेम-पत्र
तझ
ु े प्रभु वीर कर्ते र्ैं, और अततवीर कर्ते र्ैं।
अनेकों नाम तेरे पर, अचधक मर्ावीर कर्ते र्ैं॥
अनंतो गुणों का तू धारी, तेरा र्शगान र्म गार्ें,
र्े र्ग
ु के नाथ तनमाहता, तझ
ु े नत शीश नवार्ें,
िर्ा र्ोवे प्रभू ऐिी, कक र्म िब भव िे पार र्ों, भव िे पार र्ों,
भव िे पार र्ों॥ तुझे प्रभु वीर …॥
र्ग
ु ों िे िीव र्र् मेरा, िे र् का र्ोग र्ै पाता,
मोर् के िाल में फ़ंिकर, आत्म तनि और नर्ीं िाता,
वपला अध्र्ात्म रि स्वामी, ज्ञान की क्षुधा धार र्ो, क्षुधा धार र्ो,
क्षुधा धार र्ो॥ तुझे प्रभु वीर …॥
ित्र् श्रद्धान र्ो मेरे, कक िम्र्क ज्ञान र्ो मेरे,
र्र्ी ववनती मेरे स्वामी, रर्ूं चरणों में तनत तेरे,
कभी कफ़र मोक्ष समल िाए, कक ववृ द्ध िख
ु अपार र्ो, िख
ु अपार र्ो
िख
ु अपार र्ो॥ तुझे प्रभु वीर …॥
आि मैं मर्ावीर िी…
आि मैं मर्ावीर िी आर्ा तेरे िरबार में ,
कब िन
ु ाई र्ोगी मेरी आपकी िरकार में ।
तेरी ककरपा िे र्ै माना लाखों प्राणी ततर गर्े ।
तर्ों नर्ीं मेरी खबर लेते मैं र्ुं मंझधार में ।१।
काट िो कमों को मेरे र्ै र्े इतनी आरिू ।
र्ो रर्ा र्ूं ख्वार मैं ितु नर्ा के मार्ाचार में ।२।
आप का िसु मरन ककर्ा िब मानतंग
ु ाचार्ह ने ।
खुल गर्ी थी बेडडर्ा झट उनकी कारागार में ।३।
बन गर्ा िल
ू ी िे सिंर्ािन िि
ु शहन के सलर्े ।
र्ो रर्ा गुणगान र्ै उि िेठ का िंिार में ।४।
मजु श्कलें आिान कर िो अपने भततों की प्रभो ।
र्र् ववनर् पंकि की र्ै बि आपके िरबार में ।५।
म्र्ारा आिीश्वर िी…
म्र्ारा आिीश्वर िी की िन्
ु िर मरू त
….म्र्ारे मन भाई िी
म्र्ारे मन भाई म्र्ारे चचत चार्ी,
….म्र्ारे मन भाई िी ।
तीन छत्र वांके सिर िोर्े ,
चौंिठ चंवर ु राई िी,
म्र्ारे ....
रत्न सिंर्ािन आप ववरािो,
नािा दृजठट लगाई िी,
म्र्ारे ....
िेवक अिह करे कर िोडे,
आवागमन समटाओ िी,
म्र्ारे ...
मैं तेरे ह ग
ं आर्ा रे …
तिह: मैं उनकी बन िाऊं रे ….
मैं तेरे ह ग
ं आर्ा रे , पद्म तेरे ह ग
ं आर्ा ।
मख
ु मख
ु िे िब िन
ु ी प्रशंिा चचत मेरा ललचार्ा ।
चचत मेरा ललचार्ा रे , पद्म तेरे ह ग
ं आर्ा॥
चला मैं घर िे तेरे िरश को, वरणंू तर्ा वरणंू तर्ा,वरणंू तर्ा मैं मेरे र्रष को,
मैं क्षण क्षण में नाम ततर्ारा रटता रट्ता आर्ा
रटता रट्ता आर्ा रे ...पद्म तेरे ह ग
ं आर्ा॥
पथ में मैंने पछ
ू ा जििको, पार्ा तेरा, पार्ा तेरा, पार्ा तेरा िशहक उिको,
र्र् िन
ु िन
ु मन र्ुअ ववभोररत मग नर्ीं मझ
ु े अघार्ा
मग नर्ी मझ
ं आर्ा॥
ु े अघार्ा रे ... पद्म तेरे ह ग
िन्मख
ु तेरे भीड लगी र्ै , भजतत की, भजतत की, भजतत की इक उमंग िगी र्ै ,
िब िर् िर् का नाि उचारे शभ
ु अविर र्र् पार्ा,
शभ
ं आर्ा॥
ु अविर र्र् पार्ा रे ...पद्म तेरे ह ग
िफ़ल कामना कर प्रभू मेरी, पाऊं मैं, पाऊं मैं, पाऊं मैं चरण रि तेरी,
र्ोगी पण्
ु र् ववृ द्ध आशा र्ै िरश ततर्ारा पार्ा,
िरश ततर्ारा पार्ा रे ...पद्म तेरे ह ग
ं आर्ा॥
भावना की चुनरी…
भावना की चन
ु री ओ के जिनमजन्िर में आविो रे
आविो आविो आविो रे , िारी नगरी बल
ु ाविो रे
भावना की चन
ु री...
श्रद्धा के रं ग िे रं ग लो चन
ु ररर्ां, ज्ञान गण
ु ों िे िडी
मंगल उत्िव अठटाजन्र्का का ,र्ोगी प्रभावना बडी
र्ो ... लेके श्रद्धा अपार आप आविो रे
आप आविो आविो आविो रे , िारी नगरी बल
ु ाविो रे
भावना की चन
ु री...
वीतरागता उर में धारी ,वेश हिगम्बर सलर्ा
िग को मजु तत मागह बतार्ा, िग का कल्र्ाण ककर्ा
र्ो ... लेके भजतत अपार आप आविो रे
आप आविो आविो आविो रे , िारी नगरी बल
ु ाविो रे
भावना की चन
ु री...
प्रभु िी अब ना
भटकेंगे…
प्रभु िी अब ना भटकेंगे िंिार में अब अपनी खबर र्म ं र्ो गर्ी
भल
ू रर्े थे तनि वैभव को पर को अपना माना
ववष िम पंचेंहरर् ववषर्ों में र्ी िख
ु र्मने िाना
पर िे सभन्न लखंू तनि चेतन ... मजु तत तनजश्चत र्ोगी॥
प्रभु िी अब...
मर्ा पण्
ु र् िे र्े जिनवर अब तेरा िशहन पार्ा
शद्ध
ु अतीजन्रर् आनंि रि पीने को चचत्त ललचार्ा
तनववहकल्प तनि अनभ
ु तू त िे ... मजु तत तनजश्चत र्ोगी॥
प्रभु िी अब...
तनि को र्ी िाने पहर्चाने तनि में र्ी रम िार्े
रव्र् भाव नोकमह रहर्त र्ो शाश्वत सशवपि पार्े
रत्नत्रर् तनचधर्ां प्रगटाएं .... मजु तत तनजश्चत र्ोगी॥
प्रभु िी अब...
मन भार्े चचत
र्ुलिार्े…
मन भार्े चचत र्ुलिार्े मेरे छार्ा र्षह अपार रे लख वीर तुम्र्ारी मरू ततर्ां
िे ख सलर्ा मैंने िग िारा तुमिा निर ना आर्े
वीतराग मर
ु ा तम
ु धारे बैठे ध्र्ान लगार्प्रभू तम
ु बैठे ध्र्ान लगार्
िरु पतत आवे, मंगल गावे, नाचे िे िे ताल रे
लख वीर तुम्र्ारी मरू ततर्ां
अठट कमह को िीत प्रभू तम
ु पार्ा केवलज्ञान
िे उपिे श बर्ुत िन तारे कर्ां तक करं बखानप्रभू मैं कर्ां तक करं बखान
भर् िार्े , मेरे रोग ना आर्े, मेरे िध
ु रे काम र्िार रे
लख वीर तुम्र्ारी मरू ततर्ां
राग द्वेष में सलप्त र्ुआ मैं ित को नर्ीं वपछाना
पर वस्तु को अपना िमझा , झंठ
ू े मत को माना
प्रभू िी उलटे मत को माना
अब तम
ु पार्े भरम नशार्े,पंकि र्ोगा पार रे
लख वीर तम्
ु र्ारी मरू ततर्ां
तिह: मन डोले…
शद्ध
ु ात्मा का श्रद्धान र्ोगा…
तिह : खझलसमल सितारों का
शद्ध
ु ात्मा का श्रद्धान र्ोगा, तनि आत्मा तब भगवान र्ोगा ।
तनि में तनि, पर में पर भािक , िम्र्कज्ञान र्ोगा । टे क ।
नव तत्वों में छुपी र्ुई िो ज्र्ोतत उिे प्रगटाऎगे ।
ं ।
पर्ाहर्ों िे पार बत्रकाली ध्रव
ु को लक्ष्र् बनाऎगे
शद्ध
ु चचिानंि रिपान र्ोगा, तनि आत्मा तब भगवान र्ोगा ।१। तनि में तनि....
ं ।
तनि चैतन्र् मर्ा हर्मचगरर िे पररणतत धन टकराऎगे
शद्ध
ु अतीजन्रर् आनंि रिमर् अमत
ृ िल बरिार्ेंगे ।
मोर् मर्ामल प्रक्षाल र्ोगा, तनि आत्मा तब भगवान र्ोगा ।२। तनि में तनि ….
आत्मा के उपवन में रत्नत्रर् पठु प खखलार्ेंगे ।
स्वानभ
ु तू त की िौरभ िे तनि नंिन वन मह्कार्ेंगे ।
िंर्म िे िरु सभत उद्र्ान र्ोगा, तनि आत्मा तब भगवान र्ोगा ।३। तनि में तनि
….
आर्ा कर्ां िे, कर्ां…
आर्ा कर्ां िे, कर्ां र्ै िाना, ू ं
ले हठकाना चेतन ू ं
ले हठकाना ।
इक हिन चेतन गोरा तन र्र्, समट्टी में समल िाएगा ।
कुटुम्ब कबीला पडा रर्े गा, कोई बचा ना पार्ेगा ।
नर्ीं चलेगा कोई बर्ाना...॥ ू ं ले हठकाना...।१।
बार्र िख
ु को खोि रर्ा र्ै बनता तर्ों िीवाना रे ।
आतम र्ी िख
ु खान र्ै प्र्ारे इिको भल
ू ना िाना रे ।
िारे िख
ु ों का र्े र्ै खिाना...॥ ू ं ले हठकाना… ।२।
िब तक तन में िांि रर्े गी िब तुझको अपनार्ेंगे ।
िब न रर्ें गे प्राण िो तन में िब तुझिे घबरार्ेंगे ।
तुझको पडेगा प्र्ारे र्ै िाना...॥ ू ं ले हठकाना...।३।
िौलत के िीवानों िन
ु लो इक हिन ऐिा आर्ेगा ।
धन िौलत और रप खिाना पडा र्र्ीं रर् िार्ेगा ।
कन्धा लगार्ेगा िारा िमाना...॥ ू ं ले हठकाना...।४।
गरु
ु चरणों के ध्र्ान िे चेतन भविागर ततर िार्ेगा ।
िम्र्ग्िशहन ज्ञान िे प्र्ारे िख
ु तेरा समट िार्ेगा ।
िारे िख
ु ो का र्ै र्े खिाना...॥ ू ं ले हठकाना...।५।
वीतरागी िे व तम्
ु र्ारे …
तिह: कस्मे वािे प्र्ार...
वीतरागी िे व तम्
ु र्ारे िैिा िग में िे व कर्ां
मागह बतार्ा र्ै िो िग को ,कर् न िके कोई और र्र्ां।
वीतरागी िे व...
र्ैं िब रव्र् स्वतंत्र िगत में , कोई न ककिी का कार्ह करे
अपने अपने स्वचतुठटर् में , िभी रव्र् ववश्राम करे
अपनी अपनी िर्ि गुफ़ा में , रर्ते पर िे मौन र्र्ां॥ वीतरागी िे व...॥
भाव शभ
ु ाशभ
ु का भी कताह , बनता िो िीवाना र्ै
ज्ञार्क भाव शभ
ु ाशभ
ु िे भी , सभन्न न उिने िाना र्ै
अपने िे अनिान तुझे भगवान कर्ें जिनिे व र्र्ां॥ वीतरागी िे व...॥
पण्
ु र् भाव भी पर आचश्रत र्ै , उिमें धमह नर्ी र्ोता
ज्ञान भाव में तनि पररणतत िे बंधन कमह नर्ी र्ोता
तनि आश्रर् िे र्ी मजु तत र्ै कर्ते र्ै जिनिे व र्र्ां ॥ वीतरागी िे व...॥
तुम िैिा मैं भी बन िाऊं…..
तिह: चाि िी मह्बूबा...
तुम िैिा मैं भी बन िाऊं, ऐिा मैने िोचा र्ै ,
तुम िैिी िमता पा िाऊं, ऐिा मैने िोचा र्ै ।
भव वन में भटक रर्ा भगवन, ऐिी चचन्मरू त न पाई र्ै ।
तेरे िशहन िे तनि िशहन की, िचु ध अपने आप र्ी आई र्ै ।
शांतत प्रिाता मंगलिाता, मजु श्कल िे मैने खोिा र्ै,
तुम िैिी िमता पा िाऊं.... ।१।
ककतनी प्रततकूल पररजस्थतत में , मझ
ु को वैराग्र् न आता र्ै ।
िंिार अिार नर्ीं लगता, मन राग रं ग में िाता र्ै ।
ववषर् वािना की िड गर्री, काटो नाथ भरोिा र्ै ,
तुम िैिी िमता पा िाऊं....।२।
र्े जिनधमह के प्रेमी िन
ु लो, कर् गर्े कंु ि कंु ि स्वामी ।
भव िागर िे ततरने में कफ़र, कल्र्ाणी मां श्री जिनवाणी ।
रप तुम्र्ारा िबिे न्र्ारा, करना सिफ़ह भरॊिा र्ै ,
तुम िैिी िमता पा िाऊं....।३।
आर्े तेरे द्वार िुन ले…
आर्े तेरे द्वार िन
ु ले भततों की पक
ु ार
बत्रशला लाल रे ॥टे क॥
कुण्डलपरु में िनम सलर्ो तब, बिने लगी थी शर्नाई,
िीपावली को मजु तत पाई तब मन में िबके तर्नाई,
तम
ु पा गर्े मजु तत धाम
र्म भी पार्ें तनि का धाम...बत्रशला लाल रे ॥१॥
िन्
ु िर स्र्ाद्वािकी िरगम, िब तुमने थी बरिाई,
भव्र्पनों को आनंिकारी, अमत
ृ धारा बरिाई,
भवविन तुमको तनििम िान
कर गर्े आतम का कल्र्ाण...बत्रशला लाल रे ॥२॥
नीर क्षीर िम तन चेतन को, सभन्न ििा र्ी बतार्ा र्ै ,
जिन चेतन के िशहन पा तनि चेतन िशहन पार्ा र्ै ,
मैं पाऊं तनि का धाम
वर्ी िच्चा जिन का धाम...बत्रशला लाल रे ॥३॥
तनरखत जिनचन्र-विन…
तनरखत जिनचन्र-विन, स्वपििरु
ु चच आई ।।टे क. ।।
प्रगटी तनि आनकी, वपछान ज्ञान भानकी ।
कला उिोत र्ोत काम, िासमनी पलाई ।।१ ।।
शाश्वत आनन्ि स्वाि, पार्ो ववनस्र्ो ववषाि ।
आनमें अतनठट इठट, कल्पना निाई ।।२ ।।
िाधी तनि िाधकी, िमाचध मोर् व्र्ाचधकी ।
उपाचधको ववराचधकैं , आराधना िर्
ु ाई ।।३ ।।
धन हिन तछन आि िग
ु ुतन, चचंतें जिनराि अबै ।
िध
ु रे िब काि `िौल', अचल ऋवद्ध पाई ।।४ ।।
िे खो िी आिीश्वर स्वामी …
िे खो िी आिीश्वर स्वामी कैिा ध्र्ान लगार्ा र्ै ।
कर ऊपरर कर िभ
ु ग ववरािै, आिन चथर ठर्रार्ा र्ै ।।टे क ।।
िगत-ववभतू त भतू तिम तिकर, तनिानन्ि पि ध्र्ार्ा र्ै ।
िरु सभत श्वािा, आशा वािा, नािादृजठट िर्
ु ार्ा र्ै ।।१ ।।
कंचन वरन चलै मन रं च न, िरु चगर ज्र्ों चथर थार्ा र्ै ।
िाि पाि अहर् मोर मग
ृ ी र्रर, िाततववरोध निार्ा र्ै ।।२ ।।
शध
ु उपर्ोग र्ुताशन में जिन, विवु वचध िसमध िलार्ा र्ै ।
श्र्ामसल अलकावसल सशर िोर्ै, मानों धआ
ु ँ उ़िार्ा र्ै ।।३ ।।
िीवन-मरन अलाभ-लाभ जिन, तन
ृ -मतनको िम भार्ा र्ै ।
िरु नर नाग नमहर्ं पि िाकै, `िौल' ताि िि गार्ा र्ै ।।४ ।।
ओ िगत के शाजन्तिाता…
ओ िगत के शाजन्तिाता, शाजन्त जिनेश्वर,
िर् र्ो तेरी॥टे क॥
मोर् मार्ा में फ़ंिा, तुझको भी पहर्चाना नर्ी।
ज्ञान र्ै ना ध्र्ान हिल में धमह को िाना नर्ीं।
िो िर्ारा, मजु ततिाता, शाजन्त जिनेश्वर,
िर् र्ो तेरी.....॥
बनके िेवक र्म खडे र्ैं, आि तेरे द्वार पे।
र्ो कृपा जिनवर तो बेडा, पार र्ो िंिार िे।
तेरे गुण स्वामी मैं गाता, शाजन्त जिनेश्वर,
िर् र्ो तेरी.....॥
ककिको मैं अपना कर्ूं, कोई निर आता नर्ीं।
इि िर्ां में आप बबन कोई भी मन भाता नर्ीं।
तुम र्ी र्ो बत्रभव
ु न ववधाता, शाजन्त जिनेश्वर,
िर् र्ो तेरी.....॥
तिह: ओ बिंती पवन
पागल...
ओ शाजन्तनाथ भगवन…
करुणा िागर भगवान, भव पार लगा िे ना।
तूफ़ां र्ै बर्ुत भारी, मेरी नाव बचा िे ना।
मोर्ी बनकर मैंने अब तक िीवन खोर्ा।
अपने र्ी र्ाथों िे काटों का बीि बोर्ा।
अब शरण तेरी आर्ा, िख
ु िाल र्टा िे ना।
करुणा िागर भगवान...
मैsने चर्ुंगततर्ों में बर्ु कठट उठार्ा र्ै ।
लख चौरािी कफ़रते िख
ु चैन न पार्ा र्ै ।
िखु खर्ा र्ूं भटक रर्ा प्रभु लाि बचा िे ना।
करुणा िागर भगवान...
भगवन तेरी भजतत िे िंकट टल िाते र्ैं।
अज्ञान ततसमर समटता िख
ु अमत
ृ पाते र्ैं।
चरणॊं में खडा प्रभि
ु ी मझ
ु े रार् बता िे ना।
करुणा िागर भगवान...
तिह: र्ोठों िे छू
लो...
पारि प्रभु का िशहन र्ोगा...
पारि प्रभु का िशहन र्ोगा, चरणों में उनके तन मन र्ोगा।
ऎिा िन्
ु िर, उज्िवल, अपना िीवन र्ोगा॥टे क॥
पारि प्रभु को भिंू, िांझ और िवेरे।
मोर् तठृ णा को तिंू, तब र्ी कुछ बने रे ।
िश ववचध धमह का पालन र्ोगा, चरणों में उनके तन मन र्ोगा।
ऎिा िन्
ु िर....
कफ़र तो ितु नर्ा के िब र्ी, झमेले छूट िार्ेंगे।
कमों के बन्धन भी, अवश्र् छूट िार्ेगे।
केवल ज्ञान का िशहन र्ोगा, चरणों में उनके तन मन र्ोगा।
ऎिा िन्
ु िर....
रोम रोम में नेसम कंु वर…
रोम रोम में नेसम कंु वर के, उपशम रि की धारा… उपशम रि की धारा ।
राग द्वेष के बंधन तोडे, भेष हिगम्बर धार॥
ब्र्ार् करन को आर्े, िंग बराती लार्े।
पशओ
ु ं को बंधन में िे खा, िर्ा सिन्धु लर्रार्े।
चधक चधक िग की स्वाथह वजृ त्त, रर्े न िख
ु की धारा॥
रोम रोम में ....
रािल
ु अतत अकुलार्े, नो भव की र्ाि हिलार्े।
नेसम कर्ें िग में न ककिी का, कोई कभी र्ो पार्।
राग रप अंगारों द्वारा, चलता र्ै िग िारा॥
रोम रोम में ....
नो भव का िसु मरण करने में , आतम तत्व ववचारें ।
शाश्वत ध्रव
ु चैतन्र् राि की, महर्मा चचत में धारें ।
लर्राता वैराग्र् सिंधु अब, भार्ें भावना बारा॥
रोम रोम में ....
रािल
ु के प्रतत राग तिा र्ै , मजु तत वधू को ब्र्ार्ें ।
धन्र् हिगम्बर िीक्षा धरकर, आतम ध्र्ान लगावें ।
भव बंधन का नाश करें गे, पावें िख
ु अपारा॥
रोम रोम में ....
जिनवर-आनन-भान …
तिह: िे खो िी
आिीश्वर...
जिनवर-आनन-भान तनर्ारत, भ्रमतम घान निार्ा र्ै ।।टे क. ।।
वचन-ककरन-प्रिरनतैं भवविन, मनिरोि िरिार्ा र्ै ।
भविख
ु कारन िख
ु ववितारन, कुपथ िप
ु थ िरिार्ा र्ै ।।१ ।।
ववनिाई कि िलिरिाई, तनसशचर िमर िरु ार्ा र्ै ।
तस्कर प्रबल कषार् पलार्े, जिन धनबोध चरु ार्ा र्ै ।।२ ।।
लखखर्त उडुग न कुभाव कर्ूँ अब, मोर् उलक
ू लिार्ा र्ै ।
र्ँ ि कोक को शोक नश्र्ो तनि, परनततचकवी पार्ा र्ै ।।३ ।।
कमहबंध-किकोप बंधे चचर, भवव-असल मंच
ु न पार्ा र्ै ।
`िौल' उिाि तनिातम अनभ
ु व, उर िग अन्तर छार्ा र्ै ।।४ ।।
घड़ि-घड़ि पल-पल ….
घड़ि-घड़ि पल-पल तछन-तछन तनशहिन, प्रभि
ु ी का िसु मरन करले रे ।।
प्रभु िसु मरे तैं पाप कटत र्ैं, िनममरनिख
ु र्रले रे ।।१ ।।घड़ि ।।
मनवचकार् लगार् चरन चचत, ज्ञान हर्र्े ववच धर ले रे ।।२ ।।घड़ि ।।
`िौलतराम' धमहनौका चह़ि, भविागर तैं ततर ले रे ।।३ ।।घड़ि ।।
चँवलेश्वर पारिनाथ ….
चँ वलेश्वर पारिनाथ , म्र्ारी नैर्ा पार लगािो
म्र्ें िन
ु िन
ु अततशर् िारा , आर्ा िशहन हर्त िारा।
र्ोिी म्र्ाने पार करो मझधार , म्र्ारी नैर्ा पार लगािो ॥
ऊंचा पवहत गर्री झाडी , नीचे बर् रर्ी नहिर्ां भारी।
र्ोिी थांका िशहन पर बसलर्ार , म्र्ारी नैर्ा पार लगािो ॥
थे चचंतामखण रतन कर्ावो , िखु खर्ा रा िख
ु समटाओ।
म्र्ाके अंतर ज्र्ोतत िगार , म्र्ारी नैर्ा पार लगािो ॥
तोडी मान कमठ की माला , त्र्ारा नाग नाचगन काला।
बन गर्ा िे व कृपा तब धार , म्र्ारी नैर्ा पार लगािो ॥
म्र्ैं भी अिर्मेरुं िंु आर्ा , थांका िशहन कर र्रषार्ा।
िावां िशहन पर बसलर्ार म्र्ारी नैर्ा पार लगािो ॥
थांको नाम मंत्र िो ध्र्ावे , ब्र्ाकां िगला िख
ु समट िावे।
प्रगटे शील आत्मबल िार , म्र्ारी नैर्ा पार लगािो ॥
पारि प्र्ारा लागो…
पारि प्र्ारा लागो , चँ वलेश्वर प्र्ारा लागो
थांकी बांकडली झाडर्ां में , गैलो भल्
ू र्ो िी म्र्ारा पारि िी,
म्र्ैं रस्तो ककर्ां पावांला॥ पारि प्र्ारा … ॥
अब डर लागे छै म्र्ाने , र्र बार पक
ु ारां थांने।
थांका पवहत रा िंगल में , सिंर् धडूके र्ो चँ वलेश्वर िी ,
म्र्ैं रस्तो ककर्ां पावांला॥ पारि प्र्ारा … ॥
थे राग द्वेष न त्र्ागा , म्र्ै आर्ा भाग्र्ा भाग्र्ा।
थांका पवहत री भाटा की , ठोकर लागी र्ो चँ वलेश्वर िी ,
म्र्ैं रस्तो ककर्ां पावांला॥ पारि प्र्ारा … ॥
म्र्े अिमेर शर्र िे चाल्र्ा , थांका ऊंचा िे ख्र्ा माला।
म्र्ाने पेडर्ा पेडर्ा च वो , प्र्ारो लागे र्ो चँ वलेश्वर िी ,
म्र्ैं रस्तो ककर्ां पावांला॥ पारि प्र्ारा … ॥
थांका ववशाल िशहन पार्ा , िि तन मन िे र्रषार्ा।
थांकी छतरी की तो शोभा , न्र्ारी लागे र्ो चँ वलेश्वर िी ,
म्र्ैं रस्तो ककर्ां पावांला॥ पारि प्र्ारा … ॥
थे झंठ
ू बोलबो छोडो , और धमह िंू नातो िोडो।
म्र्ारी बांकडली झाडर्ां में , गैलो पावो िी म्र्ारा िेवक िी ,
थे िीधो रस्तो पावोला॥ पारि प्र्ारा … ॥
नेसम जिनेश्वर...
नेसम जिनेश्वर...
नेसम जिनेश्वर तेरी िर् िर्कार करे र्म िारे ॥
भव भर् र्ारी, मम हर्त कारी, तुम र्ो ज्ञाता, तुम र्ो दृठटा।
प्राणी मात्र के प्रभु आपने िारे कठट तनवारे ।
नेसम जिनेश्वर...
