पाठयोजना कक्षा—दशमी विषय:—संस्कृतम ् उपविषय:-िाङ्मयं तपः १.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य व्यिहार में प्रयोग कर पाने की क्षमता का विकास| (२) संस्कृत शब्दों का िाचन.

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Transcript पाठयोजना कक्षा—दशमी विषय:—संस्कृतम ् उपविषय:-िाङ्मयं तपः १.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य व्यिहार में प्रयोग कर पाने की क्षमता का विकास| (२) संस्कृत शब्दों का िाचन.

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पाठयोजना
कक्षा—दशमी
विषय:—संस्कृतम ्

उपविषय:-िाङ्मयं तपः

१.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य
व्यिहार में प्रयोग कर पाने की
क्षमता का विकास|
(२) संस्कृत शब्दों का िाचन कर
पाना|
(३) संस्कृत के
विकास करना |

प्रतत

रुचच

का

२.विशिष्ट उद्देश्य :(१) श्लोकों का सस्िर िाचन करना
|
(२) आलङ्काररक विधा का ज्ञान |
(३) मधुर िाणी एिं िाणी के तप
की महत्ता का ज्ञान |
(४) मेधा तथा पाठक के गुणों को
बतलाना |
(५) शशष्य द्िारा ज्ञान प्राप्तत के
स्रोतों का ज्ञान |

३.पूिज्ञ
व ान परीक्षण :(१)

सबसे प्राचीन विश्ि
साहहत्य के ग्रन्थ का नाम
बताये ?

(२) िाणी एिं विद्या की दे िी
कौन सी है ?
(३)िाणी की महत्ता के विषय
में आप क्या जानते हो ?
(४)मधुर एिं कटु िाणी का
क्या प्रभाि पड़ता है ?

४. अशिप्रेरणा:“िाण्येका

समलङ्करोतत परु
ु षं
या संस्कृता धाययते”

विषयिस्तु की उद्घोषणा

आज हम िाणी के
गण
ु ों के महत्त्ि पर
प्रकाश डालेंगे |
हमारा आज का
विषय है :

िाङ्मयं तपः

प्रस्तुतीकरण
श्लोकों का सस्िर आदशयिाचन
ि अनुकरणिाचन
श्लोकगायन –

शारदा शारदाम्भोजिदना िदनाम्बुजे |
सियदा सियदाऽस्माकं सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ्||१||

अन्िय:-

शारद-अम्भोज –िदना सियदा शारदा अस्माकम ् िदनअम्बुजे सियदा सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ् |

अथयः –

शरद ऋतु में खिलने िाले कमल के समान सन्
ु दर मि

िाली सब कुछ प्रदान करने िाले मां सरस्िती हमारे
मि
ु रूपी कमल में हमेशा अपने संपण
ू य िजाने सहहत
तनिास करे |
विशेष विचारणीय :सरस्िती विद्यारूपी कोष को सदा हमारे पास रिकर
हमें ज्ञानिान बनाये |

श्लोकगायन

:अपूिःय कोऽवप कोशोऽयं विद्यते ति भारतत !
व्ययतो िवृ िमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||२ ||

अन्ियः-

भारतत ! ति अयम ् कोशः कः अवप अपि
ू ःय
विद्यते | व्ययतः िवृ िम ् आयातत, संचयात ् च
क्षयम ् आयातत |

अथय :-

हे सरस्ितत ! तेरा यह िजाना कैसा
तनराला है ? जो िचय करने से िवृ ि को प्रातत
होता है और संचचत करने से तनरन्तर क्षय को
प्रातत होता है |

विशेष विचारणीय :-

सामान्य धन िचय करने पर समातत हो जाता
है ,परन्तु सरस्िती का अद्भत
ु ज्ञानरूपी धन िचय
करने से बार –बार अभ्यास में आने पर बढ़ता
ही रहता है

श्लोकगायन :-

नाप्स्त विद्यासमं चक्षुः नाप्स्त सत्यसमं तपः |
नाप्स्त रागसमं दःु िं नाप्स्त त्यागसमं सुिम ् ||३||

अन्ियः –

विद्यासमम ् चक्षुः न अप्स्त,सत्यसमम ् तपः न
अप्स्त |रागसमम ् दःु िम ् न अप्स्त,त्यागसमम ्
सि
ु म ् न अप्स्त |

अथयः –
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है |सत्य से बढ़कर
कोई तप नहीं है |राग के समान कोई दि
ु नहीं है
और न ही त्याग के समान कोई सुि है |

विशेष विचारणीय :-

विद्या ज्ञान का तत
ृ ीय नेत्र है |सत्याचरण ही परम तप
है |मोह ही दःु ि का कारण है और िैराग्य ही सुि है |

श्लोकगायन:न तथा शीतलसशललं न चन्दनरसो न शीतला छाया |
प्रह्लादयतत च परु
ु षं यथा मधरु भावषणी िाणी ||४||
अन्ियः –
यथा मधरु भावषणी िाणी परु
ु षं प्रह्लादयतत तथा
शीतल-सशललम ् न | चन्दनरसः न, शीतला छाया
च न (प्रह्लादयतत) |
अथयः –
जैसे मधुरतायुक्त िाणी मनुष्य को आनन्द प्रदान
करती है िैसा आनन्द न तो शीतल जल से शमलता
है , न चन्दन के लेप से प्रातत होता है और न ही
िक्ष
ृ की शीतल छाया से प्रातत हो सकता है |
विशेष विचारणीय :मधरु िाणी ही हृदय को आनप्न्दत कर सकती है |

श्लोकगायन :शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि ग्रहणं धारणं तथा |
ऊहापोहाथयविज्ञानं तत्त्िज्ञानं च धीगण
ु ा:
||५||
• अन्िय:• शश्र
ु ष
ू ा,श्रिणम ् च एि,ग्रहणं तथा धारणम ्
,ऊह –अपोह ,अथयविज्ञानम ्, तत्त्िज्ञानम ् च
धीगण
ु ा:(सप्न्त)|
• अथय :• सन
ु ने की इच्छा,ध्यान से सन
ु ना,समझना
तथा उस समझ को मन के अन्दर धारण
करना (संभालकर रिना )गण
ु -दोषों को
तकय-वितकय द्िारा वििेचना करना,अथय का
तनश्चय पण
ू य ज्ञान तथा मल
ू अथय और गढ़

रहस्य को जानना |ये सभी बुवि के गुण है |
• विशेष विचारणीय :• ये षड् गुण बुविविकास के हे तु तथा बुवि में
सतत स्थापनीय हैं|

श्लोक गायन :• माधय
य ाक्षरव्यप्क्तःपदच्छे दस्तु सस्
ु म
ु िर:|
• धैयं लयसमथं च षडेते पाठकगण
ु ाः||६||
• अन्ियः :माधय
य ्,अक्षरव्यप्क्तः,पदच्छे दः तु
ु म
सस्
ं ् लयसमथयम ् च एते षट्
ु िरः,धैयम
पाठकगण
ु ाःसप्न्त |
अथय:मधरु ता,अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण,पदों
का विभाजन (सप्न्ध ि समास)सन्
ु दर ि
शुि उच्चारण,गम्भीरता और लय से
युक्त होना |
ये सभी छह गण
ु पढ़ने िाले विद्याथी
के कहे गये हैं |
विशेष विचारणीय :अध्येता को इन सभीषड् गण
ु ों का
आश्रय परमािश्यक है ,क्यों्क इससे
पाठक को लय के आनन्द के साथ –
साथ साथयक पररणाम प्रातत होते हैं |

श्लोक गायन :आचायायत्पादमादत्ते पादं शशष्यः स्िमेधया |
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचाररशभ:||७||
अन्िय :शशष्य:आचायायत ् पादम ् आदत्ते |शशष्यः
स्िमेधया पादम ् आदत्ते,शशष्यः कालेन पादम ्
आदत्ते,शशष्यः सब्रह्मचाररशभः पादम ् आदत्ते |
अथयः –
शशष्य चतुथांश १/४ गुरु से,चतुथांश अपनी बुवि
के बल से, चतथ
ु ांश समय और पररप्स्थतत से
तथा चतथ
ु ांश अपने सहपाठयों से ज्ञानाजयन
करता है |
विशेष विचारणीय :मनष्ु य के जीिन में ज्ञानाजयन करने के ये चार
मख्
ु य स्रोत हैं |

श्लोकगायन :अनद्
ु िेगकरं िाक्यं सत्यं वप्रयहहतं च यत ् |
स्िाध्यायाभ्यसनं चैि िाङ्मयं तपः उच्यते
||८||
अन्ियः :यत ् िाक्यम ् अनद्
ु िेगकरं सत्यम ् वप्रयहहतम ्
च (तथा ) स्िाध्याय-अभ्यसनम ् च एि
िाङ्मयं तपः उच्यते |
अथय: :ऐसा िाक्य जो दःु ि उत्पन्न करने िाला न
हो, सत्ययक्
ु त हो, मधरु और हहतकारी हो
तथा तनत्य स्िाध्याय अभ्यास करना, ये
सभी िाणी के तप कहे गये हैं|
विशेष विचारणीय :सत्य, वप्रय और दःु िरहहत मधरु िाणी
काप्रयोग करना ्कसी कहठन तप से कम
नहीं |

७.समह
ू विभाजन :(१) िाल्मी्किगयः (प्रश्नोत्तराखण)(क) ‘अम्भोजः’ इतत शब्दस्य पयायय: कः ?
(ि) ‘शरत्कालीनः’ इतत कस्य अथयः ?
(ग) सरस्ित्याः कोशः कथं िधयते ?
(घ) कीदृशी िाणी परु
ु षं प्रसन्नं करोतत?
(ङ) बि
ु ेः प्रथमः गण
ु ः कः ?
उत्तर
• कमलम ्
• शारदशब्दस्य
• व्ययात ्
• मधुरिाणी
• शुश्रूषा

(२)व्यासिर्व: - (प्रश्नननमावणम):(क)भारत्याःकोशः अपि
ू ःय |

(ि)पठने अक्षराणां स्पष्टता स्यात ् |
(ग)शश्र
ु ष
ू ायाः अथयः ‘श्रोतुशमच्छा’ |

(घ)रागस्य विलोमः त्यागः |
(ङ)पठनस्य षड्गण
ु ाः |

उत्तर
कस्या:?
केषाम ् ?
का ?
कस्य ?
कतत गुणा: ?

(४)िरद्िाजिर्वः – ( परस्परमेलनम):शीतला
िाणी
िाङ्मयम ्
सशललम ्
शीतलम ्
छाया
विद्यासमम ्
तपः
अपि
शारदा
ू ःय
मधुरभावषणी
कोशः
वप्रयहहतम ्
िाक्यम ्
सियदा
चक्षुः

८.मल्
ू यांकनम ् :-

ज्ञानात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)’शरत्कालीनः’इतत शब्दस्य को अथयः ?
(ि)बुिेः कतत गण
ु ाः ?

उत्तर:
(१)

शरद् ऋतु:
(२) षड् गण
ु ा:

बोधात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)रागशब्दस्य विलोमः कः?
(विराग:)
(ि)शारदाशब्दस्य पयायय:कः? (भारती)

अनप्र
ु योगात्मकस्तरीय प्रश्न :-

(क)शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि--० अत्र
श्लोकाधाररतं सोपानं तनमीयताम |
(ि)तपः,सियदा,माधय
य ,सशललम

् एषाम ्
ु म
शब्दानां िाक्यतनमायणं ्रिययताम|

गह
ृ काययम ् :(१)अन्िय सहहत श्लोकाथय शलिें |
(२)िाणी के महत्त्ि पर प्रकाश डालें
|
(३) पाठ पर आधाररत तत
ृ ीया ि
पञ्चम्यन्त पदों का चयन करें |
प्रस्तुतत :
१॰ डॉ॰ अरुण कुमार शमाय
(शास्त्री)9418666205
रा॰ि॰मा॰पा॰(छात्र) सोलन (हह॰प्र॰)
२॰ डॉ॰ भप
ू ेन्र मोहन शमाय
(शास्त्री)9418488280
रा॰उ॰पा॰ मल
ू बरी(दे िनगर)
शशमला(हह॰प्र॰)


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पाठयोजना
कक्षा—दशमी
विषय:—संस्कृतम ्

उपविषय:-िाङ्मयं तपः

१.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य
व्यिहार में प्रयोग कर पाने की
क्षमता का विकास|
(२) संस्कृत शब्दों का िाचन कर
पाना|
(३) संस्कृत के
विकास करना |

प्रतत

रुचच

का

२.विशिष्ट उद्देश्य :(१) श्लोकों का सस्िर िाचन करना
|
(२) आलङ्काररक विधा का ज्ञान |
(३) मधुर िाणी एिं िाणी के तप
की महत्ता का ज्ञान |
(४) मेधा तथा पाठक के गुणों को
बतलाना |
(५) शशष्य द्िारा ज्ञान प्राप्तत के
स्रोतों का ज्ञान |

३.पूिज्ञ
व ान परीक्षण :(१)

सबसे प्राचीन विश्ि
साहहत्य के ग्रन्थ का नाम
बताये ?

(२) िाणी एिं विद्या की दे िी
कौन सी है ?
(३)िाणी की महत्ता के विषय
में आप क्या जानते हो ?
(४)मधुर एिं कटु िाणी का
क्या प्रभाि पड़ता है ?

४. अशिप्रेरणा:“िाण्येका

समलङ्करोतत परु
ु षं
या संस्कृता धाययते”

विषयिस्तु की उद्घोषणा

आज हम िाणी के
गण
ु ों के महत्त्ि पर
प्रकाश डालेंगे |
हमारा आज का
विषय है :

िाङ्मयं तपः

प्रस्तुतीकरण
श्लोकों का सस्िर आदशयिाचन
ि अनुकरणिाचन
श्लोकगायन –

शारदा शारदाम्भोजिदना िदनाम्बुजे |
सियदा सियदाऽस्माकं सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ्||१||

अन्िय:-

शारद-अम्भोज –िदना सियदा शारदा अस्माकम ् िदनअम्बुजे सियदा सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ् |

अथयः –

शरद ऋतु में खिलने िाले कमल के समान सन्
ु दर मि

िाली सब कुछ प्रदान करने िाले मां सरस्िती हमारे
मि
ु रूपी कमल में हमेशा अपने संपण
ू य िजाने सहहत
तनिास करे |
विशेष विचारणीय :सरस्िती विद्यारूपी कोष को सदा हमारे पास रिकर
हमें ज्ञानिान बनाये |

श्लोकगायन

:अपूिःय कोऽवप कोशोऽयं विद्यते ति भारतत !
व्ययतो िवृ िमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||२ ||

अन्ियः-

भारतत ! ति अयम ् कोशः कः अवप अपि
ू ःय
विद्यते | व्ययतः िवृ िम ् आयातत, संचयात ् च
क्षयम ् आयातत |

अथय :-

हे सरस्ितत ! तेरा यह िजाना कैसा
तनराला है ? जो िचय करने से िवृ ि को प्रातत
होता है और संचचत करने से तनरन्तर क्षय को
प्रातत होता है |

विशेष विचारणीय :-

सामान्य धन िचय करने पर समातत हो जाता
है ,परन्तु सरस्िती का अद्भत
ु ज्ञानरूपी धन िचय
करने से बार –बार अभ्यास में आने पर बढ़ता
ही रहता है

श्लोकगायन :-

नाप्स्त विद्यासमं चक्षुः नाप्स्त सत्यसमं तपः |
नाप्स्त रागसमं दःु िं नाप्स्त त्यागसमं सुिम ् ||३||

अन्ियः –

विद्यासमम ् चक्षुः न अप्स्त,सत्यसमम ् तपः न
अप्स्त |रागसमम ् दःु िम ् न अप्स्त,त्यागसमम ्
सि
ु म ् न अप्स्त |

अथयः –
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है |सत्य से बढ़कर
कोई तप नहीं है |राग के समान कोई दि
ु नहीं है
और न ही त्याग के समान कोई सुि है |

विशेष विचारणीय :-

विद्या ज्ञान का तत
ृ ीय नेत्र है |सत्याचरण ही परम तप
है |मोह ही दःु ि का कारण है और िैराग्य ही सुि है |

श्लोकगायन:न तथा शीतलसशललं न चन्दनरसो न शीतला छाया |
प्रह्लादयतत च परु
ु षं यथा मधरु भावषणी िाणी ||४||
अन्ियः –
यथा मधरु भावषणी िाणी परु
ु षं प्रह्लादयतत तथा
शीतल-सशललम ् न | चन्दनरसः न, शीतला छाया
च न (प्रह्लादयतत) |
अथयः –
जैसे मधुरतायुक्त िाणी मनुष्य को आनन्द प्रदान
करती है िैसा आनन्द न तो शीतल जल से शमलता
है , न चन्दन के लेप से प्रातत होता है और न ही
िक्ष
ृ की शीतल छाया से प्रातत हो सकता है |
विशेष विचारणीय :मधरु िाणी ही हृदय को आनप्न्दत कर सकती है |

श्लोकगायन :शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि ग्रहणं धारणं तथा |
ऊहापोहाथयविज्ञानं तत्त्िज्ञानं च धीगण
ु ा:
||५||
• अन्िय:• शश्र
ु ष
ू ा,श्रिणम ् च एि,ग्रहणं तथा धारणम ्
,ऊह –अपोह ,अथयविज्ञानम ्, तत्त्िज्ञानम ् च
धीगण
ु ा:(सप्न्त)|
• अथय :• सन
ु ने की इच्छा,ध्यान से सन
ु ना,समझना
तथा उस समझ को मन के अन्दर धारण
करना (संभालकर रिना )गण
ु -दोषों को
तकय-वितकय द्िारा वििेचना करना,अथय का
तनश्चय पण
ू य ज्ञान तथा मल
ू अथय और गढ़

रहस्य को जानना |ये सभी बुवि के गुण है |
• विशेष विचारणीय :• ये षड् गुण बुविविकास के हे तु तथा बुवि में
सतत स्थापनीय हैं|

श्लोक गायन :• माधय
य ाक्षरव्यप्क्तःपदच्छे दस्तु सस्
ु म
ु िर:|
• धैयं लयसमथं च षडेते पाठकगण
ु ाः||६||
• अन्ियः :माधय
य ्,अक्षरव्यप्क्तः,पदच्छे दः तु
ु म
सस्
ं ् लयसमथयम ् च एते षट्
ु िरः,धैयम
पाठकगण
ु ाःसप्न्त |
अथय:मधरु ता,अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण,पदों
का विभाजन (सप्न्ध ि समास)सन्
ु दर ि
शुि उच्चारण,गम्भीरता और लय से
युक्त होना |
ये सभी छह गण
ु पढ़ने िाले विद्याथी
के कहे गये हैं |
विशेष विचारणीय :अध्येता को इन सभीषड् गण
ु ों का
आश्रय परमािश्यक है ,क्यों्क इससे
पाठक को लय के आनन्द के साथ –
साथ साथयक पररणाम प्रातत होते हैं |

श्लोक गायन :आचायायत्पादमादत्ते पादं शशष्यः स्िमेधया |
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचाररशभ:||७||
अन्िय :शशष्य:आचायायत ् पादम ् आदत्ते |शशष्यः
स्िमेधया पादम ् आदत्ते,शशष्यः कालेन पादम ्
आदत्ते,शशष्यः सब्रह्मचाररशभः पादम ् आदत्ते |
अथयः –
शशष्य चतुथांश १/४ गुरु से,चतुथांश अपनी बुवि
के बल से, चतथ
ु ांश समय और पररप्स्थतत से
तथा चतथ
ु ांश अपने सहपाठयों से ज्ञानाजयन
करता है |
विशेष विचारणीय :मनष्ु य के जीिन में ज्ञानाजयन करने के ये चार
मख्
ु य स्रोत हैं |

श्लोकगायन :अनद्
ु िेगकरं िाक्यं सत्यं वप्रयहहतं च यत ् |
स्िाध्यायाभ्यसनं चैि िाङ्मयं तपः उच्यते
||८||
अन्ियः :यत ् िाक्यम ् अनद्
ु िेगकरं सत्यम ् वप्रयहहतम ्
च (तथा ) स्िाध्याय-अभ्यसनम ् च एि
िाङ्मयं तपः उच्यते |
अथय: :ऐसा िाक्य जो दःु ि उत्पन्न करने िाला न
हो, सत्ययक्
ु त हो, मधरु और हहतकारी हो
तथा तनत्य स्िाध्याय अभ्यास करना, ये
सभी िाणी के तप कहे गये हैं|
विशेष विचारणीय :सत्य, वप्रय और दःु िरहहत मधरु िाणी
काप्रयोग करना ्कसी कहठन तप से कम
नहीं |

७.समह
ू विभाजन :(१) िाल्मी्किगयः (प्रश्नोत्तराखण)(क) ‘अम्भोजः’ इतत शब्दस्य पयायय: कः ?
(ि) ‘शरत्कालीनः’ इतत कस्य अथयः ?
(ग) सरस्ित्याः कोशः कथं िधयते ?
(घ) कीदृशी िाणी परु
ु षं प्रसन्नं करोतत?
(ङ) बि
ु ेः प्रथमः गण
ु ः कः ?
उत्तर
• कमलम ्
• शारदशब्दस्य
• व्ययात ्
• मधुरिाणी
• शुश्रूषा

(२)व्यासिर्व: - (प्रश्नननमावणम):(क)भारत्याःकोशः अपि
ू ःय |

(ि)पठने अक्षराणां स्पष्टता स्यात ् |
(ग)शश्र
ु ष
ू ायाः अथयः ‘श्रोतुशमच्छा’ |

(घ)रागस्य विलोमः त्यागः |
(ङ)पठनस्य षड्गण
ु ाः |

उत्तर
कस्या:?
केषाम ् ?
का ?
कस्य ?
कतत गुणा: ?

