Akka Mahadevi PP - हिन्दी साहित्य

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Transcript Akka Mahadevi PP - हिन्दी साहित्य

सर्वशक्तिमान ईश्र्र ( मनष्ु य की
कल्पना)
ईश्र्र के कई
रूप
साांसाररक मोह-माया में फँसा इांसान….मक्ु ति की कामना..
ईश्र्र िक पहुँचने का मार्व
सामान्य प्रार्वना कवर्िाओां में मनष्ु य
अपनी रक्षा के लिए िर्ा सख
ु - समवृ ि के
लिए ईश्र्र से प्रार्वना करिा है ; ककांिु यह
प्रार्वना अन्य प्रार्वनाओां से बिल्कुि
लिन्न है तयोंकक इसमें कर्ययत्री ईश्र्र
सेअपना सि कुछ छीन िेने को कहिी है
िाकक र्ह मोक्ष प्राप्ि कर सके।
‘ र्चन ’
अतक महादे र्ी
कवयित्री-परिचि :
‘ अतक महादे र्ी ’ का जन्म १२ र्ीां सदीमें कनावटक के उडुिरी
र्ाँर् में क्ििा शोर्लमर्ा में हुआ र्ा। र्े अपर्
ू व सांद
ु री र्ीां। राजा
के वर्र्ाह प्रस्िार् रखने पर उन्होंने िीन शिें रखीां, पर राजा ने
पािन नहीां ककया; इसलिए महादे र्ी ने उसी समय घर त्यार्
ददया। र्ह िारिीय नारी के इयिहास की एक वर्िक्षण घटना
िन र्ई क्जससे उनके वर्द्रोही स्र्िार् का पिा चििा है ।
अतक के कारण शैर् आांदोिन से िड़ी सांख्या में क्स्त्रयाँ जड़
ु ीां
और अपने सांघर्व और यािना को कवर्िा के रूप में
अलिव्यक्ति दीां। इस प्रकार अतक महादे र्ी की कवर्िा पूरे
िारिीय सादहत्य में इस काांयिकारी चेिना का पहिा
सजवनात्मक दस्िार्ेि है । चन्न मक्ल्िकाजन
ुव दे र् इनके
आराध्य र्े। िसर्न्न और अल्ल्मा प्रिु इनके समकािीन
कन्नड़ सांि कवर् र्े। कन्नड़ िार्ा में अतक शब्द का अर्व
िदहन होिा है ।
(१)
हे िख
ू ! मि मचि
प्यास िड़प मि
हे नीांद ! मि सिा
क्रोध, मचा मि उर्ि-पर्
ु ि
हे मोह ! पाश अपने ढीि
िोि, मि ििचा
हे मद ! मि कर मदहोश
ईष्याव, जिा मि
ओ चराचर ! मि चक
ू अर्सर
आई हूँ सांदेश िेकर
चन्नमक्ल्िकाजन
ुव का
(२)
हे मेरे जह
ू ी के फूि जैसे ईश्र्र
मँर्र्ाओ मुझसे िीख
और कुछ ऐसा करो
कक िि
ू जाऊँ अपना घर परू ी िरह
झोिी फैिाऊँ और न लमिे िीख
कोई हार् िढ़ाए कुछ दे ने को
िो र्ह गर्र जाए नीचे
और यदद मैं झक
ु ँू उठाने
िो कोई कुत्िा आ जाए
और उसे झपटकर छीन िे मझ
ु से।
पहले वचन में कवयित्री ने भूख, प्िास,
क्रोध-मोह, लोभ-मद, ईर्षिाा पर यनिंत्रण
रखने और भगवान यिवका ध्िान लगाने की
प्रेरणा दी है।दूसरे वचन में ईश्वर के सम्मुख
संपूणा समपाण का भाव है। कवयित्री चाहती है
कक वह सांसाररक वस्तुओं से पूरी तरह खाली
हो जाए। उसे खाने के यलए भीख तक न यमले।
िािद इसी तरह उसका संसार उससे छू ट
सके ।
करिन िब्दों के अर्ा :मचल – पाने की यिद करना
पाि – बंधन, जकड़
मद – निा
मदहोि – निे में पागल
चराचर – जड़ और चेतन संसार
चूक – भूल
चन्न मयललकाजुान - यिव
हे िख
ू ! मि मचि
प्यास िड़प मि
हे नीांद ! मि सिा
क्रोध, मचा मि उर्ि-पर्
ु ि
हे मोह ! पाश अपने ढीि
िोि, मि ििचा
हे मद ! मि कर मदहोश
ईष्याव, जिा मि
ओ चराचर !
मि चक
ू अर्सर
आई हूँ सांदेश िेकर
चन्नमक्ल्िकाजुन
व का
हे मेरे जूही के फूि जैसे ईश्र्र
मँर्र्ाओ मुझसे िीख
और कुछ ऐसा करो
कक िि
ू जाऊँ अपना घर परू ी िरह
झोिी फैिाऊँ और न लमिे िीख
कोई हार् िढ़ाए कुछ दे ने को
िो र्ह गर्र जाए नीचे
और यदद मैं झक
ु ँू उठाने
िो कोई कुत्िा आ जाए
और उसे झपटकर छीन िे मझ
ु से।
िोध प्रश्न :
1.लक्ष्ि प्रायि में इं कििााँ बाधक होती हैं – इसके संदभा में अपने तका दीयजए।
2.ओ चराचर ! मत चूक अवसर – इस पंयि का आिि स्पष्ट कीयजए।
3.ईश्वर के यलए ककस दृष्टांत का प्रिोग ककिा है। ईश्वर और उसके साम्ि का आधार बताइए।?
4.दूसरे वचन में क्िा कामना की गई है ? इसे भूलने की बात क्िों कही गई है ?
पररिोजना कािा :• भि कयव कबीर , गुरु नानक , नामदेव और
मीराबाई आकद कयविों की रचनाओं का संग्रह करना।
• पाि में आए दोनों वचनों को िाद कीयजए
और कक्षा में सुनाइए।
धन्यर्ाद !
प्रस्िुयि
सीमाांचि र्ौड़
स्नात्िकोत्िर लशक्षक
ज.न.वर्., ८२ माइल्स, धिाई, बत्रपरु ा