ववघ्न ववनाशक, स्व-पर प्रकाशक, तुम्र्ीं मर्न्ता, तुम भगवन्ता।
तीन िगत के ज्ञेर्ाकार तनर्ारे ।
नेसम जिनेश्वर...
ज्ञेर् प्रकाशक, र्े र् ववनाशा, उपािे र् तनि, तु िशाहर्ा।
इंर िरु े न्र नरे न्र तुम्र्ारी आरती उतारें ।
नेसम जिनेश्वर...
शौरीपरु वाले शौरीपरु वाले…
शौरीपरु वाले शौरीपरु वाले नेसमिी र्मारे शौरीपरु वाले
नेसमिी र्मारे शौरीपरु वाले..
सशवािे वी घर िन्म सलर्ो र्ै , माता की कोख को धन्र् ककर्ो र्ै
अंततम िन्म र्ुअ प्रभि
ु ी का, िन्म मरण को नाश ककर्ो र्ै
िमर
ु वविर् के आंखों के तारे ...नेसमिी र्मारे शौरीपरु वाले
स्वगह परु ी िे िरु पतत आर्े, ऐरावत र्ाथी ले आर्े
पांडुक सशला पर प्रभु को बबठार्े, क्षीरोिचध िे न्र्वन करार्े
रतन बरिार्े र्ां न्र्वन करार्े...नेसमिी र्मारे शौरीपरु वाले
िे खो भैर्ा इन्र भी आर्े, पंचकल्र्ाणक का उत्िव करार्े
प्रभु िशहन कर अतत र्रषार्े, मंगल तांडव नत्ृ र् रचार्े
िभी र्रषार्े र्ां खुसशर्ां मनार्े...नेसमिी र्मारे शौरीपरु वाले
तन िे सभन्न तनिातम तनरखे, तनि अंतर का वैभव परखे
भेि ज्ञान की ज्र्ोतत िलावे, िंर्म की महर्मा चचत लावे
गर्े चगरनारे गर्े चगरनारे ...नेसमिी र्मारे शौरीपरु वाले
अशरीरी सिद्ध भगवान…
अशरीरी-सिद्ध भगवान, आिशह तुम्र्ीं मेरे ।
अववरुद्ध शद्ध
ु चचद्घन, उत्कषह तुम्र्ीं मेरे ।।टे क ।।
िम्र्तत्व िि
ु शहन ज्ञान, अगुरुलघु अवगार्न ।
िक्ष्
ू मत्व वीर्ह गण
ु खान, तनबाहचधत िख
ु वेिन ।।
र्े गुण अनन्त के धाम, वन्िन अगखणत मेरे ।।१ ।।
रागाहि रहर्त तनमहल, िन्माहि रहर्त अववकल ।
कुल गोत्र रहर्त तनठकुल, मार्ाहि रहर्त तनश्छल ।।
रर्ते तनि में तनश्चल, तनठकमह िाध्र् मेरे ।।२ ।।
रागाहि रहर्त उपर्ोग, ज्ञार्क प्रततभािी र्ो ।
स्वाचश्रत शाश्वत-िख
ु भोग, शद्ध
ु ात्म-ववलािी र्ो ।।
र्े स्वर्ं सिद्ध भगवान, तु िाध्र् बनो मेरे ।।३ ।।
भवविन तु-िम तनि-रप, ध्र्ाकर त-ु िम र्ोते ।
चैतन्र् वपण्ड सशव-भप
ू , र्ोकर िब िख
ु खोते ।।
चैतन्र्राि िख
ु खान, िख
ु िरू करो मेरे ।।४ ।।
करलो जिनवर का गण
ु गान…
करलो जिनवर का गुणगान, आई मंगल घ़िी ।
आई मंगल घ़िी, िे खो मंगल घ़िी ।।करलो ।।१ ।।
वीतराग का िशहन पि
ू न भव-भव को िख
ु कारी ।
जिन प्रततमा की प्र्ारी छववलख मैं िाऊँ बसलर्ारी ।।करलो ।।२ ।।
तीथंकर िवहज्ञ हर्तंकर मर्ा मोक्ष के िाता ।
िो भी शरण आपकी आता, तु िम र्ी बन िाता ।।करलो ।।३ ।।
प्रभु िशहन िे आतह रौर पररणाम नाश र्ो िाते ।
धमह ध्र्ान में मन लगता र्ै , शत
ु ल ध्र्ान भी पाते ।।करलो ।।४।।
िम्र्तिशहन र्ो िाता र्ै समथ्र्ातम समट िाता ।
रत्नत्रर् की हिव्र् शजतत िे कमह नाश र्ो िाता ।।करलो ।।५ ।।
तनि स्वरप का िशहन र्ोता, तनि की महर्मा आती ।
तनि स्वभाव िाधन के द्वारा स्वगतत तरु त समल िाती ।।करलो ।।६ ।।
श्री अरर्ं त छबब लखख हर्रिै ..
तिह : िे खो िी आिीश्वर...
श्री अरर्ं त छबब लखख हर्रिै , आनन्ि अनप
ु म छार्ा र्ै ।।टे क. ।।
वीतराग मर
ु ा हर्तकारी, आिन पद्म लगार्ा र्ै ।
दृजठट नासिका अर्ग्रधार मन,ु ध्र्ान मर्ान ब़िार्ा र्ै ।।१ ।।
रप िध
ु ाकर अंिसल भरभर, पीवत अतत िख
ु पार्ा र्ै ।
तारन-तरन िगत हर्तकारी, ववरि िचीपतत गार्ा र्ै ।।२ ।।
तु मख
ु -चन्र नर्न के मारग, हर्रिै माहर्ं िमार्ा र्ै ।
भ्रम तम ि:ु ख आताप नस्र्ो िब, िख
ु िागर बह़ि आर्ा र्ै ।।३ ।।
प्रकटी उर िन्तोष चजन्रका, तनि स्वरप िशाहर्ा र्ै ।
धन्र्-धन्र् तु छवव `जिनेश्वर', िे खत र्ी िख
ु पार्ा र्ै ।।४ ।।
रोम रो्म पुलककत र्ो िार्…
रोम रो्म पल
ु ककत र्ो िार्, िब जिनवर के िशहन पार् ।।टे क ।।
ज्ञानानन्ि कसलर्ाँ खखल िार्ँ, िब जिनवर के िशहन पार् ।।
जिन-मजन्िर में श्री जिनराि, तन-मजन्िर में चेतनराि ।।
तन-चेतन को सभन्न वपछान, िीवन िफल र्ुआ र्ै आि ।।
वीतराग िवहज्ञ-िे व प्रभ,ु आर्े र्म तेरे िरबार ।
तेरे िशहन िे तनि िशहन, पाकर र्ोवें भव िे पार ।।
मोर्-मर्ातम तुरत ववलार्, िब जिनवर के िशहन पार् ।।१ ।।
िशहन-ज्ञान अनन्त प्रभु का, बल अनन्त आनन्ि अपार ।
गुण अनन्त िे शोसभत र्ैं प्रभ,ु महर्मा िग में अपरम्पार ।।
शद्ध
ु ातम की महर्मा आर्, िब जिनवर के िशहन पार् ।।२ ।।
लोकालोक झलकते जििमें , ऐिा प्रभु का केवलज्ञान ।
लीन रर्ें तनि शद्ध
ु ातम में , प्रततक्षण र्ो आनन्ि मर्ान ।।
ज्ञार्क पर दृजठट िम िार्, िब जिनवर के िशहन पार् ।।३ ।।
प्रभु की अन्तमख
ुह -मर
ु ा लखख, पररणतत में प्रकटे िमभाव ।
क्षण-भर में र्ों प्राप्त ववलर् को, पर-आचश्रत िम्पण
ू ह ववभाव ।।
रत्नत्रर्-तनचधर्ाँ प्रकटार्, िब जिनवर के िशहन पार् ।।४ ।।
चार् मुझे र्ै िशहन की…
तिह : प्रभु िशहन िे िीवन की....
चार् मझ
ु े र्ै िशहन की, प्रभु के चरण स्पशहन की ।।टे क ।।
वीतराग-छवव प्र्ारी र्ै , िगिन को मनर्ारी र्ै ।
मरू त मेरे भगवन की, वीर के चरण स्पशहन की ।।१ ।।
कुछ भी नर्ीं शंग
ृ ार ककर्े, र्ाथ नर्ीं र्चथर्ार सलर्े ।
फौि भगाई कमहन की, प्रभु के चरण स्पशहन की ।।२ ।।
िमता पाठ प़िाती र्ै , ध्र्ान की र्ाि हिलाती र्ै ।
नािादृजठट लखो इनकी, प्रभु के चरण स्पशहन की ।।३ ।।
र्ाथ पे र्ाथ धरे ऐिे, करना कुछ न रर्ा िैिे ।
िे ख िशा पद्मािन की, वीर के चरण स्पशहन की ।।४ ।।
िो सशव-आनन्ि चार्ो तु, इन-िा ध्र्ान लगाओ तु ।
ववपत र्रे भव-भटकन की, प्रभु के चरण स्पशहन की ।।५ ।।
श्री जिनवर पि ध्र्ावें िे नर…
श्री जिनवर पि ध्र्ावें िे नर, श्री जिनवर पि ध्र्ावें र्ैं ।।टे क ।।
ततनकी कमह कासलमा ववनशे, परम ब्रह्म र्ो िावें र्ैं ।
उपल-अजग्न िंर्ोग पार् जिसम, कंचन ववमल कर्ावें र्ैं ।।१ ।।
चन्रोज्ज्वल िि ततनको िग में , पजण्डत िन तनत गावें र्ैं ।
िैिे कमल िग
ु न्ध िशों हिश, पवन िर्ि फैलावें र्ैं ।।२ ।।
ततनहर् समलन को मजु तत िन्
ु िरी, चचत असभलाषा लावें र्ैं ।
कृवष में तण
ु पावें र्ैं।।३ ।।
ृ जिसम िर्ि उपजिर्ो, स्वगाहहिक िख
िनम-िरा-मत
ु ावें र्ैं ।
ृ िावानल र्े, भाव िसलल तैं बझ
`भागचंि' कर्ाँ तांई वरने, ततनहर् इन्र सशर नावें र्ैं।।४ ।।
पंच परम परमेठठी िे खे…
पंच परम परमेठठी िे खे------------------ ।
हृिर् र्वषहत र्ोता र्ै , आनन्ि उल्लसित र्ोता र्ै ।
र्ो s s s िम्र्ग्िशहन र्ोता र्ै ।।टे क ।।
िशह-ज्ञान-िख
ु -वीर्ह स्वरपी गण
ु अनन्त के धारी र्ैं ।
िग को मजु ततमागह बताते, तनि चैतन्र् ववर्ारी र्ैं ।।
मोक्षमागह के नेता िे खे, ववश्व तत्त्व के ज्ञाता िे खे ।
हृिर् र्वषहत र्ोता र्ै -------------------- ।।१ ।।
रव्र्-भाव-नोकमह रहर्त, िो सिद्धालर् के वािी र्ैं ।
आतम को प्रततबबजम्बत करते, अिर अमर अववनाशी र्ैं ।।
शाश्वत िख
ु के भोगी िे खे, र्ोगरहर्त तनिर्ोगी िे खे ।
हृिर् र्वषहत र्ोता र्ै ---------------------- ।।२ ।।
िाधु िंघ के अनश
ु ािक िो, धमहतीथह के नार्क र्ैं ।
तनि-पर के हर्तकारी गुरुवर, िे व-धमह पररचार्क र्ैं ।।
गुण छत्तीि िप
ु ालक िे खे, मजु ततमागह िंचालक िे खे ।
हृिर् र्वषहत र्ोता र्ै ---------------------- ।।३ ।।
जिनवाणी को हृिर्ंगम कर, शद्ध
ु ातम रि पीते र्ैं ।
द्वािशांग के धारक मतु नवर, ज्ञानानन्ि में िीते र्ैं ।।
रव्र्-भाव श्रत
ु धारी िे खे, बीि-पाँच गुणधारी िे खे ।
हृिर् र्वषहत र्ोता र्ै ---------------------- ।।४ ।।
तनिस्वभाव िाधनरत िाध,ु परम हिगम्बर वनवािी ।
िर्ि शद्ध
ु चैतन्र्रािमर्, तनिपररणतत के असभलाषी ।।
चलते-कफरते सिद्धप्रभु िे खे, बीि-आठ गुणमर् ववभु िे खे ।
हृिर् र्वषहत र्ोता र्ै ---------------------- ।।५ ।।
वन्िों अद्भत
ु चन्रवीर जिन…
तिह : िे खो िी आिीश्वर...
वन्िों अद्भत
ु चन्रवीर जिन, भववचकोर चचत र्ारी ।
चचिानन्ि अंबचु ध अब उछर्ो भव तप नाशन र्ारी ।।टे क ।।
सिद्धारथ नप
ृ कुल नभ मण्डल, खण्डन भ्रम-तम भारी ।
परमानन्ि िलचध ववस्तारन, पाप ताप छर् कारी ।।१ ।।
उहित तनरन्तर बत्रभव
ु न अन्तर, कीरत ककरन पिारी ।
िोष मलंक कलंक अखकक, मोर् रार्ु तनरवारी ।।२ ।।
कमाहवरण पर्ोध अरोचधत, बोचधत सशव मगचारी ।
गणधराहि मतु न उडगन िेवत, तनत पन
ू म ततचथ धारी ।।३ ।।
अखखल अलोकाकाश उलंघन, िािु ज्ञान उिर्ारी ।
`िौलत' तनिा कुमहु ितनमोिन, ज्र्ों चरम िगतारी ।।४ ।।
िरबार तुम्र्ारा मनर्र र्ै …
िरबार तम्
ु र्ारा मनर्र र्ै , प्रभु िशहन कर र्षाहर्े र्ैं ।
िरबार तुम्र्ारे आर्े र्ैं, िरबार तुम्र्ारे आर्े र्ैं ।।टे क ।।
भजतत करें गे चचत िे तुम्र्ारी, तप्ृ त भी र्ोगी चार् र्मारी ।
भाव रर्ें तनत उत्तम ऐिे, घट के पट में लार्े र्ैं ।।िरबार. ।।१ ।।
जििने चचंतन ककर्ा तुम्र्ारा, समला उिे िंतोष िर्ारा ।
शरणे िो भी आर्े र्ैं, तनि आतम को लख पार्े र्ैं ।।िरबार. ।।२ ।।
ववनर् र्र्ी र्ै प्रभू र्मारी, आतम की मर्के फुलवारी ।
अनग
ु ामी र्ो तु पि पावन, `ववृ द्ध' चरण सिर नार्े र्ैं ।।िरबार. ।।३ ।।
एक तम्
ु र्ीं आधार र्ो िग में …
एक तुम्र्ीं आधार र्ो िग में , अर् मेरे भगवान ।
कक तुमिा और नर्ीं बलवान ।।
िँभल न पार्ा गोते खार्ा, तु बबन र्ो र्ै रान ।
कक तुमिा और नर्ीं बलवान ।।टे क ।।
आर्ा िमर् ब़िा िख
ु कारी, आतम-बोध कला ववस्तारी ।
मैं चेतन, तन वस्तु न्र्ारी, स्वर्ं चराचर झलकी िारी ।।
तनि अन्तर में ज्र्ोतत ज्ञान की अक्षर्तनचध मर्ान ।।
कक तुमिा और नर्ीं बलवान ।।१।।
ितु नर्ा में इक शरण जिनंिा, पाप-पण्
ु र् का बरु ा र्े फंिा ।
मैं सशवभप
ू रप िख
ु कंिा, ज्ञाता-दृठटा तु-िा बंिा ।।
मझ
ु कारि के कारण तु र्ो, और नर्ीं मततमान ।।
कक तुमिा और नर्ीं बलवान ।।२।।
िर्ि स्वभाव भाव िरशाऊँ , पर पररणतत िे चचत्त र्टाऊँ ।
पतु न-पतु न िग में िन्म न पाऊँ , सिद्धिमान स्वर्ं बन िाऊँ ।।
चचिानन्ि चैतन्र् प्रभु का र्ै `िौभाग्र्' प्रधान ।।
कक तुमिा और नर्ीं बलवान ।।३।।
ततर्ारे ध्र्ान की मूरत…
ततर्ारे ध्र्ान की मरू त, अिब छवव को हिखाती र्ै ।
ववषर् की वािना ति कर, तनिातम लौ लगाती र्ै ।।टे क ।।
तेरे िशहन िे र्े स्वामी! लखा र्ै रप मैं तेरा ।
तिँ ू कब राग तन-धन का, र्े िब मेरे वविाती र्ैं ।।१ ।।
िगत के िे व िब िे खे, कोई रागी कोई द्वेषी ।
ककिी के र्ाथ आर्ध
ु र्ै , ककिी को नार भाती र्ै ।।२ ।।
िगत के िे व र्ठर्ग्रार्ी, कुनर् के पक्षपाती र्ैं ।
तू र्ी िन
ु र् का र्ै वेत्ता, वचन तेरे अघाती र्ैं ।।३ ।।
मझ
ु े कुछ चार् नर्ीं िग की, र्र्ी र्ै चार् स्वामी िी ।
िपँू तु नाम की माला, िो मेरे काम आती र्ै ।।४ ।।
तुम्र्ारी छवव तनरख स्वामी, तनिातम लौ लगी मेरे ।
र्र्ी लौ पार कर िे गी, िो भततों को िर्
ु ाती र्ै ।।५ ।।
मेरे मन-मजन्िर में आन…
मेरे मन-मजन्िर में आन, पधारो मर्ावीर भगवान ।।टे क ।।
भगवन तु आनन्ि िरोवर, रप तुम्र्ारा मर्ा मनोर्र ।
तनसश-हिन रर्े तुम्र्ारा ध्र्ान, पधारो मर्ावीर भगवान ।।१ ।।
िरु ककन्नर गणधर गुण गाते, र्ोगी तेरा ध्र्ान लगाते ।
गाते िब तेरा र्शगान, पधारो मर्ावीर भगवान ।।२ ।।
िो तेरी शरणागत आर्ा, तूने उिको पार लगार्ा ।
तु र्ो िर्ातनचध भगवान, पधारो मर्ावीर भगवान ।।३ ।।
भगत िनों के कठट तनवारें , आप तरें र्मको भी तारें ।
कीिे र्मको आप िमान, पधारो मर्ावीर भगवान ।।४ ।।
आर्े र्ैं र्म शरण ततर्ारी, भजतत र्ो स्वीकार र्मारी ।
तु र्ो करुणा िर्ातनधान, पधारो मर्ावीर भगवान ।।५ ।।
रोम-रोम पर तेि तुम्र्ारा, भ-ू मण्डल तुिे उजिर्ारा ।
रवव-शसश तु िे ज्र्ोततमाहन, पधारो मर्ावीर भगवान ।।६ ।।
तनरखो अंग-अंग जिनवर के…
तनरखो अंग-अंग जिनवर के, जिनिे झलके शाजन्त अपार ।।टे क ।।
चरण-कमल जिनवर कर्ें , घम
ू ा िब िंिार ।
पर क्षणभंगुर िगत में , तनि आत्मतत्त्व र्ी िार ।।
र्ातैं पद्मािन ववरािे जिनवर, झलके शाजन्त अपार ।।१ ।।
र्स्त-र्ग
ु ल जिनवर कर्ें , पर का कताह र्ोर् ।
ऐिी समथ्र्ाबवु द्ध िे र्ी, भ्रमण चतुरगतत र्ोर् ।।
र्ातैं पद्मािन ववरािे जिनवर, झलके शाजन्त अपार ।।२ ।।
लोचन द्वर् जिनवर कर्ें , िे खा िब िंिार ।
पर ि:ु खमर् गतत चतुर में , ध्रव
ु आत्मतत्त्व र्ी िार ।।
र्ातैं नाशादृजठट ववरािे जिनवर, झलके शाजन्त अपार ।।३ ।।
अन्तमख
ुह मर
ु ा अर्ो, आत्मतत्त्व िरशार् ।
जिनिशहन कर तनििशहन पा, ित्गुरु वचन िर्
ु ार् ।।
र्ातैं अन्तदृहजठट ववरािे जिनवर, झलके शाजन्त अपार ।।४ ।।
आओ जिन मंहिर में आओ…
आओ जिन मंहिर में आओ,
श्री जिनवर के िशहन पाओ ।
जिन शािन की महर्मा गाओ,
आर्ा-आर्ा रे अविर आनन्ि का ।।टे क ।।
र्े जिनवर तव शरण में, िेवक आर्ा आि ।
सशवपरु पथ िरशार् के, िीिे तनि पि राि ।।
प्रभु अब शद्ध
ु ातम बतलाओ,
चर्ुँगतत ि:ु ख िे शीघ्र छु़िाओ ।
हिव्र्-ध्वतन अमत
ृ बरिाओ ।
आर्ा-प्र्ािा मैं िेवक आनन्ि का ।।१ ।।
जिनवर िशहन कीजिए, आतम िशहन र्ोर् ।
मोर्मर्ातम नासश के, भ्र ण चतग
ु तह त खोर् ।।
शद्ध
ु ातम को लक्ष्र् बनाओ ।
तनमहल भेि-ज्ञान प्रकटाओ ।
अब ववषर्ों िे चचत्त र्टाओ,
पाओ-पाओ रे मारग तनवाहण का ।।२ ।।
चचिानन्ि चैतन्र्मर्, शद्ध
ु ातम को िान ।
तनि स्वरप में लीन र्ो, पाओ केवलज्ञान ।।
नव केवल लजब्ध प्रकटाओ,
कफर र्ोगों को नठट कराओ ।
अववनाशी सिद्ध पि को पाओ,
आर्ा-आर्ा रे अविर आनन्ि का ।।३ ।।
प्रभु र्म िब का एक…
प्रभु र्म िब का एक, तू र्ी र्ै , तारणर्ारा रे ।
तम
ु को भल
ू ा, कफरा वर्ी नर, मारा मारा रे ।।टे क ।।
ब़िा पण्
ु र् अविर र्र् आर्ा, आि तुम्र्ारा िशहन पार्ा ।
फूला मन र्र् र्ुआ िफल, मेरा िीवन िारा रे ।।१ ।।
भजतत में अब चचत्त लगार्ा, चेतन में तब चचत ललचार्ा ।
वीतरागी िे व! करो अब, भव िे पारा रे ।।२ ।।
अब तो मेरी ओर तनर्ारो, भविमर
ु िे नाव उबारो ।।
`पंकि' का लो र्ाथ पक़ि, मैं पाऊँ ककनारा रे ।।३ ।।
िीवन में मैं नाथ को पाऊँ, वीतरागी भाव ब़िाऊँ ।
भजततभाव िे प्रभु चरणन में , िाऊँ-िाऊँ रे ।।४ ।।
धन्र्-धन्र् आि घ़िी…
धन्र्-धन्र् आि घ़िी कैिी िख
ु कार र्ै ।
सिद्धों का िरबार र्ै र्े सिद्धों का िरबार र्ै ।।टे क ।।
खसु शर्ाँ अपार आि र्र हिल में छाई र्ैं ।
िशहन के र्े तु िे खो िनता अकुलाई र्ै ।
चारों ओर िे ख लो भी़ि बेशम
ु ार र्ै ।।१ ।।
भजतत िे नत्ृ र्-गान कोई र्ै कर रर्े ।
आतम िब
ु ोध कर पापों िे डर रर्े ।।
पल-पल पण्
ु र् का भरे भण्डार र्ै ।।२ ।।
िर्-िर् के नाि िे गँि
ू ा आकाश र्ै ।
छूटें गे पाप िब तनश्चर् र्र् आि र्ै ।।
िे ख लो `िौभाग्र्' खल
ु ा आि मजु तत द्वार र्ै ।।३ ।।
वीर प्रभु के र्े बोल…
वीर प्रभु के र्े बोल, तेरा प्रभ!ु तुझ र्ी में डोले ।
तुझ र्ी में डोले, र्ाँ तुझ र्ी में डोले ।
मन की तू घंड
ु ी को खोल, खोल-खोल-खोल ।
तेरा प्रभु तुझ र्ी में डोले ।।टे क ।।
तर्ों िाता चगरनार, तर्ों िाता काशी,
घट र्ी में र्ै तेरे, घट-घट का वािी ।
अन्तर का कोना टटोल, टोल-टोल-टोल ।।१ ।।
चारों कषार्ों को तन
ू े र्ै पाला,
आतम प्रभु को िो करती र्ै काला ।
इनकी तो िंगतत को छो़ि, छो़ि-छो़ि-छो़ि ।।२ ।।
पर में िो ूँ ा न भगवान पार्ा,
िंिार को र्ी र्ै तन
ू े ब़िार्ा ।
िे खो तनिातम की ओर, ओर-ओर-ओर ।।३ ।।
मस्तों की ितु नर्ा में तू मस्त र्ो िा,
आतम के रं ग में ऐिा तू रँ ग िा ।
आतम को आतम में घोल-घोल-घोल ।।४ ।।
भगवान बनने की ताकत र्ै तुझमें,
तू मान बैठा पि
ु ारी र्ूँ बि मैं ।
ऐिी तू मान्र्ता को छो़ि, छो़ि-छो़ि-छो़ि ।।५ ।।
आि र्म जिनराि…
आि र्म जिनराि! तुम्र्ारे द्वारे आर्े ।
र्ाँ िी र्ाँ र्म, आर्े-आर्े ।।टे क ।।
िे खे िे व िगत के िारे , एक नर्ीं मन भार्े ।
पण्
ु र्-उिर् िे आि ततर्ारे , िशहन कर िख
ु पार्े ।।१ ।।
िन्म-मरण तनत करते-करते, काल अनन्त गमार्े ।
अब तो स्वामी िन्म-मरण का, ि:ु ख़िा िर्ा न िार्े ।।२।।
भविागर में नाव र्मारी, कब िे गोता खार्े ।
तु र्ी स्वामी र्ाथ ब़िाकर, तारो तो ततर िार्े ।।३ ।।
अनक
ु म्पा र्ो िार् आपकी, आकुलता समट िार्े ।
`पंकि' की प्रभु र्र्ी वीनती, चरण-शरण समल िार्े ।।४।।
तनरखी तनरखी मनर्र …
तिह: नगरी नगरी द्वारे द्वारे ...