(४)िरद्िाजिर्वः – ( परस्परमेलनम):शीतला
िाणी
िाङ्मयम ्
सशललम ्
शीतलम ्
छाया
विद्यासमम ्
तपः
अपि
शारदा
ू ःय
मधुरभावषणी
कोशः
वप्रयहहतम ्
िाक्यम ्
सियदा
चक्षुः

८.मल्
ू यांकनम ् :-

ज्ञानात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)’शरत्कालीनः’इतत शब्दस्य को अथयः ?
(ि)बुिेः कतत गण
ु ाः ?

उत्तर:
(१)

शरद् ऋतु:
(२) षड् गण
ु ा:

बोधात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)रागशब्दस्य विलोमः कः?
(विराग:)
(ि)शारदाशब्दस्य पयायय:कः? (भारती)

अनप्र
ु योगात्मकस्तरीय प्रश्न :-

(क)शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि--० अत्र
श्लोकाधाररतं सोपानं तनमीयताम |
(ि)तपः,सियदा,माधय
य ,सशललम

् एषाम ्
ु म
शब्दानां िाक्यतनमायणं ्रिययताम|

गह
ृ काययम ् :(१)अन्िय सहहत श्लोकाथय शलिें |
(२)िाणी के महत्त्ि पर प्रकाश डालें
|
(३) पाठ पर आधाररत तत
ृ ीया ि
पञ्चम्यन्त पदों का चयन करें |
प्रस्तुतत :
१॰ डॉ॰ अरुण कुमार शमाय
(शास्त्री)9418666205
रा॰ि॰मा॰पा॰(छात्र) सोलन (हह॰प्र॰)
२॰ डॉ॰ भप
ू ेन्र मोहन शमाय
(शास्त्री)9418488280
रा॰उ॰पा॰ मल
ू बरी(दे िनगर)
शशमला(हह॰प्र॰)


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पाठयोजना
कक्षा—दशमी
विषय:—संस्कृतम ्

उपविषय:-िाङ्मयं तपः

१.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य
व्यिहार में प्रयोग कर पाने की
क्षमता का विकास|
(२) संस्कृत शब्दों का िाचन कर
पाना|
(३) संस्कृत के
विकास करना |

प्रतत

रुचच

का

२.विशिष्ट उद्देश्य :(१) श्लोकों का सस्िर िाचन करना
|
(२) आलङ्काररक विधा का ज्ञान |
(३) मधुर िाणी एिं िाणी के तप
की महत्ता का ज्ञान |
(४) मेधा तथा पाठक के गुणों को
बतलाना |
(५) शशष्य द्िारा ज्ञान प्राप्तत के
स्रोतों का ज्ञान |

३.पूिज्ञ
व ान परीक्षण :(१)

सबसे प्राचीन विश्ि
साहहत्य के ग्रन्थ का नाम
बताये ?

(२) िाणी एिं विद्या की दे िी
कौन सी है ?
(३)िाणी की महत्ता के विषय
में आप क्या जानते हो ?
(४)मधुर एिं कटु िाणी का
क्या प्रभाि पड़ता है ?

४. अशिप्रेरणा:“िाण्येका

समलङ्करोतत परु
ु षं
या संस्कृता धाययते”

विषयिस्तु की उद्घोषणा

आज हम िाणी के
गण
ु ों के महत्त्ि पर
प्रकाश डालेंगे |
हमारा आज का
विषय है :

िाङ्मयं तपः

प्रस्तुतीकरण
श्लोकों का सस्िर आदशयिाचन
ि अनुकरणिाचन
श्लोकगायन –

शारदा शारदाम्भोजिदना िदनाम्बुजे |
सियदा सियदाऽस्माकं सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ्||१||

अन्िय:-

शारद-अम्भोज –िदना सियदा शारदा अस्माकम ् िदनअम्बुजे सियदा सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ् |

अथयः –

शरद ऋतु में खिलने िाले कमल के समान सन्
ु दर मि

िाली सब कुछ प्रदान करने िाले मां सरस्िती हमारे
मि
ु रूपी कमल में हमेशा अपने संपण
ू य िजाने सहहत
तनिास करे |
विशेष विचारणीय :सरस्िती विद्यारूपी कोष को सदा हमारे पास रिकर
हमें ज्ञानिान बनाये |

श्लोकगायन

:अपूिःय कोऽवप कोशोऽयं विद्यते ति भारतत !
व्ययतो िवृ िमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||२ ||

अन्ियः-

भारतत ! ति अयम ् कोशः कः अवप अपि
ू ःय
विद्यते | व्ययतः िवृ िम ् आयातत, संचयात ् च
क्षयम ् आयातत |

अथय :-

हे सरस्ितत ! तेरा यह िजाना कैसा
तनराला है ? जो िचय करने से िवृ ि को प्रातत
होता है और संचचत करने से तनरन्तर क्षय को
प्रातत होता है |

विशेष विचारणीय :-

सामान्य धन िचय करने पर समातत हो जाता
है ,परन्तु सरस्िती का अद्भत
ु ज्ञानरूपी धन िचय
करने से बार –बार अभ्यास में आने पर बढ़ता
ही रहता है

श्लोकगायन :-

नाप्स्त विद्यासमं चक्षुः नाप्स्त सत्यसमं तपः |
नाप्स्त रागसमं दःु िं नाप्स्त त्यागसमं सुिम ् ||३||

अन्ियः –

विद्यासमम ् चक्षुः न अप्स्त,सत्यसमम ् तपः न
अप्स्त |रागसमम ् दःु िम ् न अप्स्त,त्यागसमम ्
सि
ु म ् न अप्स्त |

अथयः –
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है |सत्य से बढ़कर
कोई तप नहीं है |राग के समान कोई दि
ु नहीं है
और न ही त्याग के समान कोई सुि है |

विशेष विचारणीय :-

विद्या ज्ञान का तत
ृ ीय नेत्र है |सत्याचरण ही परम तप
है |मोह ही दःु ि का कारण है और िैराग्य ही सुि है |

श्लोकगायन:न तथा शीतलसशललं न चन्दनरसो न शीतला छाया |
प्रह्लादयतत च परु
ु षं यथा मधरु भावषणी िाणी ||४||
अन्ियः –
यथा मधरु भावषणी िाणी परु
ु षं प्रह्लादयतत तथा
शीतल-सशललम ् न | चन्दनरसः न, शीतला छाया
च न (प्रह्लादयतत) |
अथयः –
जैसे मधुरतायुक्त िाणी मनुष्य को आनन्द प्रदान
करती है िैसा आनन्द न तो शीतल जल से शमलता
है , न चन्दन के लेप से प्रातत होता है और न ही
िक्ष
ृ की शीतल छाया से प्रातत हो सकता है |
विशेष विचारणीय :मधरु िाणी ही हृदय को आनप्न्दत कर सकती है |

श्लोकगायन :शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि ग्रहणं धारणं तथा |
ऊहापोहाथयविज्ञानं तत्त्िज्ञानं च धीगण
ु ा:
||५||
• अन्िय:• शश्र
ु ष
ू ा,श्रिणम ् च एि,ग्रहणं तथा धारणम ्
,ऊह –अपोह ,अथयविज्ञानम ्, तत्त्िज्ञानम ् च
धीगण
ु ा:(सप्न्त)|
• अथय :• सन
ु ने की इच्छा,ध्यान से सन
ु ना,समझना
तथा उस समझ को मन के अन्दर धारण
करना (संभालकर रिना )गण
ु -दोषों को
तकय-वितकय द्िारा वििेचना करना,अथय का
तनश्चय पण
ू य ज्ञान तथा मल
ू अथय और गढ़

रहस्य को जानना |ये सभी बुवि के गुण है |
• विशेष विचारणीय :• ये षड् गुण बुविविकास के हे तु तथा बुवि में
सतत स्थापनीय हैं|

श्लोक गायन :• माधय
य ाक्षरव्यप्क्तःपदच्छे दस्तु सस्
ु म
ु िर:|
• धैयं लयसमथं च षडेते पाठकगण
ु ाः||६||
• अन्ियः :माधय
य ्,अक्षरव्यप्क्तः,पदच्छे दः तु
ु म
सस्
ं ् लयसमथयम ् च एते षट्
ु िरः,धैयम
पाठकगण
ु ाःसप्न्त |
अथय:मधरु ता,अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण,पदों
का विभाजन (सप्न्ध ि समास)सन्
ु दर ि
शुि उच्चारण,गम्भीरता और लय से
युक्त होना |
ये सभी छह गण
ु पढ़ने िाले विद्याथी
के कहे गये हैं |
विशेष विचारणीय :अध्येता को इन सभीषड् गण
ु ों का
आश्रय परमािश्यक है ,क्यों्क इससे
पाठक को लय के आनन्द के साथ –
साथ साथयक पररणाम प्रातत होते हैं |

श्लोक गायन :आचायायत्पादमादत्ते पादं शशष्यः स्िमेधया |
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचाररशभ:||७||
अन्िय :शशष्य:आचायायत ् पादम ् आदत्ते |शशष्यः
स्िमेधया पादम ् आदत्ते,शशष्यः कालेन पादम ्
आदत्ते,शशष्यः सब्रह्मचाररशभः पादम ् आदत्ते |
अथयः –
शशष्य चतुथांश १/४ गुरु से,चतुथांश अपनी बुवि
के बल से, चतथ
ु ांश समय और पररप्स्थतत से
तथा चतथ
ु ांश अपने सहपाठयों से ज्ञानाजयन
करता है |
विशेष विचारणीय :मनष्ु य के जीिन में ज्ञानाजयन करने के ये चार
मख्
ु य स्रोत हैं |

श्लोकगायन :अनद्
ु िेगकरं िाक्यं सत्यं वप्रयहहतं च यत ् |
स्िाध्यायाभ्यसनं चैि िाङ्मयं तपः उच्यते
||८||
अन्ियः :यत ् िाक्यम ् अनद्
ु िेगकरं सत्यम ् वप्रयहहतम ्
च (तथा ) स्िाध्याय-अभ्यसनम ् च एि
िाङ्मयं तपः उच्यते |
अथय: :ऐसा िाक्य जो दःु ि उत्पन्न करने िाला न
हो, सत्ययक्
ु त हो, मधरु और हहतकारी हो
तथा तनत्य स्िाध्याय अभ्यास करना, ये
सभी िाणी के तप कहे गये हैं|
विशेष विचारणीय :सत्य, वप्रय और दःु िरहहत मधरु िाणी
काप्रयोग करना ्कसी कहठन तप से कम
नहीं |

७.समह
ू विभाजन :(१) िाल्मी्किगयः (प्रश्नोत्तराखण)(क) ‘अम्भोजः’ इतत शब्दस्य पयायय: कः ?
(ि) ‘शरत्कालीनः’ इतत कस्य अथयः ?
(ग) सरस्ित्याः कोशः कथं िधयते ?
(घ) कीदृशी िाणी परु
ु षं प्रसन्नं करोतत?
(ङ) बि
ु ेः प्रथमः गण
ु ः कः ?
उत्तर
• कमलम ्
• शारदशब्दस्य
• व्ययात ्
• मधुरिाणी
• शुश्रूषा

(२)व्यासिर्व: - (प्रश्नननमावणम):(क)भारत्याःकोशः अपि
ू ःय |

(ि)पठने अक्षराणां स्पष्टता स्यात ् |
(ग)शश्र
ु ष
ू ायाः अथयः ‘श्रोतुशमच्छा’ |

(घ)रागस्य विलोमः त्यागः |
(ङ)पठनस्य षड्गण
ु ाः |

उत्तर
कस्या:?
केषाम ् ?
का ?
कस्य ?
कतत गुणा: ?

(४)िरद्िाजिर्वः – ( परस्परमेलनम):शीतला
िाणी
िाङ्मयम ्
सशललम ्
शीतलम ्
छाया
विद्यासमम ्
तपः
अपि
शारदा
ू ःय
मधुरभावषणी
कोशः
वप्रयहहतम ्
िाक्यम ्
सियदा
चक्षुः

८.मल्
ू यांकनम ् :-

ज्ञानात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)’शरत्कालीनः’इतत शब्दस्य को अथयः ?
(ि)बुिेः कतत गण
ु ाः ?

उत्तर:
(१)

शरद् ऋतु:
(२) षड् गण
ु ा:

बोधात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)रागशब्दस्य विलोमः कः?
(विराग:)
(ि)शारदाशब्दस्य पयायय:कः? (भारती)

अनप्र
ु योगात्मकस्तरीय प्रश्न :-

(क)शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि--० अत्र
श्लोकाधाररतं सोपानं तनमीयताम |
(ि)तपः,सियदा,माधय
य ,सशललम

् एषाम ्
ु म
शब्दानां िाक्यतनमायणं ्रिययताम|

गह
ृ काययम ् :(१)अन्िय सहहत श्लोकाथय शलिें |
(२)िाणी के महत्त्ि पर प्रकाश डालें
|
(३) पाठ पर आधाररत तत
ृ ीया ि
पञ्चम्यन्त पदों का चयन करें |
प्रस्तुतत :
१॰ डॉ॰ अरुण कुमार शमाय
(शास्त्री)9418666205
रा॰ि॰मा॰पा॰(छात्र) सोलन (हह॰प्र॰)
२॰ डॉ॰ भप
ू ेन्र मोहन शमाय
(शास्त्री)9418488280
रा॰उ॰पा॰ मल
ू बरी(दे िनगर)
शशमला(हह॰प्र॰)


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पाठयोजना
कक्षा—दशमी
विषय:—संस्कृतम ्

उपविषय:-िाङ्मयं तपः

१.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य
व्यिहार में प्रयोग कर पाने की
क्षमता का विकास|
(२) संस्कृत शब्दों का िाचन कर
पाना|
(३) संस्कृत के
विकास करना |

प्रतत

रुचच

का

२.विशिष्ट उद्देश्य :(१) श्लोकों का सस्िर िाचन करना
|
(२) आलङ्काररक विधा का ज्ञान |
(३) मधुर िाणी एिं िाणी के तप
की महत्ता का ज्ञान |
(४) मेधा तथा पाठक के गुणों को
बतलाना |
(५) शशष्य द्िारा ज्ञान प्राप्तत के
स्रोतों का ज्ञान |

३.पूिज्ञ
व ान परीक्षण :(१)

सबसे प्राचीन विश्ि
साहहत्य के ग्रन्थ का नाम
बताये ?

(२) िाणी एिं विद्या की दे िी
कौन सी है ?
(३)िाणी की महत्ता के विषय
में आप क्या जानते हो ?
(४)मधुर एिं कटु िाणी का
क्या प्रभाि पड़ता है ?

४. अशिप्रेरणा:“िाण्येका

समलङ्करोतत परु
ु षं
या संस्कृता धाययते”

विषयिस्तु की उद्घोषणा

आज हम िाणी के
गण
ु ों के महत्त्ि पर
प्रकाश डालेंगे |
हमारा आज का
विषय है :

िाङ्मयं तपः

प्रस्तुतीकरण
श्लोकों का सस्िर आदशयिाचन
ि अनुकरणिाचन
श्लोकगायन –

शारदा शारदाम्भोजिदना िदनाम्बुजे |
सियदा सियदाऽस्माकं सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ्||१||

अन्िय:-

शारद-अम्भोज –िदना सियदा शारदा अस्माकम ् िदनअम्बुजे सियदा सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ् |

अथयः –

शरद ऋतु में खिलने िाले कमल के समान सन्
ु दर मि

िाली सब कुछ प्रदान करने िाले मां सरस्िती हमारे
मि
ु रूपी कमल में हमेशा अपने संपण
ू य िजाने सहहत
तनिास करे |
विशेष विचारणीय :सरस्िती विद्यारूपी कोष को सदा हमारे पास रिकर
हमें ज्ञानिान बनाये |

श्लोकगायन

:अपूिःय कोऽवप कोशोऽयं विद्यते ति भारतत !
व्ययतो िवृ िमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||२ ||

अन्ियः-

भारतत ! ति अयम ् कोशः कः अवप अपि
ू ःय
विद्यते | व्ययतः िवृ िम ् आयातत, संचयात ् च
क्षयम ् आयातत |

अथय :-

हे सरस्ितत ! तेरा यह िजाना कैसा
तनराला है ? जो िचय करने से िवृ ि को प्रातत
होता है और संचचत करने से तनरन्तर क्षय को
प्रातत होता है |

विशेष विचारणीय :-

सामान्य धन िचय करने पर समातत हो जाता
है ,परन्तु सरस्िती का अद्भत
ु ज्ञानरूपी धन िचय
करने से बार –बार अभ्यास में आने पर बढ़ता
ही रहता है

श्लोकगायन :-

नाप्स्त विद्यासमं चक्षुः नाप्स्त सत्यसमं तपः |
नाप्स्त रागसमं दःु िं नाप्स्त त्यागसमं सुिम ् ||३||

अन्ियः –

विद्यासमम ् चक्षुः न अप्स्त,सत्यसमम ् तपः न
अप्स्त |रागसमम ् दःु िम ् न अप्स्त,त्यागसमम ्
सि
ु म ् न अप्स्त |

अथयः –
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है |सत्य से बढ़कर
कोई तप नहीं है |राग के समान कोई दि
ु नहीं है
और न ही त्याग के समान कोई सुि है |

विशेष विचारणीय :-

विद्या ज्ञान का तत
ृ ीय नेत्र है |सत्याचरण ही परम तप
है |मोह ही दःु ि का कारण है और िैराग्य ही सुि है |

श्लोकगायन:न तथा शीतलसशललं न चन्दनरसो न शीतला छाया |
प्रह्लादयतत च परु
ु षं यथा मधरु भावषणी िाणी ||४||
अन्ियः –
यथा मधरु भावषणी िाणी परु
ु षं प्रह्लादयतत तथा
शीतल-सशललम ् न | चन्दनरसः न, शीतला छाया
च न (प्रह्लादयतत) |
अथयः –
जैसे मधुरतायुक्त िाणी मनुष्य को आनन्द प्रदान
करती है िैसा आनन्द न तो शीतल जल से शमलता
है , न चन्दन के लेप से प्रातत होता है और न ही
िक्ष
ृ की शीतल छाया से प्रातत हो सकता है |
विशेष विचारणीय :मधरु िाणी ही हृदय को आनप्न्दत कर सकती है |