तनरखी तनरखी मनर्र मरू त तोरी र्ो जिनन्िा,
खोई खोई आतम तनचध तनि पाई र्ो जिनन्िा ।।टे र ।।
ना िमझी िे अबलो मैंने पर को अपना मान के,
पर को अपना मान के ।
मार्ा की ममता में डोला, तुमको नर्ीं वपछान के,
तम
ु को नर्ीं वपछान के ।।
अब भल
ू ों पर रोता र्र् मन, मोरा र्ो जिनन्िा ।।१ ।।
भोग रोग का घर र्ै मैंने, आि चराचर िे खा र्ै ,
आि चराचर िे खा र्ै ।
आतम धन के आगे िग का झँठ
ू ा िारा लेखा र्ै ,
झँठ
ू ा िारा लेखा र्ै ।
अपने में घल
ु समल िाऊँ, वर पावूँ जिनन्िा ।।२ ।।
तू भवनाशी मैं भववािी, भव िे पार उतरना र्ै ,
भव िे पार उतरना र्ै ।
शद्ध
ु स्वरपी र्ोकर तुमिा, सशवरमणी को वरना र्ै ,
सशवरमणी को वरना र्ै ।।
ज्ञानज्र्ोतत `िौभाग्र्' िगे घट, मोरे र्ो जिनन्िा ।।३ ।।
तोरी पल पल…
तोरी पल पल तनरखें मरू ततर्ाँ,
आतम रि भीनी र्र् िरू ततर्ाँ ।।टे र ।।
घोर समथ्र्ात्व रत र्ो तुम्र्ें छो़िकर,
भोग भोगे र्ैं ि़ि िे लगन िो़िकर ।
चारों गतत में भ्रमण, कर कर िामन मरण,
लखख अपनी न िच्ची िरू ततर्ाँ ।।१ ।।
तेरे िशहन िे ज्र्ोतत िगी ज्ञान की,
पथ पक़िी र्ै र्मने स्वकल्र्ाण की ।
पि तुझिा मर्ान, लगा आतम का ध्र्ान,
पावे `िौभाग्र्' पावन सशव गततर्ाँ ।।२ ।।
तेरे िशहन िे मेरा…..
तेरे िशहन िे मेरा हिल खखल गर्ा ।
मजु तत के मर्ल का िरु ाज्र् समल गर्ा ।
आतम के िज्ञ
ु ान का िभ
ु ान र्ो गर्ा,
भव का ववनाशी तत्त्वज्ञान र्ो गर्ा ।।टे र ।।
तेरी िच्ची प्रीत की र्र्ी र्ै तनशानी ।
भोगों िे छूट बने आतम िध्
ु र्ानी ।
कमो की िीत का िि
ु ाि समल गर्ा ।।मजु तत के ।।१ ।।
तेरी परतीत र्रे व्र्ाचधर्ाँ परु ानी ।
िामन मरण र्र िे सशवरानी ।
प्रभो िख
ु शाजन्त िम
ु न आि खखल गर्ा ।।मजु तत के ।।२ ।।
ज्ञानानन्ि अतुल धन राशी ।
सिद्ध िमान वरँ अववनाशी ।
र्र्ी “िौभाग्र्” सशवराि समल गर्ा ।।मजु तत के ।।३ ।।
तिह: इक परिे िी मेरा
हिल...
स्वामी तेरा मख
ु ़िा …
स्वामी तेरा मख
ु ़िा र्ै मन को लभ
ु ाना,
स्वामी तेरा गौरव र्ै मन को डुलाना ।
िे खा ना ऐिा िर्
ु ाना-२ ।।स्वामी ।।टे र ।।
र्े छवव र्े तप त्र्ाग िगत का, भाव िगाता आतम बल का ।
र्रता र्ै नरकों का िाना-२ ।।स्वामी ।।१ ।।
िो पथ तूने र्ै अपनार्ा, वो मन मेरे भी अतत भार्ा ।
पाऊँ मैं तम
ु पि लभ
ु ाना-२ ।।स्वामी ।।२ ।।
पंचम गतत का मैं वर चार्ूँ, िीवन का “िौभाग्र्'' हिपाऊँ ।
गँि
ू े र्ैं अंतर तराना-२ ।।स्वामी ।।३ ।।
तिह: भैर्ा मेरे राखी...
तेरी शांतत छवव…
तेरी शांतत छवव पे मैं बसल बसल िाऊँ ।
खुले नर्न मारग आ हिल मैं बबठाऊँ ।।
लेखा ना िे खा, धमह पाप िो़िा,
बना भोग सलप्िा कक चार्ों में िौ़िा,
िर्े िख
ु िो िो कर्ा लो िन
ु ाऊँ - तेरी शांतत... ।।तेरी ।।१ ।।
तेरा ज्ञान गौरव िो गणधर ने गार्ा,
वर्ी गीत पावन मझ
ु े आि भार्ा,
उिी के िरु ों में िन
ु ो मैं िन
ु ाऊँ - तेरी शांतत छवव. ।।तेरी ।।२ ।।
िगी आत्म ज्र्ोतत िम्र्तत्व तत्त्व की,
घटी र्ै घटा शाम समथ्र्ा ववकल की,
तनिानन्ि ``िौभाग्र्'' िेर्रा ििाऊँ-२ ।।तेरी।।३ ।।
आि िी िुर्ानी …
आि िी िर्
ु ानी िु घ़िी इतनी,
कल ना समलेगी ूँ ़िो चार्े जितनी ।।टे क ।।
आर्ा कर्ाँ िे र्ै िाना कर्ाँ, िोचो तुम्र्ारा हठकाना कर्ाँ ।
लार्े थे तर्ा र्ै कमार्ा र्र्ाँ, ले िाना तम
ु को र्ै तर्ा-२ वर्ाँ ।।१ ।।
धारे अनेकों र्ै तूने िनम, चगनावें कर्ाँ लो र्ै आती शरम ।
नरिे र् पाकर अर्ो पण्
ु र् धन, भोगों में िीवन तर्ों करते खतम ।।२ ।।
प्रभू के चरण में लगा लो लगन, वर्ी एक िच्चे र्ैं तारणतरण ।
छूटे गा भव ि:ु ख िामन मरण, ``िौभाग्र्'' पावोगे मजु तत रमण ।।३ ।।
प्रभु िशहन कर िीवन ….
प्रभु िशहन कर िीवन की, भी़ि भगी मेरे कमहन की ।।टे र ।।
भव बन भ्रमता र्ारा था पार्ा नर्ीं ककनारा था ।
घ़िी िख
ु ि आई िव
ु रण की ।।१ ।।भी़ि भगी ।।
शान्त छबी मन भाई र्ै , नैनन बीच िमाई र्ै ।
िरू र्टूँ नर्ीं पल तछन भी ।।२ ।।भी़ि भगी ।।
तनि पि का `िौभाग्र्' वरं, अरु न ककिी की चार् करँ ।
िफल कामना र्ो मन की ।।३ ।।भी़ि भगी ।।
तेरी िुन्िर मूरत…
तेरी िन्
ु िर मरू त िे ख प्रभो, मैं िीवन िख
ु िब भल
ू गर्ा ।
र्र् पावन प्रततमा िे ख प्रभो ।।टे क ।।
ज्र्ों काली घटार्ें आती र्ैं, त्र्ों कोर्ल कूक मचाती र्ै ।
मेरा रोम रोम त्र्ों र्वषहत र्ै , र्ाँ र्वषहत र्ै ।।
र्र् चन्र छवव जिन िे ख प्रभो ।।१ ।।
िोष के र्रनेवाले, र्ो तुम मोक्ष के वरनेवाले ।
मेरा मन भजतत में लीन र्ुआ, र्ाँ, लीन र्ुआ ।।
इिको तो तनभाना िे ख प्रभो ।।२ ।।
र्र श्वांि में तेरी र्ी लर् र्ो, कमो पर ििा वविर् भी र्ो ।
र्र् िीवन तुझिा िीवन र्ो, र्ाँ िीवन र्ो ।।
`िौभाग्र्' र्र् र्ी सलख लेख प्रभो ।।३ ।।
वधहमान ललना िे कर्े
…
वधहमान ललना िे कर्े बत्रशला माता।
लाल मेरे शािी तर्ों नर्ीं रचाता...॥टे क॥
बोले मस्
ु कुराते वीरा, िन
ु ो मेरी माई,
ककतनी र्ी बार मैने शहिर्ां रचाई,
शाहिर्ां रचाई कफ़र भी र्ो sss
शाहिर्ां रचाई कफ़र भी, पाई नर्ीं िाता, इिीसलर्े माता...॥१॥
बोले मस्
ु कुराते वीरा, िगत के िर्ारे ,
नेसमनाथ र्ैं र्े िच्चे िाथी र्मारे ,
उन मक
ू प्राखणर्ों का र्ो sss
उन मक
ू प्राखणर्ों का र्ो, रुिन र्ै बल
ु ाता, इिीसलर्े माता...॥२॥
बोले मस्
ु कुराते वीरा, िन
ु ो मेरी माई,
नरभव में उम्र र्मने थोडी कमाई,
भव-भव का िख
ु भैर्ा र्ो sss
भव-भव का िख
ु भैर्ा, िर्ा नर्ीं िाता, इिीसलर्े माता...॥३॥
िन
ु ो मैर्ा आतम का, बन के पि
ु ारी,
तोडूग
ं ा कमों की िंिीर िारी,
रािपाट वैभव र्े र्ो sss
रािपाट वैभव र्े, कुछ न िर्
ु ाता, इिीसलर्े माता...॥४॥
वतगमाि को वधगमाि की आवचयकता िै …
र्र आत्मा िख
ु ी र्ै , िख
ु शांतत खो चक
ु ी र्ै , परदृजठट र्ोके व्र्ाकुल, मर्ावीर पे रुकी र्ै
मर्ावीर... मर्ावीर...मर्ावीर...मर्ावीर...
हर्ंिा पीडडत ववश्व रार् मर्ावीर की तकता र्ै , वतहमान को वधहमान की आवश्र्कता र्ै
पापों के िलिल में फ़ंिकर धमह सििकता र्ै , वतहमान...
हर्ंिा के बािल छार्ें िंिार पर, िवहनाश के ितु नर्ा खडी कगार पर
नर्ीं शास्त्रों में अब शस्त्रों में र्ोड र्ै , मानवता रोती र्ै अपनी र्ार पर
मर्ावीर र्ी पथभल
ू ों को िमझा िकता र्ै , हर्ंिा पीडडत ववश्व रार् मर्ावीर की तकता र्ै ,
वतहमान …॥१॥
यदीये चैतन्ये मुकुर इव भावाश्चचदचचतः, समं भ्राश्न्त ध्रौव्य-व्यय-जनिलसन्तौsन्तरहिता।
जगत्साक्षी मागग-प्रगटि-परो-भािुररव यो, मिावीर स्वामी ियि-पथ-गामीभवतु मे॥
बांधो प्रभु को भजतत भाव की डोर िे, करो प्राथहना िब िीवों की ओर िे
वीतराग व्र्चथतों के िख
ु पर ध्र्ान िें , र्मको करे कृताथह कृपा की कोर िे
प्रभु के नर्नों िे करुणा का नीर झलकता र्ै , हर्ंिा पीडडत ववश्व रार् मर्ावीर की तकता
र्ै , वतहमान … ॥२॥
वधहमान के आिशों पर ध्र्ान िो, हर्तोपिे शों को अंतर में स्थान िो।
तुम जििके वंशि जििकी िंतान र्ो, र्ोकर एक उिे परू ा िम्मान िो।
समलकर िीने में र्ी िीवन की िाथहकता र्ै , हर्ंिा पीडडत ववश्व रार् मर्ावीर की तकता
र्ै , वतहमान … ॥३॥
मङ्गलकरः।
भवतु मे॥
मिामोिांतक-प्रशमिःप्राकश्स्मक-भभषङ, निरापेक्षो बन्धुर्वगहदत-महिमा
शरण्यः साधूिां भव भयभत
ृ ामुत्तमगुणो, मिावीर स्वामी ियि-पथ-गामी-
वर् आर्े तो र्र िंकट को प्राण र्ो, अभर् िरु क्षक्षत िवह िख
ु ी र्र प्राण र्ो।
जिर्ो और िीने िो के मर्ामंत्र िे, ववश्व शांतत पार्े िबका कल्र्ाण र्ो।
प्रभु की मि
ृ ु वाणी में आध्र्ासमक मािकता र्ै ,, हर्ंिा पीडडत ववश्व रार् मर्ावीर की
तकता र्ै , वतहमान … ॥४॥
मर्ावीर... मर्ावीर...मर्ावीर...मर्ावीर...
वतहमान को वधहमान की आवश्र्कता र्ै ...
नाथ तुम्र्ारी पूिा में िब…
तिह: फ़ूल तुम्र्ें भेिा र्ै ...
नाथ तुम्र्ारी पि
ू ा में िब, स्वार्ा करने आर्ा ।
तु िैिा बनने के कारण, शरण तुम्र्ारी आर्ा ।।टे क ।।
पंचजे न्रर् का लक्ष्र् करँ मैं, इि अजग्न में स्वार्ा ।
इन्र-नरे न्रों के वैभव की, चार् करँ मैं स्वार्ा ।
तेरी िाक्षी िे अनप
ु म मैं र्ज्ञ रचाने आर्ा ।।१ ।।
िग की मान प्रततठठा को भी, करना मझ
ु को स्वार्ा ।
नर्ीं मल्
ू र् इि मन्ि भाव का, व्रत-तप आहि स्वार्ा ।
वीतराग के पथ पर चलने का प्रण लेकर आर्ा ।।२ ।।
अरे िगत के अपशब्िों को, करना मझ
ु को स्वार्ा ।
पर लक्ष्र्ी िब र्ी वत्ृ ती को, करना मझ
ु को स्वार्ा ।
अक्षर् तनरं कुश पि पाने और पण्
ु र् लट
ु ाने आर्ा ।।३ ।।
तु र्ो पज्
ू र् पि
ु ारी मैं, र्र् भेि करँगा स्वार्ा ।
बि अभेि में तन्मर् र्ोना, और िभी कुछ स्वार्ा ।
अब पामर भगवान बने, र्र् िीख िीखने आर्ा ।।४ ।।
भव भव रुले र्ैं…
भव भव रुले र्ैं, न पार्ा कोई पार र्ै |
तेरा र्ी आधार र्ै तेरा र्ी आधार र्ै ||
िीवन की नाव र्र् कमों के मार िे
उलझी र्ै बीच बीच गततर्ो की मार िे,
रर्ी िर्ी पततका तू र्ी पतवार र्ै |
तेरा र्ी आधार र्ै ...
िीता के शील को तन
ु े हिपार्ा र्ै ,
िल
ू ी िे िेठ को आिन बबठार्ा र्ै ,
खखली खखली कसल िा ककर्ा नाग र्ार र्ै |
तेरा र्ी आधार र्ै ...
महर्मा का पार िब िरु नर ना पा िके,
'िौभाग्र्' प्रभु गुण तेरे तर्ा गा िके,
बार बार आपको िािर नमस्कार र्ै |
तेरा र्ी आधार र्ै ...
(तिह: चुप चुप ख़िे र्ो...)
करता र्ूँ तम्
ु र्ारा िम
ु रण…
करता र्ूँ तुम्र्ारा िम
ु रण उद्धार करो िी,
मंझधार में र्ूँ अटका, बडा पार करो िी,
र्े ररषभ जिनंिा, र्े ररषभ जिनंिा||
आर्ा र्ूँ ब़िी आशा िे तम्
ु र्ारे िरबार में ,
ना पार्ा कभी भी चेना इि, िख
ु मर् िंिार में ,
िे ते र्ैं कमह िुःु ख इनका, िंर्ार करो िी||
करता र्ूँ चरण प्रक्षालन, आरततर्ाँ उतारं,
शत शत मैं करन प़ि वंिन, तन मन र्ैं िभी वारँ,
पि में र्ो हठकाना मेरा, तरण तार करो िी|
िल, चंिन, अक्षत, उज्िवल,र्े िम
ु न चरु लीन,
र्े िीप धप
ु फल िभी प्रभु अरपन र्ै कीने,
मल पाप छुडा कर तम
ु िा, अववकार करो िी|
नासभ रािा के नंिन, मर िे वी िल
ु ारे ,
आए िो शरण में उनको प्रभु आपने तारे ,
सशव तक पर्ुंचा कर मझ
ु को, उपकार करो िी|
भटके र्ुए रार्ी को प्रभु…
(तिह: मेरा गीत अमर कर िो...)
भटके र्ुए रार्ी को प्रभु रार् बता िे ना,
इि डगमग नैर्ा की प्रभु की लाि बचालेना|
िग की मार्ा ने मझ
ु ,े पथ िे भटकार्ा र्ै,
भोगों की वपपािा ने भव वन में भ्रमार्ा र्ै ,
करुणािागर भगवान, ित पथ हिखला िे ना||
बार्र के वैभव में , मैं खुि को भल
ू गर्ा,
ममता और मार्ा के, झल
ू े में झल
ू गर्ा,
अब शरण तेरी आर्ा, गफलत िे बचा िे ना||
िुःु ख का िावानल र्ै , चर्ुँ ओर अंधेरा र्ै ,
बोझल इि िीवन में , चौरािी का फेरा र्ै ,
बझ
ु ते र्ुए िीपक की, प्रभु ज्र्ोत िगा िे ना||
र्रो पीर मेरी बत्रशला…
र्रो पीर मेरी बत्रशला के लाला
मैं िेवक तुम्र्ारा ब़िा भोला भाला|
मझ
ु े ठग सलर्ा अठट कमों ने स्वामी,
भटकता कफरा मैं बना मू गामी,
ववषर् भोग ने मझ
ु पे(र्ो...) ववषर् भोग ने मझ
ु पे,
ऐिा िाि ू डाला, र्ुआ मतवाला |
मैं पर को र्ी अपना िमझता रर्ा र्ूँ,
वथ
ृ ा ववकथा में उलझता रर्ा र्ूँ,
धरम तर्ा र्ै मैंने कभी (र्ो..) धरम तर्ा र्ै मैंने कभी,
िे खा न भाला, र्ँू र्ी वतत टाला |
न िे खा गर्ा तुमिे िग के िख
ु ों को ,
तािा क्षण में अपने िारे िख
ु ों को,
अहर्ंिा िे मेटी तुमने (र्ो..) अहर्ंिा िे मेटी तुमने,
हर्ंिा की ज्वाला, र्ुई िीपमाला |
िन
ु ा र्ै प्रभो आप िन
ु ते र्ो िबकी,
आती र्ै पंकि को वो र्ाि तबकी,
िती चंिना का तुमने(र्ो..) िती चंिना का तुमने,
िंकट था टाला, र्र् िच र्ै िर्ाला |
(तिह: र्शोमती मैर्ा िे..)
तू ज्ञान का िागर र्ै …
तू ज्ञान का िागर र्ै , आनंि का िागर र्ै
उिी आनंि के प्र्ािे र्ुम,
तनि ज्ञान िध
ु ा चाखे, तनि ज्ञान िध
ु ा चाखे,
प्रभु अब तेरी कृपा िे र्म,
तू ज्ञान का िागर र्ै ....
ववषर् भोग में तन्मर् र्ोकर, खोर्ा र्ै िीवन वथ
ृ ा,
खोर्ा र्ै िीवन वथ
ृ ा,
बात प्रभु तेरी एक ना मानी, अपनी र्ी धन
ु में रर्ा,
अपनी र्ी धन
ु में रर्ा,
िाना र्ै ककधर र्मको-२ और आर्े र्ैं कर्ां िे र्म,
तू ज्ञान का िागर र्ै ...
आतम अनभ
ु व अमत
ृ ति के, वपर्ा ववषर् िड का,
वपर्ा ववषर् िड का,
मोर् नशे में पागल र्ोकर, ककर्ा ना तत्व ववचार,
ककर्ा ना तत्व ववचार,
नैर्ा र्ै मेरी मझधार-२, इिी िे प्रभु को बल
ु ाते र्म,
तू ज्ञान का िागर र्ै ....
भल
ू रर्े र्ैं रार् वतन की, भटक रर्े िंिार,
भटक रर्े िंिार,
भीख मांगते िर िर भ्रमते, घर में भरा र्ै भंडार,
घर में भरा र्ै भंडार,
तनिधाम र्मारा र्ै -२, िर्ां र्ै स्विे ि र्र्ां िे र्म,
तू ज्ञान का िागर र्ै ....
Bhakti suman_adhyaatm tarang
हिन रात स्वामी तेरे गीत गाऊं…
हिन रात स्वामी तेरे गीत गाऊं, भावों की कसलर्ां चरणे खखलाऊं॥
तेरी शांत मरू त मझ
ु े भा गई र्ै , मेरे नैनों में निर आ गई र्ै ,
मैं अपने में अपने को कैिे िमाऊं, भावों की कसलर्ां...
मैं िारे िर्ां में कर्ीं िख
ु ना पार्ा, र्ै गम का भरा गर्रा िररर्ा र्ै छार्ा,
र्े िीवन नैर्ा मैं कैिे ततराऊं, भावों की कसलर्ां...
तनगोिावस्था िे मानव गतत तक, तुझे लाख ू ं ा न पार्ा मैं अब तक,
कर्ां मेरी मंजिल तझ
ु े कैिे पाऊं, भावों की कसलर्ां..
र्र्ी आि जिनवर शरण पाऊं तेरी, समट िार् मेरी र्े भव भव की फ़ेरी,
शरण िो तुम्र्ें नाथ शीश नवाऊं, भावों की कसलर्ां...
छोटा िा मंहिर बनार्ेंग…
े
छोटा िा मंहिर बनार्ेंगे, वीर गुण आर्ेंगे।
वीर गुण गार्ेंगे, मर्ावीर गुण गार्ेंगें॥
कंधों पे लेके चांिी की पालकी, प्रभु िी का ववर्ार करार्ेंगें।
र्ाथों में लेकर िोने के कलशा, प्रभि
ु ी का न्र्वन करार्ेंगे।
र्ाथों में लेकर रव्र् की थाली, पि
ू न ववधान रचार्ेंगे।
र्ाथों में लेकर ताल-मिीरा, प्रभि
ु ी की भजतत रचार्ेंगे।
र्ाथों में लेकर श्री जिनवाणी, प ें गें और िबको प ार्ेंगे।
श्रद्धा में लेकर वस्तु स्वरप, आतम का अनभ
ु व करार्ेंगे।
चाररत्र में लेकर शद्ध
ु ोपर्ोग, मजु ततपरु ी को िार्ेंगें।
जिनवाणी अमत
ृ रिाल…
जिनवाणी अमत
ु वा ।।टे क ।।
ृ रिाल, रसिर्ा आवो िी िण
छर् रव्र्ों का ज्ञान करावे, नव तत्त्वों का रर्स्र् बतावे ।
आतम तत्त्व र्ै मर्ान रसिर्ा आवोिी ।।१ ।।
ववषर् कषार् का नाश करावे, तनि आतम िे प्रीतत ब़िावे ।
समथ्र्ात्व का र्ोवे नाश रसिर्ा आवोिी ।।२ ।।
अनेकान्तमर् धमह बतावे, स्र्ाद्वाि शैली कथन में आवे ।
भविागर िे र्ोवे पार रसिर्ा आवोिी ।।३ ।।
िो जिनवाणी िन
ु र्रषाए, तनश्चर् र्ी वर् भव्र् कर्ावे ।
स्वाध्र्ार् तप र्ै मर्ान ् रसिर्ा आवोिी ।।४ ।।
धन्र् धन्र् वीतराग वाणी…
धन्र् धन्र् वीतराग वाणी, अमर तेरी िग में कर्ानी
चचिानन्ि की रािधानी, अमर तेरी िग में कर्ानी ।।टे क ।।
उत्पाि व्र्र् और ध्रोव्र् स्वरप, वस्तु बखानी िवहज्ञ भप
ू ।
स्र्ाद्वाि तेरी तनशानी, अमर तेरी िग में कर्ानी ।।१ ।।
तनत्र् अतनत्र् अर एक अनेक, वस्तु कथंचचत भेि अभेि ।
अनेकान्त रपा बखानी, अमर तेरी िग में कर्ानी ।।२ ।।
भाव शभ
ु ाशभ
ु बंध स्वरप, शद्ध
ु चचिानन्िमर् मजु तत रप ।
मारग हिखाती र्ै वाणी, अमर तेरी िग में कर्ानी ।।३ ।।
चचिानन्ि चैतन्र् आनन्िधाम, ज्ञान स्वभावी तनिातम राम ।
स्वाश्रर् िे मजु तत बखानी, अमर तेरी िग में कर्ानी ।।४ ।।
िांची तो गंगा र्र् …
िांची तो गंगा र्र् वीतरागवानी ।
अववच्छन्न धारा तनि धमहकी कर्ानी ।।टे क ।।
िामें अतत र्ी ववमल अगाध ज्ञानपानी ।
िर्ाँ नर्ीं िंशर्ाहि पंककी तनशानी ।।१ ।।
िप्तभंग िर्ँ तरं ग उछलत िख
ु िानी ।
िंतचचत मरालवंि
ृ रमैं तनत्र् ज्ञानी ।।२ ।।
िाके अवगार्नतैं शद्ध
ु र्ोर् प्रानी ।
`भागचन्ि'तनर्चै घटमाहर्ं र्ा प्रमानी ।।३ ।।
(राग चचहरी)
शांतत िुधा बरिाए …
शांतत िध
ु ा बरिाए जिनवाणी ।
वस्तु स्वरप बताए जिनवाणी ।।टे क ।।
पव
ू ाहपर िब िोष रहर्त र्ै , वीतराग मर् धमह िहर्त र्ै ।
परमागम कर्लाए जिनवाणी ।।१ ।।
मजु तत वधू के मख
ु का िरपण, िीवन अपना कर िें अरपण ।
भव िमर
ु िे तारे जिनवाणी ।।२ ।।
रागद्वेष अंगारों द्वारा, मर्ातलेश पाता िग िारा ।
ििल मेघ बरिाए जिनवाणी ।।३ ।।
िात तत्त्व का ज्ञान करावे, अचल ववमल तनि पि िरिावे ।
िख
ु िागर लर्राए जिनवाणी ।।४ ।।
माँ जिनवाणी बिो…
माँ जिनवाणी बिो हृिर् में , िख
ु का र्ो तनस्तारा ।
तनत्र्बोधनी जिनवर वाणी, वन्िन र्ो शतवारा ।।टे क ।।
वीतरागता गसभहत जििमें , ऐिी प्रभु की वाणी ।
िीवन में इिको अपनाएँ, बन िाए िम्र्तज्ञानी ।
िनम-िनम तक ना भल
ू ँग
ू ा, र्र् उपकार तुम्र्ारा ।।१ ।।
र्ग
ु र्ग
ु िे र्ी मर्ािख
ु ी र्ै, िग के िारे प्राणी ।
मोर्रप महिरा को पीकर, बने र्ुए अज्ञानी ।
ऐिी रार् बता िो माता, समटे मोर् अंचधर्ारा ।।२ ।।
रव्र् और गुणपर्ाहर्ों का, ज्ञान आपिे र्ोता ।
चचिानन्ि चैतन्र्शजतत का, भान आपिे र्ोता ।
मैं अपने में र्ी रम िाऊँ, र्र्ी र्ो लक्ष्र् र्मारा ।।३ ।।
भटक भटक कर र्ार गए अब, तेरी शरण में आए ।
अनेकांत वाणी को िन
ु कर, तनि स्वरप को ध्र्ाएँ ।
िर् िर् िर् माँ िरस्वती, शत शत नमन र्मारा।।४ ।।
शरण कोई नर्ीं …
शरण कोई नर्ीं िग में , शरण बि र्ै जिनागम का ।
िो चार्ो काि आतम का, तो शरणा लो जिनागम का ।।टे क ।।
िर्ाँ तनि ित्व की चचाह, िर्ाँ िब तत्त्व की बातें ।
िर्ाँ सशवलोक की कथनी, तर्ाँ डर र्ै नर्ीं र्म का ।।१ ।।
इिी िे कमह निते र्ैं, इिी िे भरम भिते र्ैं ।
इिी िे ध्र्ान धरते र्ैं, ववरागी वन में आतम का ।।२ ।।
भला र्र् िाव पार्ा र्ै , जिनागम र्ाथ आर्ा र्ै ।
अभागे िरू तर्ों भागो, भला अविर िमागम का ।।३ ।।
िो करना र्ै िो अब करलो, बरु े कामों िे अब डरलो ।
कर्े `मल
ु तान' िन
ु भाई, भरोिा र्ै न इक पल का ।।४ ।।
ओंकारमर्ी वाणी
तेरी…
ओंकारमर्ी वाणी तेरी जिनधमह की शान र्ै
िमवशरण िे खके शांत छवव िे खके गणधर भी र्ै रान र्ैं।
स्वणह कमल पर आिन र्ै तेरा िौ इंर कर रर्े गुणगान र्ै ,
दृजठट र्ै तेरी नािा के ऊपर िवहज्ञता र्ी तेरी शान र्ै ,
चार मख
ु हिखते िमोशरण मे स्वगह में भी ऐिा कमाल नर्ी र्ै ,
र्मको भी मजु तत समले र्म िब का अरमान र्ै ...िमवशरण िे खके ...
िारे िर्ां में फ़ैली र्े वाणी गणधर ने गंथ
ू ी इिे शास्त्र में ,
िच्ची ववनर् िे श्रद्धा करे तो ले िाती र्ै मजु तत के मागह में ,
कषार् समटार् राग को भगार्े इिके श्रवण िे र्े शांतत समसल र्ै ,
िख
ु का र्े िागर आत्म में रमण कर आतम की बचगर्ा में मजु तत खखसल
र्ै ,
र्म िब भी तुमिा बने ऐिा र्े वरिान र्ै ...िमवशरण िे खके ...
मैं र्ूं बत्रकाली ज्ञान स्वभावी हिव्र् ध्वतन का र्र्ी िार र्ै .,
शजतत अनंत का वपण्ड अखंड पर्ाहर् का भी र्े आधार र्ै ,
ज्ञेर् झलकते र्ैं ज्ञान की कला में ऐिा र्े अद्भत
ु कलाकार र्ै ,
दृजठट को पीता कफ़र भी अछूता तुझमे र्े ऐिा चमत्कार र्ै ,
िग में र्ै महर्मा तेरी गंि
ू रर्ा नाम र्ै ...िमवशरण िे खके ...
जिनवैन िन
ु त, मोरी भल
ू भगी…
जिनवैन िन
ु त, मोरी भल
ू भगी ।।टे क. ।।
कमहस्वभाव भाव चेतनको, सभन्न वपछानन िम
ु तत िगी ।।जिन. ।।
तनि अनभ
ु तू त िर्ि ज्ञार्कता, िो चचर रुष तुष मैल-पगी ।
स्र्ािवाि-धतु न-तनमहल-िलतैं, ववमल भई िमभाव लगी।।१ ।।जिन. ।।
िंशर्मोर्भरमता ववघटी, प्रगटी आतमिोंि िगी ।
`िौल' अपरू ब मंगल पार्ो, सशविख
ु लेन र्ोंि उमगी।।२ ।।जिन. ।।
आि मैं परम पिारथ पार्ौ…
आि मैं परम पिारथ पार्ौ, प्रभच
ु रनन चचत लार्ौ ।।टे क ।।
अशभ
ु गर्े शभ
ु प्रगट भर्े र्ैं, िर्ि कल्पतरु छार्ौ।।१ ।।
ज्ञानशजतत तप ऐिी िाकी, चेतनपि िरिार्ो।।२ ।।
अठटकमह ररपु िोधा िीते, सशव अंकूर िमार्ौ।।३ ।।
िौलत राम तनरख तनि प्रभो को उरु आनन्ि न िमार्ो ।।४ ।।
धन्र् धन्र् र्ै घ़िी आिकी…
धन्र् धन्र् र्ै घ़िी आिकी, जिनधतु न श्रवन परी ।
तत्त्वप्रतीत भई अब मेरे, समथ्र्ादृजठट टरी ।।टे क ।।
ि़ितैं सभन्न लखी चचन्मरू तत, चेतन स्वरि भरी ।
अर्ं कार ममकार बवु द्ध पतु न, परमें िब पररर्री ।।१ ।।
पापपण्
ु र् ववचधबंध अवस्था, भािी अततिख
ु भरी ।
वीतराग ववज्ञानभावमर्, पररनत अतत ववस्तरी ।।२ ।।
चार्-िार् ववनिी वरिी पतु न, िमतामेघझरी ।
बा़िी प्रीतत तनराकुल पििों, `भागचन्ि' र्मरी ।।३ ।।
धन्र् धन्र् जिनवाणी
माता…
धन्र् धन्र् जिनवाणी माता शरण तुम्र्ारी आर्े
परमागम का मंथन करके सशवपरु पथ पर धार्े
माता िशहन तेरा रे भववक को आनंि िे ता र्ै , र्मारी नैर्ा खेता र्ै
वस्तु कथंचचत तनत्र् अतनत्र् अनेकांतमर् शोभे
पररव्र्ों िे सभन्न िवहथा स्वचतुठटर्मर् शोभे
ऐिी वस्तु िमझने िे चतुगतह त फ़ेरा कटता र्ै , िगत का फ़ेरा समटता र्ै
माता िशहन तेरा रे ...
नर्तनश्चर् व्र्वर्ार तनरपण मोक्ष मागह का करती
वीतरागता र्ी मजु तत पथ शभ
ु व्र्वर्ार उचरती
माता तेरी िेवा िे मजु तत का मागह खुलता र्ै , मर्ा समथ्र्ातम धल
ु ता र्ै
माता िशहन तेरा रे ...
तेरे अंचल में चेतन की हिव्र् चेतना पाते
तेरी अनप
ु म लोरी तर्ा र्ै अनभ
ु व की बरिाते
माता तेरी वषाह मे तनिानंि झरना झरता र्ै , अनप
ु मानंि उछलता र्ै
माता िशहन तेरा रे ...
नव तत्वॊ मे छुपी र्ुई िो ज्र्ोतत उिे बतलाती
चचिानंि चैतन्र् राि का िशहन ििा कराती
माता तेरे िशहन िे तनिातम िशहन र्ोता र्ै , िम्र्किशहन र्ोता र्ै
माता िशहन तेरा रे ...
िुनकर वाणी जिनवर की...
िन
ु कर वाणी जिनवर की म्र्ारे र्षह हर्र्े ना िमार् िी||
काल अनाहि की तपन बझ
ु ानी, तनि तनचध समली अथार् िी
िन
ु कर वाणी जिनवर की म्र्ारे र्षह हर्र्े ना िमार् िी||
िंशर् भ्रम और ववपर्हर् नाशा, िम्र्क बवु द्ध उपिार् िी
िन
ु कर वाणी जिनवर की म्र्ारे र्षह हर्र्े ना िमार् िी||
नरभव िफ़ल भर्ो अब मेरो, बध
ु िन भें टत पार् िी
िन
ु कर वाणी जिनवर की म्र्ारे र्षह हर्र्े ना िमार् िी||
र्े जिनवाणी माता! तुमको
लाखों प्रणाम…
र्े जिनवाणी माता! तुमको लाखों प्रणाम, तुमको क्रो़िों प्रणाम ।
सशविख
ु िानी माता! तु ्मको लाखों प्रणाम, तुमको क्रो़िों प्रणाम।।टे क ।।
तू वस्तु-स्वरप बतावे, अरु िकल ववरोध समटावे ।
र्े स्र्ाद्वाि ववख्र्ाता! तम
ु को लाखों प्रणाम, तु ्मको क्रो़िों प्रणाम।।१ ।।
तू करे ज्ञान का मण्डन, समथ्र्ात कुमारग खण्डन ।
र्े तीन िगत की माता! तुमको लाखों प्रणाम, तुमको क्रो़िों प्रणाम ।।२
।।
तू लोकालोक प्रकाशे, चर-अचर पिाथह ववकाशे ।
र्े ववश्वतत्त्व की ज्ञाता तुमको लाखों प्रणाम, तुमको क्रो़िों प्रणाम ।।३
।।
शद्ध
ु ातम तत्त्व हिखावे, रत्नत्रर् पथ प्रकटावे ।
तनि आनन्ि अमत
ृ िाता! तुमको लाखों प्रणाम, तुमको क्रो़िों प्रणाम ।।४
।।
र्े मात! कृपा अब कीिे, परभाव िकल र्र लीिे ।
`सशवराम' ििा गण
ु गाता तम
ु को लाखों प्रणाम, तम
ु को क्रो़िों प्रणाम ।।५
।।
जिनवाणी माता रत्नत्रर्
तनचध…
जिनवाणी माता रत्नत्रर् तनचध िीजिर्े ।।टे क ।।
समथ्र्ािशहन-ज्ञान-चरण में , काल अनाहि घम
ू े,
िम्र्ग्िशहन भर्ौ न तातैं, ि:ु ख पार्ो हिन िन
ू े ।।१ ।।
र्ै असभलाषा िम्र्ग्िशहन-ज्ञान-चरण िे माता ।
र्म पावैं तनिस्वरप आपनो, तर्ों न बनैं गुणज्ञाता ।।२।।
िीव अनन्तानन्त पठार्े, स्वगह-मोक्ष में तूने ।
अब बारी र्ै र्म िीवन की, र्ोवे कमह वविन
ू े ।।३ ।।
भव्र्िीव र्ैं पत्र
ु तुम्र्ारे , चर्ुँगतत ि:ु ख िे र्ारे ।
इनको जिनवर बना शीघ्र अब, िे िे गुण-गण िारे ।।४ ।।
औगण
ु तो अनेक र्ोत र्ैं, बालक में र्ी माता ।
पै अब तु-िी माता पाई, तर्ों न बने गुणज्ञाता ।।५ ।।
क्षमा-क्षमा र्ो िभी र्मारे िोष अनन्ते भव के ।
सशव का मागह बता िो माता, लेर्ु शरण में अबके ।।६ ।।
िर्वन्तो जिनवाणी िग में , मोक्षमागह प्रवतो ।
श्रावक `िर्कुमार' बीनवे, पि िे अिर अमर तो ।।७ ।।
जिनवाणी माता िशहन की
बसलर्ाररर्ाँ…
जिनवाणी माता िशहन की बसलर्ाररर्ाँ ।।टे क ।।
प्रथम िे व अरर्न्त मनाऊँ, गणधरिी को ध्र्ाऊँ ।
कुन्िकुन्ि आचार्ह र्मारे , ततनको शीश नवाऊँ ।।१ ।।
र्ोतन लाख चौरािी मार्ीं, घोर मर्ाि:ु ख पार्ो ।
ऐिी महर्मा िन
ु कर माता, शरण तुम्र्ारी आर्ो ।।२ ।।
िानै थाँको शरणो लीनों, अठट कमह क्षर् कीनो ।
िनम-मरण समटा के माता, मोक्ष मर्ापि िीनो ।।३ ।।
ठा़िे श्रावक अरि करत र्ैं, र्े जिनवाणी माता ।
द्वािशांग चौिर् परू व का, कर िो र्मको ज्ञाता ।।४ ।।
महर्मा र्ै , अगम
जिनागम की…
महर्मा र्ै , अगम जिनागम की ।।टे क ।।
िाहर् िन
ु त ि़ि सभन्न वपछानी, र्म चचन्मरू तत आतम की।।१ ।।
रागाहिक ि:ु ख कारन िानैं, त्र्ाग बवु द्ध िीनी भ्र की ।।२।।
ज्ञान-ज्र्ोतत िागी उर अन्तर, रुचच बा़िी पतु न शम-िम की।।३ ।।
कमहबंध की भई तनरिरा, कारण परम पराक्रम की ।।४ ।।
`भागचन्ि' सशव-लालच लाग्र्ो, पर्ुँच नर्ीं र्ै िर्ँ िम की।।५ ।।
चरणों में आ प़िा र्ूँ, र्े द्वािशांग
वाणी…
चरणों में आ प़िा र्ूँ, र्े द्वािशांग वाणी ।
मस्तक झक
ु ा रर्ा र्ूँ, र्े द्वािशांग वाणी ।।टे क ।।
समथ्र्ात्व को नशार्ा, तनि तत्त्व को प्रकाशा ।
आपा-परार्ा-भािा, र्ो भानु के िमानी ।।१ ।।
षट् रव्र् को बतार्ा, स्र्ाद्वाि को ितार्ा ।
भवफन्ि िे छु़िार्ा, िच्ची जिनेन्र वाणी ।।२ ।।
ररपु चार मेरे मग में , िंिीर डाले पग में ।
ठा़िे र्ैं मोक्ष-मग में , तकरार मोिों ठानी ।।३ ।।
िे ज्ञान मझ
ु को माता, इि िग िे तोङूँ नाता ।
र्ोवे `िि
ु शहन' िाता, नहर्ं िग में तेरी िानी ।।४ ।।
र्े शाश्वत िुख का
प्र्ाला…
र्े शाश्वत िख
ु का प्र्ाला, कोई वपर्ेगा अनभ
ु व वाला॥
ध्रव
ु बद्ध
ु चैतन्र् वपण्ड र्ै ।
ु अखंड र्ै , आनंि कंि र्ै , शद्ध
ध्रव
ु की फ़ेरो माला। कोई...
मंगलमर् र्ै मंगलकारी, ित चचत आनंि का र्ै धारी।
ध्रव
ु का र्ो उजिर्ारा। कोई...
ध्रव
ु का रि तो ज्ञानी पावे, ज्न्म मरण का िुःु ख समटावे।
ध्रव
ु का धाम तनराला। कोई...
ध्रव
ु ी मन
ु ी रमावे, ध्रव
ु की धन
ु के आनंि में रम िावे।
ध्रव
ु का स्वाि तनराला। कोई...
ध्रव
ू ह अविर कब र्र् आवे।
ु के रि में र्म रम िावें , अपव
ध्रव
ु का र्ो मतवाला। कोई....
िब एक रतन अनमोल र्ै …
BhaktiSuman_Anamol
Ratan
िब एक रतन अनमोल र्ै तो, रत्नाकर कफ़र कैिा र्ोगा,
जििकी चचाह र्ी र्ै िन्
ु िर तो, वो ककतना िन्
ु िर र्ोगा,
इिके िीवाने र्ैं ज्ञानी, र्र धन
ु में वर्ी िवार रर्े ,
बि एक लक्ष्र् अरु एक प्रक्ष्र्, र्र श्वांि उिी के सलर्े रर्े ,
जििको पाकर िब कुछ पार्ा, उस्िे भी ब कर तर्ा र्ोगा,
जििकी चचाह र्ी र्ै िन्
ु िर तो, िब एक रतन अनमोल र्ै तो...
िो वाणी के भी पार कर्ा, मन भी थक कर के रर् िार्े,
इजन्रर् गोचर तो िरू अतीजन्रर् के भी कल्प में ना आर्े
अनभ
ु व गोचर कुछ नाम नर्ीं तननाहम भी तर्ा अद्भत
ु र्ोगा,
जििकी चचाह र्ी र्ै िन्
ु िर तो, िब एक रतन अनमोल र्ै तो...
िप्त भंग प े नौ पव
ू ह रटे , पर उि का स्वाि नर्ीं आर्े,
उनिे र्ग्रिीते अनप भी ले स्वाि िफ़ल र्ोकर िार्े,
िड पद्
ु गल तो अनिान स्वर्ं, वो ज्ञान तुझे कैिे िे गा,
जििकी चचाह र्ी र्ै िन्
ु िर तो, िब एक रतन अनमोल र्ै तो...
जििकी महर्मा प्रभु की वाणी, िाती मन मोर् को लर्रार्े,
िो िाम्र् गण
ु ॊं के रत्नाकर िब र्े परमेश्वर फ़रमार्े
तू माने र्ा ना भी माने, परमात्मपना िम ना र्ोगा।
जििकी चचाह र्ी र्ै िन्
ु िर तो, िब एक रतन अनमोल र्ै तो...
मां जिनवाणी तेरो नाम…
मां जिनवाणी तेरो नाम, िारे िग में धन्र् र्ै ,
तेरी उतारे आरती मां, तेरो नाम धन्र् र्ै ।
ज्ञान की ज्र्ोतत तू र्ी िलाती,
भततों को भगवान तू र्ी बनाती,
अमत
ृ वपलाती, मागह हिखाती, तेरो नाम धन्र् र्ै ।
मां जिनवाणी तेरो...
अररर्न्त भासित जिनवाणी प्र्ारी,
गणधर रची और मतु नर्ों ने धारी,
िीवन की नैर्ा को तू तार िे मां, तेरो नाम धन्र् र्ै ।
मां जिनवाणी तेरो...
तेरे श्रवण िे महर्मा िमाई,
चैतन्र् चैतन्र् की ध्वतन आई,
िन्तो के हृिर् को, ईश्वर के गर्
ु ाते छन्ि र्ैं,
ृ को तेरे गंि
मां जिनवाणी तेरो...
िन
ु ने िे िंिार का रं ग सशचथल र्ो,
िन
ु ने िे ज्ञार्क का मंगल समलन र्ो,
तुझको नमन र्ै , तुझको नमन र्ै , तेरो नाम धन्र् र्ै ।
मां जिनवाणी तेरो...
BhaktiSuman_Ara
dhna
जिनवाणी मां जिनवाणी मां…
Bhakti suman_adhyaatm tara
जिनवाणी मां जिनवाणी मां, िर्वन्तो मेरी जिनवाणी मां,
शद्ध
ु ातम का ज्ञान कराती, चचिानन्ि रि पान कराती,
कुन्िकुन्ि िे भें ट कराती, आत्मख्र्ातत का बोध कराती,
जिनवाणी मां...
तनत्र्बोधनी मां जिनवाणी, स्व पर वववेक िगाती वाणी,
समथ्र्ाभ्राजन्त नशाती वाणी, ज्ञार्क प्रभु िरशाती वाणी,
जिनवाणी मां...
अिताचरण निाती वाणी, ित्र् धमह प्रगटाती वाणी,
भव िख
ु र्रण वपर्ष
ू िमानी, भव िचध तारक नौका िानी,
जिनवाणी मां...
िो हर्त चार्ो भवविन प्राणी, प ो िन
ु ो ध्र्ाओ जिनवाणी,
स्वानभ
ु तू त िे करो प्रमानी, सशवपथ को र्ै र्र्ी तनशानी,
जिनवाणी मां...
जिनवाणी िग मैर्ा…
जिनवाणी िग मैर्ा, िनम िख
ु मेट िो
िनम िख
ु मेट िो, मरण िख
ु मेट िो॥
बर्ुत हिनों िे भटक रर्ा र्ूं, ज्ञान बबना र्े मैर्ा।
तनमहल ज्ञान प्रिान िु कर िो, तू र्ी िच्ची मैर्ा॥
गुणस्थानों का अनभ
ु व र्मको, र्ो िावे िगमैय्र्ा।
च ैं उन्र्ीं पर क्रम िे कफ़र, र्म र्ोवें कमह खखपैर्ा॥
मेट र्मारा िन्म मरण िख
ु , इतनी ववनती मैर्ा।
तुमको शीश बत्रलोकी नमावे, तू र्ी िच्ची मैर्ा॥
वस्तु एक अनेक रप र्ै , अनभ
ु व िबका न्र्ारा।
र्र वववाि का र्ल र्ो िकता, स्र्ािवाि के द्वारा॥
ऐिे मुतनवर िे खें…
ऐिे मतु नवर िे खें वन में , िाके राग िोष नहर्ं मन में ।।टे क ।।
र्ग्रीठम ऋतु सशखर के ऊपर, [वो तो] मगन रर्े ध्र्ानन में ।।१ ।।
चातम
ु ाहि तर तल ठा़िे, [वो तो] बन्
ू ि िर्े तछन-२ में ।।२ ।।
शीत माि िररर्ा के ककनारे , [वो तो] धीरि धारे तन में ।।३ ।।
ऐिे गुर को तनतप्रतत िेऊं, [र्म तो] िे त
ोक चरणन में ।।४ ।।
धन धन िैनी िाधु…
धन धन िैनी िाधु अबाचधत, तत्त्वज्ञानववलािी र्ो ।।टे क ।।
िशहन-बोधमर्ी तनिमरू तत, जिनकों अपनी भािी र्ो ।
त्र्ागी अन्र् िमस्त वस्तुमें, अर्ं बवु द्ध िख
ु िा-िी र्ो ।।१ ।।
जिन अशभ
ु ोपर्ोग की परनतत, ित्तािहर्त ववनाशी र्ो ।
र्ोर् किाच शभ
ु ोपर्ोग तो, तर्ँ भी रर्त उिािी र्ो ।।२ ।।
छे ित िे अनाहि िख
ु िार्क, िवु वचध बंधकी फाँिी र्ो ।
मोर् क्षोभ रहर्त जिन परनतत, ववमल मर्ंककला-िी र्ो ।।३ ।।
ववषर्-चार्-िव-िार् खुिावन, िाम्र् िध
ु ारि-रािी र्ो ।
`भागचन्ि' ज्ञानानंिी पि, िाधत ििा र्ुलािी र्ो ।।४ ।।
कबधौं समलै मोहर् श्रीगरु
ु ….
कबधौं समलै मोहर् श्रीगुरु मतु नवर, करर र्ैं भवोिचध पारा र्ो ।।टे क. ।।
भोगउिाि िोग जिन लीनों, छाँडड पररर्ग्रर्भारा र्ो ।
इजन्रर् िमन वमन मि कीनो, ववषर् कषार् तनवारा र्ो।।१ ।।कबधौं. ।।
कंचन काँच बराबर जिनके, तनंिक बंिक िारा र्ो ।
िध
ु रह तप तवप िम्र्क तनि घर, मनवचतनकर धारा र्ो।।२ ।।कबधौं. ।।
र्ग्रीषम चगरर हर्म िररता तीरै , पावि तरुतल ठारा र्ो ।
करुणाभीन चीन त्रिथावर, ईर्ाहपंथ िमारा र्ो।।३ ।।कबधौं. ।।
मार मार व्रत धार शील दृ़ि, मोर् मर्ामल टारा र्ो ।
माि छमाि उपाि वाि वन, प्रािक
ु करत अर्ारा र्ो।।४ ।।कबधौं. ।।
आरत रौरलेश नहर्ं जिनके, धमह शक
ु ल चचत धारा र्ो ।
ध्र्ानाऱि गू़ि तनि आतम, शध
ु उपर्ोग ववचारा र्ो।।५ ।।कबधौं. ।।
आप तरहर्ं औरनको तारहर्ं, भविलसिंधु अपारा र्ो ।
`िौलत' ऐिे िैन-िततनको, तनतप्रतत धोक र्मारा र्ो।।६ ।।कबधौं. ।।
धतन मतु न जिन…
(िोरठ)
धतन मतु न जिन र्र्, भाव वपछाना ।।
तनव्र्र् वांतछत प्रापतत मानी, पण्
ु र् उिर् िख
ु िाना ।।धतन. ।।
एकववर्ारी िकल ईश्वरता, त्र्ाग मर्ोत्िव माना ।
िब िख
ु को पररर्ार िार िख
ु , िातन रागरुष भाना।।१ ।।धतन. ।।
चचत्स्वभावको चचंत्र् प्रान तनि, ववमल ज्ञानदृगिाना ।
`िौल' कौन िख
ु िान लह्र्ौ ततन, करो शांततरिपाना।।२ ।।धतन. ।।
धतन मुतन तनि…
(िोरठ)
धतन मतु न तनि आतमहर्त कीना ।
भव प्रिार तप अशचु च ववषर् ववष, िान मर्ाव्रत लीना ।।धतन. ।।
एकववर्ारी पररर्ग्रर् छारी, परीिर् िर्त अरीना ।
परू व तन तपिाधन मान न, लाि गनी परवीना।।१ ।।धतन. ।।
शन्
ू र् ििन चगर गर्न गुफामें , पिमािन आिीना ।
परभावनतैं सभन्न आपपि, ध्र्ावत मोर्ववर्ीना।।२ ।।धतन. ।।
स्वपरभेि जिनकी बचु ध तनिमें , पागी वाहर् लगीना ।
`िौल' ताि पि वाररि रििे, ककि अघ करे न छीना।।३ ।।धतन. ।।
परम हिगम्बर र्ती….
परम हिगम्बर र्ती, मर्ागुण व्रती, करो तनस्तारा ।
नर्ीं तुम बबन कौन र्मारा ।।टे क ।।
तुम बीि आठ गुणधारी र्ो, िग िीवमात्र हर्तकारी र्ो ।
बाईि परीषर् िीत धरम रखवारा ।।१ ।।नर्ीं तम
ु .
तुम आतमध्र्ानी ज्ञानी र्ो, शचु च स्वपर भेि ववज्ञानी र्ो ।
र्ै रत्नत्रर् गुणमंडडत हृिर् तुम्र्ारा ।।२ ।।नर्ीं तुम.
तम
ु क्षमाशील िमता िागर, र्ो ववश्व पज्
ू र् वर रत्नाकर ।
र्ै हर्तसमत ित उपिे श तुम्र्ारा प्र्ारा ।।३ ।।नर्ीं तुम.
तुम प्रेममतू तह र्ो िमिशी, र्ो भव्र् िीव मन आकषी ।
र्ै तनववहकार तनिोष स्वरप तम्
ु र्ारा ।।४ ।।नर्ीं तम
ु .
र्ै र्र्ी अवस्था एक िार, िो पर्ुँचाती र्ै मोक्ष द्वार ।
`िौभाग्र्' आपिा बाना र्ोर् र्मारा ।।५ ।।नर्ीं तुम.
ऐिे िाधु िुगुरु कब समसल
र्ैं…
ऐिे िाधु िग
ु ुरु कब समसल र्ैं ।।टे क ।।
आप तरैं अरु पर को तारैं, तनठपर्
ृ ी तनमहल र्ैं ।।१ ।।
ततल तष
ु मात्र िंग नहर्ं जिनके, ज्ञान-ध्र्ान गण
ु बल र्ैं।।२ ।।
शांत हिगम्बर मर
ु ा जिनकी, मन्िर तुल्र् अचल र्ैं ।।३ ।।
`भागचन्ि' ततनको तनत चार्ें , ज्र्ों कमलतन को असल र्ैं ।।४ ।।
परम गुरु बरित
ज्ञान झरी…
तिह : अरे जिर्ा ! िग
धोखे...