श्लोकगायन :शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि ग्रहणं धारणं तथा |
ऊहापोहाथयविज्ञानं तत्त्िज्ञानं च धीगण
ु ा:
||५||
• अन्िय:• शश्र
ु ष
ू ा,श्रिणम ् च एि,ग्रहणं तथा धारणम ्
,ऊह –अपोह ,अथयविज्ञानम ्, तत्त्िज्ञानम ् च
धीगण
ु ा:(सप्न्त)|
• अथय :• सन
ु ने की इच्छा,ध्यान से सन
ु ना,समझना
तथा उस समझ को मन के अन्दर धारण
करना (संभालकर रिना )गण
ु -दोषों को
तकय-वितकय द्िारा वििेचना करना,अथय का
तनश्चय पण
ू य ज्ञान तथा मल
ू अथय और गढ़

रहस्य को जानना |ये सभी बुवि के गुण है |
• विशेष विचारणीय :• ये षड् गुण बुविविकास के हे तु तथा बुवि में
सतत स्थापनीय हैं|

श्लोक गायन :• माधय
य ाक्षरव्यप्क्तःपदच्छे दस्तु सस्
ु म
ु िर:|
• धैयं लयसमथं च षडेते पाठकगण
ु ाः||६||
• अन्ियः :माधय
य ्,अक्षरव्यप्क्तः,पदच्छे दः तु
ु म
सस्
ं ् लयसमथयम ् च एते षट्
ु िरः,धैयम
पाठकगण
ु ाःसप्न्त |
अथय:मधरु ता,अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण,पदों
का विभाजन (सप्न्ध ि समास)सन्
ु दर ि
शुि उच्चारण,गम्भीरता और लय से
युक्त होना |
ये सभी छह गण
ु पढ़ने िाले विद्याथी
के कहे गये हैं |
विशेष विचारणीय :अध्येता को इन सभीषड् गण
ु ों का
आश्रय परमािश्यक है ,क्यों्क इससे
पाठक को लय के आनन्द के साथ –
साथ साथयक पररणाम प्रातत होते हैं |

श्लोक गायन :आचायायत्पादमादत्ते पादं शशष्यः स्िमेधया |
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचाररशभ:||७||
अन्िय :शशष्य:आचायायत ् पादम ् आदत्ते |शशष्यः
स्िमेधया पादम ् आदत्ते,शशष्यः कालेन पादम ्
आदत्ते,शशष्यः सब्रह्मचाररशभः पादम ् आदत्ते |
अथयः –
शशष्य चतुथांश १/४ गुरु से,चतुथांश अपनी बुवि
के बल से, चतथ
ु ांश समय और पररप्स्थतत से
तथा चतथ
ु ांश अपने सहपाठयों से ज्ञानाजयन
करता है |
विशेष विचारणीय :मनष्ु य के जीिन में ज्ञानाजयन करने के ये चार
मख्
ु य स्रोत हैं |

श्लोकगायन :अनद्
ु िेगकरं िाक्यं सत्यं वप्रयहहतं च यत ् |
स्िाध्यायाभ्यसनं चैि िाङ्मयं तपः उच्यते
||८||
अन्ियः :यत ् िाक्यम ् अनद्
ु िेगकरं सत्यम ् वप्रयहहतम ्
च (तथा ) स्िाध्याय-अभ्यसनम ् च एि
िाङ्मयं तपः उच्यते |
अथय: :ऐसा िाक्य जो दःु ि उत्पन्न करने िाला न
हो, सत्ययक्
ु त हो, मधरु और हहतकारी हो
तथा तनत्य स्िाध्याय अभ्यास करना, ये
सभी िाणी के तप कहे गये हैं|
विशेष विचारणीय :सत्य, वप्रय और दःु िरहहत मधरु िाणी
काप्रयोग करना ्कसी कहठन तप से कम
नहीं |

७.समह
ू विभाजन :(१) िाल्मी्किगयः (प्रश्नोत्तराखण)(क) ‘अम्भोजः’ इतत शब्दस्य पयायय: कः ?
(ि) ‘शरत्कालीनः’ इतत कस्य अथयः ?
(ग) सरस्ित्याः कोशः कथं िधयते ?
(घ) कीदृशी िाणी परु
ु षं प्रसन्नं करोतत?
(ङ) बि
ु ेः प्रथमः गण
ु ः कः ?
उत्तर
• कमलम ्
• शारदशब्दस्य
• व्ययात ्
• मधुरिाणी
• शुश्रूषा

(२)व्यासिर्व: - (प्रश्नननमावणम):(क)भारत्याःकोशः अपि
ू ःय |

(ि)पठने अक्षराणां स्पष्टता स्यात ् |
(ग)शश्र
ु ष
ू ायाः अथयः ‘श्रोतुशमच्छा’ |

(घ)रागस्य विलोमः त्यागः |
(ङ)पठनस्य षड्गण
ु ाः |

उत्तर
कस्या:?
केषाम ् ?
का ?
कस्य ?
कतत गुणा: ?

(४)िरद्िाजिर्वः – ( परस्परमेलनम):शीतला
िाणी
िाङ्मयम ्
सशललम ्
शीतलम ्
छाया
विद्यासमम ्
तपः
अपि
शारदा
ू ःय
मधुरभावषणी
कोशः
वप्रयहहतम ्
िाक्यम ्
सियदा
चक्षुः

८.मल्
ू यांकनम ् :-

ज्ञानात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)’शरत्कालीनः’इतत शब्दस्य को अथयः ?
(ि)बुिेः कतत गण
ु ाः ?

उत्तर:
(१)

शरद् ऋतु:
(२) षड् गण
ु ा:

बोधात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)रागशब्दस्य विलोमः कः?
(विराग:)
(ि)शारदाशब्दस्य पयायय:कः? (भारती)

अनप्र
ु योगात्मकस्तरीय प्रश्न :-

(क)शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि--० अत्र
श्लोकाधाररतं सोपानं तनमीयताम |
(ि)तपः,सियदा,माधय
य ,सशललम

् एषाम ्
ु म
शब्दानां िाक्यतनमायणं ्रिययताम|

गह
ृ काययम ् :(१)अन्िय सहहत श्लोकाथय शलिें |
(२)िाणी के महत्त्ि पर प्रकाश डालें
|
(३) पाठ पर आधाररत तत
ृ ीया ि
पञ्चम्यन्त पदों का चयन करें |
प्रस्तुतत :
१॰ डॉ॰ अरुण कुमार शमाय
(शास्त्री)9418666205
रा॰ि॰मा॰पा॰(छात्र) सोलन (हह॰प्र॰)
२॰ डॉ॰ भप
ू ेन्र मोहन शमाय
(शास्त्री)9418488280
रा॰उ॰पा॰ मल
ू बरी(दे िनगर)
शशमला(हह॰प्र॰)


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पाठयोजना
कक्षा—दशमी
विषय:—संस्कृतम ्

उपविषय:-िाङ्मयं तपः

१.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य
व्यिहार में प्रयोग कर पाने की
क्षमता का विकास|
(२) संस्कृत शब्दों का िाचन कर
पाना|
(३) संस्कृत के
विकास करना |

प्रतत

रुचच

का

२.विशिष्ट उद्देश्य :(१) श्लोकों का सस्िर िाचन करना
|
(२) आलङ्काररक विधा का ज्ञान |
(३) मधुर िाणी एिं िाणी के तप
की महत्ता का ज्ञान |
(४) मेधा तथा पाठक के गुणों को
बतलाना |
(५) शशष्य द्िारा ज्ञान प्राप्तत के
स्रोतों का ज्ञान |

३.पूिज्ञ
व ान परीक्षण :(१)

सबसे प्राचीन विश्ि
साहहत्य के ग्रन्थ का नाम
बताये ?

(२) िाणी एिं विद्या की दे िी
कौन सी है ?
(३)िाणी की महत्ता के विषय
में आप क्या जानते हो ?
(४)मधुर एिं कटु िाणी का
क्या प्रभाि पड़ता है ?

४. अशिप्रेरणा:“िाण्येका

समलङ्करोतत परु
ु षं
या संस्कृता धाययते”

विषयिस्तु की उद्घोषणा

आज हम िाणी के
गण
ु ों के महत्त्ि पर
प्रकाश डालेंगे |
हमारा आज का
विषय है :

िाङ्मयं तपः

प्रस्तुतीकरण
श्लोकों का सस्िर आदशयिाचन
ि अनुकरणिाचन
श्लोकगायन –

शारदा शारदाम्भोजिदना िदनाम्बुजे |
सियदा सियदाऽस्माकं सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ्||१||

अन्िय:-

शारद-अम्भोज –िदना सियदा शारदा अस्माकम ् िदनअम्बुजे सियदा सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ् |

अथयः –

शरद ऋतु में खिलने िाले कमल के समान सन्
ु दर मि

िाली सब कुछ प्रदान करने िाले मां सरस्िती हमारे
मि
ु रूपी कमल में हमेशा अपने संपण
ू य िजाने सहहत
तनिास करे |
विशेष विचारणीय :सरस्िती विद्यारूपी कोष को सदा हमारे पास रिकर
हमें ज्ञानिान बनाये |

श्लोकगायन

:अपूिःय कोऽवप कोशोऽयं विद्यते ति भारतत !
व्ययतो िवृ िमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||२ ||

अन्ियः-

भारतत ! ति अयम ् कोशः कः अवप अपि
ू ःय
विद्यते | व्ययतः िवृ िम ् आयातत, संचयात ् च
क्षयम ् आयातत |

अथय :-

हे सरस्ितत ! तेरा यह िजाना कैसा
तनराला है ? जो िचय करने से िवृ ि को प्रातत
होता है और संचचत करने से तनरन्तर क्षय को
प्रातत होता है |

विशेष विचारणीय :-

सामान्य धन िचय करने पर समातत हो जाता
है ,परन्तु सरस्िती का अद्भत
ु ज्ञानरूपी धन िचय
करने से बार –बार अभ्यास में आने पर बढ़ता
ही रहता है

श्लोकगायन :-

नाप्स्त विद्यासमं चक्षुः नाप्स्त सत्यसमं तपः |
नाप्स्त रागसमं दःु िं नाप्स्त त्यागसमं सुिम ् ||३||

अन्ियः –

विद्यासमम ् चक्षुः न अप्स्त,सत्यसमम ् तपः न
अप्स्त |रागसमम ् दःु िम ् न अप्स्त,त्यागसमम ्
सि
ु म ् न अप्स्त |

अथयः –
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है |सत्य से बढ़कर
कोई तप नहीं है |राग के समान कोई दि
ु नहीं है
और न ही त्याग के समान कोई सुि है |

विशेष विचारणीय :-

विद्या ज्ञान का तत
ृ ीय नेत्र है |सत्याचरण ही परम तप
है |मोह ही दःु ि का कारण है और िैराग्य ही सुि है |

श्लोकगायन:न तथा शीतलसशललं न चन्दनरसो न शीतला छाया |
प्रह्लादयतत च परु
ु षं यथा मधरु भावषणी िाणी ||४||
अन्ियः –
यथा मधरु भावषणी िाणी परु
ु षं प्रह्लादयतत तथा
शीतल-सशललम ् न | चन्दनरसः न, शीतला छाया
च न (प्रह्लादयतत) |
अथयः –
जैसे मधुरतायुक्त िाणी मनुष्य को आनन्द प्रदान
करती है िैसा आनन्द न तो शीतल जल से शमलता
है , न चन्दन के लेप से प्रातत होता है और न ही
िक्ष
ृ की शीतल छाया से प्रातत हो सकता है |
विशेष विचारणीय :मधरु िाणी ही हृदय को आनप्न्दत कर सकती है |

श्लोकगायन :शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि ग्रहणं धारणं तथा |
ऊहापोहाथयविज्ञानं तत्त्िज्ञानं च धीगण
ु ा:
||५||
• अन्िय:• शश्र
ु ष
ू ा,श्रिणम ् च एि,ग्रहणं तथा धारणम ्
,ऊह –अपोह ,अथयविज्ञानम ्, तत्त्िज्ञानम ् च
धीगण
ु ा:(सप्न्त)|
• अथय :• सन
ु ने की इच्छा,ध्यान से सन
ु ना,समझना
तथा उस समझ को मन के अन्दर धारण
करना (संभालकर रिना )गण
ु -दोषों को
तकय-वितकय द्िारा वििेचना करना,अथय का
तनश्चय पण
ू य ज्ञान तथा मल
ू अथय और गढ़

रहस्य को जानना |ये सभी बुवि के गुण है |
• विशेष विचारणीय :• ये षड् गुण बुविविकास के हे तु तथा बुवि में
सतत स्थापनीय हैं|

श्लोक गायन :• माधय
य ाक्षरव्यप्क्तःपदच्छे दस्तु सस्
ु म
ु िर:|
• धैयं लयसमथं च षडेते पाठकगण
ु ाः||६||
• अन्ियः :माधय
य ्,अक्षरव्यप्क्तः,पदच्छे दः तु
ु म
सस्
ं ् लयसमथयम ् च एते षट्
ु िरः,धैयम
पाठकगण
ु ाःसप्न्त |
अथय:मधरु ता,अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण,पदों
का विभाजन (सप्न्ध ि समास)सन्
ु दर ि
शुि उच्चारण,गम्भीरता और लय से
युक्त होना |
ये सभी छह गण
ु पढ़ने िाले विद्याथी
के कहे गये हैं |
विशेष विचारणीय :अध्येता को इन सभीषड् गण
ु ों का
आश्रय परमािश्यक है ,क्यों्क इससे
पाठक को लय के आनन्द के साथ –
साथ साथयक पररणाम प्रातत होते हैं |

श्लोक गायन :आचायायत्पादमादत्ते पादं शशष्यः स्िमेधया |
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचाररशभ:||७||
अन्िय :शशष्य:आचायायत ् पादम ् आदत्ते |शशष्यः
स्िमेधया पादम ् आदत्ते,शशष्यः कालेन पादम ्
आदत्ते,शशष्यः सब्रह्मचाररशभः पादम ् आदत्ते |
अथयः –
शशष्य चतुथांश १/४ गुरु से,चतुथांश अपनी बुवि
के बल से, चतथ
ु ांश समय और पररप्स्थतत से
तथा चतथ
ु ांश अपने सहपाठयों से ज्ञानाजयन
करता है |
विशेष विचारणीय :मनष्ु य के जीिन में ज्ञानाजयन करने के ये चार
मख्
ु य स्रोत हैं |

श्लोकगायन :अनद्
ु िेगकरं िाक्यं सत्यं वप्रयहहतं च यत ् |
स्िाध्यायाभ्यसनं चैि िाङ्मयं तपः उच्यते
||८||
अन्ियः :यत ् िाक्यम ् अनद्
ु िेगकरं सत्यम ् वप्रयहहतम ्
च (तथा ) स्िाध्याय-अभ्यसनम ् च एि
िाङ्मयं तपः उच्यते |
अथय: :ऐसा िाक्य जो दःु ि उत्पन्न करने िाला न
हो, सत्ययक्
ु त हो, मधरु और हहतकारी हो
तथा तनत्य स्िाध्याय अभ्यास करना, ये
सभी िाणी के तप कहे गये हैं|
विशेष विचारणीय :सत्य, वप्रय और दःु िरहहत मधरु िाणी
काप्रयोग करना ्कसी कहठन तप से कम
नहीं |

७.समह
ू विभाजन :(१) िाल्मी्किगयः (प्रश्नोत्तराखण)(क) ‘अम्भोजः’ इतत शब्दस्य पयायय: कः ?
(ि) ‘शरत्कालीनः’ इतत कस्य अथयः ?
(ग) सरस्ित्याः कोशः कथं िधयते ?
(घ) कीदृशी िाणी परु
ु षं प्रसन्नं करोतत?
(ङ) बि
ु ेः प्रथमः गण
ु ः कः ?
उत्तर
• कमलम ्
• शारदशब्दस्य
• व्ययात ्
• मधुरिाणी
• शुश्रूषा

(२)व्यासिर्व: - (प्रश्नननमावणम):(क)भारत्याःकोशः अपि
ू ःय |

(ि)पठने अक्षराणां स्पष्टता स्यात ् |
(ग)शश्र
ु ष
ू ायाः अथयः ‘श्रोतुशमच्छा’ |

(घ)रागस्य विलोमः त्यागः |
(ङ)पठनस्य षड्गण
ु ाः |

उत्तर
कस्या:?
केषाम ् ?
का ?
कस्य ?
कतत गुणा: ?

(४)िरद्िाजिर्वः – ( परस्परमेलनम):शीतला
िाणी
िाङ्मयम ्
सशललम ्
शीतलम ्
छाया
विद्यासमम ्
तपः
अपि
शारदा
ू ःय
मधुरभावषणी
कोशः
वप्रयहहतम ्
िाक्यम ्
सियदा
चक्षुः

८.मल्
ू यांकनम ् :-

ज्ञानात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)’शरत्कालीनः’इतत शब्दस्य को अथयः ?
(ि)बुिेः कतत गण
ु ाः ?

उत्तर:
(१)

शरद् ऋतु:
(२) षड् गण
ु ा:

बोधात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)रागशब्दस्य विलोमः कः?
(विराग:)
(ि)शारदाशब्दस्य पयायय:कः? (भारती)

अनप्र
ु योगात्मकस्तरीय प्रश्न :-

(क)शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि--० अत्र
श्लोकाधाररतं सोपानं तनमीयताम |
(ि)तपः,सियदा,माधय
य ,सशललम

् एषाम ्
ु म
शब्दानां िाक्यतनमायणं ्रिययताम|

गह
ृ काययम ् :(१)अन्िय सहहत श्लोकाथय शलिें |
(२)िाणी के महत्त्ि पर प्रकाश डालें
|
(३) पाठ पर आधाररत तत
ृ ीया ि
पञ्चम्यन्त पदों का चयन करें |
प्रस्तुतत :
१॰ डॉ॰ अरुण कुमार शमाय
(शास्त्री)9418666205
रा॰ि॰मा॰पा॰(छात्र) सोलन (हह॰प्र॰)
२॰ डॉ॰ भप
ू ेन्र मोहन शमाय
(शास्त्री)9418488280
रा॰उ॰पा॰ मल
ू बरी(दे िनगर)
शशमला(हह॰प्र॰)


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पाठयोजना
कक्षा—दशमी
विषय:—संस्कृतम ्

उपविषय:-िाङ्मयं तपः

१.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य
व्यिहार में प्रयोग कर पाने की
क्षमता का विकास|
(२) संस्कृत शब्दों का िाचन कर
पाना|
(३) संस्कृत के
विकास करना |

प्रतत

रुचच

का

२.विशिष्ट उद्देश्य :(१) श्लोकों का सस्िर िाचन करना
|
(२) आलङ्काररक विधा का ज्ञान |
(३) मधुर िाणी एिं िाणी के तप
की महत्ता का ज्ञान |
(४) मेधा तथा पाठक के गुणों को
बतलाना |
(५) शशष्य द्िारा ज्ञान प्राप्तत के
स्रोतों का ज्ञान |

३.पूिज्ञ
व ान परीक्षण :(१)

सबसे प्राचीन विश्ि
साहहत्य के ग्रन्थ का नाम
बताये ?

(२) िाणी एिं विद्या की दे िी
कौन सी है ?
(३)िाणी की महत्ता के विषय
में आप क्या जानते हो ?
(४)मधुर एिं कटु िाणी का
क्या प्रभाि पड़ता है ?