परम गुरु बरित ज्ञान झरी ।
र्रवष-र्रवष बर्ु गरजि-गरजि के समथ्र्ा तपन र्री ।।टे क।।
िरधा भसू म िर्
ु ावतन लागी िंशर् बेल र्री ।
भवविन मन िरवर भरर उम़िे िमखु झ पवन सिर्री ।।१।।
स्र्ाद्वाि नर् बबिली चमके परमत सशखर परी ।
चातक मोर िाधु श्रावक के हृिर् िु भजतत भरी ।।२ ।।
िप तप परमानन्ि बढ्र्ो र्ै , िख
ु मर् नींव धरी ।
`द्र्ानत' पावन पावि आर्ो, चथरता शद्ध
ु करी ।।३ ।।
वे मुतनवर कब समली र्ैं
उपगारी…
वे मतु नवर कब समली र्ैं उपगारी ।
िाधु हिगम्बर, नग्न तनरम्बर, िंवर भष
ू ण धारी ।।टे क ।।
कंचन-काँच बराबर जिनके, ज्र्ों ररपु त्र्ों हर्तकारी ।
मर्ल मिान, मरण अरु िीवन, िम गररमा अरु गारी ।।१ ।।
िम्र्ग्ज्ञान प्रधान पवन बल, तप पावक परिारी ।
शोधत िीव िव
ु णह ििा िे, कार्-काररमा टारी ।।२ ।।
िोरर र्ग
ु ल कर `भध
ू र' ववनवे, ततन पि ोक र्मारी ।
भाग उिर् िशहन िब पाऊँ, ता हिन की बसलर्ारी ।।३ ।।
परम हिगम्बर
मुतनवर िे खे…
परम हिगम्बर मतु नवर िे खे, हृिर् र्वषहत र्ोता र्ै ।।
आनन्ि उलसित र्ोता र्ै , र्ो-र्ो िम्र्ग्िशहन र्ोता र्ै ।।टे क।।
वाि जिनका वन-उपवन में , चगरर-सशखर के निी तटे ।
वाि जिनका चचत्त गफ
ु ा में , आतम आनन्ि में रमे ।।१ ।।
कंचन-कासमनी के त्र्ागी, मर्ा तपस्वी ज्ञानी-ध्र्ानी ।
कार्ा की ममता के त्र्ागी, तीन रतन गण
ु भण्डारी ।।२।।
परम पावन मतु नवरों के, पावन चरणों में नमँू ।
शान्त-मतू तह िौम्र्-मर
ु ा, आतम आनन्ि में रमँू ।।३ ।।
चार् नर्ीं र्ै राज्र् की, चार् नर्ीं र्ै रमणी की ।
चार् हृिर् में एक र्र्ी र्ै , सशव-रमणी को वरने की ।।४।।
भेि-ज्ञान की ज्र्ोतत िलाकर, शद्ध
ु ातम में रमते र्ैं ।
क्षण-क्षण में अन्तमख
ुह र्ो, सिद्धों िे बातें करते र्ैं ।।५ ।।
िंत िाधु बन के
ववचरँ…
िंत िाधु बन के ववचरँ, वर् घ़िी कब आर्ेगी ।
चल पडूँ मैं मोक्ष पथ में , वर् घ़िी कब आर्ेगी ।।टे क ।।
र्ाथ में पीछी कमण्डल,ु ध्र्ान आतम राम का ।
छो़िकर घरबार िीक्षा की घ़िी कब आर्ेगी ।।१ ।।
आर्ेगा वैराग्र् मझ
ु को, इि ि:ु खी िंिार िे ।
त्र्ाग िँ ग
ू ा मोर् ममता, वर् घ़िी कब आर्ेगी ।।२ ।।
पाँच िसमतत तीन गजु प्त, बाईि पररषर् भी िर्ूँ ।
भावना बारर् िु भाऊँ, वर् घ़िी कब आर्ेगी ।।३ ।।
बाह्र् उपाचध त्र्ाग कर, तनि तत्त्व का चचंतन करँ ।
तनववहकल्प र्ोवे िमाचध, वर् घ़िी कब आर्ेगी ।।४ ।।
भव-भ्रमण का नाश र्ोवे, इि ि:ु खी िंिार िे ।
ववचरँ मैं तनि आतमा में , वर् घ़िी कब आर्ेगी ।।५ ।।
धन्र् मन
ु ीश्वर आतम
हर्त….
धन्र् मन
ु ीश्वर आतम हर्त में छो़ि हिर्ा पररवार,
कक तुने छो़ि हिर्ा पररवार ।
धन छो़िा वैभव िब छो़िा, िमझा िगत अिार,
कक तुने छो़ि हिर्ा िंिार ।।टे क ।।
कार्ा की ममता को टारी, करते िर्न परीषर् भारी ।
पंच मर्ाव्रत के र्ो धारी, तीन रतन के र्ो भंडारी ।।
आत्म स्वरप में झल
ु ते, करते तनि आतम-उद्धार,
कक तुने छो़िा िब घर बार ।।१ ।।
राग-द्वेष िब तु ने त्र्ागे, वैर-ववरोध हृिर् िे भागे ।
परमातम के र्ो अनरु ागे, वैरी कमह पलार्न भागे ।।
ित ् िन्िे श िन
ु ा भवविन को, करते बे़िा पार,
कक तुने छो़िा िब घर बार ।।२ ।।
र्ोर् हिगम्बर वन में ववचरते, तनश्चल र्ोर् ध्र्ान िब करते ।
तनिपि के आनंि में झल
ु ते, उपशम रि की धार बरिते ।।
मर
ु ा िौम्र् तनरख कर, मस्तक नमता बारम्बार,
कक तन
ु े छो़िा िब घर बार ।।३ ।।
म्र्ारा परम हिगम्बर
मतु नवर….
म्र्ारा परम हिगम्बर मतु नवर आर्ा, िब समल िशहन कर लो,
र्ाँ, िब समल िशहन कर लो ।
बार-बार आना मजु श्कल र्ै , भाव भजतत उर भर लो,
र्ाँ, भाव भजतत उर भर लो ।।टे क ।।
र्ाथ कमंडलु काठ को, पीछी पंख मर्रू ।
ववषर्-वाि आरम्भ िब, पररर्ग्रर् िे र्ैं िरू ।।
श्री वीतराग-ववज्ञानी का कोई, ज्ञान हर्र्ा ववच धर लो, र्ाँ ।।१ ।।
एक बार कर पात्र में , अन्तरार् अघ टाल ।
अल्प-अशन लें र्ो ख़िे, नीरि-िरि िम्र्ाल।।
ऐिे मतु न मर्ाव्रत धारी, ततनके चरण पक़ि लो, र्ाँ ।।२।।
चार गतत ि:ु ख िे टरी, आत्मस्वरप को ध्र्ार् ।
पण्
ु र्-पाप िे िरू र्ो, ज्ञान गुफा में आर् ।।
`िौभाग्र्' तरण तारण मतु नवर के, तारण चरण पक़ि लो, र्ाँ ।।३ ।।
तनत उठ ध्र्ाऊँ, गुण
गाऊँ…
तनत उठ ध्र्ाऊँ, गण
ु गाऊँ, परम हिगम्बर िाधु ।
मर्ाव्रतधारी धारी...धारी मर्ाव्रत धारी ।।टे क ।।
राग-द्वेष नहर्ं लेश जिन्र्ों के मन में र्ै ..तन में र्ै ।
कनक-कासमनी मोर्-काम नहर्ं तन में र्ै ...मन में र्ै ।।
पररर्ग्रर् रहर्त तनरारम्भी, ज्ञानी वा ध्र्ानी तपिी ।
नमो हर्तकारी...कारी, नमो हर्तकारी ।।१ ।।
शीतकाल िररता के तट पर, िो रर्ते..िो रर्ते ।
र्ग्रीठम ऋतु चगररराि सशखर च़ि, अघ िर्ते...अघ िर्ते ।।
तरु-तल रर्कर वषाह में , ववचसलत न र्ोते लख भर् ।
वन अँचधर्ारी...भारी, वन अँचधर्ारी ।।२ ।।
कंचन-काँच मिान-मर्ल-िम, जिनके र्ैं...जिनके र्ैं ।
अरर अपमान मान समत्र-िम, जिनके र्ैं..जिनके र्ैं ।।
िमिशी िमता धारी, नग्न हिगम्बर मतु नवर ।
भव िल तारी...तारी, भव िल तारी ।।३ ।।
ऐिे परम तपोतनचध िर्ाँ-िर्ाँ, िाते र्ैं...िाते र्ैं ।
परम शांतत िख
ु लाभ िीव िब, पाते र्ैं...पाते र्ैं ।।
भव-भव में िौभाग्र् समले, गरु
ु पि पि
ू ँ ू ध्र्ाऊँ ।
वरँ सशवनारी... नारी, वरँ सशवनारी ।।४ ।।
र्ै परम-हिगम्बर मुरा
जिनकी…
र्ै परम-हिगम्बर मर
ु ा जिनकी, वन-वन
मैं उन चरणों का चेरा, र्ो
शाश्वत िख
ु मर् चैतन्र्-ििन में , रर्ता
मैं उन चरणों का चेरा, र्ो
करें बिेरा ।
वन्िन उनको मेरा ।।
जिनका डेरा ।
वन्िन उनको मेरा ।।टे क ।।
िर्ँ क्षमा मािह व आिहव ित ् शचु चता की िौरभ मर्के ।
िंर्म तप त्र्ाग अककंचन स्वर पररणतत में प्रततपल चर्के।
र्ै ब्रह्मचर्ह की गररमा िे, आराध्र् बने िो मेरा ।।१ ।।
अन्तर-बार्र द्वािश तप िे, िो कमह-कासलमा िर्ते ।
उपिगह परीषर्-कृत बाधा, िो िाम्र्-भाव िे िर्ते ।
िो शद्ध
ु -अतीजन्रर् आनन्ि-रि का, लेते स्वाि घनेरा ।।२ ।।
िो िशहन ज्ञान चररत्र वीर्ह तप, आचारों के धारी ।
िो मन-वच-तन का आलम्बन ति, तनि चैतन्र् ववर्ारी।।
शाश्वत िख
ु िशहन-ज्ञान-चररत में , करते ििा बिेरा ।।३ ।।
तनत िमता स्तुतत वन्िन अरु, स्वाध्र्ार् ििा िो करते ।
प्रततक्रमण और प्रतत-आख्र्ान कर, िब पापों को र्रते ।।
चैतन्र्राि की अनप
ु म तनचधर्ाँ, जििमें करें बिेरा ।।४ ।।
र्ोली खेलें मुतनराि सशखर वन
में …
र्ोली खेलें मतु नराि सशखर वन में , रे अकेले वन में, मधव
ु न में ।
मधव
ु न में आि मची रे र्ोली, मधव
ु न में ।।टे क ।।
चैतन्र्-गफ
ु ा में मतु नवर बिते, अनन्त गण
ु ों में केली करते।
एक र्ी ध्र्ान रमार्ो वन में , मधव
ु न में ।।र्ोली. ।।१ ।।
ध्रव
ू ी लगाई, ध्र्ान की धधकती अजग्न िलाई ।
ु धाम ध्र्ेर् की धन
ववभाव का इंधन
ह िलार्ें वन में , मधव
ु न में ।।र्ोली. ।।२ ।।
अक्षर् घट भरपरू र्मारा, अन्िर बर्ती अमत
ृ धारा ।
पतली धार न भाई मन में , मधव
ु न में ।।र्ोली. ।।३ ।।
र्में तो पण
ू ह िशा र्ी चहर्र्े, िाहि-अनंत का आनंि लहर्र्े।
तनमहल भावना भाई वन में , मधव
ु न में ।।र्ोली. ।।४ ।।
वपता झलक ज्र्ों पत्र
ु में हिखती, जिनेन्र झलक मतु नराि चमकती ।
श्रेणी माँडी पलक तछन में , मधव
ु न में ।।र्ोली. ।।५ ।।
नेसमनाथ चगरनार पे िे खो, शत्रंि
ु र् पर पाण्डव िे खो ।
केवलज्ञान सलर्ो र्ै तछन में , मधव
ु न में ।।र्ोली. ।।६ ।।
बार-बार वन्िन र्म करते, शीश चरण में उनके धरते ।
भव िे पार लगार्े वन में , मधव
ु न में ।।र्ोली. ।।७ ।।
ऐिा र्ोगी तर्ों न
अभर्पि पावै…
ऐिा र्ोगी तर्ों न अभर्पि पावै, िो फेर न भवमें आवै ।।टे क. ।।
िंशर् ववभ्रम मोर्-वववजिहत, स्वपर स्वरप लखावै ।
लख परमातम चेतनको पतु न, कमहकलंक समटावै।।१ ।।ऐिा. ।।
भवतनभोगववरतत र्ोर् तन, नग्न िभ
ु ेष बनावै ।
मोर्ववकार तनवार तनिातम-अनभ
ु व में चचत लावै।।२ ।।ऐिा. ।।
त्रि-थावर-वध त्र्ाग ििा, परमाि िशा तछटकावै ।
रागाहिकवश झठ
ू न भाखै, तण
ृ र्ु न अित गर्ावै।।३ ।।ऐिा. ।।
बाहर्र नारर त्र्ाचग अंतर, चचद्ब्रह्म िल
ु ीन रर्ावै ।
परमाककंचन धमहिार िो, द्ववववध प्रिंग बर्ावै।।४ ।।ऐिा. ।।
पंच िसमतत त्रर् गजु प्त पाल, व्र्वर्ार-चरनमग धावै ।
तनश्चर् िकल कषार् रहर्त ह्वै, शद्ध
ु ातम चथर थावै।।५ ।।ऐिा. ।।
कंु कुम पंक िाि ररपु तण
ृ मखण, व्र्ाल माल िम भावै ।
आरत रौर कुध्र्ान ववडारे , धमहशक
ु लको ध्र्ावै।।६ ।।ऐिा. ।।
िाके िख
ु िमाि की महर्मा, कर्त इन्र अकुलावै ।
`िौल' तािपि र्ोर् िाि िो, अववचलऋवद्ध लर्ावै।।७ ।।ऐिा. ।।
श्री मतु न राित िमता
िंग…
श्री मतु न राित िमता िंग, कार्ोत्िगह िमाहर्त अंग ।।टे क ।।
करतैं नहर्ं कछु कारि तातैं, आलजम्बत भि
ु कीन अभंग ।
गमन काि कछु र्ै नहर्ं तातैं, गतत तजि छाके तनि रि रं ग ।।१ ।।
लोचन तैं लखखवो कछु नार्ीं, तातैं नाशादृग अचलंग ।
ितु नर्े िोग रह्र्ो कछु नार्ीं, तातैं प्राप्त इकन्त-िच
ु ंग ।।२ ।।
तर् मध्र्ाह्न माहर्ं तनि ऊपर, आर्ो उर्ग्र प्रताप पतंग ।
कैधौं ज्ञान पवन बल प्रज्वसलत, ध्र्ानानल िौं उछसल फुसलंग ।।३ ।।
चचत्त तनराकुल अतुल उठत िर्ँ , परमानन्ि वपर्ष
ू तरं ग ।
`
भागचन्ि' ऐिे श्री गुरु-पि, वंित समलत स्वपि उत्तंग ।।४ ।।
तनर्ग्रंथों का मागह…
तनर्ग्रंथों का मागह...
तनर्ग्रंथों का मागह र्मको प्राणों िे भी प्र्ारा र्ै ...
हिगम्बर वेश न्र्ारा र्ै ... तनर्ग्रंथों का मागह....॥
शद्ध
ु ात्मा में र्ी, िब लीन र्ोने को, ककिी का मन मचलता र्ै ,
तीन कषार्ों का, तब राग पररणतत िे, िर्ि र्ी टलता र्ै ,
वस्त्र का धागा.... वस्त्र का धागा नर्ीं कफ़र उिने तन पर धारा र्ै ,
हिगम्बर वेश न्र्ारा र्ै ... तनर्ग्रंथों का मागह....॥
पंच इंहरर् का, तनस्तार नर्ीं जििमें , वर् िे र् र्ी पररर्ग्रर् र्ै ,
तन में नर्ीं तन्मर्, र्ै दृजठट में चचन्मर्, शद्ध
ु ात्मा र्ी गर्
ृ र्ै ,
पर्ाहर्ों िे पार... पर्ाहर्ों िे पार बत्रकाली ध्रव
ु का ििा िर्ारा र्ै ,
हिगम्बर वेश न्र्ारा र्ै ... तनर्ग्रंथों का मागह....॥
मल
ू गण
ु पालन, जिनका िर्ि िीवन, तनरन्तर स्व-िंवेिन,
एक ध्रव
ू ण,
ु िामान्र् में र्ी ििा रमते, रत्नत्रर् आभष
तनववहकल्प अनभ
ु व... तनववहकल्प अनभ
ु व िे र्ी जिनने तनि को श्रंगारा र्ै ,
हिगम्बर वेश न्र्ारा र्ै ... तनर्ग्रंथों का मागह....॥
आनंि के झरने, झरते प्रिे शों िे, ध्र्ान िब धरते र्ैं,
मोर् ररपु क्षण में , तब भस्म र्ो िाता, श्रेणी िब च ते र्ैं,
अंतमर्
ुह ू तह मे... अंतमर्
ुह ू तह में र्ी जिनने अनन्त चतुठटर् धारा र्ै ,
हिगम्बर वेश न्र्ारा र्ै ... तनर्ग्रंथों का मागह....॥
शद्ध
ु ातम तत्व ववलािी…
शद्ध
ु ातम तत्व ववलािी रे , मतु न मगन नगन वनवािी रे ,
क्षण क्षण में अंतमख
ुह र्ोते,तनत िर्ि प्रत्र्ाशी रे ,
मतु न...
शांत हिगम्बर मर
ु ा जिनकी, मंिर अचल प्रवािी रे ,
मतु न...
ज्र्ों तनुःिंग वार्ु िम तनमहल, त्र्ों तनलेप अकािी रे ,
मतु न...
ववनर् शभ
ु ोपर्ोग की पररणतत, ित्ता िर्ि ववनाशी रे ,
मतु न...
BhaktiSuman_Anamol
Ratan
शाजन्त िध
ु ा बरिा गर्े गरु
ु …
शाजन्त िध
ु ा बरिा गर्े गुरु तोहर् बबररर्ां.
तत्वज्ञान िमझा रर्े गरु
ु तोहर् बबररर्ां,
अनेकांत और स्र्ाद्वाि पथ िरशार्ा,
िन
ु कर के िारे िग का मन र्रषार्ा,
इन पे तनछावर र्ीरा मोती और मखणर्ां,
ज्ञान िध
ु ा बरिा गर्े गुरु तोहर् बबररर्ां,
तत्वज्ञान िमझा रर्े गुरु तोहर् बबररर्ां ||
तनश्चर् और व्र्वर्ार तम्
ु र्ीं ने िमझार्ा,
बडे बडे ववद्वानों के भी मन भार्ा,
स्वाध्र्ार् प्रवचन चचंतन गुरु की ककररर्ा,
तत्वज्ञान िमझा रर्े गुरु तोहर् बबररर्ां,
शाजन्त िध
ु ा बरिा गर्े गुरु तोहर् बबररर्ां ||
िमर्िार के गणधर बनकर तुम आर्े,
कर हिर्े अंधेरे िरू हृिर् में िो छार्े,
मैं पडूं र्िारों बार गुरु तोरी पैर्ा,
शाजन्त िध
ु ा बरिा गर्े गरु
ु तोहर् बबररर्ां.
तत्वज्ञान िमझा रर्े गरु
ु तोहर् बबररर्ां ||
bhakti_suman muktidut-k
मझ
ु े ऐिा वर िे िे , गुणगान करं तेरा
इि बालक के सिर पे प्रभु र्ाथ रर्े तेरा
िेवा तनत तेरी करं, तेरे द्वार पे आऊं मैं
चरणों की धल
ू ी को, तनि शीश लगाऊं मैं
चरणामत
ृ पाकर के, तनत कमह करं मेरा
इि बालक के ...
भजतत और शजतत िो, अज्ञान को िरू करो
अरिाि करं गरु
ु वर, असभमान को चरू करो
नर्ीं द्वेष रर्े मन में , रर्े वाि गुरु तेरा
इि बालक के ...
ववश्वाि र्ो र्े मन में , तुम िाथ र्ी र्ो मेरे
तेरे ध्र्ान में िोऊं मैं, िपनों में रर्ो मेरे
चरणों िे सलपट िाउं , तुम ख्र्ाल करो मेरा
इि बालक के ...
मेरे र्शकीततह को, गरु
ु मझ
ु िे िरू रखो
इि मन मंहिर में , तम
ु भजतत भरपरू भरो
तेरी ज्र्ोतत िगे मन में , तनत ध्र्ान धरं तेरा
इि बालक के ...
िशहन िो... िशहन िो... िशहन िो...
आ िशह हिखा िे गुरुिे व, तुझे तेरे लाल बल
ु ाते र्ैं।
तुझे रो रो पक
ु ारे मेरे नैन, तुझे तेरे लाल बल
ु ाते र्ै ॥
आंखों के आंिू िख
ू चक
ु े र्ैं, अब तो िशह हिखा िे िे ।
कब िे खडे र्ै िर पर तेरे, मन की तू प्र्ाि बझ
ु ा िे ।
तेरी लीला तनराली गुरुिे व, तुझे तेरे लाल बल
ु ाते र्ै ॥
तुझे रो रो पक
ु ारे ...
बीच भंवर में नैर्ा पडी र्ै , आकर तू पार लगा िे ।
तेरे सिवा मेरा कोई नर्ीं र्ै , आकर गले िे लगा ले ले।
तर्ों िे र लगाते गुरुिे व, तुझे तेरे लाल बल
ु ाते र्ै ॥
तुझे रो रो पक
ु ारे ...
डूब रर्ा र्ै िख
ु का र्े िरू ि, गम की बिररर्ा र्ै छाई।
उिड गई बचगर्ा िीवन की, मन की कली मरु झाई।
करें ववनती र्े बालक आि, तुझे तेरे लाल बल
ु ाते र्ै ॥
तुझे रो रो पक
ु ारे ...
वैिे तो तम
ु र्ो मन में र्मारे , आंखे नर्ीं मानती र्ै ,
इक पल गुरु िे अब र्े बबछुड कर, रर्ना र्े नर्ीं चार्ती र्ै ।
बरबि बरिार्े नीर, तुझे तेरे लाल बल
ु ाते र्ै ॥
तुझे रो रो पक
ु ारे ...
आत्म शजतत िे ओतप्रोत, ववद्र्ा और ज्ञान िे भर िो,
गुरुवर ऐिा वर िो
रर्े मनोबल अचलमेरु िा, ततनक नर्ीं घबराऊं,
प्रबल आंचधर्ां रोक िके ना, आगे ब ता िाऊं,
उड िाऊं तनबाहध लक्ष्र् तक, गुरुवर ऐिा वर िो,
गुरुवर ऐिा वर िो..
र्ै अज्ञान तनशा अंचधर्ारी, तुम हिनकर बन आओ,
ज्ञान और भजतत की सशक्षा, बालक को िमझाओ,
ववनर् भरा गुरु ज्ञान मझ
ु े िो, मन ज्र्ोततमहर् कर िो,
गुरुवर ऐिा वर िो..
िम
ु तत िि
ु श िख
ु िम्पजत्त िाता, र्े गुरुवर अपना लो,
िंत िमागम चार्ूं मै, मझ
ु े अपने पाि बबठा लो,
िैिा भी र्ुं तेरा र्ी र्ुं, र्ाथ िर्ा का धर िो,
गुरुवर ऐिा वर िो..
मैं अबोध सशशु र्ूं गरु
ु तेरा, िोष ध्र्ान मत िे ना,
िब भततों के िाथ मझ
ु े भी, शरण चरण की िे ना,
र्े गुरुवर िख
ु ज्ञान अभर्, और मन भजतत िे भर िो,
गुरुवर ऐिा वर िो..
गुरुिे व मेरे तुमको, भगतों ने पक
ु ारा र्ै ,
आओ अब आ िाओ, इक तेरा िर्ारा र्ै ।
र्ै चारों तरफ़ छार्ा, मेरे घोर अंधेरा र्ै ,
अब िार्ें कर्ां बोलो, तफ़
ू ानों ने घेरा र्ै ,
र्े नाथ अनाथों को, तेरा र्ी िर्ारा र्ै ।
आओ अब आ िाओ...
मझिार पडी नैर्ा, डगमग डोला खार्ें,
समल िाओ र्में आकर, र्म भव िे तर िार्े,
बबन तेरे नर्ीं िग में , इक पल भी गुिारा र्ै ।
आओ अब आ िाओ...
तेरे इन चरणों की, धसु ल र्ी तो समल िार्े,
भटके र्ुए रार्ी को, तनि मंजिल समल िार्े,
ककस्मत भी चमक िार्े, वो चमके सितारा र्ै ।
आओ अब आ िाओ...
िेवा गरु
ु चरणन की, मजु तत भव तरणन की,
महर्मा गरु
ु वरणन की, ज्ञाता शभ
ु करमण की,
गुरु ज्ञान िंिीवन की, बर्ती इक धारा र्ै ।
आओ अब आ िाओ...
झम िम गरु
ु शजतत को, कोई पार नर्ीं पार्े,
िो िशहन अब गरु
ु वर, चरणों में सलपट िार्े,
र्े भतत ििा करता, गुणगान तुम्र्ारा र्ै ।
आओ अब आ िाओ...
सलर्ा आि प्रभु िी ने िनम िखी….