४. अशिप्रेरणा:“िाण्येका

समलङ्करोतत परु
ु षं
या संस्कृता धाययते”

विषयिस्तु की उद्घोषणा

आज हम िाणी के
गण
ु ों के महत्त्ि पर
प्रकाश डालेंगे |
हमारा आज का
विषय है :

िाङ्मयं तपः

प्रस्तुतीकरण
श्लोकों का सस्िर आदशयिाचन
ि अनुकरणिाचन
श्लोकगायन –

शारदा शारदाम्भोजिदना िदनाम्बुजे |
सियदा सियदाऽस्माकं सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ्||१||

अन्िय:-

शारद-अम्भोज –िदना सियदा शारदा अस्माकम ् िदनअम्बुजे सियदा सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ् |

अथयः –

शरद ऋतु में खिलने िाले कमल के समान सन्
ु दर मि

िाली सब कुछ प्रदान करने िाले मां सरस्िती हमारे
मि
ु रूपी कमल में हमेशा अपने संपण
ू य िजाने सहहत
तनिास करे |
विशेष विचारणीय :सरस्िती विद्यारूपी कोष को सदा हमारे पास रिकर
हमें ज्ञानिान बनाये |

श्लोकगायन

:अपूिःय कोऽवप कोशोऽयं विद्यते ति भारतत !
व्ययतो िवृ िमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||२ ||

अन्ियः-

भारतत ! ति अयम ् कोशः कः अवप अपि
ू ःय
विद्यते | व्ययतः िवृ िम ् आयातत, संचयात ् च
क्षयम ् आयातत |

अथय :-

हे सरस्ितत ! तेरा यह िजाना कैसा
तनराला है ? जो िचय करने से िवृ ि को प्रातत
होता है और संचचत करने से तनरन्तर क्षय को
प्रातत होता है |

विशेष विचारणीय :-

सामान्य धन िचय करने पर समातत हो जाता
है ,परन्तु सरस्िती का अद्भत
ु ज्ञानरूपी धन िचय
करने से बार –बार अभ्यास में आने पर बढ़ता
ही रहता है

श्लोकगायन :-

नाप्स्त विद्यासमं चक्षुः नाप्स्त सत्यसमं तपः |
नाप्स्त रागसमं दःु िं नाप्स्त त्यागसमं सुिम ् ||३||

अन्ियः –

विद्यासमम ् चक्षुः न अप्स्त,सत्यसमम ् तपः न
अप्स्त |रागसमम ् दःु िम ् न अप्स्त,त्यागसमम ्
सि
ु म ् न अप्स्त |

अथयः –
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है |सत्य से बढ़कर
कोई तप नहीं है |राग के समान कोई दि
ु नहीं है
और न ही त्याग के समान कोई सुि है |

विशेष विचारणीय :-

विद्या ज्ञान का तत
ृ ीय नेत्र है |सत्याचरण ही परम तप
है |मोह ही दःु ि का कारण है और िैराग्य ही सुि है |

श्लोकगायन:न तथा शीतलसशललं न चन्दनरसो न शीतला छाया |
प्रह्लादयतत च परु
ु षं यथा मधरु भावषणी िाणी ||४||
अन्ियः –
यथा मधरु भावषणी िाणी परु
ु षं प्रह्लादयतत तथा
शीतल-सशललम ् न | चन्दनरसः न, शीतला छाया
च न (प्रह्लादयतत) |
अथयः –
जैसे मधुरतायुक्त िाणी मनुष्य को आनन्द प्रदान
करती है िैसा आनन्द न तो शीतल जल से शमलता
है , न चन्दन के लेप से प्रातत होता है और न ही
िक्ष
ृ की शीतल छाया से प्रातत हो सकता है |
विशेष विचारणीय :मधरु िाणी ही हृदय को आनप्न्दत कर सकती है |

श्लोकगायन :शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि ग्रहणं धारणं तथा |
ऊहापोहाथयविज्ञानं तत्त्िज्ञानं च धीगण
ु ा:
||५||
• अन्िय:• शश्र
ु ष
ू ा,श्रिणम ् च एि,ग्रहणं तथा धारणम ्
,ऊह –अपोह ,अथयविज्ञानम ्, तत्त्िज्ञानम ् च
धीगण
ु ा:(सप्न्त)|
• अथय :• सन
ु ने की इच्छा,ध्यान से सन
ु ना,समझना
तथा उस समझ को मन के अन्दर धारण
करना (संभालकर रिना )गण
ु -दोषों को
तकय-वितकय द्िारा वििेचना करना,अथय का
तनश्चय पण
ू य ज्ञान तथा मल
ू अथय और गढ़

रहस्य को जानना |ये सभी बुवि के गुण है |
• विशेष विचारणीय :• ये षड् गुण बुविविकास के हे तु तथा बुवि में
सतत स्थापनीय हैं|

श्लोक गायन :• माधय
य ाक्षरव्यप्क्तःपदच्छे दस्तु सस्
ु म
ु िर:|
• धैयं लयसमथं च षडेते पाठकगण
ु ाः||६||
• अन्ियः :माधय
य ्,अक्षरव्यप्क्तः,पदच्छे दः तु
ु म
सस्
ं ् लयसमथयम ् च एते षट्
ु िरः,धैयम
पाठकगण
ु ाःसप्न्त |
अथय:मधरु ता,अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण,पदों
का विभाजन (सप्न्ध ि समास)सन्
ु दर ि
शुि उच्चारण,गम्भीरता और लय से
युक्त होना |
ये सभी छह गण
ु पढ़ने िाले विद्याथी
के कहे गये हैं |
विशेष विचारणीय :अध्येता को इन सभीषड् गण
ु ों का
आश्रय परमािश्यक है ,क्यों्क इससे
पाठक को लय के आनन्द के साथ –
साथ साथयक पररणाम प्रातत होते हैं |

श्लोक गायन :आचायायत्पादमादत्ते पादं शशष्यः स्िमेधया |
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचाररशभ:||७||
अन्िय :शशष्य:आचायायत ् पादम ् आदत्ते |शशष्यः
स्िमेधया पादम ् आदत्ते,शशष्यः कालेन पादम ्
आदत्ते,शशष्यः सब्रह्मचाररशभः पादम ् आदत्ते |
अथयः –
शशष्य चतुथांश १/४ गुरु से,चतुथांश अपनी बुवि
के बल से, चतथ
ु ांश समय और पररप्स्थतत से
तथा चतथ
ु ांश अपने सहपाठयों से ज्ञानाजयन
करता है |
विशेष विचारणीय :मनष्ु य के जीिन में ज्ञानाजयन करने के ये चार
मख्
ु य स्रोत हैं |

श्लोकगायन :अनद्
ु िेगकरं िाक्यं सत्यं वप्रयहहतं च यत ् |
स्िाध्यायाभ्यसनं चैि िाङ्मयं तपः उच्यते
||८||
अन्ियः :यत ् िाक्यम ् अनद्
ु िेगकरं सत्यम ् वप्रयहहतम ्
च (तथा ) स्िाध्याय-अभ्यसनम ् च एि
िाङ्मयं तपः उच्यते |
अथय: :ऐसा िाक्य जो दःु ि उत्पन्न करने िाला न
हो, सत्ययक्
ु त हो, मधरु और हहतकारी हो
तथा तनत्य स्िाध्याय अभ्यास करना, ये
सभी िाणी के तप कहे गये हैं|
विशेष विचारणीय :सत्य, वप्रय और दःु िरहहत मधरु िाणी
काप्रयोग करना ्कसी कहठन तप से कम
नहीं |

७.समह
ू विभाजन :(१) िाल्मी्किगयः (प्रश्नोत्तराखण)(क) ‘अम्भोजः’ इतत शब्दस्य पयायय: कः ?
(ि) ‘शरत्कालीनः’ इतत कस्य अथयः ?
(ग) सरस्ित्याः कोशः कथं िधयते ?
(घ) कीदृशी िाणी परु
ु षं प्रसन्नं करोतत?
(ङ) बि
ु ेः प्रथमः गण
ु ः कः ?
उत्तर
• कमलम ्
• शारदशब्दस्य
• व्ययात ्
• मधुरिाणी
• शुश्रूषा

(२)व्यासिर्व: - (प्रश्नननमावणम):(क)भारत्याःकोशः अपि
ू ःय |

(ि)पठने अक्षराणां स्पष्टता स्यात ् |
(ग)शश्र
ु ष
ू ायाः अथयः ‘श्रोतुशमच्छा’ |

(घ)रागस्य विलोमः त्यागः |
(ङ)पठनस्य षड्गण
ु ाः |

उत्तर
कस्या:?
केषाम ् ?
का ?
कस्य ?
कतत गुणा: ?

(४)िरद्िाजिर्वः – ( परस्परमेलनम):शीतला
िाणी
िाङ्मयम ्
सशललम ्
शीतलम ्
छाया
विद्यासमम ्
तपः
अपि
शारदा
ू ःय
मधुरभावषणी
कोशः
वप्रयहहतम ्
िाक्यम ्
सियदा
चक्षुः

८.मल्
ू यांकनम ् :-

ज्ञानात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)’शरत्कालीनः’इतत शब्दस्य को अथयः ?
(ि)बुिेः कतत गण
ु ाः ?

उत्तर:
(१)

शरद् ऋतु:
(२) षड् गण
ु ा:

बोधात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)रागशब्दस्य विलोमः कः?
(विराग:)
(ि)शारदाशब्दस्य पयायय:कः? (भारती)

अनप्र
ु योगात्मकस्तरीय प्रश्न :-

(क)शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि--० अत्र
श्लोकाधाररतं सोपानं तनमीयताम |
(ि)तपः,सियदा,माधय
य ,सशललम

् एषाम ्
ु म
शब्दानां िाक्यतनमायणं ्रिययताम|

गह
ृ काययम ् :(१)अन्िय सहहत श्लोकाथय शलिें |
(२)िाणी के महत्त्ि पर प्रकाश डालें
|
(३) पाठ पर आधाररत तत
ृ ीया ि
पञ्चम्यन्त पदों का चयन करें |
प्रस्तुतत :
१॰ डॉ॰ अरुण कुमार शमाय
(शास्त्री)9418666205
रा॰ि॰मा॰पा॰(छात्र) सोलन (हह॰प्र॰)
२॰ डॉ॰ भप
ू ेन्र मोहन शमाय
(शास्त्री)9418488280
रा॰उ॰पा॰ मल
ू बरी(दे िनगर)
शशमला(हह॰प्र॰)


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पाठयोजना
कक्षा—दशमी
विषय:—संस्कृतम ्

उपविषय:-िाङ्मयं तपः

१.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य
व्यिहार में प्रयोग कर पाने की
क्षमता का विकास|
(२) संस्कृत शब्दों का िाचन कर
पाना|
(३) संस्कृत के
विकास करना |

प्रतत

रुचच

का

२.विशिष्ट उद्देश्य :(१) श्लोकों का सस्िर िाचन करना
|
(२) आलङ्काररक विधा का ज्ञान |
(३) मधुर िाणी एिं िाणी के तप
की महत्ता का ज्ञान |
(४) मेधा तथा पाठक के गुणों को
बतलाना |
(५) शशष्य द्िारा ज्ञान प्राप्तत के
स्रोतों का ज्ञान |

३.पूिज्ञ
व ान परीक्षण :(१)

सबसे प्राचीन विश्ि
साहहत्य के ग्रन्थ का नाम
बताये ?

(२) िाणी एिं विद्या की दे िी
कौन सी है ?
(३)िाणी की महत्ता के विषय
में आप क्या जानते हो ?
(४)मधुर एिं कटु िाणी का
क्या प्रभाि पड़ता है ?

४. अशिप्रेरणा:“िाण्येका

समलङ्करोतत परु
ु षं
या संस्कृता धाययते”

विषयिस्तु की उद्घोषणा

आज हम िाणी के
गण
ु ों के महत्त्ि पर
प्रकाश डालेंगे |
हमारा आज का
विषय है :

िाङ्मयं तपः

प्रस्तुतीकरण
श्लोकों का सस्िर आदशयिाचन
ि अनुकरणिाचन
श्लोकगायन –

शारदा शारदाम्भोजिदना िदनाम्बुजे |
सियदा सियदाऽस्माकं सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ्||१||

अन्िय:-

शारद-अम्भोज –िदना सियदा शारदा अस्माकम ् िदनअम्बुजे सियदा सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ् |

अथयः –

शरद ऋतु में खिलने िाले कमल के समान सन्
ु दर मि

िाली सब कुछ प्रदान करने िाले मां सरस्िती हमारे
मि
ु रूपी कमल में हमेशा अपने संपण
ू य िजाने सहहत
तनिास करे |
विशेष विचारणीय :सरस्िती विद्यारूपी कोष को सदा हमारे पास रिकर
हमें ज्ञानिान बनाये |

श्लोकगायन

:अपूिःय कोऽवप कोशोऽयं विद्यते ति भारतत !
व्ययतो िवृ िमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||२ ||

अन्ियः-

भारतत ! ति अयम ् कोशः कः अवप अपि
ू ःय
विद्यते | व्ययतः िवृ िम ् आयातत, संचयात ् च
क्षयम ् आयातत |

अथय :-

हे सरस्ितत ! तेरा यह िजाना कैसा
तनराला है ? जो िचय करने से िवृ ि को प्रातत
होता है और संचचत करने से तनरन्तर क्षय को
प्रातत होता है |

विशेष विचारणीय :-

सामान्य धन िचय करने पर समातत हो जाता
है ,परन्तु सरस्िती का अद्भत
ु ज्ञानरूपी धन िचय
करने से बार –बार अभ्यास में आने पर बढ़ता
ही रहता है

श्लोकगायन :-

नाप्स्त विद्यासमं चक्षुः नाप्स्त सत्यसमं तपः |
नाप्स्त रागसमं दःु िं नाप्स्त त्यागसमं सुिम ् ||३||

अन्ियः –

विद्यासमम ् चक्षुः न अप्स्त,सत्यसमम ् तपः न
अप्स्त |रागसमम ् दःु िम ् न अप्स्त,त्यागसमम ्
सि
ु म ् न अप्स्त |

अथयः –
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है |सत्य से बढ़कर
कोई तप नहीं है |राग के समान कोई दि
ु नहीं है
और न ही त्याग के समान कोई सुि है |

विशेष विचारणीय :-

विद्या ज्ञान का तत
ृ ीय नेत्र है |सत्याचरण ही परम तप
है |मोह ही दःु ि का कारण है और िैराग्य ही सुि है |

श्लोकगायन:न तथा शीतलसशललं न चन्दनरसो न शीतला छाया |
प्रह्लादयतत च परु
ु षं यथा मधरु भावषणी िाणी ||४||
अन्ियः –
यथा मधरु भावषणी िाणी परु
ु षं प्रह्लादयतत तथा
शीतल-सशललम ् न | चन्दनरसः न, शीतला छाया
च न (प्रह्लादयतत) |
अथयः –
जैसे मधुरतायुक्त िाणी मनुष्य को आनन्द प्रदान
करती है िैसा आनन्द न तो शीतल जल से शमलता
है , न चन्दन के लेप से प्रातत होता है और न ही
िक्ष
ृ की शीतल छाया से प्रातत हो सकता है |
विशेष विचारणीय :मधरु िाणी ही हृदय को आनप्न्दत कर सकती है |

श्लोकगायन :शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि ग्रहणं धारणं तथा |
ऊहापोहाथयविज्ञानं तत्त्िज्ञानं च धीगण
ु ा:
||५||
• अन्िय:• शश्र
ु ष
ू ा,श्रिणम ् च एि,ग्रहणं तथा धारणम ्
,ऊह –अपोह ,अथयविज्ञानम ्, तत्त्िज्ञानम ् च
धीगण
ु ा:(सप्न्त)|
• अथय :• सन
ु ने की इच्छा,ध्यान से सन
ु ना,समझना
तथा उस समझ को मन के अन्दर धारण
करना (संभालकर रिना )गण
ु -दोषों को
तकय-वितकय द्िारा वििेचना करना,अथय का
तनश्चय पण
ू य ज्ञान तथा मल
ू अथय और गढ़

रहस्य को जानना |ये सभी बुवि के गुण है |
• विशेष विचारणीय :• ये षड् गुण बुविविकास के हे तु तथा बुवि में
सतत स्थापनीय हैं|

श्लोक गायन :• माधय
य ाक्षरव्यप्क्तःपदच्छे दस्तु सस्
ु म
ु िर:|
• धैयं लयसमथं च षडेते पाठकगण
ु ाः||६||
• अन्ियः :माधय
य ्,अक्षरव्यप्क्तः,पदच्छे दः तु
ु म
सस्
ं ् लयसमथयम ् च एते षट्
ु िरः,धैयम
पाठकगण
ु ाःसप्न्त |
अथय:मधरु ता,अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण,पदों
का विभाजन (सप्न्ध ि समास)सन्
ु दर ि
शुि उच्चारण,गम्भीरता और लय से
युक्त होना |
ये सभी छह गण
ु पढ़ने िाले विद्याथी
के कहे गये हैं |
विशेष विचारणीय :अध्येता को इन सभीषड् गण
ु ों का
आश्रय परमािश्यक है ,क्यों्क इससे
पाठक को लय के आनन्द के साथ –
साथ साथयक पररणाम प्रातत होते हैं |

श्लोक गायन :आचायायत्पादमादत्ते पादं शशष्यः स्िमेधया |
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचाररशभ:||७||
अन्िय :शशष्य:आचायायत ् पादम ् आदत्ते |शशष्यः
स्िमेधया पादम ् आदत्ते,शशष्यः कालेन पादम ्
आदत्ते,शशष्यः सब्रह्मचाररशभः पादम ् आदत्ते |
अथयः –
शशष्य चतुथांश १/४ गुरु से,चतुथांश अपनी बुवि
के बल से, चतथ
ु ांश समय और पररप्स्थतत से
तथा चतथ
ु ांश अपने सहपाठयों से ज्ञानाजयन
करता है |
विशेष विचारणीय :मनष्ु य के जीिन में ज्ञानाजयन करने के ये चार
मख्
ु य स्रोत हैं |

श्लोकगायन :अनद्
ु िेगकरं िाक्यं सत्यं वप्रयहहतं च यत ् |
स्िाध्यायाभ्यसनं चैि िाङ्मयं तपः उच्यते
||८||
अन्ियः :यत ् िाक्यम ् अनद्
ु िेगकरं सत्यम ् वप्रयहहतम ्
च (तथा ) स्िाध्याय-अभ्यसनम ् च एि
िाङ्मयं तपः उच्यते |
अथय: :ऐसा िाक्य जो दःु ि उत्पन्न करने िाला न
हो, सत्ययक्
ु त हो, मधरु और हहतकारी हो
तथा तनत्य स्िाध्याय अभ्यास करना, ये
सभी िाणी के तप कहे गये हैं|
विशेष विचारणीय :सत्य, वप्रय और दःु िरहहत मधरु िाणी
काप्रयोग करना ्कसी कहठन तप से कम
नहीं |

७.समह
ू विभाजन :(१) िाल्मी्किगयः (प्रश्नोत्तराखण)(क) ‘अम्भोजः’ इतत शब्दस्य पयायय: कः ?
(ि) ‘शरत्कालीनः’ इतत कस्य अथयः ?
(ग) सरस्ित्याः कोशः कथं िधयते ?
(घ) कीदृशी िाणी परु
ु षं प्रसन्नं करोतत?
(ङ) बि
ु ेः प्रथमः गण
ु ः कः ?
उत्तर
• कमलम ्
• शारदशब्दस्य
• व्ययात ्
• मधुरिाणी
• शुश्रूषा

(२)व्यासिर्व: - (प्रश्नननमावणम):(क)भारत्याःकोशः अपि
ू ःय |

(ि)पठने अक्षराणां स्पष्टता स्यात ् |
(ग)शश्र
ु ष
ू ायाः अथयः ‘श्रोतुशमच्छा’ |

(घ)रागस्य विलोमः त्यागः |
(ङ)पठनस्य षड्गण
ु ाः |

उत्तर
कस्या:?
केषाम ् ?
का ?
कस्य ?
कतत गुणा: ?

(४)िरद्िाजिर्वः – ( परस्परमेलनम):शीतला
िाणी
िाङ्मयम ्
सशललम ्
शीतलम ्
छाया
विद्यासमम ्
तपः
अपि
शारदा
ू ःय
मधुरभावषणी
कोशः
वप्रयहहतम ्
िाक्यम ्
सियदा
चक्षुः

८.मल्
ू यांकनम ् :-

ज्ञानात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)’शरत्कालीनः’इतत शब्दस्य को अथयः ?
(ि)बुिेः कतत गण
ु ाः ?

उत्तर:
(१)

शरद् ऋतु:
(२) षड् गण
ु ा:

बोधात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)रागशब्दस्य विलोमः कः?
(विराग:)
(ि)शारदाशब्दस्य पयायय:कः? (भारती)

अनप्र
ु योगात्मकस्तरीय प्रश्न :-

(क)शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि--० अत्र
श्लोकाधाररतं सोपानं तनमीयताम |
(ि)तपः,सियदा,माधय
य ,सशललम

् एषाम ्
ु म
शब्दानां िाक्यतनमायणं ्रिययताम|

गह
ृ काययम ् :(१)अन्िय सहहत श्लोकाथय शलिें |
(२)िाणी के महत्त्ि पर प्रकाश डालें
|
(३) पाठ पर आधाररत तत
ृ ीया ि
पञ्चम्यन्त पदों का चयन करें |
प्रस्तुतत :
१॰ डॉ॰ अरुण कुमार शमाय
(शास्त्री)9418666205
रा॰ि॰मा॰पा॰(छात्र) सोलन (हह॰प्र॰)
२॰ डॉ॰ भप
ू ेन्र मोहन शमाय
(शास्त्री)9418488280
रा॰उ॰पा॰ मल
ू बरी(दे िनगर)
शशमला(हह॰प्र॰)


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पाठयोजना
कक्षा—दशमी
विषय:—संस्कृतम ्

उपविषय:-िाङ्मयं तपः

१.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य
व्यिहार में प्रयोग कर पाने की
क्षमता का विकास|
(२) संस्कृत शब्दों का िाचन कर
पाना|
(३) संस्कृत के
विकास करना |

प्रतत

रुचच

का

२.विशिष्ट उद्देश्य :(१) श्लोकों का सस्िर िाचन करना
|
(२) आलङ्काररक विधा का ज्ञान |
(३) मधुर िाणी एिं िाणी के तप
की महत्ता का ज्ञान |
(४) मेधा तथा पाठक के गुणों को
बतलाना |
(५) शशष्य द्िारा ज्ञान प्राप्तत के
स्रोतों का ज्ञान |

३.पूिज्ञ
व ान परीक्षण :(१)

सबसे प्राचीन विश्ि
साहहत्य के ग्रन्थ का नाम
बताये ?

(२) िाणी एिं विद्या की दे िी
कौन सी है ?
(३)िाणी की महत्ता के विषय
में आप क्या जानते हो ?
(४)मधुर एिं कटु िाणी का
क्या प्रभाि पड़ता है ?

४. अशिप्रेरणा:“िाण्येका

समलङ्करोतत परु
ु षं
या संस्कृता धाययते”

विषयिस्तु की उद्घोषणा

आज हम िाणी के
गण
ु ों के महत्त्ि पर
प्रकाश डालेंगे |
हमारा आज का
विषय है :

िाङ्मयं तपः

प्रस्तुतीकरण
श्लोकों का सस्िर आदशयिाचन
ि अनुकरणिाचन
श्लोकगायन –

शारदा शारदाम्भोजिदना िदनाम्बुजे |
सियदा सियदाऽस्माकं सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ्||१||

अन्िय:-

शारद-अम्भोज –िदना सियदा शारदा अस्माकम ् िदनअम्बुजे सियदा सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ् |

अथयः –

शरद ऋतु में खिलने िाले कमल के समान सन्
ु दर मि

िाली सब कुछ प्रदान करने िाले मां सरस्िती हमारे
मि
ु रूपी कमल में हमेशा अपने संपण
ू य िजाने सहहत
तनिास करे |
विशेष विचारणीय :सरस्िती विद्यारूपी कोष को सदा हमारे पास रिकर
हमें ज्ञानिान बनाये |

श्लोकगायन

:अपूिःय कोऽवप कोशोऽयं विद्यते ति भारतत !
व्ययतो िवृ िमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||२ ||

अन्ियः-

भारतत ! ति अयम ् कोशः कः अवप अपि
ू ःय
विद्यते | व्ययतः िवृ िम ् आयातत, संचयात ् च
क्षयम ् आयातत |

अथय :-

हे सरस्ितत ! तेरा यह िजाना कैसा
तनराला है ? जो िचय करने से िवृ ि को प्रातत
होता है और संचचत करने से तनरन्तर क्षय को
प्रातत होता है |

विशेष विचारणीय :-

सामान्य धन िचय करने पर समातत हो जाता
है ,परन्तु सरस्िती का अद्भत
ु ज्ञानरूपी धन िचय
करने से बार –बार अभ्यास में आने पर बढ़ता
ही रहता है

श्लोकगायन :-

नाप्स्त विद्यासमं चक्षुः नाप्स्त सत्यसमं तपः |
नाप्स्त रागसमं दःु िं नाप्स्त त्यागसमं सुिम ् ||३||

अन्ियः –

विद्यासमम ् चक्षुः न अप्स्त,सत्यसमम ् तपः न
अप्स्त |रागसमम ् दःु िम ् न अप्स्त,त्यागसमम ्
सि
ु म ् न अप्स्त |

अथयः –
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है |सत्य से बढ़कर
कोई तप नहीं है |राग के समान कोई दि
ु नहीं है
और न ही त्याग के समान कोई सुि है |

विशेष विचारणीय :-

विद्या ज्ञान का तत
ृ ीय नेत्र है |सत्याचरण ही परम तप
है |मोह ही दःु ि का कारण है और िैराग्य ही सुि है |

श्लोकगायन:न तथा शीतलसशललं न चन्दनरसो न शीतला छाया |
प्रह्लादयतत च परु
ु षं यथा मधरु भावषणी िाणी ||४||
अन्ियः –
यथा मधरु भावषणी िाणी परु
ु षं प्रह्लादयतत तथा
शीतल-सशललम ् न | चन्दनरसः न, शीतला छाया
च न (प्रह्लादयतत) |
अथयः –
जैसे मधुरतायुक्त िाणी मनुष्य को आनन्द प्रदान
करती है िैसा आनन्द न तो शीतल जल से शमलता
है , न चन्दन के लेप से प्रातत होता है और न ही
िक्ष
ृ की शीतल छाया से प्रातत हो सकता है |
विशेष विचारणीय :मधरु िाणी ही हृदय को आनप्न्दत कर सकती है |

श्लोकगायन :शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि ग्रहणं धारणं तथा |
ऊहापोहाथयविज्ञानं तत्त्िज्ञानं च धीगण
ु ा:
||५||
• अन्िय:• शश्र
ु ष
ू ा,श्रिणम ् च एि,ग्रहणं तथा धारणम ्
,ऊह –अपोह ,अथयविज्ञानम ्, तत्त्िज्ञानम ् च
धीगण
ु ा:(सप्न्त)|
• अथय :• सन
ु ने की इच्छा,ध्यान से सन
ु ना,समझना
तथा उस समझ को मन के अन्दर धारण
करना (संभालकर रिना )गण
ु -दोषों को
तकय-वितकय द्िारा वििेचना करना,अथय का
तनश्चय पण
ू य ज्ञान तथा मल
ू अथय और गढ़

रहस्य को जानना |ये सभी बुवि के गुण है |
• विशेष विचारणीय :• ये षड् गुण बुविविकास के हे तु तथा बुवि में
सतत स्थापनीय हैं|

श्लोक गायन :• माधय
य ाक्षरव्यप्क्तःपदच्छे दस्तु सस्
ु म
ु िर:|
• धैयं लयसमथं च षडेते पाठकगण
ु ाः||६||
• अन्ियः :माधय
य ्,अक्षरव्यप्क्तः,पदच्छे दः तु
ु म
सस्
ं ् लयसमथयम ् च एते षट्
ु िरः,धैयम
पाठकगण
ु ाःसप्न्त |
अथय:मधरु ता,अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण,पदों
का विभाजन (सप्न्ध ि समास)सन्
ु दर ि
शुि उच्चारण,गम्भीरता और लय से
युक्त होना |
ये सभी छह गण
ु पढ़ने िाले विद्याथी
के कहे गये हैं |
विशेष विचारणीय :अध्येता को इन सभीषड् गण
ु ों का
आश्रय परमािश्यक है ,क्यों्क इससे
पाठक को लय के आनन्द के साथ –
साथ साथयक पररणाम प्रातत होते हैं |

श्लोक गायन :आचायायत्पादमादत्ते पादं शशष्यः स्िमेधया |
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचाररशभ:||७||
अन्िय :शशष्य:आचायायत ् पादम ् आदत्ते |शशष्यः
स्िमेधया पादम ् आदत्ते,शशष्यः कालेन पादम ्
आदत्ते,शशष्यः सब्रह्मचाररशभः पादम ् आदत्ते |
अथयः –
शशष्य चतुथांश १/४ गुरु से,चतुथांश अपनी बुवि
के बल से, चतथ
ु ांश समय और पररप्स्थतत से
तथा चतथ
ु ांश अपने सहपाठयों से ज्ञानाजयन
करता है |
विशेष विचारणीय :मनष्ु य के जीिन में ज्ञानाजयन करने के ये चार
मख्
ु य स्रोत हैं |

श्लोकगायन :अनद्
ु िेगकरं िाक्यं सत्यं वप्रयहहतं च यत ् |
स्िाध्यायाभ्यसनं चैि िाङ्मयं तपः उच्यते
||८||
अन्ियः :यत ् िाक्यम ् अनद्
ु िेगकरं सत्यम ् वप्रयहहतम ्
च (तथा ) स्िाध्याय-अभ्यसनम ् च एि
िाङ्मयं तपः उच्यते |
अथय: :ऐसा िाक्य जो दःु ि उत्पन्न करने िाला न
हो, सत्ययक्
ु त हो, मधरु और हहतकारी हो
तथा तनत्य स्िाध्याय अभ्यास करना, ये
सभी िाणी के तप कहे गये हैं|
विशेष विचारणीय :सत्य, वप्रय और दःु िरहहत मधरु िाणी
काप्रयोग करना ्कसी कहठन तप से कम
नहीं |

७.समह
ू विभाजन :(१) िाल्मी्किगयः (प्रश्नोत्तराखण)(क) ‘अम्भोजः’ इतत शब्दस्य पयायय: कः ?
(ि) ‘शरत्कालीनः’ इतत कस्य अथयः ?
(ग) सरस्ित्याः कोशः कथं िधयते ?
(घ) कीदृशी िाणी परु
ु षं प्रसन्नं करोतत?
(ङ) बि
ु ेः प्रथमः गण
ु ः कः ?
उत्तर
• कमलम ्
• शारदशब्दस्य
• व्ययात ्
• मधुरिाणी
• शुश्रूषा

(२)व्यासिर्व: - (प्रश्नननमावणम):(क)भारत्याःकोशः अपि
ू ःय |

(ि)पठने अक्षराणां स्पष्टता स्यात ् |
(ग)शश्र
ु ष
ू ायाः अथयः ‘श्रोतुशमच्छा’ |

(घ)रागस्य विलोमः त्यागः |
(ङ)पठनस्य षड्गण
ु ाः |

उत्तर
कस्या:?
केषाम ् ?
का ?
कस्य ?
कतत गुणा: ?

(४)िरद्िाजिर्वः – ( परस्परमेलनम):शीतला
िाणी
िाङ्मयम ्
सशललम ्
शीतलम ्
छाया
विद्यासमम ्
तपः
अपि
शारदा
ू ःय
मधुरभावषणी
कोशः
वप्रयहहतम ्
िाक्यम ्
सियदा
चक्षुः

८.मल्
ू यांकनम ् :-

ज्ञानात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)’शरत्कालीनः’इतत शब्दस्य को अथयः ?
(ि)बुिेः कतत गण
ु ाः ?

उत्तर:
(१)

शरद् ऋतु:
(२) षड् गण
ु ा:

बोधात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)रागशब्दस्य विलोमः कः?
(विराग:)
(ि)शारदाशब्दस्य पयायय:कः? (भारती)

अनप्र
ु योगात्मकस्तरीय प्रश्न :-

(क)शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि--० अत्र
श्लोकाधाररतं सोपानं तनमीयताम |
(ि)तपः,सियदा,माधय
य ,सशललम

् एषाम ्
ु म
शब्दानां िाक्यतनमायणं ्रिययताम|

गह
ृ काययम ् :(१)अन्िय सहहत श्लोकाथय शलिें |
(२)िाणी के महत्त्ि पर प्रकाश डालें
|
(३) पाठ पर आधाररत तत
ृ ीया ि
पञ्चम्यन्त पदों का चयन करें |
प्रस्तुतत :
१॰ डॉ॰ अरुण कुमार शमाय
(शास्त्री)9418666205
रा॰ि॰मा॰पा॰(छात्र) सोलन (हह॰प्र॰)
२॰ डॉ॰ भप
ू ेन्र मोहन शमाय
(शास्त्री)9418488280
रा॰उ॰पा॰ मल
ू बरी(दे िनगर)
शशमला(हह॰प्र॰)


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पाठयोजना
कक्षा—दशमी
विषय:—संस्कृतम ्

उपविषय:-िाङ्मयं तपः

१.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य
व्यिहार में प्रयोग कर पाने की
क्षमता का विकास|
(२) संस्कृत शब्दों का िाचन कर
पाना|
(३) संस्कृत के
विकास करना |

प्रतत

रुचच

का

२.विशिष्ट उद्देश्य :(१) श्लोकों का सस्िर िाचन करना
|
(२) आलङ्काररक विधा का ज्ञान |
(३) मधुर िाणी एिं िाणी के तप
की महत्ता का ज्ञान |
(४) मेधा तथा पाठक के गुणों को
बतलाना |
(५) शशष्य द्िारा ज्ञान प्राप्तत के
स्रोतों का ज्ञान |

३.पूिज्ञ
व ान परीक्षण :(१)

सबसे प्राचीन विश्ि
साहहत्य के ग्रन्थ का नाम
बताये ?

(२) िाणी एिं विद्या की दे िी
कौन सी है ?
(३)िाणी की महत्ता के विषय
में आप क्या जानते हो ?
(४)मधुर एिं कटु िाणी का
क्या प्रभाि पड़ता है ?

४. अशिप्रेरणा:“िाण्येका

समलङ्करोतत परु
ु षं
या संस्कृता धाययते”

विषयिस्तु की उद्घोषणा

आज हम िाणी के
गण
ु ों के महत्त्ि पर
प्रकाश डालेंगे |
हमारा आज का
विषय है :

िाङ्मयं तपः

प्रस्तुतीकरण
श्लोकों का सस्िर आदशयिाचन
ि अनुकरणिाचन
श्लोकगायन –

शारदा शारदाम्भोजिदना िदनाम्बुजे |
सियदा सियदाऽस्माकं सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ्||१||

अन्िय:-

शारद-अम्भोज –िदना सियदा शारदा अस्माकम ् िदनअम्बुजे सियदा सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ् |

अथयः –

शरद ऋतु में खिलने िाले कमल के समान सन्
ु दर मि

िाली सब कुछ प्रदान करने िाले मां सरस्िती हमारे
मि
ु रूपी कमल में हमेशा अपने संपण
ू य िजाने सहहत
तनिास करे |
विशेष विचारणीय :सरस्िती विद्यारूपी कोष को सदा हमारे पास रिकर
हमें ज्ञानिान बनाये |

श्लोकगायन

:अपूिःय कोऽवप कोशोऽयं विद्यते ति भारतत !
व्ययतो िवृ िमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||२ ||

अन्ियः-

भारतत ! ति अयम ् कोशः कः अवप अपि
ू ःय
विद्यते | व्ययतः िवृ िम ् आयातत, संचयात ् च
क्षयम ् आयातत |

अथय :-

हे सरस्ितत ! तेरा यह िजाना कैसा
तनराला है ? जो िचय करने से िवृ ि को प्रातत
होता है और संचचत करने से तनरन्तर क्षय को
प्रातत होता है |

विशेष विचारणीय :-

सामान्य धन िचय करने पर समातत हो जाता
है ,परन्तु सरस्िती का अद्भत
ु ज्ञानरूपी धन िचय
करने से बार –बार अभ्यास में आने पर बढ़ता
ही रहता है

श्लोकगायन :-

नाप्स्त विद्यासमं चक्षुः नाप्स्त सत्यसमं तपः |
नाप्स्त रागसमं दःु िं नाप्स्त त्यागसमं सुिम ् ||३||

अन्ियः –

विद्यासमम ् चक्षुः न अप्स्त,सत्यसमम ् तपः न
अप्स्त |रागसमम ् दःु िम ् न अप्स्त,त्यागसमम ्
सि
ु म ् न अप्स्त |

अथयः –
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है |सत्य से बढ़कर
कोई तप नहीं है |राग के समान कोई दि
ु नहीं है
और न ही त्याग के समान कोई सुि है |

विशेष विचारणीय :-

विद्या ज्ञान का तत
ृ ीय नेत्र है |सत्याचरण ही परम तप
है |मोह ही दःु ि का कारण है और िैराग्य ही सुि है |

श्लोकगायन:न तथा शीतलसशललं न चन्दनरसो न शीतला छाया |
प्रह्लादयतत च परु
ु षं यथा मधरु भावषणी िाणी ||४||
अन्ियः –
यथा मधरु भावषणी िाणी परु
ु षं प्रह्लादयतत तथा
शीतल-सशललम ् न | चन्दनरसः न, शीतला छाया
च न (प्रह्लादयतत) |
अथयः –
जैसे मधुरतायुक्त िाणी मनुष्य को आनन्द प्रदान
करती है िैसा आनन्द न तो शीतल जल से शमलता
है , न चन्दन के लेप से प्रातत होता है और न ही
िक्ष
ृ की शीतल छाया से प्रातत हो सकता है |
विशेष विचारणीय :मधरु िाणी ही हृदय को आनप्न्दत कर सकती है |

श्लोकगायन :शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि ग्रहणं धारणं तथा |
ऊहापोहाथयविज्ञानं तत्त्िज्ञानं च धीगण
ु ा:
||५||
• अन्िय:• शश्र
ु ष
ू ा,श्रिणम ् च एि,ग्रहणं तथा धारणम ्
,ऊह –अपोह ,अथयविज्ञानम ्, तत्त्िज्ञानम ् च
धीगण
ु ा:(सप्न्त)|
• अथय :• सन
ु ने की इच्छा,ध्यान से सन
ु ना,समझना
तथा उस समझ को मन के अन्दर धारण
करना (संभालकर रिना )गण
ु -दोषों को
तकय-वितकय द्िारा वििेचना करना,अथय का
तनश्चय पण
ू य ज्ञान तथा मल
ू अथय और गढ़

रहस्य को जानना |ये सभी बुवि के गुण है |
• विशेष विचारणीय :• ये षड् गुण बुविविकास के हे तु तथा बुवि में
सतत स्थापनीय हैं|

श्लोक गायन :• माधय
य ाक्षरव्यप्क्तःपदच्छे दस्तु सस्
ु म
ु िर:|
• धैयं लयसमथं च षडेते पाठकगण
ु ाः||६||
• अन्ियः :माधय
य ्,अक्षरव्यप्क्तः,पदच्छे दः तु
ु म
सस्
ं ् लयसमथयम ् च एते षट्
ु िरः,धैयम
पाठकगण
ु ाःसप्न्त |
अथय:मधरु ता,अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण,पदों
का विभाजन (सप्न्ध ि समास)सन्
ु दर ि
शुि उच्चारण,गम्भीरता और लय से
युक्त होना |
ये सभी छह गण
ु पढ़ने िाले विद्याथी
के कहे गये हैं |
विशेष विचारणीय :अध्येता को इन सभीषड् गण
ु ों का
आश्रय परमािश्यक है ,क्यों्क इससे
पाठक को लय के आनन्द के साथ –
साथ साथयक पररणाम प्रातत होते हैं |

श्लोक गायन :आचायायत्पादमादत्ते पादं शशष्यः स्िमेधया |
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचाररशभ:||७||
अन्िय :शशष्य:आचायायत ् पादम ् आदत्ते |शशष्यः
स्िमेधया पादम ् आदत्ते,शशष्यः कालेन पादम ्
आदत्ते,शशष्यः सब्रह्मचाररशभः पादम ् आदत्ते |
अथयः –
शशष्य चतुथांश १/४ गुरु से,चतुथांश अपनी बुवि
के बल से, चतथ
ु ांश समय और पररप्स्थतत से
तथा चतथ
ु ांश अपने सहपाठयों से ज्ञानाजयन
करता है |
विशेष विचारणीय :मनष्ु य के जीिन में ज्ञानाजयन करने के ये चार
मख्
ु य स्रोत हैं |

श्लोकगायन :अनद्
ु िेगकरं िाक्यं सत्यं वप्रयहहतं च यत ् |
स्िाध्यायाभ्यसनं चैि िाङ्मयं तपः उच्यते
||८||
अन्ियः :यत ् िाक्यम ् अनद्
ु िेगकरं सत्यम ् वप्रयहहतम ्
च (तथा ) स्िाध्याय-अभ्यसनम ् च एि
िाङ्मयं तपः उच्यते |
अथय: :ऐसा िाक्य जो दःु ि उत्पन्न करने िाला न
हो, सत्ययक्
ु त हो, मधरु और हहतकारी हो
तथा तनत्य स्िाध्याय अभ्यास करना, ये
सभी िाणी के तप कहे गये हैं|
विशेष विचारणीय :सत्य, वप्रय और दःु िरहहत मधरु िाणी
काप्रयोग करना ्कसी कहठन तप से कम
नहीं |

७.समह
ू विभाजन :(१) िाल्मी्किगयः (प्रश्नोत्तराखण)(क) ‘अम्भोजः’ इतत शब्दस्य पयायय: कः ?
(ि) ‘शरत्कालीनः’ इतत कस्य अथयः ?
(ग) सरस्ित्याः कोशः कथं िधयते ?
(घ) कीदृशी िाणी परु
ु षं प्रसन्नं करोतत?
(ङ) बि
ु ेः प्रथमः गण
ु ः कः ?
उत्तर
• कमलम ्
• शारदशब्दस्य
• व्ययात ्
• मधुरिाणी
• शुश्रूषा

(२)व्यासिर्व: - (प्रश्नननमावणम):(क)भारत्याःकोशः अपि
ू ःय |

(ि)पठने अक्षराणां स्पष्टता स्यात ् |
(ग)शश्र
ु ष
ू ायाः अथयः ‘श्रोतुशमच्छा’ |

(घ)रागस्य विलोमः त्यागः |
(ङ)पठनस्य षड्गण
ु ाः |

उत्तर
कस्या:?
केषाम ् ?
का ?
कस्य ?
कतत गुणा: ?