सलर्ा आि प्रभु िी ने िनम िखी,
चलो अवधपरु ी गुण गावन कों ॥ सलर्ा..॥
तुम िन
ु री िर्
ु ागन भाग भरी,
चलो मोततर्न चौक परु ावन कों ॥ सलर्ा..॥
िव
ु रण कलश धरों सशर ऊपर,
िल लावें प्रभु न्र्वावन कों ॥ सलर्ा...॥
भर भर थाल िरब के लेकर ,
चालो िी अघह च ावन कों ॥ सलर्ा...॥
नर्नानंि कर् ितु न ििनी,
फ़ेर न अविर आवन कों॥ सलर्ा....॥
सलर्ा ररषभ िे व अवतार…
सलर्ा ररषभ िे व अवतार तनरत िरु पतत न ककर्ा आके
तनरत ककर्ा आके र्षाह के प्रभि
ू ी के नव भव कंू िरशा के
िरर िरर कर िारं गी तंबरू ा बािे पोरी पोरी मटका के ॥सलर्ा...॥
प्रथम प्रकािी वाने इंर िाल ववद्र्ा ऐिी
आिलों िगत मैं िन
ु ी ना कर्ूं िे खी ऐिी
आर्ो र्ै छ्बीलो छटकीलो र्ै मक
ु ु ट बंध
छ्म्भ िे िी कूिो मानु आ कूिो पन
ू म को चांि
मन को र्रत गत भरत प्रभू को ..पि
ू ै धरनी को सशर नाके ॥सलर्ा...॥
भि
ू ों पै च ार्े र्ैं र्ज़ारों िे व िे वी ताने
र्ाथों की र्थेली में िमार्े र्ैं अखाडे तानै
ताचधन्ना ताचधन्ना तबला ककट ककट उनकी प्र्ारी लागे
धम
ु कक् ट धम
ु ककट बािा बाि नाचत प्रभू िी के आगे
िैना मै ररझावै ततरछी ऐड लगावे ..उड िावे भिन गाके ॥सलर्ा...॥
तछन मैं िाब िे वो तो नंिीश्वर द्वीप िार्
पांचो मेर वंि आ मि
ृ ं ग पै लगावे थाप
वंिे ाई द्वीप तेरा द्वीप के शकल चैत्र्
तीन लोक मांहर् बबम्ब पि
ू आवे तनत्र् तनत्र्
आबै वो झपट िमर्ी पै िोडा लेने िम..मन मोर्न मि
ु का के ॥सलर्ा...॥
अमत
ृ की लगी झड बरषै रतन धारा
िीरी िीरी चाले पोन बोलै िे व िर् िर् कारा
भर भर झोरी बषाहवै फ़ूल िे िे ताल
मर्के िग
ु ंध चर्क मच
ु ंग षट्ताल
िन्मे र्े जिनेन्र र्ों नासभ के आनंि भर्ो.. गर्े भजतत को बतलाके ॥सलर्ा..॥
बािै छै बधाई रािा …
बािै छै बधाई, रािा नासभ के िरबार िी
नासभ के िरबार रािा नासभ के िरबार िी ॥ बािै ... ॥
मोरा िे वी बेटो िार्ो, िार्ो ररषभ कुमार िी
अर्ोध्र्ा में उत्िव कीनो ,घर घर मंगलाचार िी ॥ बािै ...॥
घन घन घन घन घंटा बािे, िे व करे िर्कार िी
नोपत के टं कारो लाग्र्ो ,झां झां की झनकार िी ॥ बािै ...॥
र्ाथी िीना घोडा िीना, िीना गि अिवार िी
नगर िरीिा पट्टन िीना, िीना रतन भंडार िी ॥ बािै ...॥
र्ीरा िीना पन्ना िीना, लां लां को नहर्ं पार िी
नासभ रािा िान िीनो, भर भर मोततर्न थाल िी ॥ बािै...॥
गुणीिन गावै ऐिे, िे िे ताल िी
चचरं िी र्ो बालक तेरो, िन हर्तकार िी ॥ बािै ...॥
चन्रोज्वल छवव अववकार स्वामी िी …
चन्रोज्वल अववकार स्वामी िी ,तम
ु गण
ु अपरं पार
िबै प्रभू गरभ माहर्ं आर्े, िकल िरु नर मतु न र्षाहर्े
रतन नगरी मे बरिार्े...ओ॓.... असमत अमोघ िथ
ु ार स्वामी िी...तम
ु गुण अपरं पार॥
िन्म प्रभू तुमने िब लीना, न्र्वन मजन्िर पर र्रर कीना
भजतत िरु शचच िहर्त बीना...ओ... बोले िर्िर्कार स्वामी िी...तुम गुण
अपरं पार॥
अचथर िग तम
ु ने िब िाना, आस्तवन लोकांततक थाना
भर्े प्रभू ितत नगन बाना....ओ....त्र्ागराि को भार स्वामी िी...तम
ु गुण अपरं पार॥
घाततर्ा प्रकृतत िबर् नािी, लोक तरु आलोक परकािी
करी प्रभू धमह वजृ ठट खािी...ओ... केवल ज्ञान भंडार स्वामी िी...तम
ु गुण अपरं पार॥
अघाततर्ा प्रकृतत िो ववघटाई, मजु तत कांता तब र्ी पाई
तनराकुल आनंि िख
ु िाई... ओ ...तीन लोक सिरताि स्वामी िी...तम
ु गुण अपरं पार॥
चरण मतु न िब तुमरे ध्र्ावे, पार गणधर र्ूं नहर्ं पावै
कर् लग “भागचन्ि” गावे...ओ...भविागर िे पार स्वामी िी...तम
ु गण
ु अपरं पार॥
सलर्ा प्रभू अवतार िर्िर्कार …
सलर्ा प्रभू अवतार िर्िर्कार िर्िर्कार िर्िर्कार।
बत्रशला नंि कुमार िर्िर्कार िर्िर्कार िर्िर्कार॥
आि खुशी र्ै आि खुशी र्ै , तुम्र्े खुशी र्ै र्में खुशी र्ै ।
खसु शर्ां अपरम्पार ॥ िर्िर्कार...॥
पठु प और रत्नों की वषाह,िरु पतत करते र्षाह र्षाह।
बिा िं ि
ु सु भ िार ॥ िर्िर्कार... ॥
उमग उमग नरनारी आते,नत्ृ र् भिन िंगीत िन
ु ाते।
इंर शची ले लार ॥ िर्िर्कार... ॥
प्रभू का अनप
ु म रप िर्
ु ार्ा,तनरख तनरख छवव र्रर ललचार्ा।
कीने नेत्र र्िार ॥ िर्िर्कार... ॥
िन्मोत्िव की शोभा भारी,िे खो प्रभू की लगी िवारी।
िुि रर्ी भीड अपार ॥ िर्िर्कार... ॥
आओ र्म िब प्रभु गुण गावें ,ित्र् अहर्ंिा ध्वि लर्रार्ें।
िो िग मंगलाचार ॥ िर्िर्कार... ॥
पण्
ु र् र्ोग िौभाग्र् र्मारा,िफ़ल र्ुआ र्ै िीवन िारा।
समले मोक्ष िातार ॥ िर्िर्कार... ॥
ववषर्ों की तठृ णा को छोड…
ववषर्ों की तठृ णा को छोड, िंर्म की िाधना में … चल पडे नेसम कुमार ।
पररर्ग्रर् की चचंता को तोडकर तनि के चचंतन में …. रम रर्े नेसम कुमार ।
…. वेष हिगम्बर धार ।०।
र्र् िीव अनाहि िे, र्ै मोर् िे र्ारा ।
चर्ुंगतत में भटक रर्ा, िख
ु िर्ता बेचारा ।
कोई नर्ीं र्ै शरण अतुः, आतम र्ी शरणा र्ै ,
िाना िगत अिार …. वेष हिगम्बर धार ।१।
प्रभू चल पडे वन को, ध्र्ार्े तनि चेतन को ।
िब राग तंतु तोडे, काटे भव बंधन को ।
कफ़र मोर् शत्रु नाशे और क्षातर्क चाररत्र धारे ,
जिि में र्ै आनंि अपार …. वेष हिगम्बर धार ।२।
कर चार घाततर्ा क्षर्, प्रगटे चतठु ट अक्षर्।
िारी िजृ ठट झलके, पररणतत तनि में तन्मर् ।
शाश्वत सशवपि पार्े और कफ़र मजु तत वधू ब्र्ार्ें ,
र्ो भव िागर पार …. वेष हिगम्बर धार ।३।
बािे कुण्डलपुर में बधाई…
बािे कुण्डलपरु में बधाई
कक नगरी में वीर िन्मे, मर्ावीर िी॥टे क॥
िागे भाग र्ैं बत्रशला मां के..
बत्रभव
ु न के नाथ िन्मे, मर्ावीर िी॥१॥
शभ
ु घडी िनम की आई...
कक स्वगह िे िे व आर्े, मर्ावीर िी॥२॥
तझ
ु े िे ववर्ां झल
ु ावे पलना..
कक मन में मगन र्ोके, मर्ावीर िी॥३॥
तेरे पलने में र्ीरे मोती..
कक डोररर्ों में लाल लटके, मर्ावीर िी॥४॥
तेरे न्र्वन करें मेरु पर..
कक इंर िल भर लार्ें, मर्ावीर िी॥५॥
र्म तेरे िरि को आर्े..
कक पाप िब कट िाऐगे, मर्ावीर िी॥६॥
चगरनारी पर तप कल्र्ाणक…
चगरनारी पर तप कल्र्ाणक नेसम बनेंगे मतु नराि रे
आए लौकांततक ब्रह्मचारी र्ुए , प्रिन्न िे ख नर नारी,
धन्र् हिवि र्ै आि रे , धन्र् हिवि र्ै आि रे ॥१॥
प्रभि
ु ी बरर् भवना भार्े , पररणतत में वैराग्र् ब ार्े,
र्म भी बनेंगे मतु नराि रे , र्म भी बनेंगे मतु नराि रे ॥२॥
शद्ध
ु ातम रि को र्ी चार्े , ववषर् भोग ववष िम र्ी लागे ,
राग लगे अंगार रे , राग लगे अंगार रे ॥३॥
प्रभु िी वेश हिगम्बर धारे , चेतन को तनर्ग्रहन्थ तनर्ारे ,
बरिे आनंि धार रे , बरिे आनंि धार रे ॥४॥
घर घर आनंि छार्ो…
घर घर आनंि छार्ो, िन्म मर्ोत्िव मनार्ो
अंततम िन्म र्ुआ प्रभु िी का, मोक्ष मर्ाफ़ल पार्ो िी पार्ो ॥
स्वगह परु ी िे िरु पतत आर्े, एरावत र्ाथी ले आर्े,
िीवन िफ़ल र्ुआ िरु पतत का, िन्म मरण को शीघ्र नशार्े,
मंगल मर्ोत्िव मनार्ो मनार्ो, घर घर...॥ घर घर आनंि छार्ो..॥१॥
पण्
ु र् उिर् र्ै आि र्मारे , नगरी में जिनराि पधा्रे,
जिनिशहन की प्र्ाि िगार्े, भजतत िहर्त िरु राि पधारे ,
आतम रि बरिार्ॊ बरिार्ॊ, घर घर...॥ घर घर आनंि छार्ो..॥२॥
धन्र् धन्र् तुम िे वी िाओ, िवहप्रथम िशहन िख
ु पाओ,
कठट न ककंचचत र्ो माता को, मार्ामर्ी ित
ु िे कर आओ,
आतम िशहन पाओ िी पाओ, घर घर...॥ घर घर आनंि छार्ो..॥३॥
र्रर ने नेत्र र्िार बनार्े, तो भी तप्ृ त नर्ीं र्ो पार्े,
ज्ञान चक्षु िे जिन िशहन कर, एक अभेि स्वभाव लखार्े,
िीवन िफ़ल बनार्ो बनार्ो, घर घर...॥ घर घर आनंि छार्ो..॥४॥
हिव्र् ध्वतन वीरा खखराई…
हिव्र् ध्वतन वीरा खखराई आि शभ
ु हिन, धन्र् धन्र् िावन की पर्ली र्ै एकम
आत्म स्वभावं परभाव सभन्नं, आपण
ू ह माद्र्न्त ववमत
ु त मेकम
हिव्र् ध्वतन....
वैिाख ििमी को घाततर्ा खखपार्े, मेरे प्रभु ववपल
ु ाचल पर आर्े
क्षण में लोकालोक लखार्े, ककन्तु न प्रभु उपिे श िन
ु ार्े
काल लजब्ध वाणी की आर्ी नर्ी उि हिन
धन्र् धन्र् िावन की पर्ली र्ै एकम...
इन्र अवचधज्ञान उपर्ोग लगार्े, िमविरण में गणधर ना पार्े
इन्रभतू त गौतम में र्ोग्र्ता लखार्े, वीर प्रभु के िशहन को आर्े
काल लजब्ध लेकर के आई आि गौतम
धन्र् धन्र् िावन की पर्ली र्ै एकम...
मेरे प्रभु ऒकार ध्वतन को खखरार्े, गौतम द्वािश अंग रचार्े
उत्पाि व्र्र् ध्रौव्र् ित िमझार्े, तन चेतन सभन्न सभन्न बतार्े
भेि ववज्ञान िर्
ु ार्ो आि शभ
ु हिन
धन्र् धन्र् िावन की पर्ली र्ै एकम...
र् एव मत
ु त्वा नर् पक्षपातं, स्वरप गप्ु ता तनविजन्त तनत्र्ं
ववकल्प िाल च्र्त
ु शांत चचत्ता, स्तर्ेव िाक्षातामत
ृ ं वपबजन्त
स्वानभ
ु तू त की कला सिखाई आि शभ
ु हिन
धन्र् धन्र् िावन की पर्ली र्ै एकम...
भेष हिगम्बर धार…
भेष हिगम्बर धार चले र्ैं मतु न िल्
ू र्ा बनके
पंच मर्ाव्रत िामा ििार्ा, िशलक्षण का िेर्रा बंधार्ा
चाररत्र रथ र्ो िवार...चले र्ैं मतु न िल्
ू र्ा बनके
बारर् भावना िंग बाराती, िसमतत गुजप्त िब हर्ल समल गाती
र्षह िे मंगलाचार...चले र्ैं मतु न िल्
ू र्ा बनके
राग द्वेष आततशबािी छूटी, क्रोध कषार् की लडडर्ां टूटी
िमता पार्ल झनकार...चले र्ैं मतु न िल्
ू र्ा बनके
शत
ु ल ध्र्ान की अजग्न िलाकर, र्ोम ककर्ा तनि कमह खखपाकर
तप तेरा र्शगान...चले र्ैं मतु न िल्
ू र्ा बनके
शभ
ु बेल सशवरमणी वरे गे, मजु तत मर्ल में प्रवेश करें गे
गंि
ू ेगी ध्वतन िर्कार...चले र्ैं मतु न िल्
ू र्ा बनके
लर्रार्ेगा-लर्रार्ेगा…
लर्रार्ेगा-लर्रार्ेगा झंडा श्री मर्ावीर का ।
फर्रार्ेगा-फर्रार्ेगा झंडा श्री मर्ावीर का ।।
अखखल ववश्व का िो र्ै प्र्ारा,
िैन िातत का चमककत तारा ।
र्म र्व
ु कों का पण
ू ह िर्ारा, झंडा श्री मर्ावीर का॥
ित्र् अहर्ंिा का र्ै नार्क,
शांतत िध
ु ारि का र्ै िार्क ।
िीनिनों का ििा िर्ार्क, झंडा श्री मर्ावीर का॥
िाम्र्भाव िशाहने वाला,
प्रेमक्षीर बरिाने वाला ।
िीवमात्र र्षाहने वाला, झंडा श्री मर्ावीर का ॥
भारत का “िौभाग्र्'' ब़िाता,
स्वावलंब का पाठ प़िाता ।
वन्िे वीरम ् नाि गंि
ु ाता, झंडा श्री मर्ावीर का ॥
लर्र लर्र लर्रार्े…
तिह: र्वा मे उडता िार्े…
लर्र लर्र लर्रार्े, केिररर्ा झंडा जिनमत का...र्ो िी
िबका मन र्रषार्े, केिररर्ा झंडा जिनमत का...र्ो िी
फ़र फ़र फ़र फ़र करता झंडा, गगन सशखा पे डोले।
स्वाजस्तक का र्र् चचन्र् अनठ
ू ा, भेि हृिर् के खोले।
र्र् ज्ञान की ज्र्ोतत िगार्े, केिररर्ा झंडा जिनमत का… र्ो िी॥
इिकी शीतल छार्ा में िब, प े रतन जिनवाणी।
ित्र् अहर्ंिा प्रेम र्त
ु त िब, बने तत्व श्रद्धानी।
र्र् ित पथ पर पर्ुंचार्े, केिररर्ा झंडा जिनमत का...र्ो िी॥
श्रीजिनधमह ििा िर्वन्त ......
श्रीजिनधमह ििा िर्वन्त ......
तीन लोक ततर्ुँ कालतनमार्ीं, िाको नार्ीं आहि न अन्त।।श्री. ।।
िग
ु न
ु तछर्ासलि िोष तनवारैं, तारन तरन िे व अरर्ं त ।
गुरु तनरर्ग्रंथ धरम करुनामर्, उपिैं त्रेिठ परु
ु ष मर्ं त ।।श्री. ।।१ ।।
रतनत्रर् िशलच्छन िोलर्-कारन िाध श्रावक िन्त ।
छर्ौं िरब नव तत्त्व िरधकै, िरु ग मक
ु तत के िख
ु ववलिन्त ।।श्री. ।।२ ।।
नरक तनगोि भ्रम्र्ो बर्ु प्रानी, िान्र्ो नाहर्ं धरम-ववरतंत ।
`द्र्ानत' भेिज्ञान िरधातैं, पार्ो िरव अनाहि अनन्त ।।श्री. ।।३ ।।
भावों में िरलता…
तिह: र्ोठों पे िच्चाई रर्ती
र्ै ...
भावों में िरलता रर्ती र्ै , िर्ाँ प्रेम की िररता बर्ती र्ै ।
र्म उि धमह के पालक र्ैं, िर्ाँ ित्र् अहर्ंिा रर्ती र्ै ।।
िो राग में मँछ
ू े तनते र्ैं, ि़ि भोगों में रीझ मचलते र्ैं ।
वे भल
ू ते र्ैं तनि को भाई, िो पाप के िांचे लते र्ैं ।।
पच
ु कार उन्र्ें माँ जिनवाणी, िर्ाँ ज्ञान कथार्ें कर्ती र्ैं ।।र्म उि. ।।१ ।।
िो पर के प्राण िख
ु ाते र्ैं, वर् आप ितार्े िाते र्ैं ।
अचधकारी वे र्ैं सशव िख
ु के, िो आतम ध्र्ान लगाते र्ैं ।।
`िौभाग्र्' िफल कर नर िीवन, र्र् आर्ु लती रर्ती र्ै ।।र्म उि. ।।१ ।।
िर्ाँ रागद्वेष िे रहर्त तनराकुल…
तिह: िर्ां डाल डाल पर
िोने की..
िर्ाँ रागद्वेष िे रहर्त तनराकुल, आतम िख
ु का डेरा ।
वो ववश्व धमह र्ै मेरा, वो िैन धमह र्ै मेरा ।
िर्ाँ पि-पि पर र्ै परम अहर्ंिा करती क्षमा बिेरा ।
वो ववश्व धमह र्ै मेरा, वो िैनधमह र्ै मेरा ।।टे र ।।
िर्ाँ गंि
ू ा करते, ित िंर्म के गीत िर्
ु ाने पावन ।
िर्ाँ ज्ञान िध
ु ा की बर्ती तनसशहिन धारा पाप नशावन ।
िर्ाँ काम क्रोध, ममता, मार्ा का कर्ीं नर्ीं र्ै घेरा ।।१ ।।
िर्ाँ िमता िमदृजठट प्र्ारी, िद्भाव शांतत के भारी ।
िर्ाँ िकल पररर्ग्रर् भार शन्
ू र् र्ै , मन अिोष अववकारी ।
िर्ाँ ज्ञानानंत िरश िख
ु बल का, रर्ता ििा िवेरा ।।२ ।।
िर्ाँ वीतराग ववज्ञान कला, तनि पर का बोध करार्े ।
िो िन्म मरण िे रहर्त, तनरापि मोक्ष मर्ल पधरार्े ।
वर् िगतपज्
ू र् “िौभाग्र्'' परमपि, र्ो आलोककत मेरा ।।३ ।।
िैन धमह के र्ीरे मोती…
िैन धमह के र्ीरे मोती, मैं बबखराऊं गली गली
ले लो रे कोइ प्रभु का प्र्ारा, शोर मचाऊं गली गली
िौलत की िीवानों िन
ु लो, एक हिन ऐिा आर्ेगा।
धन िौलत और माल खिाना, पडा र्र्ीं रर् िार्ेगा।
िन्
ु िर कार्ा समट्टी र्ोगी, चचाह र्ोगी गली गली॥
ले लो रे ...
तर्ों करता तू तेरी मेरी, ति िे उि असभमान को।
झंठ
ू े झगडे छोड के प्राणी, भि ले तू भगवान को।
िग का मेला िो हिन का, अंत में र्ोगी चला चली॥
ले लो रे ...
जिन जिन ने र्े मोती लट
ू े , वे र्ी माला माल र्ुए।
िौलत के िो बने पि
ु ारी, आखखर में कंगाल र्ुए ।
िोने चांिी वालों िन
ु लो, बात कर्ूं मैं भली भली॥
ले लो रे ...
िीवन में िख
ु र्ै तब तक र्ी, िब तक िम्र्कज्ञान नर्ीं।
ईश्वर को िो भल
ू गर्ा, वर् िच्चा इंिान नर्ीं।
िो हिन को र्े चमन खखला र्ै , कफ़र मझ
ु ाहर्े कली कली॥
ले लो रे ...
आिा अपने धमह की तू रार् में …
आिा अपने धमह की तू रार् में , वो र्ी करे भव पार रे ...
े रों िनम तूने भोगों में खोर्े..तन
ू े भोगों में खोर्े
कफ़र भी र्वि तेरी परू ी न र्ोर्े..तेरी परू ी न र्ोर्े
ति िे तू इनकी र्ाि र्ो sss
आिा अपने धरम...
तेरा िग में िाथी र्र्ी र्े एक धरम र्ै
आशा जििकी तू करता वो एक भरम र्ै
झठ
ू ा र्ै िग िंिार र्ो sss
आिा अपने धरम...
िख
ु र्ोता िग में ना तिते कफ़र तीथंकर
ति धन मासलक ना रचते भेष हिगम्बर
िग में नर्ीं कुछ िार र्ो sss
आिा अपने धरम...
तिह:आिा तझ
ु को पक
ु ारे ....
बडे भाग्र् िे र्मको समला जिन धमह….
बडे भाग्र् िे र्मको समला जिन धमह,
र्मारी कर्ानी र्ै , तुम्र्ारी कर्ानी र्ै , बडी बेरर्म,
अनाहि िे भटके चले आ रर्े र्ैं,
प्रभु के वचन तर्ंू नर्ीं भा रर्े र्ैं,
रुिन तेरा भव भव में िन
ु े कौन िन।
बडे भाग्र् िे र्मको...
भगवान बनने की ताकत र्ै मझ
ु में ,
मैं मान बैठा पि
ु ारी र्ूं बि मैं,
मेरे घट में घट घट का वािी चेतन।
बडे भाग्र् िे र्मको...
अणु अणु स्वतंत्र प्रभु ने ज्ञान र्ै करार्ा,
ववषर्ों का ववष पी पी उिे ना िधार्ा,
क्षण भर को भी तो चेतन र्ो िा मगन
बडे भाग्र् िे र्मको...
Bhakti suman_adhyaatm tarang
र्े धरम र्ै आतम ज्ञानी का…
र्े धरम र्ै आतम ज्ञानी का, िीमंधर मर्ावीर स्वामी का,
इि धमह का भैर्ा तर्ा कर्ना, र्े धमह र्ै वीरों का गर्ना,
िर् र्ो िर् र्ो िर् र्ो...
र्र्ां िमर्िार का चचंतन र्ै, र्र्ां तनर्मिार का मंथन र्ै ,
र्र्ां रर्ते र्ैं ज्ञानी मस्ती में , मस्ती र्ै स्व की अजस्त में ,
िर् र्ो िर् र्ो िर् र्ो...
अजस्त में मस्ती ज्ञानी की, र्र् बात र्ै भेि ववज्ञानी की,
र्र्ां झरते र्ैं झरने आनंि के, आनंि र्ी आनंि आतम र्ै,
िर् र्ो िर् र्ो िर् र्ो...
र्र्ां बार्ुबली िे ध्र्ानी र्ुए, र्र्ां कंु द्कंु ि िैिे ज्ञानी र्ुए,
र्र्ां ितगुरुओं ने र्े बोला, र्े धमह र्ै ककतना अनमोला,
िर् र्ो िर् र्ो िर् र्ो...
पवहराि पर्ूष
ह ण आर्ा …
पवहराि पर्ष
ूह ण आर्ा िि धमो की ले माला
समथ्र्ातम में िबी आत्मतनचध अब तो चेत परख लाला ।।टे र ।।
तू अखंड अववनाशी चेतन ज्ञाता दृठटा सिद्ध िमान ।
रागद्वेष परपरणतत कारण स्व िरप को कर्ो न भान ।।
मोर्िाल की भल
ै ा िमझ नरक िी र्ै ज्वाला ।।१ ।।
ू भल
ु र्
परम अहर्ंिक क्षमा भाव भर, ति िे समथ्र्ा मान गम
ु ान ।
कपट कटारी िरू फैंक िे िो चार्े अपनो कल्र्ाण ।।
ित्र् शौच िंर्म तप अनप
ु म र्ै अमत
ृ भर पी प्र्ाला ।।२ ।।
पररर्ग्रर् त्र्ाग ब्रह्म में रमिा वीतराग िशहन गार्ो ।
चचंतामणी िू काग उ़िा मत नरकुल उत्तम तू पार्ो ।।
सशवरमणी `िौभाग्र्' हिखा रर्ी तुझ अनश्वर िख
ु शाला ।।३ ।।
िीर्रा...िीर्रा...िीर्रा…
िीर्रा...िीर्रा...िीर्रा
िीवराि उड के िाओ िम्मेिसशखर में
भव िहर्त वन्िन करो, पाश्वह चरण में ॥िीवराि...॥
आि सिद्धों िे अपनी बात र्ोके रर्े गी,
शद्ध
ु आतम िे मल
ु ाकात र्ोके रर्े गी।
रं गरहर्त रागरहर्त भेिरहि्त िो,
मोर्रहर्त लोभरहर्त शद्ध
ु बद्ध
ु िो॥िीवराि...॥
ध्रव
ु न अचल गतत जिनने पाई र्ै ,
ु अनप
िारी उपमार्ें जिनिे आि शरमाई र्ै ।
अनंतज्ञान अनंतिख
ु अनंतवीर्ह मर्,
अनंतिक्ष्
ू म नामरहर्त अव्र्ाबाधी र्ै ॥िीवराि...॥
अर्ो शाश्वत र्े सिद्धधाम तीथहराि र्ै ,
र्र्ां आकर प्रिन्न चैतन्र्राि र्ै ।
शरु
ु करें आि र्र्ां आत्मिाधना,
चतुगतह त में र्ो कभी िन्म मरण ना॥िीवराि...॥
चलो िब समल सिधचगरी चसलए…
चलो िब समल सिधचगरी चसलए,िर्ाँ आहिनाथ भगवान र्ैं
ततर िार्ेगी वर्ाँ तेरी आत्मा,इि तीथह की महर्मा मर्ान र्ैं
लाखों नर नारी र्र्ाँ पर िशहन करने आते र्ैं
शध
ु मन िे िशहन िो करते,पाप कमह कट िाते र्ैं
करता प्राणी तर्ों असभमान र्ैं
िो हिन का र्र्ाँ तू मेर्मान र्ै ..ततर ...
इि चगरी पर ध्र्ान लगाकर िाधू अनंता सिध गए
नंिन िशरथ श्री राम और पांडव पाँचों मोक्ष गए
चार्ता िीवन का अगर कल्र्ाण र्ै
वीतराग प्रभु का कर ध्र्ान रे ..ततर ....
धमह ककए बबन मोक्ष िो चार्ो ऐिा कभी नर्ीं र्ो िकता
व्रत तप िंर्म प्रभु भिन िे, भव िागर िे ततर िकता
कर्ता िभ
ु ाग रस्ता आिान र्ै
ववषर्न में फंिा तर्ों नािान र्ै ...ततर....