(४)िरद्िाजिर्वः – ( परस्परमेलनम):शीतला
िाणी
िाङ्मयम ्
सशललम ्
शीतलम ्
छाया
विद्यासमम ्
तपः
अपि
शारदा
ू ःय
मधुरभावषणी
कोशः
वप्रयहहतम ्
िाक्यम ्
सियदा
चक्षुः

८.मल्
ू यांकनम ् :-

ज्ञानात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)’शरत्कालीनः’इतत शब्दस्य को अथयः ?
(ि)बुिेः कतत गण
ु ाः ?

उत्तर:
(१)

शरद् ऋतु:
(२) षड् गण
ु ा:

बोधात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)रागशब्दस्य विलोमः कः?
(विराग:)
(ि)शारदाशब्दस्य पयायय:कः? (भारती)

अनप्र
ु योगात्मकस्तरीय प्रश्न :-

(क)शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि--० अत्र
श्लोकाधाररतं सोपानं तनमीयताम |
(ि)तपः,सियदा,माधय
य ,सशललम

् एषाम ्
ु म
शब्दानां िाक्यतनमायणं ्रिययताम|

गह
ृ काययम ् :(१)अन्िय सहहत श्लोकाथय शलिें |
(२)िाणी के महत्त्ि पर प्रकाश डालें
|
(३) पाठ पर आधाररत तत
ृ ीया ि
पञ्चम्यन्त पदों का चयन करें |
प्रस्तुतत :
१॰ डॉ॰ अरुण कुमार शमाय
(शास्त्री)9418666205
रा॰ि॰मा॰पा॰(छात्र) सोलन (हह॰प्र॰)
२॰ डॉ॰ भप
ू ेन्र मोहन शमाय
(शास्त्री)9418488280
रा॰उ॰पा॰ मल
ू बरी(दे िनगर)
शशमला(हह॰प्र॰)


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पाठयोजना
कक्षा—दशमी
विषय:—संस्कृतम ्

उपविषय:-िाङ्मयं तपः

१.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य
व्यिहार में प्रयोग कर पाने की
क्षमता का विकास|
(२) संस्कृत शब्दों का िाचन कर
पाना|
(३) संस्कृत के
विकास करना |

प्रतत

रुचच

का

२.विशिष्ट उद्देश्य :(१) श्लोकों का सस्िर िाचन करना
|
(२) आलङ्काररक विधा का ज्ञान |
(३) मधुर िाणी एिं िाणी के तप
की महत्ता का ज्ञान |
(४) मेधा तथा पाठक के गुणों को
बतलाना |
(५) शशष्य द्िारा ज्ञान प्राप्तत के
स्रोतों का ज्ञान |

३.पूिज्ञ
व ान परीक्षण :(१)

सबसे प्राचीन विश्ि
साहहत्य के ग्रन्थ का नाम
बताये ?

(२) िाणी एिं विद्या की दे िी
कौन सी है ?
(३)िाणी की महत्ता के विषय
में आप क्या जानते हो ?
(४)मधुर एिं कटु िाणी का
क्या प्रभाि पड़ता है ?

४. अशिप्रेरणा:“िाण्येका

समलङ्करोतत परु
ु षं
या संस्कृता धाययते”

विषयिस्तु की उद्घोषणा

आज हम िाणी के
गण
ु ों के महत्त्ि पर
प्रकाश डालेंगे |
हमारा आज का
विषय है :

िाङ्मयं तपः

प्रस्तुतीकरण
श्लोकों का सस्िर आदशयिाचन
ि अनुकरणिाचन
श्लोकगायन –

शारदा शारदाम्भोजिदना िदनाम्बुजे |
सियदा सियदाऽस्माकं सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ्||१||

अन्िय:-

शारद-अम्भोज –िदना सियदा शारदा अस्माकम ् िदनअम्बुजे सियदा सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ् |

अथयः –

शरद ऋतु में खिलने िाले कमल के समान सन्
ु दर मि

िाली सब कुछ प्रदान करने िाले मां सरस्िती हमारे
मि
ु रूपी कमल में हमेशा अपने संपण
ू य िजाने सहहत
तनिास करे |
विशेष विचारणीय :सरस्िती विद्यारूपी कोष को सदा हमारे पास रिकर
हमें ज्ञानिान बनाये |

श्लोकगायन

:अपूिःय कोऽवप कोशोऽयं विद्यते ति भारतत !
व्ययतो िवृ िमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||२ ||

अन्ियः-

भारतत ! ति अयम ् कोशः कः अवप अपि
ू ःय
विद्यते | व्ययतः िवृ िम ् आयातत, संचयात ् च
क्षयम ् आयातत |

अथय :-

हे सरस्ितत ! तेरा यह िजाना कैसा
तनराला है ? जो िचय करने से िवृ ि को प्रातत
होता है और संचचत करने से तनरन्तर क्षय को
प्रातत होता है |

विशेष विचारणीय :-

सामान्य धन िचय करने पर समातत हो जाता
है ,परन्तु सरस्िती का अद्भत
ु ज्ञानरूपी धन िचय
करने से बार –बार अभ्यास में आने पर बढ़ता
ही रहता है

श्लोकगायन :-

नाप्स्त विद्यासमं चक्षुः नाप्स्त सत्यसमं तपः |
नाप्स्त रागसमं दःु िं नाप्स्त त्यागसमं सुिम ् ||३||

अन्ियः –

विद्यासमम ् चक्षुः न अप्स्त,सत्यसमम ् तपः न
अप्स्त |रागसमम ् दःु िम ् न अप्स्त,त्यागसमम ्
सि
ु म ् न अप्स्त |

अथयः –
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है |सत्य से बढ़कर
कोई तप नहीं है |राग के समान कोई दि
ु नहीं है
और न ही त्याग के समान कोई सुि है |

विशेष विचारणीय :-

विद्या ज्ञान का तत
ृ ीय नेत्र है |सत्याचरण ही परम तप
है |मोह ही दःु ि का कारण है और िैराग्य ही सुि है |

श्लोकगायन:न तथा शीतलसशललं न चन्दनरसो न शीतला छाया |
प्रह्लादयतत च परु
ु षं यथा मधरु भावषणी िाणी ||४||
अन्ियः –
यथा मधरु भावषणी िाणी परु
ु षं प्रह्लादयतत तथा
शीतल-सशललम ् न | चन्दनरसः न, शीतला छाया
च न (प्रह्लादयतत) |
अथयः –
जैसे मधुरतायुक्त िाणी मनुष्य को आनन्द प्रदान
करती है िैसा आनन्द न तो शीतल जल से शमलता
है , न चन्दन के लेप से प्रातत होता है और न ही
िक्ष
ृ की शीतल छाया से प्रातत हो सकता है |
विशेष विचारणीय :मधरु िाणी ही हृदय को आनप्न्दत कर सकती है |

श्लोकगायन :शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि ग्रहणं धारणं तथा |
ऊहापोहाथयविज्ञानं तत्त्िज्ञानं च धीगण
ु ा:
||५||
• अन्िय:• शश्र
ु ष
ू ा,श्रिणम ् च एि,ग्रहणं तथा धारणम ्
,ऊह –अपोह ,अथयविज्ञानम ्, तत्त्िज्ञानम ् च
धीगण
ु ा:(सप्न्त)|
• अथय :• सन
ु ने की इच्छा,ध्यान से सन
ु ना,समझना
तथा उस समझ को मन के अन्दर धारण
करना (संभालकर रिना )गण
ु -दोषों को
तकय-वितकय द्िारा वििेचना करना,अथय का
तनश्चय पण
ू य ज्ञान तथा मल
ू अथय और गढ़

रहस्य को जानना |ये सभी बुवि के गुण है |
• विशेष विचारणीय :• ये षड् गुण बुविविकास के हे तु तथा बुवि में
सतत स्थापनीय हैं|

श्लोक गायन :• माधय
य ाक्षरव्यप्क्तःपदच्छे दस्तु सस्
ु म
ु िर:|
• धैयं लयसमथं च षडेते पाठकगण
ु ाः||६||
• अन्ियः :माधय
य ्,अक्षरव्यप्क्तः,पदच्छे दः तु
ु म
सस्
ं ् लयसमथयम ् च एते षट्
ु िरः,धैयम
पाठकगण
ु ाःसप्न्त |
अथय:मधरु ता,अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण,पदों
का विभाजन (सप्न्ध ि समास)सन्
ु दर ि
शुि उच्चारण,गम्भीरता और लय से
युक्त होना |
ये सभी छह गण
ु पढ़ने िाले विद्याथी
के कहे गये हैं |
विशेष विचारणीय :अध्येता को इन सभीषड् गण
ु ों का
आश्रय परमािश्यक है ,क्यों्क इससे
पाठक को लय के आनन्द के साथ –
साथ साथयक पररणाम प्रातत होते हैं |

श्लोक गायन :आचायायत्पादमादत्ते पादं शशष्यः स्िमेधया |
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचाररशभ:||७||
अन्िय :शशष्य:आचायायत ् पादम ् आदत्ते |शशष्यः
स्िमेधया पादम ् आदत्ते,शशष्यः कालेन पादम ्
आदत्ते,शशष्यः सब्रह्मचाररशभः पादम ् आदत्ते |
अथयः –
शशष्य चतुथांश १/४ गुरु से,चतुथांश अपनी बुवि
के बल से, चतथ
ु ांश समय और पररप्स्थतत से
तथा चतथ
ु ांश अपने सहपाठयों से ज्ञानाजयन
करता है |
विशेष विचारणीय :मनष्ु य के जीिन में ज्ञानाजयन करने के ये चार
मख्
ु य स्रोत हैं |

श्लोकगायन :अनद्
ु िेगकरं िाक्यं सत्यं वप्रयहहतं च यत ् |
स्िाध्यायाभ्यसनं चैि िाङ्मयं तपः उच्यते
||८||
अन्ियः :यत ् िाक्यम ् अनद्
ु िेगकरं सत्यम ् वप्रयहहतम ्
च (तथा ) स्िाध्याय-अभ्यसनम ् च एि
िाङ्मयं तपः उच्यते |
अथय: :ऐसा िाक्य जो दःु ि उत्पन्न करने िाला न
हो, सत्ययक्
ु त हो, मधरु और हहतकारी हो
तथा तनत्य स्िाध्याय अभ्यास करना, ये
सभी िाणी के तप कहे गये हैं|
विशेष विचारणीय :सत्य, वप्रय और दःु िरहहत मधरु िाणी
काप्रयोग करना ्कसी कहठन तप से कम
नहीं |

७.समह
ू विभाजन :(१) िाल्मी्किगयः (प्रश्नोत्तराखण)(क) ‘अम्भोजः’ इतत शब्दस्य पयायय: कः ?
(ि) ‘शरत्कालीनः’ इतत कस्य अथयः ?
(ग) सरस्ित्याः कोशः कथं िधयते ?
(घ) कीदृशी िाणी परु
ु षं प्रसन्नं करोतत?
(ङ) बि
ु ेः प्रथमः गण
ु ः कः ?
उत्तर
• कमलम ्
• शारदशब्दस्य
• व्ययात ्
• मधुरिाणी
• शुश्रूषा

(२)व्यासिर्व: - (प्रश्नननमावणम):(क)भारत्याःकोशः अपि
ू ःय |

(ि)पठने अक्षराणां स्पष्टता स्यात ् |
(ग)शश्र
ु ष
ू ायाः अथयः ‘श्रोतुशमच्छा’ |

(घ)रागस्य विलोमः त्यागः |
(ङ)पठनस्य षड्गण
ु ाः |

उत्तर
कस्या:?
केषाम ् ?
का ?
कस्य ?
कतत गुणा: ?

(४)िरद्िाजिर्वः – ( परस्परमेलनम):शीतला
िाणी
िाङ्मयम ्
सशललम ्
शीतलम ्
छाया
विद्यासमम ्
तपः
अपि
शारदा
ू ःय
मधुरभावषणी
कोशः
वप्रयहहतम ्
िाक्यम ्
सियदा
चक्षुः

८.मल्
ू यांकनम ् :-

ज्ञानात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)’शरत्कालीनः’इतत शब्दस्य को अथयः ?
(ि)बुिेः कतत गण
ु ाः ?

उत्तर:
(१)

शरद् ऋतु:
(२) षड् गण
ु ा:

बोधात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)रागशब्दस्य विलोमः कः?
(विराग:)
(ि)शारदाशब्दस्य पयायय:कः? (भारती)

अनप्र
ु योगात्मकस्तरीय प्रश्न :-

(क)शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि--० अत्र
श्लोकाधाररतं सोपानं तनमीयताम |
(ि)तपः,सियदा,माधय
य ,सशललम

् एषाम ्
ु म
शब्दानां िाक्यतनमायणं ्रिययताम|

गह
ृ काययम ् :(१)अन्िय सहहत श्लोकाथय शलिें |
(२)िाणी के महत्त्ि पर प्रकाश डालें
|
(३) पाठ पर आधाररत तत
ृ ीया ि
पञ्चम्यन्त पदों का चयन करें |
प्रस्तुतत :
१॰ डॉ॰ अरुण कुमार शमाय
(शास्त्री)9418666205
रा॰ि॰मा॰पा॰(छात्र) सोलन (हह॰प्र॰)
२॰ डॉ॰ भप
ू ेन्र मोहन शमाय
(शास्त्री)9418488280
रा॰उ॰पा॰ मल
ू बरी(दे िनगर)
शशमला(हह॰प्र॰)


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पाठयोजना
कक्षा—दशमी
विषय:—संस्कृतम ्

उपविषय:-िाङ्मयं तपः

१.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य
व्यिहार में प्रयोग कर पाने की
क्षमता का विकास|
(२) संस्कृत शब्दों का िाचन कर
पाना|
(३) संस्कृत के
विकास करना |

प्रतत

रुचच

का

२.विशिष्ट उद्देश्य :(१) श्लोकों का सस्िर िाचन करना
|
(२) आलङ्काररक विधा का ज्ञान |
(३) मधुर िाणी एिं िाणी के तप
की महत्ता का ज्ञान |
(४) मेधा तथा पाठक के गुणों को
बतलाना |
(५) शशष्य द्िारा ज्ञान प्राप्तत के
स्रोतों का ज्ञान |

३.पूिज्ञ
व ान परीक्षण :(१)

सबसे प्राचीन विश्ि
साहहत्य के ग्रन्थ का नाम
बताये ?

(२) िाणी एिं विद्या की दे िी
कौन सी है ?
(३)िाणी की महत्ता के विषय
में आप क्या जानते हो ?
(४)मधुर एिं कटु िाणी का
क्या प्रभाि पड़ता है ?

४. अशिप्रेरणा:“िाण्येका

समलङ्करोतत परु
ु षं
या संस्कृता धाययते”

विषयिस्तु की उद्घोषणा

आज हम िाणी के
गण
ु ों के महत्त्ि पर
प्रकाश डालेंगे |
हमारा आज का
विषय है :

िाङ्मयं तपः

प्रस्तुतीकरण
श्लोकों का सस्िर आदशयिाचन
ि अनुकरणिाचन
श्लोकगायन –

शारदा शारदाम्भोजिदना िदनाम्बुजे |
सियदा सियदाऽस्माकं सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ्||१||

अन्िय:-

शारद-अम्भोज –िदना सियदा शारदा अस्माकम ् िदनअम्बुजे सियदा सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ् |

अथयः –

शरद ऋतु में खिलने िाले कमल के समान सन्
ु दर मि

िाली सब कुछ प्रदान करने िाले मां सरस्िती हमारे
मि
ु रूपी कमल में हमेशा अपने संपण
ू य िजाने सहहत
तनिास करे |
विशेष विचारणीय :सरस्िती विद्यारूपी कोष को सदा हमारे पास रिकर
हमें ज्ञानिान बनाये |

श्लोकगायन

:अपूिःय कोऽवप कोशोऽयं विद्यते ति भारतत !
व्ययतो िवृ िमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||२ ||

अन्ियः-

भारतत ! ति अयम ् कोशः कः अवप अपि
ू ःय
विद्यते | व्ययतः िवृ िम ् आयातत, संचयात ् च
क्षयम ् आयातत |

अथय :-

हे सरस्ितत ! तेरा यह िजाना कैसा
तनराला है ? जो िचय करने से िवृ ि को प्रातत
होता है और संचचत करने से तनरन्तर क्षय को
प्रातत होता है |

विशेष विचारणीय :-

सामान्य धन िचय करने पर समातत हो जाता
है ,परन्तु सरस्िती का अद्भत
ु ज्ञानरूपी धन िचय
करने से बार –बार अभ्यास में आने पर बढ़ता
ही रहता है

श्लोकगायन :-

नाप्स्त विद्यासमं चक्षुः नाप्स्त सत्यसमं तपः |
नाप्स्त रागसमं दःु िं नाप्स्त त्यागसमं सुिम ् ||३||

अन्ियः –

विद्यासमम ् चक्षुः न अप्स्त,सत्यसमम ् तपः न
अप्स्त |रागसमम ् दःु िम ् न अप्स्त,त्यागसमम ्
सि
ु म ् न अप्स्त |

अथयः –
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है |सत्य से बढ़कर
कोई तप नहीं है |राग के समान कोई दि
ु नहीं है
और न ही त्याग के समान कोई सुि है |

विशेष विचारणीय :-

विद्या ज्ञान का तत
ृ ीय नेत्र है |सत्याचरण ही परम तप
है |मोह ही दःु ि का कारण है और िैराग्य ही सुि है |

श्लोकगायन:न तथा शीतलसशललं न चन्दनरसो न शीतला छाया |
प्रह्लादयतत च परु
ु षं यथा मधरु भावषणी िाणी ||४||
अन्ियः –
यथा मधरु भावषणी िाणी परु
ु षं प्रह्लादयतत तथा
शीतल-सशललम ् न | चन्दनरसः न, शीतला छाया
च न (प्रह्लादयतत) |
अथयः –
जैसे मधुरतायुक्त िाणी मनुष्य को आनन्द प्रदान
करती है िैसा आनन्द न तो शीतल जल से शमलता
है , न चन्दन के लेप से प्रातत होता है और न ही
िक्ष
ृ की शीतल छाया से प्रातत हो सकता है |
विशेष विचारणीय :मधरु िाणी ही हृदय को आनप्न्दत कर सकती है |

श्लोकगायन :शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि ग्रहणं धारणं तथा |
ऊहापोहाथयविज्ञानं तत्त्िज्ञानं च धीगण
ु ा:
||५||
• अन्िय:• शश्र
ु ष
ू ा,श्रिणम ् च एि,ग्रहणं तथा धारणम ्
,ऊह –अपोह ,अथयविज्ञानम ्, तत्त्िज्ञानम ् च
धीगण
ु ा:(सप्न्त)|
• अथय :• सन
ु ने की इच्छा,ध्यान से सन
ु ना,समझना
तथा उस समझ को मन के अन्दर धारण
करना (संभालकर रिना )गण
ु -दोषों को
तकय-वितकय द्िारा वििेचना करना,अथय का
तनश्चय पण
ू य ज्ञान तथा मल
ू अथय और गढ़

रहस्य को जानना |ये सभी बुवि के गुण है |
• विशेष विचारणीय :• ये षड् गुण बुविविकास के हे तु तथा बुवि में
सतत स्थापनीय हैं|

श्लोक गायन :• माधय
य ाक्षरव्यप्क्तःपदच्छे दस्तु सस्
ु म
ु िर:|
• धैयं लयसमथं च षडेते पाठकगण
ु ाः||६||
• अन्ियः :माधय
य ्,अक्षरव्यप्क्तः,पदच्छे दः तु
ु म
सस्
ं ् लयसमथयम ् च एते षट्
ु िरः,धैयम
पाठकगण
ु ाःसप्न्त |
अथय:मधरु ता,अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण,पदों
का विभाजन (सप्न्ध ि समास)सन्
ु दर ि
शुि उच्चारण,गम्भीरता और लय से
युक्त होना |
ये सभी छह गण
ु पढ़ने िाले विद्याथी
के कहे गये हैं |
विशेष विचारणीय :अध्येता को इन सभीषड् गण
ु ों का
आश्रय परमािश्यक है ,क्यों्क इससे
पाठक को लय के आनन्द के साथ –
साथ साथयक पररणाम प्रातत होते हैं |

श्लोक गायन :आचायायत्पादमादत्ते पादं शशष्यः स्िमेधया |
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचाररशभ:||७||
अन्िय :शशष्य:आचायायत ् पादम ् आदत्ते |शशष्यः
स्िमेधया पादम ् आदत्ते,शशष्यः कालेन पादम ्
आदत्ते,शशष्यः सब्रह्मचाररशभः पादम ् आदत्ते |
अथयः –
शशष्य चतुथांश १/४ गुरु से,चतुथांश अपनी बुवि
के बल से, चतथ
ु ांश समय और पररप्स्थतत से
तथा चतथ
ु ांश अपने सहपाठयों से ज्ञानाजयन
करता है |
विशेष विचारणीय :मनष्ु य के जीिन में ज्ञानाजयन करने के ये चार
मख्
ु य स्रोत हैं |

श्लोकगायन :अनद्
ु िेगकरं िाक्यं सत्यं वप्रयहहतं च यत ् |
स्िाध्यायाभ्यसनं चैि िाङ्मयं तपः उच्यते
||८||
अन्ियः :यत ् िाक्यम ् अनद्
ु िेगकरं सत्यम ् वप्रयहहतम ्
च (तथा ) स्िाध्याय-अभ्यसनम ् च एि
िाङ्मयं तपः उच्यते |
अथय: :ऐसा िाक्य जो दःु ि उत्पन्न करने िाला न
हो, सत्ययक्
ु त हो, मधरु और हहतकारी हो
तथा तनत्य स्िाध्याय अभ्यास करना, ये
सभी िाणी के तप कहे गये हैं|
विशेष विचारणीय :सत्य, वप्रय और दःु िरहहत मधरु िाणी
काप्रयोग करना ्कसी कहठन तप से कम
नहीं |

७.समह
ू विभाजन :(१) िाल्मी्किगयः (प्रश्नोत्तराखण)(क) ‘अम्भोजः’ इतत शब्दस्य पयायय: कः ?
(ि) ‘शरत्कालीनः’ इतत कस्य अथयः ?
(ग) सरस्ित्याः कोशः कथं िधयते ?
(घ) कीदृशी िाणी परु
ु षं प्रसन्नं करोतत?
(ङ) बि
ु ेः प्रथमः गण
ु ः कः ?
उत्तर
• कमलम ्
• शारदशब्दस्य
• व्ययात ्
• मधुरिाणी
• शुश्रूषा

(२)व्यासिर्व: - (प्रश्नननमावणम):(क)भारत्याःकोशः अपि
ू ःय |

(ि)पठने अक्षराणां स्पष्टता स्यात ् |
(ग)शश्र
ु ष
ू ायाः अथयः ‘श्रोतुशमच्छा’ |

(घ)रागस्य विलोमः त्यागः |
(ङ)पठनस्य षड्गण
ु ाः |

उत्तर
कस्या:?
केषाम ् ?
का ?
कस्य ?
कतत गुणा: ?

(४)िरद्िाजिर्वः – ( परस्परमेलनम):शीतला
िाणी
िाङ्मयम ्
सशललम ्
शीतलम ्
छाया
विद्यासमम ्
तपः
अपि
शारदा
ू ःय
मधुरभावषणी
कोशः
वप्रयहहतम ्
िाक्यम ्
सियदा
चक्षुः

८.मल्
ू यांकनम ् :-

ज्ञानात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)’शरत्कालीनः’इतत शब्दस्य को अथयः ?
(ि)बुिेः कतत गण
ु ाः ?

उत्तर:
(१)

शरद् ऋतु:
(२) षड् गण
ु ा:

बोधात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)रागशब्दस्य विलोमः कः?
(विराग:)
(ि)शारदाशब्दस्य पयायय:कः? (भारती)

अनप्र
ु योगात्मकस्तरीय प्रश्न :-

(क)शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि--० अत्र
श्लोकाधाररतं सोपानं तनमीयताम |
(ि)तपः,सियदा,माधय
य ,सशललम

् एषाम ्
ु म
शब्दानां िाक्यतनमायणं ्रिययताम|

गह
ृ काययम ् :(१)अन्िय सहहत श्लोकाथय शलिें |
(२)िाणी के महत्त्ि पर प्रकाश डालें
|
(३) पाठ पर आधाररत तत
ृ ीया ि
पञ्चम्यन्त पदों का चयन करें |
प्रस्तुतत :
१॰ डॉ॰ अरुण कुमार शमाय
(शास्त्री)9418666205
रा॰ि॰मा॰पा॰(छात्र) सोलन (हह॰प्र॰)
२॰ डॉ॰ भप
ू ेन्र मोहन शमाय
(शास्त्री)9418488280
रा॰उ॰पा॰ मल
ू बरी(दे िनगर)
शशमला(हह॰प्र॰)


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पाठयोजना
कक्षा—दशमी
विषय:—संस्कृतम ्

उपविषय:-िाङ्मयं तपः

१.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य
व्यिहार में प्रयोग कर पाने की
क्षमता का विकास|
(२) संस्कृत शब्दों का िाचन कर
पाना|
(३) संस्कृत के
विकास करना |

प्रतत

रुचच

का

२.विशिष्ट उद्देश्य :(१) श्लोकों का सस्िर िाचन करना
|
(२) आलङ्काररक विधा का ज्ञान |
(३) मधुर िाणी एिं िाणी के तप
की महत्ता का ज्ञान |
(४) मेधा तथा पाठक के गुणों को
बतलाना |
(५) शशष्य द्िारा ज्ञान प्राप्तत के
स्रोतों का ज्ञान |

३.पूिज्ञ
व ान परीक्षण :(१)

सबसे प्राचीन विश्ि
साहहत्य के ग्रन्थ का नाम
बताये ?

(२) िाणी एिं विद्या की दे िी
कौन सी है ?
(३)िाणी की महत्ता के विषय
में आप क्या जानते हो ?
(४)मधुर एिं कटु िाणी का
क्या प्रभाि पड़ता है ?

४. अशिप्रेरणा:“िाण्येका

समलङ्करोतत परु
ु षं
या संस्कृता धाययते”

विषयिस्तु की उद्घोषणा

आज हम िाणी के
गण
ु ों के महत्त्ि पर
प्रकाश डालेंगे |
हमारा आज का
विषय है :

िाङ्मयं तपः

प्रस्तुतीकरण
श्लोकों का सस्िर आदशयिाचन
ि अनुकरणिाचन
श्लोकगायन –

शारदा शारदाम्भोजिदना िदनाम्बुजे |
सियदा सियदाऽस्माकं सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ्||१||

अन्िय:-

शारद-अम्भोज –िदना सियदा शारदा अस्माकम ् िदनअम्बुजे सियदा सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ् |

अथयः –

शरद ऋतु में खिलने िाले कमल के समान सन्
ु दर मि

िाली सब कुछ प्रदान करने िाले मां सरस्िती हमारे
मि
ु रूपी कमल में हमेशा अपने संपण
ू य िजाने सहहत
तनिास करे |
विशेष विचारणीय :सरस्िती विद्यारूपी कोष को सदा हमारे पास रिकर
हमें ज्ञानिान बनाये |

श्लोकगायन

:अपूिःय कोऽवप कोशोऽयं विद्यते ति भारतत !
व्ययतो िवृ िमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||२ ||

अन्ियः-

भारतत ! ति अयम ् कोशः कः अवप अपि
ू ःय
विद्यते | व्ययतः िवृ िम ् आयातत, संचयात ् च
क्षयम ् आयातत |

अथय :-

हे सरस्ितत ! तेरा यह िजाना कैसा
तनराला है ? जो िचय करने से िवृ ि को प्रातत
होता है और संचचत करने से तनरन्तर क्षय को
प्रातत होता है |

विशेष विचारणीय :-

सामान्य धन िचय करने पर समातत हो जाता
है ,परन्तु सरस्िती का अद्भत
ु ज्ञानरूपी धन िचय
करने से बार –बार अभ्यास में आने पर बढ़ता
ही रहता है

श्लोकगायन :-

नाप्स्त विद्यासमं चक्षुः नाप्स्त सत्यसमं तपः |
नाप्स्त रागसमं दःु िं नाप्स्त त्यागसमं सुिम ् ||३||

अन्ियः –

विद्यासमम ् चक्षुः न अप्स्त,सत्यसमम ् तपः न
अप्स्त |रागसमम ् दःु िम ् न अप्स्त,त्यागसमम ्
सि
ु म ् न अप्स्त |

अथयः –
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है |सत्य से बढ़कर
कोई तप नहीं है |राग के समान कोई दि
ु नहीं है
और न ही त्याग के समान कोई सुि है |

विशेष विचारणीय :-

विद्या ज्ञान का तत
ृ ीय नेत्र है |सत्याचरण ही परम तप
है |मोह ही दःु ि का कारण है और िैराग्य ही सुि है |

श्लोकगायन:न तथा शीतलसशललं न चन्दनरसो न शीतला छाया |
प्रह्लादयतत च परु
ु षं यथा मधरु भावषणी िाणी ||४||
अन्ियः –
यथा मधरु भावषणी िाणी परु
ु षं प्रह्लादयतत तथा
शीतल-सशललम ् न | चन्दनरसः न, शीतला छाया
च न (प्रह्लादयतत) |
अथयः –
जैसे मधुरतायुक्त िाणी मनुष्य को आनन्द प्रदान
करती है िैसा आनन्द न तो शीतल जल से शमलता
है , न चन्दन के लेप से प्रातत होता है और न ही
िक्ष
ृ की शीतल छाया से प्रातत हो सकता है |
विशेष विचारणीय :मधरु िाणी ही हृदय को आनप्न्दत कर सकती है |

श्लोकगायन :शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि ग्रहणं धारणं तथा |
ऊहापोहाथयविज्ञानं तत्त्िज्ञानं च धीगण
ु ा:
||५||
• अन्िय:• शश्र
ु ष
ू ा,श्रिणम ् च एि,ग्रहणं तथा धारणम ्
,ऊह –अपोह ,अथयविज्ञानम ्, तत्त्िज्ञानम ् च
धीगण
ु ा:(सप्न्त)|
• अथय :• सन
ु ने की इच्छा,ध्यान से सन
ु ना,समझना
तथा उस समझ को मन के अन्दर धारण
करना (संभालकर रिना )गण
ु -दोषों को
तकय-वितकय द्िारा वििेचना करना,अथय का
तनश्चय पण
ू य ज्ञान तथा मल
ू अथय और गढ़

रहस्य को जानना |ये सभी बुवि के गुण है |
• विशेष विचारणीय :• ये षड् गुण बुविविकास के हे तु तथा बुवि में
सतत स्थापनीय हैं|

श्लोक गायन :• माधय
य ाक्षरव्यप्क्तःपदच्छे दस्तु सस्
ु म
ु िर:|
• धैयं लयसमथं च षडेते पाठकगण
ु ाः||६||
• अन्ियः :माधय
य ्,अक्षरव्यप्क्तः,पदच्छे दः तु
ु म
सस्
ं ् लयसमथयम ् च एते षट्
ु िरः,धैयम
पाठकगण
ु ाःसप्न्त |
अथय:मधरु ता,अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण,पदों
का विभाजन (सप्न्ध ि समास)सन्
ु दर ि
शुि उच्चारण,गम्भीरता और लय से
युक्त होना |
ये सभी छह गण
ु पढ़ने िाले विद्याथी
के कहे गये हैं |
विशेष विचारणीय :अध्येता को इन सभीषड् गण
ु ों का
आश्रय परमािश्यक है ,क्यों्क इससे
पाठक को लय के आनन्द के साथ –
साथ साथयक पररणाम प्रातत होते हैं |

श्लोक गायन :आचायायत्पादमादत्ते पादं शशष्यः स्िमेधया |
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचाररशभ:||७||
अन्िय :शशष्य:आचायायत ् पादम ् आदत्ते |शशष्यः
स्िमेधया पादम ् आदत्ते,शशष्यः कालेन पादम ्
आदत्ते,शशष्यः सब्रह्मचाररशभः पादम ् आदत्ते |
अथयः –
शशष्य चतुथांश १/४ गुरु से,चतुथांश अपनी बुवि
के बल से, चतथ
ु ांश समय और पररप्स्थतत से
तथा चतथ
ु ांश अपने सहपाठयों से ज्ञानाजयन
करता है |
विशेष विचारणीय :मनष्ु य के जीिन में ज्ञानाजयन करने के ये चार
मख्
ु य स्रोत हैं |

श्लोकगायन :अनद्
ु िेगकरं िाक्यं सत्यं वप्रयहहतं च यत ् |
स्िाध्यायाभ्यसनं चैि िाङ्मयं तपः उच्यते
||८||
अन्ियः :यत ् िाक्यम ् अनद्
ु िेगकरं सत्यम ् वप्रयहहतम ्
च (तथा ) स्िाध्याय-अभ्यसनम ् च एि
िाङ्मयं तपः उच्यते |
अथय: :ऐसा िाक्य जो दःु ि उत्पन्न करने िाला न
हो, सत्ययक्
ु त हो, मधरु और हहतकारी हो
तथा तनत्य स्िाध्याय अभ्यास करना, ये
सभी िाणी के तप कहे गये हैं|
विशेष विचारणीय :सत्य, वप्रय और दःु िरहहत मधरु िाणी
काप्रयोग करना ्कसी कहठन तप से कम
नहीं |

७.समह
ू विभाजन :(१) िाल्मी्किगयः (प्रश्नोत्तराखण)(क) ‘अम्भोजः’ इतत शब्दस्य पयायय: कः ?
(ि) ‘शरत्कालीनः’ इतत कस्य अथयः ?
(ग) सरस्ित्याः कोशः कथं िधयते ?
(घ) कीदृशी िाणी परु
ु षं प्रसन्नं करोतत?
(ङ) बि
ु ेः प्रथमः गण
ु ः कः ?
उत्तर
• कमलम ्
• शारदशब्दस्य
• व्ययात ्
• मधुरिाणी
• शुश्रूषा

(२)व्यासिर्व: - (प्रश्नननमावणम):(क)भारत्याःकोशः अपि
ू ःय |

(ि)पठने अक्षराणां स्पष्टता स्यात ् |
(ग)शश्र
ु ष
ू ायाः अथयः ‘श्रोतुशमच्छा’ |

(घ)रागस्य विलोमः त्यागः |
(ङ)पठनस्य षड्गण
ु ाः |

उत्तर
कस्या:?
केषाम ् ?
का ?
कस्य ?
कतत गुणा: ?

(४)िरद्िाजिर्वः – ( परस्परमेलनम):शीतला
िाणी
िाङ्मयम ्
सशललम ्
शीतलम ्
छाया
विद्यासमम ्
तपः
अपि
शारदा
ू ःय
मधुरभावषणी
कोशः
वप्रयहहतम ्
िाक्यम ्
सियदा
चक्षुः

८.मल्
ू यांकनम ् :-

ज्ञानात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)’शरत्कालीनः’इतत शब्दस्य को अथयः ?
(ि)बुिेः कतत गण
ु ाः ?

उत्तर:
(१)

शरद् ऋतु:
(२) षड् गण
ु ा:

बोधात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)रागशब्दस्य विलोमः कः?
(विराग:)
(ि)शारदाशब्दस्य पयायय:कः? (भारती)

अनप्र
ु योगात्मकस्तरीय प्रश्न :-

(क)शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि--० अत्र
श्लोकाधाररतं सोपानं तनमीयताम |
(ि)तपः,सियदा,माधय
य ,सशललम

् एषाम ्
ु म
शब्दानां िाक्यतनमायणं ्रिययताम|

गह
ृ काययम ् :(१)अन्िय सहहत श्लोकाथय शलिें |
(२)िाणी के महत्त्ि पर प्रकाश डालें
|
(३) पाठ पर आधाररत तत
ृ ीया ि
पञ्चम्यन्त पदों का चयन करें |
प्रस्तुतत :
१॰ डॉ॰ अरुण कुमार शमाय
(शास्त्री)9418666205
रा॰ि॰मा॰पा॰(छात्र) सोलन (हह॰प्र॰)
२॰ डॉ॰ भप
ू ेन्र मोहन शमाय
(शास्त्री)9418488280
रा॰उ॰पा॰ मल
ू बरी(दे िनगर)
शशमला(हह॰प्र॰)


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पाठयोजना
कक्षा—दशमी
विषय:—संस्कृतम ्

उपविषय:-िाङ्मयं तपः

१.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य
व्यिहार में प्रयोग कर पाने की
क्षमता का विकास|
(२) संस्कृत शब्दों का िाचन कर
पाना|
(३) संस्कृत के
विकास करना |

प्रतत

रुचच

का

२.विशिष्ट उद्देश्य :(१) श्लोकों का सस्िर िाचन करना
|
(२) आलङ्काररक विधा का ज्ञान |
(३) मधुर िाणी एिं िाणी के तप
की महत्ता का ज्ञान |
(४) मेधा तथा पाठक के गुणों को
बतलाना |
(५) शशष्य द्िारा ज्ञान प्राप्तत के
स्रोतों का ज्ञान |

३.पूिज्ञ
व ान परीक्षण :(१)

सबसे प्राचीन विश्ि
साहहत्य के ग्रन्थ का नाम
बताये ?