तिह: िरा िामने तो
आओ...
िम्मेि सशखर पर मैं िाऊंगा…
िम्मेि सशखर पर मैं िाऊंगा डोली रखिो कर्ारों
मैं टोंकों की वंिन को िाऊंगा डोली रखिो कर्ारों
परि प्रभु का िो िशहन पाऊँ
मैं भी तो पत्थर िे िोना र्ो िाऊं
अपने पारि को मैं ररझाऊंगा डोली....
चौबीि जिनराि बैठे िर्ाँ पे
ऐिा िर्
ु ाना र्ैं मजन्िर वर्ाँ पे
बैठ मजन्िर मैं भिन िन
ु ाऊंगा डोली ...
अन्िर के भावों का अघह बनाऊं
पि
ू ा की थाली चरणों मे लाऊँ
िा के अठट रव्र् को च ाऊंगा डोली...
ऐिा लसलत कूट ह्रिर् ववर्ं गम
लसलत कलाओं का कैिा र्े िंगम
ऐिी िंि
ु र छवव मन मैं लावग
ूँ ा डोली..
तिह: मैं ििुराल नर्ीं...
सांवररया पारसिाथ भशखर ….
िांवररर्ा पारिनाथ सशखर पर भला ववराज्र्ा िी
भला ववराज्र्ा िी ओ बाबा थे तो भला ववराज्र्ा िी
वैभव काशी का ठुकरार्ा,राि पाट तोर्े बाँध ना पार्ा
तू िम्मेि सशखर पे मजु तत पाने आर्ा -२
वो पवहत तेरे मन भार्ा िर्ाँ भीलों का वािा िी
टोंक टोंक पर ध्विा ववरािे,झालर बािे घंटा बािे
चरण कमल जिनवर के कूट-कूट पर िािे
िरू -िरू िे र्ात्री आए आनंि मंगल खािा िी
झर-झर बर्ता शीतल नाला,शांत करे भव-भव की ज्वाला
गीत नर्ी िग में इतने जिनवर वाला
वंिन करके परू ण र्ोती भतत िनों की आिा िी
र्मको अपनी भजतत का वर िो,िमताभाव िे अन्तर भर िो
र्े पारिमखण भगवन र्मको कंचन कर िो
िो आशीष समट िाए र्मारा िनम मरण का रािा िी
ऊंचे ऊंचे सशखरों वाला….
ऊंचे ऊंचे सशखरों वाला र्ै रे , तीरथ र्मारा,
तीरथ र्मारा र्में लागे र्ै प्र्ारा।
श्री जिनवर िे भें ट करावे, िग को मजु तत मागह हिखावे,
मोर् का नाश करावे रे , र्े तीरथ र्मारा।
शद्ध
ु ातम िे प्रीतत लगावे, िड चेतन को सभन्न बतावे,
भेि ववज्ञान करावे रे , र्र् तीरथ र्मारा।
िप िप रे नवकार मंत्र तू …
िप िप रे नवकार मंत्र तू , इि भव पर भव िख
ु पािी ।
इि भव पर भव िख
ु पािी॥
अररर्ं त सिद्द आचार्ह िम
ु रले , उपाध्र्ार् िाधु चचत धर ले,
िन्म मरण थारो समट िािी ,
िन्म मरण थारो समट िािी॥ िप िप रे ...॥
िीता िती ने इिको ध्र्ार्ा , अजग्न का था नीर बनार्ा ,
धन्र् धन्र् कर्े िगवािी ,
धन्र् धन्र् कर्े िगवािी ॥ िप िप रे ...॥
िेठ पत्र
ु का िर्र र्टा था , श्रीपाल का कुठठ समटा था ,
टली िि
ु शहन की फ़ांिी ,
टली िि
ु शहन की फ़ांिी॥ िप िप रे ...॥
महर्मा इिकी कर्ी ना िार् , पंकि िो नर इिकॊ ध्र्ार्े ,
वो भविागर ततर िािी ,
वो भविागर ततर िािी ॥ िप िप रे ...॥
णमोकार नाम का र्े कौन…
आचार्ह िी िे र्े पछ
ू े िग िारा ,
णमोकार नाम का र्े कौन मंत्र प्र्ारा।
बोले मस्
ु काते मतु नवर िन
ु ो भाई िारे ...२
अनंतानंत र्ैं र्े पंचरं ग प्र्ारे , पैंतति अक्षर िे शोसभत sss
मंत्र र्ै तनराला , इिीसलर्े प्र्ारा॥ आचार्ह िी िे ॥
मर्ामंत्र कर्ती इिकी र्ै िारी िनता...२
पार लगाता उिको िो इिे िपता , मंत्र र्ै र्े ऐिा जििने sss
लाखों को तारा , इिीसलर्े प्र्ारा॥ आचार्ह िी िे ॥
पंच परमेठठी के गुणों को प्रचारता...२
धमह ववशेष को र्े नर्ीं र्ै िल
ु ारता , र्े मर्ामंत्र र्ै sss
तारण र्ारा , इिीसलर्े प्र्ारा॥ आचार्ह िी िे ॥
मनोरमा िती का शील था बचार्ा...२
मर्ामंत्र का र्े वणहन र्ग्रंथों ने गार्ा , ऐिे मर्ामंत्र को sss
वन्िन र्मारा , इिीसलर्े प्र्ारा॥ आचार्ह िी िे ॥
मंत्र नवकारा हृिर्…
मंत्र नवकारा हृिर् में धर सलर्ा ,
उिने िीते कमह सशव को वर सलर्ा ॥
मंत्र मे अररर्न्त सिद्धों को नमन ,
उिने आतम सिद्ध अपना कर सलर्ा॥ उिने िीते ..॥
भाव िे आचार्ह को वंिन ककर्ा ,
ज्ञान मोती िे र्े िामन भर सलर्ा॥ उिने िीते ..॥
भजतत िे उवज्झार् को कीना नमन,
उिने िडता का अंधेरा र्र सलर्ा॥ उिने िीते ..॥
िवह िाधु तारने को नाव र्ै ,
िो च ा इि नाव पे भव तर सलर्ा॥ उिने िीते ..॥
मंत्र तीनो लोक में ऐिा नर्ीं ,
जिन िपा िीवन िफ़ल प्रभु कर सलर्ा॥ उिने िीते ..॥
मंत्र नवकार र्में प्राणॊ िे…
मंत्र नवकार र्में प्राणॊ िे प्र्ारा
र्े र्ै वो िर्ाि जििने लाखों को तारा
अररिंतों को नमन र्मारे , अशभ
ु कमह अरर र्नन करे ।
सिद्धों के िसु मरन िे आत्मा , सिद्ध क्षेत्र को गमन करे ।
भव भव में नर्ीं िन्में िब
ु ारा ॥मंत्र नवकार...॥१॥
आचार्ों के आचारों िे , तनमहल तनि आचार करें ।
उपाध्र्ार् का ध्र्ान धरें र्म , िंवर का ित्कार करें ।
िवह िाधु को नमन र्मारा ॥मंत्र नवकार...॥२॥
इिी मंत्र िे नाग नाचगनी , पद्मावती धरणेन्र र्ुए।
िेठ िि
ु शहन को िल
ू ी िे , मजु तत समसल रािेन्र र्ुए।
अंिन चोर का कठट तनवारा ॥मंत्र नवकार...॥३॥
िोते उठते चलते कफ़रते , इिी मंत्र का िाप करो।
आप कमार्े पाप तो उनका , क्षर् भी अपने आप करो।
इि मर्ामंत्र का ले लो िर्ारा ॥मंत्र नवकार...॥४॥
बने िीवन का मेरा आधार रे …
बने िीवन का मेरा आधार रे
णमोकार णमोकार णमोकार रे ॥
पर्ली शरण अररर्ं तों की िाना
र्ो िाओगे भव िे पार रे ॥१॥ णमोकार णमोकार...
िि
ू ी शरण श्री सिद्धों की िाना
मजु तत का अंततम द्वार रे ॥२॥ णमोकार णमोकार...
तीिी शरण आचार्ॊ की िाना
करते र्ैं िबका उद्धार रे ॥३॥ णमोकार णमोकार...
चौथी शरण उपाध्र्ार्ॊं की िाना
िे ते जिनवाणी का ज्ञान रे ॥४॥ णमोकार णमोकार...
पांचवी शरण िवह िाधु की िाना
जिन पथ पे चलते वो शान िे ॥५॥ णमोकार णमोकार...
ममता की पतवार ना तोडी ...
तिह:- (चांिी की िीवार.......)
ममता की पतवार ना तोडी आखखर को िम तोड हिर्ा ।
इक अनिाने रार्ी ने सशवपरु का मारग छोड हिर्ा ॥
ममता की ....
नकह में जििने भावना भार्ी मानष
ु तन को पाने की ।
भेष हिगम्बर धारण करके मजु तत पि को पाने की ।
लेककन िे खो आि र्े र्ालत ममता के िीवाने की ।
चेतन र्ोकर िड रव्र्ों िे कैिे नाता िोड सलर्ा ॥
इक अनिाने ..
.
ममता के बन्धन मे बंध कर तर्ा र्ग
ु र्ग
ु तक िोना र्ै |
मोर् अरी का िचमच
ु इि पर र्ो गर्ा िाि ू टोना र्ै ।
चेतन तर्ा नरतन को पाकर अब भी र्ों र्ी खोना र्ै ।
मन का रथ तर्ों सशवमारग िे कुमारग पर मोड हिर्ा ।
इक अनिाने ..
मत खोना ितु नर्ा में आकर र्े बस्ती अनिानी र्ै ।
िार्ेगा र्र िाने वाला िग की रीतत परु ानी र्ै ।
िीवन बन िाता र्र्ां पंकि िबकी एक कर्ानी र्ै ।
चेतन तनि स्वरुप िे खा तो िख
ु का िामन तोड हिर्ा॥
इक अनिाने ..
चेतन तँू ततर्ुँ काल ....
चेतन तँू ततर्ुँ काल अकेला
निी नाव िंिोग समले ज्र्ों, त्र्ों कुटुम्ब का मेला।
( िोरठ )
चेतन....
र्र् िंिार अिार रप िब , ज्र्ों पटपेखन खेला।
िख
ु िम्पजत्त शरीर िल बि
ु बि
ु , ववनशत नार्ीं बेला।
चेतन....
मोर्ी मगन आतम गुन भल
ू त , परू ी तोर्ी गल िेला।
मै मै करत चर्ुंगतत डोलत , बोलत िैिे छै ला।
कर्त बनारसि समथ्र्ामत ति, र्ोर् िग
ु रु
ु का चेला।
ताि वचन परतीत आन जिर्,र्ोई िर्ि िरु झेला।
चेतन....
चेतन.....
भार्ा थारी बावली ...
भार्ा थारी बावली िवानी चाली रे ।
भगवान भिन तंू कि करिी थारी गरिन र्ाली रे ।।टे क।।
लाख चोरािी िीवािून में मजु श्कल नरतन पार्ो ।
तंू िीवन ने खेल िमझकर बबरधा कीर्ां गमार्ो ।।
आर्ो मठ
ू ी बाँध मि
ु ाकफर िािी र्ाथा खाली रे ।।१।। ओ भार्ा ...
झँठ
ू कपट कर िो़ि िो़ि धन कोठा भरी ततिोरी रे ।
धमह कमाई करी न िम़िी कोरी मँछ
ू मरो़िी रे ।।
र्ै समथ्र्ा असभमान आँख की थोथी थारी लाली रे ।।२।। ओ भार्ा ...
कंचन कार्ा काम न आिी थारा गोती नाती रे ।
आतमराम अकेलो िािी प़िी रर्े गी माटी रे ।।
िन्तर मन्तर धन िम्पत िे मोत टले नर्ीं टाली रे ।।३।। ओ भार्ा ...
आपा पर को भेि िमझले खोल हर्र्ा की आँख रे ।
वीतराग जिन िशहन तिकर अठी उठी मत झाँक रे ।।
पि पि
ू ा िौभाग्र् करे ली सशव रमणी ले थाली रे ।।४ ।। ओ भार्ा ...
ध्र्ान धर ले प्रभू ....
(तिह : पल्लो लटके गोरी को)
ध्र्ान धर ले प्रभू को ध्र्ान धर ले । ध्र्ान...
आ माथे ऊबी मौत भार्ा ज्ञान करले ।।टे क ।।
फूल गुलाबी कोमल कार्ा, र्ा पल में मरु झािी,
िोबन िोर िवानी थारी, िन्ध्र्ा िी
ल िािी। ।।१ ।। प्रभक
ू ो..
र्ा़ि मांि का पींिरा पर, र्ा रपाली चाम,
िे ख ररझार्ो बावला, तर्ंू ि़ि को बण्र्ो गुलाम। ।।२ ।। प्रभक
ू ो..
लाम्बो चौ़िो मांड पिारो, कीर्ां रह्र्ो र्ै फूल,
र्ाट र्वेली काम न आिी, र्ा िोना की झल
ू । ।।३ ।। प्रभक
ू ो...
भाई बन्धु कुटुम्ब कबीलो, र्ै मतलब को िारो,
आपा पर को भेि िमझले िि र्ोिी तनस्तारो। ।।४ ॥ प्रभक
ू ो...
मोक्ष मर्ल को िांचो मारग, र्ो छ: िरा िमझले,
उत्तम कुल िौभाग्र् समल्र्ो र्ै , आतमराम िम
ु रलौ ।।५ ।। प्रभक
ू ो..
िीव! तू भ्रमत ....
िीव! तू भ्रमत ििीव अकेला ।
िंग िाथी कोई नहर्ं तेरा ।।टे क ।।
अपना िख
ु िख
ु आप हर् भग
ु तै, र्ोत कुटुंब न भेला ।
स्वाथह भर्ैं िब बबछुरर िात र्ैं, ववघट िात ज्र्ों मेला।।१।।
िीव! तू भ्रमत ...
रक्षक कोइ न परू न ह्वै िब, आर्ु अंत की बेला ।
फूटत पारर बँधत नर्ीं िैिें, िद्ध
ु र िलको ठे ला ।।२ ।।
िीव! तू भ्रमत ...
तन धन िीवन ववनसश िात ज्र्ों, इन्रिाल का खेला ।
भागचन्ि इसम लख करर भाई, र्ो ितगुरु का चेला।।३ ।।
िीव! तू भ्रमत ...
( िोरठ )
धोली र्ो गई रे काली ....
धोली र्ो गई रे काली कामली माथा की थारी
धोली र्ो गई रे काली कामली,
िरु ज्ञानी चेतो, धोली र्ो गई रे काली कामली ।।टे र ।।
विन गठीलो कंचन कार्ा, लाल बँि
ू रं ग थारो ।
र्ुर्ो अपरू व फेर फार िब, ांचो बिल्र्ो िारो ।।१ ।।
नाक कान आँख्र्ा की ककररर्ा िस्
ु त प़ि गई िारी ।
कािू और अखरोट चबे नहर्ं िाँता बबना िप
ु ारी िी ।।२
र्ालण लागी ना़ि कमर भी झक
ु कर बणी कवानी ।
मंड
ु ो िे ख आरिी िोचो ल गई कर्ां िवानी िी ।।३ ।।
न्र्ार् नीतत ने तिकर छो़िी भोग िंपिा भाई ।
बात-बात में झठ
ू कपट छल, कीनी मार्ाचारी ।।४ ।।
बैठ र्ताई ताि चोप़िा खेल्र्ो बल
ु ा खखलार् ।
ल़िर्ा परार्ा भोला भाई फूल्र्ा नर्ीं िमार् ।।५ ।।
प्रभू भजतत में रचच न लीनी नर्ीं करणा चचतधारी ।
वीतराग िशहन नर्ीं रचचर्ो उमर खोिई िारी िी ।।६ ।।
पन्
ु र् र्ोग `िौभाग्र्' समल्र्ो र्ै नरकुल उत्तम प्र्ारो ।
तनिानंि िमता रि पील्र्ो र्ोिी भव तनस्तारो ।।७ ।।
भिन बबन र्ोंर्ी ....
( िोरठ )
भिन बबन र्ोंर्ी िनम गमार्ो ।।टे र ।।
पानी पर्ली पाल न बाँधी, कफर पीछै पछतार्ो ।।१ ।।
रामा-मोर् भर्े हिन खोवत, आशा पाश बँधार्ो ।
िप तप िंिमिान नर्ीं िीनों मानष
ु िनम र्रार्ो ।।२ ।।
िे र् शीि िब काँपन लागी, ििन चलाचल थार्ो ।
लागी आचग बझ
ु ावन कारन चार्त कूप खुिार्ो ।।३ ।।
काल अनाहि गुमार्ो भ्रमतां, कबर्ुँ न चथर चचत लार्ो ।
र्री ववषर् िख
ु भरम भल
ु ानो, मग
ृ तठृ णा वसश धार्ो।।४ ।।
मेरे कब ह्वै वा हिन की िुघरी…
मेरे कब ह्वै वा हिन की िघ
ु री ।।टे क ।।
तन ववन विन अिनववन वनमें , तनविों नािादृजठटधरी ।।
पण्
ु र्पाप परिौं कब ववरचों, परचों तनितनचध चचरवविरी ।
ति उपाचध िजि िर्ििमाधी, िर्ों घाम हर्म मेघझरी ।।१ ।।
कब चथरिोग धरों ऐिो मोहर्, उपल िान मग
ृ खाि र्री ।
ध्र्ान-कमान तान अनभ
ु व-शर, छे िों ककहर् हिन मोर् अरी ।।२ ।।
कब तन
ृ कंचन एक गनों अरु, मतनिडडतालर् शैलिरी ।
`िौलत' ित गुरुचरन िेव िो, परु वो आश र्र्ै र्मरी ।।३ ।।
और अबै न कुिे व िुर्ावै…
और अबै न कुिे व िर्
ु ावै, जिन थाके चरनन रतत िोरी ।।टे क ।।
कामकोर्वश गर्ैं अशन असि, अंक तनशंक धरै ततर् गोरी ।
औरनके ककम भाव िध
ु ारैं, आप कुभाव-भारधर-धोरी ।।१ ।।
तुम ववनमोर् अकोर्छोर्ववन, छके शांत रि पीर् कटोरी ।
तुम ति िेर् अमेर् भरी िो, िानत र्ो ववपिा िब मोरी ।।२ ।।
तुम ति ततनै भिै शठ िो िो िाख न चाखत खात तनमोरी ।
र्े िगतार उधार `िौलको', तनकट ववकट भविलचध हर्लोरी ।।३ ।।
ऐिा मोर्ी तर्ों न अधोगतत िावै…
ऐिा मोर्ी तर्ों न अधोगतत िावै, िाको जिनवानी न िर्
ु ावै ।।टे क. ।।
वीतरागिे िे व छो़िकर, भैरव र्क्ष मनावै ।
कल्पलता िर्ालत
ु ा तजि, हर्ंिा इन्रार्तन वावै।।१ ।।ऐिा. ।।
रुचै न गुरु तनर्ग्रहन्थ भेष बर्ु, - पररर्ग्रर्ी गुरु भावै ।
परधन परततर्को असभलाषै, अशन अशोचधत खावै।।२ ।।ऐिा. ।।
परकी ववभव िे ख ह्वै िोगी, परिख
ु र्रख लर्ावै ।
धमह र्े तु इक िाम न खरचै, उपवन लक्ष बर्ावै।।३ ।।ऐिा. ।।
ज्र्ों गर्
ृ में िंचै बर्ु अघ त्र्ों, वनर्ू में उपिावै ।
अम्बर त्र्ाग कर्ार् हिगम्बर, बाघम्बर तन छावै।।४ ।।ऐिा. ।।
आरम्भ ति शठ र्ंत्र मंत्र करर, िनपै पज्
ू र् मनावै ।
धाम वाम ति िािी राखै, बाहर्र म़िी बनावै।।५ ।।ऐिा. ।।
नाम धरार् िती तपिी मन, ववषर्तनमें ललचावै ।
`िौलत' िो अनन्त भव भटकै, ओरनको भटकावै।।६ ।।ऐिा. ।।
र्म तो कबर्ुँ न तनि घर आर्े….
र्म तो कबर्ुँ न तनि घर आर्े ।
परघर कफरत बर्ुत हिन बीते, नाम अनेक धरार्े ।।र्म तो. ।।
परपि तनिपि मातन मगन ह्वै, परपरनतत लपटार्े ।
शद्ध
ु बद्ध
ु िख
ु कन्ि मनोर्र, चेतन भाव न भार्े।।१ ।।र्म तो. ।।
नर पशु िे व नरक तनि िान्र्ो, परिर् बवु द्ध लर्ार्े ।
अमल अखण्ड अतुल अववनाशी, आतमगन
ु नहर्ं गार्े।।२ ।।र्म तो. ।।
र्र् बर्ु भल
ू भई र्मरी कफर, कर्ा काि पछतार्े ।
`िौल' तिौ अिर्ूँ ववषर्नको, ितगुरु वचन िन
ु ार्े।।३ ।।र्म तो. ।।
आतम रप अनूपम अद्भत
ु …
आतम रप अनप
ू म अद्भत
ु , र्ाहर् लखैं भव सिंधु तरो ।।टे क ।।
अल्पकाल में भरत चक्रधर, तनि आतमको ध्र्ार् खरो ।
केवलज्ञान पार् भवव बोधे, तततछन पार्ौ लोकसशरो ।।१ ।।
र्ा बबन िमझ
ु े रव्र्-सलंगमतु न, उर्ग्र तपनकर भार भरो ।
नवर्ग्रीवक पर्हन्त िार् चचर, फेर भवाणहव माहर्ं परो ।।२ ।।
िम्र्ग्िशहन ज्ञान चरन तप, र्ेहर् िगत में िार नरो ।
परू व सशवको गर्े िाहर्ं अब, कफर िैर्ैं, र्र् तनर्त करो ।।३ ।।
कोहट र्ग्रन्थको िार र्र्ी र्ै , र्े र्ी जिनवानी उचरो ।
`िौल' ध्र्ार् अपने आतमको, मजु ततरमा तब वेग बरो ।।४ ।।
अपनी िुचध भूल आप…
अपनी िचु ध भल
ू आप, आप िख
ु उपार्ौ
अपनी िचु ध भल
ू आप, आप िख
ु उपार्ौ,
ज्र्ौं शक
ु नभचाल वविरर नसलनी लटकार्ो ।।अपनी. ।।
चेतन अववरुद्ध शद्ध
ु , िरश बोधमर् ववशद्ध
ु ।
तजि ि़ि-रि-फरि रप, पद्
ु गल अपनार्ौ।।१ ।।अपनी. ।।
इजन्रर्िख
ु िख
ु में तनत्त, पाग राग रुख में चचत्त ।
िार्कभव ववपतत वन्ृ ि, बन्धको ब़िार्ौ।।२ ।।अपनी. ।।
चार् िार् िार्ै , त्र्ागौ न ताहर् चार्ै ।
िमतािध
ु ा न गार्ै जिन, तनकट िो बतार्ौ।।३ ।।अपनी. ।।
मानष
ु भव िक
ु ु ल पार्, जिनवर शािन लर्ार् ।
`िौल' तनिस्वभाव भि, अनाहि िो न ध्र्ार्ौ।।४ ।।अपनी. ।।
जिर्ा कब तक उलझेगा…
जिर्ा कब तक उलझेगा िंिार ववकल्पों मे।
ककतने भव बीत चक
ु े , िंकल्प ववकल्पों में ॥टे क॥
उड उड कर र्र् चेतन, गतत गतत में िाता र्ै ।
भोगों में सलप्त ििा भव भव िख
ु पाता र्ै ॥
तनि तो न िर्
ु ाता र्ै , पर र्ी मन भाता र्ै ।
र्े िीवन बीत रर्ा, झंठ
ू े िंकल्पों में ॥१॥
जिर्ा कब तक...
तू कौन कर्ां का र्ै और तर् र्ै मान अरे ।
आर्ा ककि गांव िे र्ै , िाना ककि गांव अरे ॥
र्र् तन तो पद्
ु गल र्ै , िो हिन का ठाठ अरे ।
अन्तर मख
ु र्ो िा तू, तो िख
ु अतत कल्पों में ॥२॥
जिर्ा कब तक...
र्हि अविर चक
ू ा तो, भव भव पछतार्ेगा।
र्र् नर भव कहठन मर्ा, ककि गतत में िार्ेगा॥
नर भव पार्ा भी तो, जिन कुल नर्ी पार्ेगा।
अनचगनत िन्मों में, अनचगनत ववकल्पों में ॥३॥
जिर्ा कब तक...
कबधौं िर पर धर डोलेगा…
कबधौं िर पर धर डोलेगा, पापों की गठररर्ा,
करले करले र्ल्का बोझा, लम्बी र्ै डगररर्ा।टे र।
र्र् िंिार बबर्ड बन पंछी, कुल तरुवर िम िान ले।
आर्ु रे न बिेरा करके, उड िाना र्ै मान ले॥
कफ़र भोगों में तडफ़ रर्ा तर्ों, िल बबन ज्र्ों मछसलर्ा॥१॥
चचंतामखण िम मनष
ु िनम पा, तनि स्वभाव तर्ों भल
ू ा र्ै ।
अक्षर् आतम रव्र् छोडकर, नश्वर पर तर्ों फ़ूला र्ै ।
क्षण भंगुर र्ै तन धन र्ौवन, जिसम िावन बिररर्ा॥२॥
पररर्ग्रर् पोट उतार िर्ाने, रत्नत्रर् उर धार ले।
पंचम गतत िौभाग्र् समलेगी, वीतराग पथ िार ले।
प्रभु भजतत बबन बीत ना िार्े, तेरी वप्रर् उमररर्ा॥३॥
मैं र्ूँ आतमराम…
मैं र्ूँ आतमराम, मैं र्ूँ आतमराम,
िर्ि स्वभावी ज्ञाता दृठटा चेतन मेरा नाम ।।टे र ।।
कुमतत कुहटल ने अब तक मझ
ु को तनि फंिे में डाला ।
मोर्राि ने हिव्र् ज्ञान पर, डाला परिा काला ।
डुला कुगतत अववराम, खोर्ा काल तमाम ।।िर्ि ।।१ ।।
जिन िशहन िे बोध र्ुआ र्ै मझ
ु को मेरा आि ।
पर रव्र्ों िे प्रीतत ब़िा तनि, कैिे करँ अकाि ।
िरू र्टो िग काम, रागाहिक पररणाम ।।िर्ि ।।२ ।।
आओ अंतर ज्ञान सितारो, आतम बल प्रगटा िो ।
पंचम गतत ``िौभाग्र्'' समले वप्रर् आवागमन छु़िािो ।
पाऊँ िख
ु ललाम, सशवस्वरप सशवधाम।।िर्ि ।।३ ।।
मन मर्ल में िो…
मन मर्ल में िो िो भाव िगे, इक स्वभाव र्ै , इक ववभाव र्ै ।
अपने-अपने अचधकार समले, इक स्वभाव र्ै , इक ववभाव र्ै ।।टे र ।।
बहर्रं ग के भाव तो पर के र्ैं, अंतर के स्वभाव िो अपने र्ैं ।
र्र्ी भेि िमझले पर्ले िरा, तू कौन र्ै तेरा कौन र्र्ाँ ।
तू कौन र्ै तेरा कौन र्र्ाँ ।।१ ।।
तन तेल फुलेल इतर भी मले, तनत नवला भष
ू ण अंग ििे ।
रि भेि ववज्ञान न कंठ धरा नर्ीं िम्र्क् श्रद्धा िाि ििे ।
नर्ीं िम्र्क् श्रद्धा िाि ििे ।।२ ।।
समथ्र्ात्व ततसमर के र्रने को, अक्षर् आतम आलोक िगा ।
र्े वीतराग िवहज्ञ प्रभो, तब िशहन मन `िौभाग्र्' पगा ।
तब िशहन मन `िौभाग्र्' पगा ।।३ ।।
कार्े पाप करे कार्े …
कार्े पाप करे कार्े छल, िरा चेत ओ मानव करनी िे....
तेरी आर्ु घटे पल पल ।।टे क ।।
तेरा तुझको न बोध ववचार र्ै , मानमार्ा का छार्ा अपार र्ै ।
कैिे भोंि ू बना र्ै िंभल, िरा चेत ओ मानव करनी िे... ।।१ ।।
तेरा ज्ञाता व दृठटा स्वभाव र्ै , कार्े ि़ि िे र्ंू इतना लगाव र्ै ।
ितु नर्ां ठगनी पे अब ना मचल, िरा चेत ओ मानव करनी िे... ।।२ ।।
शद्ध
ु चचरप
ू चेतन स्वरप तू, मोक्ष लक्ष्मी का `िौभाग्र्' भप
ू तंू ।
बन िकता र्ै र्र् बल प्रबल, िरा चेत ओ मानव करनी िे... ।।३ ।।
िो आि हिन र्ै वो …
िो आि हिन र्ै वो, कल ना रर्े गा, कल ना रर्े गा,
घ़िी ना रर्े गी र्े पल ना रर्े गा ।
िमझ िीख गुरु की वाणी, कफरको कर्े गा, कफरको कर्े गा,
घ़िी ना रर्े गी र्े पल ना रर्े गा ।।टे क ।।
िग भोगों के पीछे , अनन्तों काल काल बीते र्ैं ।
इि आशा तठृ णा के अभी भी िपने रीते र्ैं ।
बना म़ि
ू कबलों मन पर, चलता रर्े गा-२ ।।घ़िी ।।१ ।।
अरे इि माटी के तन पे, वथ
ृ ा असभमान र्ै तेरा ।
प़िा रर् िार्गा वैभव, उठे गा छो़ि िब डेरा ।
नर्ीं िाथ आर्ा न िाते, कोई िंग रर्े गा-२ ।।घ़िी ।।२ ।।
ज्ञानदृग खोलकर चेतन, भेिववज्ञान घट भर ले ।
िर्ि `िौभाग्र्' िख
ु िाधन, मजु तत रमणी िखा वर ले ।
र्र्ी एक पि र्ै वप्रर्वर, अमर िो रर्े गा-२ ।।घ़िी ।।३ ।।
िंिार मर्ा अघिागर में …
िंिार मर्ा अघिागर में , वर् म़ि
ू मर्ा ि:ु ख भरता र्ै ।
ि़ि नश्वर भोग िमझ अपने, िो पर में ममता करता र्ै ।
बबन ज्ञान जिर्ा तो िीना तर्ा, बबन ज्ञान जिर्ा तो िीना तर्ा ।
पण्
ु र् उिर् नर िन्म समला शभ
ु , व्र्थह गमों फल लीना तर्ा ।।टे क ।।
कठट प़िा र्ै िो िो उठाना, लाख चौरािी में गोते खाना ।
भल
ू गर्ा तंू ककि मस्ती में उि हिन था प्रण कीना तर्ा ।।१ ।।
बचपन बीता बीती िवानी, िर पर छाई मौत डरानी ।।
र्े कंचन िी कार्ा खोकर, बांधा र्ै गाँठ नगीना तर्ा ।।२ ।।
हिखते िो िग भोग रं गीले, ऊपर मीठे र्ैं िर्रीले ।
भव भर् कारण नकह तनशानी, र्ै तूने चचत िीना तर्ा ।।३ ।।
अंतर आतम अनभ
ु व करले, भेि ववज्ञान िध
ु ा घट भरले ।
अक्षर् पि `िौभाग्र्' समलेगा, पतु न पतु न मरना िीना तर्ा ।।४ ।।
कर्ा मानले ओ ….
तिह: िरा िामने तो
आओ...
कर्ा मानले ओ मेरे भैर्ा, भव भव डुलने में तर्ा िार र्ै ।
तू बनिा बने तो परमात्मा, तेरी आत्मा की शजतत अपार र्ै ।।
भोग बरु े र्ैं त्र्ाग ििन र्े, ववपि करें और नरक धरें ।
ध्र्ान र्ी र्ै एक नाव ििन िो, इधर ततरें और उधर वरें ।
झँठ
ू ी प्रीतत में तेरी र्ी र्ार र्ै , वाणी गणधर की र्े हर्तकार र्ै ।।१ ।।
लोभ पाप का बाप ििन तर्ों राग करे ि:ु खभार भरे ।
ज्ञान किौटी परख ििन मत छसलर्ों का ववश्वाि करे ।।
ठग आठों की र्र्ाँ भरमार र्ै , इन्र्ें िीते तो बे़िा पार र्ै ।।२ ।।
नरतन का `िौभाग्र्' ििन र्े र्ाथ लगे ना र्ाथ लगे ।
कर आतमरि पान ििन िो िनम भगे और मरण भगे ।।
मोक्ष मर्ल का र्े र्ी द्वार र्ै , वीतरागी र्ी बनना िार र्ै ।।३ ।।
तो़ि वववषर्ों िे…..
तो़ि वववषर्ों िे मन िो़ि प्रभु िे लगन,
आि अविर समला ।।टे र ।।
रं ग ितु नर्ां के अब तक न िमझा र्ै तू ।
भल
ू तनि को र्ा! पर मैं र्ों रीझा र्ै तू ।
अब तो मँर्
ु खोल चख, स्वाि आतम का लख ।
सशव पर्ोधर समला ।।१ ।।
र्ाथ आने की कफर र्े ि-ु घड़िर्ाँ नर्ीं ।
प्रीतत ि़ि िे लगाना र्ै अच्छा नर्ीं ।।
िे ख पद्
ु गल का घर, नर्ीं रर्ता अमर ।
िग चराचर समला ।।२ ।।
ज्ञान ज्र्ोतत हृिर् में अब तो िगा ।
िे ख `िौभाग्र्' िग में न कोई िगा ।।
तििे समथ्र्ा भरम, तुझे िच्चे धरम का ।
र्ै अविर समला ।।३ ।।
िुनो जिर्ा र्े ितगुरु ….
तिह: िुन रे जिर्ा...
िन
ु ो जिर्ा र्े ितगुरु की बातैं, हर्त कर्त िर्ाल िर्ा तैं ।।टे क ।।
र्र् तन आन अचेतन र्ै तू, चेतन समलत न र्ातैं ।
तिवप वपछान एक आतमको, तित न र्ठ शठ-तातैं।।१ ।।िन
ु ो. ।।
चर्ुँगतत कफरत भरत ममताको, ववषर् मर्ाववष खातैं ।
तिवप न तित न रित अभागै, दृग व्रत बवु द्धिध
ु ातैं।।२ ।।िन
ु ो. ।।
मात तात ित
ु भ्रात स्विन तुझ, िाथी स्वारथ नातैं ।
तू इन काि िाि गर्
ु ो. ।।
ृ को िब, ज्ञानाहिक मत घातै।।३ ।।िन
तन धन भोग िंिोग िप
ु न िम, वार न लगत ववलातैं ।
ममत न कर भ्रम ति तू भ्राता, अनभ
ु व-ज्ञान कलातैं।।४ ।।िन
ु ो. ।।
िल
ह नर-भव िथ
ु भ
ु ल िक
ु ु ल र्ै , जिन उपिे श लर्ा तैं ।
`िौल' तिो मनिौं ममता ज्र्ों, तनवडो द्वंि िशातैं।।५ ।।िन
ु ो. ।।
र्म तो कबर्ूँ न हर्त उपिार्े ….
र्म तो कबर्ूँ न हर्त उपिार्े
िक
ु ु ल-िि
ु े व-िग
ु ुरु िि
ु ंग हर्त, कारन पार् गमार्े! ।।र्म तो. ।।
ज्र्ों सशशु नाचत, आप न माचत, लखनर्ारा बौरार्े ।
त्र्ों श्रत
ु वांचत आप न राचत, औरनको िमझ
ु ार्े।।१ ।।र्म तो. ।।
िि
ु ि-लार्की चार् न ति तनि, प्रभत
ु ा लखख र्रखार्े ।
ववषर् तिे न रिे तनि पिमें, परपि अपि लभ
ु ार्े।।२ ।।र्म तो. ।।
पापत्र्ाग जिन-िाप न कीन्र्ौं, िम
ु नचाप-तप तार्े ।
चेतन तनको कर्त सभन्न पर, िे र् िनेर्ी थार्े।।३ ।।र्म तो. ।।
र्र् चचर भल
ू भई र्मरी अब कर्ा र्ोत पछतार्े ।
`िौल' अिौं भवभोग रचौ मत, र्ौं गुरु वचन िन
ु ार्े।।४ ।।र्म तो. ।।
र्म तो कबर्ुँ न तनिगुन भार्े ….
र्म तो कबर्ुँ न तनिगुन भार्े ।
तन तनि मान िान तनिख
ु िख
ु में बबलखे र्रखार्े ।।र्म तो. ।।
तनको गरन मरन लखख तनको, धरन मान र्म िार्े ।
र्ा भ्रम भौंर परे भविल चचर, चर्ुँगतत ववपत लर्ार्े।।१ ।।र्म तो. ।।
िरशबोधव्रतिध
ु ा न चाख्र्ौ, ववववध ववषर्-ववष खार्े ।
िग
ु ुरु िर्ाल िीख िइ पतु न पतु न, ितु न, ितु न उर नहर् लार्े।।२ ।।र्म तो. ।।
बहर्रातमता तिी न अन्तर-दृजठट न ह्वै तनि ध्र्ार्े ।
धाम-काम-धन-रामाकी तनत, आश-र्ुताश िलार्े।।३ ।।र्म तो. ।।
अचल अनप
ू शद्ध
ु चचरप
ू ी, िब िख
ु मर् मतु न गार्े ।
`िौल' चचिानंि स्वगुन मगन िे, ते जिर् िखु खर्ा थार्े।।४ ।।र्म तो. ।।
र्म न ककिीके कोई न र्मारा…
र्म न ककिीके कोई न र्मारा, झठ
ू ा र्ै िगका ब्र्ोर्ारा ......
तनिम्बन्धी िब पररवारा, िो तन र्मने िाना न्र्ारा ।।र्म. ।।
पन्
ु र् उिर् िख
ु का ब़िवारा, पाप उिर् िख
ु र्ोत अपारा ।
पाप पन्
ु र् िोऊ िंिारा, मैं िब िे खन िानन र्ारा ।।१ ।।
मैं ततर्ुँ िग ततर्ुँ काल अकेला, पर िंिोग भर्ा बर्ु मेला ।
चथतत परू ी करर खखर खखर िांर्ीं, मेरे र्षह शोक कछु नार्ीं ।।२ ।।
राग भावतैं िज्िन मानैं, िोष भावतैं िि
ह िानैं ।
ु न
राग िोष िोऊ मम नार्ीं, `द्र्ानत' मैं चेतनपिमार्ीं ।।३ ।।
तनिपुर में आि मची र्ोरी…
तनिपरु में आि मची र्ोरी ।।तनि. ।।टे क ।।
उमँचग चचिानँििी इत आर्े, उत आई ित
ु ीगोरी ।।१ ।।तनि. ।।
लोकलाि कुलकातन गमाई, ज्ञान गल
ु ाल भरी झोरी ।।२ ।।तनि. ।।
िमककत केिर रं ग बनार्ो । चाररत की वपचक
ु ी छोरी ।।३ ।।तनि. ।।
गावत अिपा गान मनोर्र, अनर्ि झरिौं बरस्र्ो री ।।४ ।।तनि. ।।
िे खन आर्े बध
ु िन भीगे, तनरख्र्ौ ख्र्ाल अनोखो री ।।५ ।।तनि. ।।
आओ रे आओ रे ज्ञानानंि की डगररर्ा…
आओ रे आओ रे ज्ञानानंि की डगररर्ा,
तुम आओ रे आओ, गुण गाओ रे गाओ,
चेतन रसिर्ा, आनंि रसिर्ा॥
बडा अचंभा र्ोता र्ै , तर्ों अपने िे अनिान रे ,
पर्ाहर्ों के पार िे ख ले, आप स्वर्ं भगवान रे ॥
िशहन ज्ञान स्वभाव में , नर्ीं ज्ञेर् का लेश रे ,
तनि में तनि को िानकर, तिो ज्ञेर् का वेश रे ॥
मैं ज्ञार्क मैं ज्ञान र्ूं, मैं ध्र्ाता मैं ध्र्ेर् रे ,
ध्र्ान ध्र्ेर् में लीन र्ो, तनि र्ी तनि का ज्ञेर् रे ॥
तर्ूं करे असभमान
िीवन…
तर्ंू करे असभमान िीवन, र्ै र्े िो हिन का|
इक र्वा के झोंके िे उ़ि िाए ज्र्ों ततनका||
लाखों आए और चले गए,चथर न रर् पार्ा|
खाक बन िार्ेगी इक हिन, र्े तेरी कार्ा|
र्े िमर् र्ै आि तेरे आत्म चचंतन का||
खाली र्ाथों आर्ा िग में , िंग ना कुछ िाए|
कमह तू िैिा करे गा, काम वो र्ी आए|
ज्ञान की ज्र्ोतत िगा, तम िरू कर मन का||
छो़िकर झंझट िगत के, शरण प्रभु की आ|
त्र्ाग िप तप शील िंर्म,िाधना चचत ला|
िाि र्ै र्े भतत तेरा- वीर चरणन का||
(तिह:मेरा िीवन कोरा कागज़...)
मैं िशहन ज्ञान स्वरपी र्ूं…
मैं िशहन ज्ञान स्वरपी र्ूं, मैं िर्िानन्ि स्वरपी र्ूं,
र्ूं ज्ञान मात्र परभाव शन्
ू र्, र्ूं िर्ि ज्ञान धन स्वर्ं पण
ू ,ह
र्ूं ित्र् िर्ि आनन्ि धाम, मैं िर्िानन्ि स्वरपी र्ूं,
र्ूं खुि का र्ी कताह भोतता, पर में मेरा कुछ काम नर्ीं,
पर का न प्रवेश न कार्ह र्र्ां, मैं िर्िानन्ि स्वरपी र्ूं,
आओ उतरो रमलो तनि में , तनि में तनि की िवु वधा र्ी तर्ा,
र्ै अनभ
ु व रि िे िर्ि प्राप्त, मैं िर्िानन्ि स्वरपी र्ूं,
BhaktiSuman_Anamol
Ratan
तू िाग रे चेतन िे व…
bhakti_sarovar Aradhana
तू िाग रे चेतन िे व तुझे जिनिे व िगाते र्ैं,
तेरे अंिर में आनन्ि के गीत तझ
ु े िंगीत न भाते र्ैं,
परपि अपि र्ै , परपि अपि र्ै तुझको न शोभा िे ता,
अपने र्ी रं ग में, अपनी र्ी धन
ु में रम िा तू िंतों ने घेरा,
तेरी महर्मा अगम अनप
ू , तुझे जिनिे व िगाते र्ैं,
इि पल भी िीना, तनि बल पे िीना, शोभावे िन्मख
ु र्ी िीना
िो हिन का मेला कफ़र तू अकेला कोई र्ै िग का कर्ीं ना,
िन
ु िमर्िार िंगीत तझ
ु े जिनिे व िन
ु ाते र्ैं,
चैतन्र् रि में , आनन्ि के रि में , शाजन्त के रि में नर्ाले,
प्रभत
ु ा के रि में, भीरुता के रि में , वैराग्र् रि में मिा ले
कफ़र िब गावें तेरे गीत, तझ
ु े जिनिे व िगाते र्ैं,
चेतन अपनो रप तनर्ारो…
BhaktiSuman_Anamol
Ratan
चेतन अपनो रप तनर्ारो, नर्ीं गोरो नर्ीं कारो
िशहन ज्ञान मर्ी ततन मरू त, िकल कमह ते न्र्ारो।
िाकी बबन पर्चान ककर्े ते, िर्ो मर्ा िख
ु भारो,
िाके लखे उिर् र्ुए तत्क्षण, केवलज्ञान उिारो।
कमह ितनत पर्ाहर् पार् ना, कीनो आप पिारो,
आपा पर स्वरप ना वपछान्र्ो, तातें िर्ो रुझारो।
अब तनि में तनि िान तनर्त कर्ां िो िब र्ी उरझारो,
िगत राम िब ववचध िख
ु िागर, पिी पाओ अववकारो।
मोर् की महर्मा िे खो तर्ा
तेरे…
मोर् की महर्मा िे खो तर्ा तेरे मन में िमाई,
अपनी र्ी महर्मा भल
ु ाई तूने अपनी र्ी महर्मा ना आई
कार्े अररर्न्तो के कुल को लिार्ा, कार्े जिनवाणी मां का कर्ना भल
ु ार्ा
कार्े मतु नरािों की िीख ना मानी, सिद्ध िमान शजतत, र्रकत बचकानी
अपने र्ी र्ाथों अपने घर में र्ी आग लगाई
अपनी र्ी महर्मा...
िमविरण में जिनवर, इन्रों ने गार्ा, िौ िौ इन्रों के मध्र् िबको िमझार्ा,
अपनी शद्ध
ु ात्मा को भगवन बतार्ा, भव्र्ों ने िमझा अंिर अनभ
ु व में आर्ा,
िानो और िे खो चेतन इिमें र्ी तेरी भलाई,
अपनी र्ी महर्मा....
कार्े अपनार्े तूने माटी के े ले, कर्ता तु िोना चांिी, सितके व धेले
पद्
ु गल अचेतन िे प्रीती ब ाई, प्रभत
ु ा को भल
ू ा पामर कृतत बनाई
रघक
ु ु ल के राम तूने कार्े को रीतत गमाई
अपनी र्ी महर्मा...
आतम आराधना का आतम र्ी मंच र्ै , जििमें परभावों का ना रं च प्रपंच र्ै
कोई ना स्वामी जििमें कोई ना चाकर, बंिी बिैर्ा तर्
ू ी तेरा नटनागर
जििने भी मजु तत भी पाई अजस्त की मस्ती में पाई
अपनी र्ी महर्मा....
अपने में अपना
परमातम…
अपने में अपना परमातम, अपने िे र्ी पाना रे ।
अपने को पाने अपने िे, िरू कर्ीं नर्ीं िाना रे ॥
अपनी तनचध अपने में र्ोगी, अपने को अपनेपन िे ,
अपनी तनचध की ववचध अपने में , अपना िाधन आतम रे ,
अपना अपना रर्ा ििा र्ी, पररचर् र्ी को पाना रे ,
अपने को पाने अपने िे...
अपने िैिे िीव अनन्ते, अपने बल िे िेते र्ुए,
अपनी प्रभत
ु ा की प्रभत
ु ा र्ी, पर्चानी प्रिेते र्ुए,
अपनी प्रभत
ु ा नर्ीं बनाना, अपने िे र्ै पाना रे ,
अपने को पाने अपने िे...
िे खा िब अपने अंतर को…
Bhakti suman_adhyaatm tara
िे खा िब अपने अंतर को कुछ और नर्ीं भगवान र्ूं मैं
पर्ाहर् भले र्ी पामर र्ो अंिर िे वैभववान र्ूं मैं,
िे खा िब अपने अंतर को...
चैतन्र् प्राणॊं िे िीववत र्ैं, इंहरर् बल श्वािोच्छवाि नर्ीं,
र्ूं आर्ु रहर्त तनत अिर अमर, िजच्चिानंि गण
ु खान र्ूं मैं,
िे खा िब अपने अंतर को...
आधीन नर्ीं िंर्ोगों के, पर्ाहर्ों िे अप्रभावी र्ूं,
स्वाधीन अखंड प्रतापी र्ूं, तनि िे र्ी प्रभत
ु ावान र्ूं मैं,
िे खा िब अपने अंतर को...
िामान्र् ववशेषो िहर्त ववशद्ध
ु , प्रत्र्क्ष झलक िावे क्षण में ,
िवहज्ञ िवोिर् श्री आहिक, िम्र्क तनचधर्ों की खान र्ूं मैं,
िे खा िब अपने अंतर को...
िौ धमों में व्र्ाजप्त ववभु र्ूं, अरु धमह अनंतामर्ी धमी,
तनत तनि स्वरप की रचना िे, अंतर में धीरिवान र्ूं मैं,
िे खा िब अपने अंतर को...
मेरा वैभव शाश्वत अक्षुण्ण, पर िे आिान प्रिान नर्ीं,
त्र्ागोपािान शन्
ू र् तनजठक्रर्, अरु अगुरुलघु िे उधाम र्ूं मैं,
िे खा िब अपने अंतर को...
तजृ प्त आनंिमर्ी प्रगटी, िब िे खा अंतर नाथ को मैं,
नर्ीं रर्ी कामना अब कोई, बि तनववहकार तनठकाम र्ूं मैं
िे खा िब अपने अंतर को...
मार्ा में फ़ंिे इंिान…
मार्ा में फ़ंिे इंिान, ववषर्ों में ना बर् िाना।
चचन्मर् चैतन्र् तनचध को भल
ू ना पछताना॥
तन धन वैभव पररिन, तेरे काम ना आर्ेंगे,
िंर्ोग िभी नश्वर, तेरे िाथ ना िार्ेंगे,
तू अिर अमर ध्रव
ु र्ै , र्र् भाव ििा लाना।
मार्ा में फ़ंिे इंिान...
पर रव्र्ों में रमकर, अपने को भल
ू रर्ा,
मार्ा अरु ममता में तू प्रततक्षण फ़ूल रर्ा,
अनमोल तेरा िीवन, गफ़लत में ना खो िाना।
मार्ा में फ़ंिे इंिान....
चैतन्र् ििन भािी, तू ज्ञान हिवाकर र्ै ,
र्ै िर्ि शद्ध
ु भगवन, तू िख
ु का िागर र्ै ,
अपने को िरा पहर्चान, ववषर्ों में ना खो िाना।
लख चौरािी भ्रमते, िल
ह नरतन पार्ा,
ु भ
जिनश्रत
ु जिनिे व शरण, पण्
ु र्ोिर् िे पार्ा,
आतम अनभ
ु तू त बबना रर् िार्े ना पछताना।
मार्ा में फ़ंिे इंिान...
Bhakti suman_adhyaatm ta
पाना नर्ीं िीवन को…
पाना नर्ीं िीवन को, बद्लना र्ै िाधना,
तू ऐिा िीवन पावत र्ै , िलना र्ै िाधना।
मंड
ू मंड
ु ाना बर्ुत िरल र्ै , मन मंड
ु न आिान नर्ीं,
व्र्थह भभत
ू रमाना तन पर, र्हि भीतर का ज्ञान नर्ीं,
पर की पीडा में , मोम िा वपघलना र्ै िाधना॥
पाना नर्ीं िीवन को...
मंहिर में र्म बर्ुत गर्े पर, मन र्र् मंहिर नर्ीं बना,
व्र्थह सशवालर् में िाना िो, मन सशविन्
ु िर नर्ीं बना
पल पल िमता में इि मन का लना र्ै िाधना॥
पाना नर्ीं िीवन को....
िच्चा पाठ तभी र्ोगा िब, िीवन में पारार्ण र्ो,
श्वाि श्वाि धडकन धडकन िे िड
ु ी र्ुई रामार्ण र्ो,
तब ित पथ पर िन िन मन का चलना र्ै िाधना।
Bhakti suman_adhyaatm ta
अब गततर्ों में नार्ीं रुलें गे…
अब गततर्ों में नार्ीं रुलेंग,े तनिानंि पान करें गे।
अब भव भव का नाश करें गें, तनिानंि पान करें गे।
खुि की खि
ु में र्ी खोि करें गें, तनिानंि पान करें गे॥
अब गततर्ों में...
मैं मझ
ु में पर पर में रर्ता, तनि रि के आनंि में रर्ता,
अब केवल ज्ञान करें गें, तनिानंि पान करें गे॥
अब गततर्ों में...
मैं ज्ञार्क ज्ञार्क र्ी न िाना, मैं तो र्ूं बि सिद्ध के िमाना,
अब सिद्धों के बीच रर्ें गें, तनिानंि पान करें गे॥
अब गततर्ों में...
शास्त्रों की बातों को मन िे…
शास्त्रों की बातों को मन िे ना िुिा करना,
िंकट िो कोई आर्े स्वाध्र्ार् ििा करना॥
िीवन के अंधेरों में िख
ु ों का बीडा र्ै ,
पर्चान िरा कर ले कफ़र िड िे समटा िे ना॥
र्म रार् भटकते र्ैं, मंजिल का नर्ीं पाना,
चर्ुं ओर अंधेरा र्ै बझ
ु ा िीप र्मारा र्ै ।
र्में रार् हिखा जिनवर भव पार र्में करना, शास्त्रों की....
धन िौलत की ितु नर्ा अपना र्ी परार्ा र्ै ,
तू िार करे ककिकी माटी की कार्ा र्ै ,
पर्चान िरा करले कफ़र िग िे वविा लेना, शास्त्रों की...
मैं ज्ञानानंि स्वभावी र्ूं…
मैं ज्ञानानंि स्वभावी र्ूं, मैं ज्ञानानंि स्वभावी र्ूं ॥
मैं र्ूं अपने में स्वर्ं पण
ू ,ह पर की मझ
ु में कुछ गंध नर्ीं।
मैं अरि, अरपी, अस्पशी, पर िे कुछ भी िम्बन्ध नर्ीं॥
मैं रं ग राग िे सभन्न भेि िे, भी मैं सभन्न तनराला र्ूं।
मैं र्ूं अखंड चैतन्र् वपण्ड, तनि रि में रमने वाला र्ूं॥
मैं र्ी मेरा कताह धताह, मझ
ु में पर का कुछ का काम नर्ीं।
मैं मझ
ु में रमने वाला र्ूं, पर में मेरा ववश्राम नर्ीं॥
मैं शद्ध
ु बद्ध
ु अववरुद्ध एक, पर पररणतत िे अप्रभावी र्ूं।
आत्मानभ
ु तू त िे प्राप्त तत्व, मैं ज्ञानानंि स्वभावी र्ूं॥