(२) िाणी एिं विद्या की दे िी
कौन सी है ?
(३)िाणी की महत्ता के विषय
में आप क्या जानते हो ?
(४)मधुर एिं कटु िाणी का
क्या प्रभाि पड़ता है ?

४. अशिप्रेरणा:“िाण्येका

समलङ्करोतत परु
ु षं
या संस्कृता धाययते”

विषयिस्तु की उद्घोषणा

आज हम िाणी के
गण
ु ों के महत्त्ि पर
प्रकाश डालेंगे |
हमारा आज का
विषय है :

िाङ्मयं तपः

प्रस्तुतीकरण
श्लोकों का सस्िर आदशयिाचन
ि अनुकरणिाचन
श्लोकगायन –

शारदा शारदाम्भोजिदना िदनाम्बुजे |
सियदा सियदाऽस्माकं सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ्||१||

अन्िय:-

शारद-अम्भोज –िदना सियदा शारदा अस्माकम ् िदनअम्बुजे सियदा सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ् |

अथयः –

शरद ऋतु में खिलने िाले कमल के समान सन्
ु दर मि

िाली सब कुछ प्रदान करने िाले मां सरस्िती हमारे
मि
ु रूपी कमल में हमेशा अपने संपण
ू य िजाने सहहत
तनिास करे |
विशेष विचारणीय :सरस्िती विद्यारूपी कोष को सदा हमारे पास रिकर
हमें ज्ञानिान बनाये |

श्लोकगायन

:अपूिःय कोऽवप कोशोऽयं विद्यते ति भारतत !
व्ययतो िवृ िमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||२ ||

अन्ियः-

भारतत ! ति अयम ् कोशः कः अवप अपि
ू ःय
विद्यते | व्ययतः िवृ िम ् आयातत, संचयात ् च
क्षयम ् आयातत |

अथय :-

हे सरस्ितत ! तेरा यह िजाना कैसा
तनराला है ? जो िचय करने से िवृ ि को प्रातत
होता है और संचचत करने से तनरन्तर क्षय को
प्रातत होता है |

विशेष विचारणीय :-

सामान्य धन िचय करने पर समातत हो जाता
है ,परन्तु सरस्िती का अद्भत
ु ज्ञानरूपी धन िचय
करने से बार –बार अभ्यास में आने पर बढ़ता
ही रहता है

श्लोकगायन :-

नाप्स्त विद्यासमं चक्षुः नाप्स्त सत्यसमं तपः |
नाप्स्त रागसमं दःु िं नाप्स्त त्यागसमं सुिम ् ||३||

अन्ियः –

विद्यासमम ् चक्षुः न अप्स्त,सत्यसमम ् तपः न
अप्स्त |रागसमम ् दःु िम ् न अप्स्त,त्यागसमम ्
सि
ु म ् न अप्स्त |

अथयः –
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है |सत्य से बढ़कर
कोई तप नहीं है |राग के समान कोई दि
ु नहीं है
और न ही त्याग के समान कोई सुि है |

विशेष विचारणीय :-

विद्या ज्ञान का तत
ृ ीय नेत्र है |सत्याचरण ही परम तप
है |मोह ही दःु ि का कारण है और िैराग्य ही सुि है |

श्लोकगायन:न तथा शीतलसशललं न चन्दनरसो न शीतला छाया |
प्रह्लादयतत च परु
ु षं यथा मधरु भावषणी िाणी ||४||
अन्ियः –
यथा मधरु भावषणी िाणी परु
ु षं प्रह्लादयतत तथा
शीतल-सशललम ् न | चन्दनरसः न, शीतला छाया
च न (प्रह्लादयतत) |
अथयः –
जैसे मधुरतायुक्त िाणी मनुष्य को आनन्द प्रदान
करती है िैसा आनन्द न तो शीतल जल से शमलता
है , न चन्दन के लेप से प्रातत होता है और न ही
िक्ष
ृ की शीतल छाया से प्रातत हो सकता है |
विशेष विचारणीय :मधरु िाणी ही हृदय को आनप्न्दत कर सकती है |

श्लोकगायन :शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि ग्रहणं धारणं तथा |
ऊहापोहाथयविज्ञानं तत्त्िज्ञानं च धीगण
ु ा:
||५||
• अन्िय:• शश्र
ु ष
ू ा,श्रिणम ् च एि,ग्रहणं तथा धारणम ्
,ऊह –अपोह ,अथयविज्ञानम ्, तत्त्िज्ञानम ् च
धीगण
ु ा:(सप्न्त)|
• अथय :• सन
ु ने की इच्छा,ध्यान से सन
ु ना,समझना
तथा उस समझ को मन के अन्दर धारण
करना (संभालकर रिना )गण
ु -दोषों को
तकय-वितकय द्िारा वििेचना करना,अथय का
तनश्चय पण
ू य ज्ञान तथा मल
ू अथय और गढ़

रहस्य को जानना |ये सभी बुवि के गुण है |
• विशेष विचारणीय :• ये षड् गुण बुविविकास के हे तु तथा बुवि में
सतत स्थापनीय हैं|

श्लोक गायन :• माधय
य ाक्षरव्यप्क्तःपदच्छे दस्तु सस्
ु म
ु िर:|
• धैयं लयसमथं च षडेते पाठकगण
ु ाः||६||
• अन्ियः :माधय
य ्,अक्षरव्यप्क्तः,पदच्छे दः तु
ु म
सस्
ं ् लयसमथयम ् च एते षट्
ु िरः,धैयम
पाठकगण
ु ाःसप्न्त |
अथय:मधरु ता,अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण,पदों
का विभाजन (सप्न्ध ि समास)सन्
ु दर ि
शुि उच्चारण,गम्भीरता और लय से
युक्त होना |
ये सभी छह गण
ु पढ़ने िाले विद्याथी
के कहे गये हैं |
विशेष विचारणीय :अध्येता को इन सभीषड् गण
ु ों का
आश्रय परमािश्यक है ,क्यों्क इससे
पाठक को लय के आनन्द के साथ –
साथ साथयक पररणाम प्रातत होते हैं |

श्लोक गायन :आचायायत्पादमादत्ते पादं शशष्यः स्िमेधया |
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचाररशभ:||७||
अन्िय :शशष्य:आचायायत ् पादम ् आदत्ते |शशष्यः
स्िमेधया पादम ् आदत्ते,शशष्यः कालेन पादम ्
आदत्ते,शशष्यः सब्रह्मचाररशभः पादम ् आदत्ते |
अथयः –
शशष्य चतुथांश १/४ गुरु से,चतुथांश अपनी बुवि
के बल से, चतथ
ु ांश समय और पररप्स्थतत से
तथा चतथ
ु ांश अपने सहपाठयों से ज्ञानाजयन
करता है |
विशेष विचारणीय :मनष्ु य के जीिन में ज्ञानाजयन करने के ये चार
मख्
ु य स्रोत हैं |

श्लोकगायन :अनद्
ु िेगकरं िाक्यं सत्यं वप्रयहहतं च यत ् |
स्िाध्यायाभ्यसनं चैि िाङ्मयं तपः उच्यते
||८||
अन्ियः :यत ् िाक्यम ् अनद्
ु िेगकरं सत्यम ् वप्रयहहतम ्
च (तथा ) स्िाध्याय-अभ्यसनम ् च एि
िाङ्मयं तपः उच्यते |
अथय: :ऐसा िाक्य जो दःु ि उत्पन्न करने िाला न
हो, सत्ययक्
ु त हो, मधरु और हहतकारी हो
तथा तनत्य स्िाध्याय अभ्यास करना, ये
सभी िाणी के तप कहे गये हैं|
विशेष विचारणीय :सत्य, वप्रय और दःु िरहहत मधरु िाणी
काप्रयोग करना ्कसी कहठन तप से कम
नहीं |

७.समह
ू विभाजन :(१) िाल्मी्किगयः (प्रश्नोत्तराखण)(क) ‘अम्भोजः’ इतत शब्दस्य पयायय: कः ?
(ि) ‘शरत्कालीनः’ इतत कस्य अथयः ?
(ग) सरस्ित्याः कोशः कथं िधयते ?
(घ) कीदृशी िाणी परु
ु षं प्रसन्नं करोतत?
(ङ) बि
ु ेः प्रथमः गण
ु ः कः ?
उत्तर
• कमलम ्
• शारदशब्दस्य
• व्ययात ्
• मधुरिाणी
• शुश्रूषा

(२)व्यासिर्व: - (प्रश्नननमावणम):(क)भारत्याःकोशः अपि
ू ःय |

(ि)पठने अक्षराणां स्पष्टता स्यात ् |
(ग)शश्र
ु ष
ू ायाः अथयः ‘श्रोतुशमच्छा’ |

(घ)रागस्य विलोमः त्यागः |
(ङ)पठनस्य षड्गण
ु ाः |

उत्तर
कस्या:?
केषाम ् ?
का ?
कस्य ?
कतत गुणा: ?

(४)िरद्िाजिर्वः – ( परस्परमेलनम):शीतला
िाणी
िाङ्मयम ्
सशललम ्
शीतलम ्
छाया
विद्यासमम ्
तपः
अपि
शारदा
ू ःय
मधुरभावषणी
कोशः
वप्रयहहतम ्
िाक्यम ्
सियदा
चक्षुः

८.मल्
ू यांकनम ् :-

ज्ञानात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)’शरत्कालीनः’इतत शब्दस्य को अथयः ?
(ि)बुिेः कतत गण
ु ाः ?

उत्तर:
(१)

शरद् ऋतु:
(२) षड् गण
ु ा:

बोधात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)रागशब्दस्य विलोमः कः?
(विराग:)
(ि)शारदाशब्दस्य पयायय:कः? (भारती)

अनप्र
ु योगात्मकस्तरीय प्रश्न :-

(क)शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि--० अत्र
श्लोकाधाररतं सोपानं तनमीयताम |
(ि)तपः,सियदा,माधय
य ,सशललम

् एषाम ्
ु म
शब्दानां िाक्यतनमायणं ्रिययताम|

गह
ृ काययम ् :(१)अन्िय सहहत श्लोकाथय शलिें |
(२)िाणी के महत्त्ि पर प्रकाश डालें
|
(३) पाठ पर आधाररत तत
ृ ीया ि
पञ्चम्यन्त पदों का चयन करें |
प्रस्तुतत :
१॰ डॉ॰ अरुण कुमार शमाय
(शास्त्री)9418666205
रा॰ि॰मा॰पा॰(छात्र) सोलन (हह॰प्र॰)
२॰ डॉ॰ भप
ू ेन्र मोहन शमाय
(शास्त्री)9418488280
रा॰उ॰पा॰ मल
ू बरी(दे िनगर)
शशमला(हह॰प्र॰)


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पाठयोजना
कक्षा—दशमी
विषय:—संस्कृतम ्

उपविषय:-िाङ्मयं तपः

१.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य
व्यिहार में प्रयोग कर पाने की
क्षमता का विकास|
(२) संस्कृत शब्दों का िाचन कर
पाना|
(३) संस्कृत के
विकास करना |

प्रतत

रुचच

का

२.विशिष्ट उद्देश्य :(१) श्लोकों का सस्िर िाचन करना
|
(२) आलङ्काररक विधा का ज्ञान |
(३) मधुर िाणी एिं िाणी के तप
की महत्ता का ज्ञान |
(४) मेधा तथा पाठक के गुणों को
बतलाना |
(५) शशष्य द्िारा ज्ञान प्राप्तत के
स्रोतों का ज्ञान |

३.पूिज्ञ
व ान परीक्षण :(१)

सबसे प्राचीन विश्ि
साहहत्य के ग्रन्थ का नाम
बताये ?

(२) िाणी एिं विद्या की दे िी
कौन सी है ?
(३)िाणी की महत्ता के विषय
में आप क्या जानते हो ?
(४)मधुर एिं कटु िाणी का
क्या प्रभाि पड़ता है ?

४. अशिप्रेरणा:“िाण्येका

समलङ्करोतत परु
ु षं
या संस्कृता धाययते”

विषयिस्तु की उद्घोषणा

आज हम िाणी के
गण
ु ों के महत्त्ि पर
प्रकाश डालेंगे |
हमारा आज का
विषय है :

िाङ्मयं तपः

प्रस्तुतीकरण
श्लोकों का सस्िर आदशयिाचन
ि अनुकरणिाचन
श्लोकगायन –

शारदा शारदाम्भोजिदना िदनाम्बुजे |
सियदा सियदाऽस्माकं सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ्||१||

अन्िय:-

शारद-अम्भोज –िदना सियदा शारदा अस्माकम ् िदनअम्बुजे सियदा सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ् |

अथयः –

शरद ऋतु में खिलने िाले कमल के समान सन्
ु दर मि

िाली सब कुछ प्रदान करने िाले मां सरस्िती हमारे
मि
ु रूपी कमल में हमेशा अपने संपण
ू य िजाने सहहत
तनिास करे |
विशेष विचारणीय :सरस्िती विद्यारूपी कोष को सदा हमारे पास रिकर
हमें ज्ञानिान बनाये |

श्लोकगायन

:अपूिःय कोऽवप कोशोऽयं विद्यते ति भारतत !
व्ययतो िवृ िमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||२ ||

अन्ियः-

भारतत ! ति अयम ् कोशः कः अवप अपि
ू ःय
विद्यते | व्ययतः िवृ िम ् आयातत, संचयात ् च
क्षयम ् आयातत |

अथय :-

हे सरस्ितत ! तेरा यह िजाना कैसा
तनराला है ? जो िचय करने से िवृ ि को प्रातत
होता है और संचचत करने से तनरन्तर क्षय को
प्रातत होता है |

विशेष विचारणीय :-

सामान्य धन िचय करने पर समातत हो जाता
है ,परन्तु सरस्िती का अद्भत
ु ज्ञानरूपी धन िचय
करने से बार –बार अभ्यास में आने पर बढ़ता
ही रहता है

श्लोकगायन :-

नाप्स्त विद्यासमं चक्षुः नाप्स्त सत्यसमं तपः |
नाप्स्त रागसमं दःु िं नाप्स्त त्यागसमं सुिम ् ||३||

अन्ियः –

विद्यासमम ् चक्षुः न अप्स्त,सत्यसमम ् तपः न
अप्स्त |रागसमम ् दःु िम ् न अप्स्त,त्यागसमम ्
सि
ु म ् न अप्स्त |

अथयः –
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है |सत्य से बढ़कर
कोई तप नहीं है |राग के समान कोई दि
ु नहीं है
और न ही त्याग के समान कोई सुि है |

विशेष विचारणीय :-

विद्या ज्ञान का तत
ृ ीय नेत्र है |सत्याचरण ही परम तप
है |मोह ही दःु ि का कारण है और िैराग्य ही सुि है |

श्लोकगायन:न तथा शीतलसशललं न चन्दनरसो न शीतला छाया |
प्रह्लादयतत च परु
ु षं यथा मधरु भावषणी िाणी ||४||
अन्ियः –
यथा मधरु भावषणी िाणी परु
ु षं प्रह्लादयतत तथा
शीतल-सशललम ् न | चन्दनरसः न, शीतला छाया
च न (प्रह्लादयतत) |
अथयः –
जैसे मधुरतायुक्त िाणी मनुष्य को आनन्द प्रदान
करती है िैसा आनन्द न तो शीतल जल से शमलता
है , न चन्दन के लेप से प्रातत होता है और न ही
िक्ष
ृ की शीतल छाया से प्रातत हो सकता है |
विशेष विचारणीय :मधरु िाणी ही हृदय को आनप्न्दत कर सकती है |

श्लोकगायन :शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि ग्रहणं धारणं तथा |
ऊहापोहाथयविज्ञानं तत्त्िज्ञानं च धीगण
ु ा:
||५||
• अन्िय:• शश्र
ु ष
ू ा,श्रिणम ् च एि,ग्रहणं तथा धारणम ्
,ऊह –अपोह ,अथयविज्ञानम ्, तत्त्िज्ञानम ् च
धीगण
ु ा:(सप्न्त)|
• अथय :• सन
ु ने की इच्छा,ध्यान से सन
ु ना,समझना
तथा उस समझ को मन के अन्दर धारण
करना (संभालकर रिना )गण
ु -दोषों को
तकय-वितकय द्िारा वििेचना करना,अथय का
तनश्चय पण
ू य ज्ञान तथा मल
ू अथय और गढ़

रहस्य को जानना |ये सभी बुवि के गुण है |
• विशेष विचारणीय :• ये षड् गुण बुविविकास के हे तु तथा बुवि में
सतत स्थापनीय हैं|

श्लोक गायन :• माधय
य ाक्षरव्यप्क्तःपदच्छे दस्तु सस्
ु म
ु िर:|
• धैयं लयसमथं च षडेते पाठकगण
ु ाः||६||
• अन्ियः :माधय
य ्,अक्षरव्यप्क्तः,पदच्छे दः तु
ु म
सस्
ं ् लयसमथयम ् च एते षट्
ु िरः,धैयम
पाठकगण
ु ाःसप्न्त |
अथय:मधरु ता,अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण,पदों
का विभाजन (सप्न्ध ि समास)सन्
ु दर ि
शुि उच्चारण,गम्भीरता और लय से
युक्त होना |
ये सभी छह गण
ु पढ़ने िाले विद्याथी
के कहे गये हैं |
विशेष विचारणीय :अध्येता को इन सभीषड् गण
ु ों का
आश्रय परमािश्यक है ,क्यों्क इससे
पाठक को लय के आनन्द के साथ –
साथ साथयक पररणाम प्रातत होते हैं |

श्लोक गायन :आचायायत्पादमादत्ते पादं शशष्यः स्िमेधया |
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचाररशभ:||७||
अन्िय :शशष्य:आचायायत ् पादम ् आदत्ते |शशष्यः
स्िमेधया पादम ् आदत्ते,शशष्यः कालेन पादम ्
आदत्ते,शशष्यः सब्रह्मचाररशभः पादम ् आदत्ते |
अथयः –
शशष्य चतुथांश १/४ गुरु से,चतुथांश अपनी बुवि
के बल से, चतथ
ु ांश समय और पररप्स्थतत से
तथा चतथ
ु ांश अपने सहपाठयों से ज्ञानाजयन
करता है |
विशेष विचारणीय :मनष्ु य के जीिन में ज्ञानाजयन करने के ये चार
मख्
ु य स्रोत हैं |

श्लोकगायन :अनद्
ु िेगकरं िाक्यं सत्यं वप्रयहहतं च यत ् |
स्िाध्यायाभ्यसनं चैि िाङ्मयं तपः उच्यते
||८||
अन्ियः :यत ् िाक्यम ् अनद्
ु िेगकरं सत्यम ् वप्रयहहतम ्
च (तथा ) स्िाध्याय-अभ्यसनम ् च एि
िाङ्मयं तपः उच्यते |
अथय: :ऐसा िाक्य जो दःु ि उत्पन्न करने िाला न
हो, सत्ययक्
ु त हो, मधरु और हहतकारी हो
तथा तनत्य स्िाध्याय अभ्यास करना, ये
सभी िाणी के तप कहे गये हैं|
विशेष विचारणीय :सत्य, वप्रय और दःु िरहहत मधरु िाणी
काप्रयोग करना ्कसी कहठन तप से कम
नहीं |

७.समह
ू विभाजन :(१) िाल्मी्किगयः (प्रश्नोत्तराखण)(क) ‘अम्भोजः’ इतत शब्दस्य पयायय: कः ?
(ि) ‘शरत्कालीनः’ इतत कस्य अथयः ?
(ग) सरस्ित्याः कोशः कथं िधयते ?
(घ) कीदृशी िाणी परु
ु षं प्रसन्नं करोतत?
(ङ) बि
ु ेः प्रथमः गण
ु ः कः ?
उत्तर
• कमलम ्
• शारदशब्दस्य
• व्ययात ्
• मधुरिाणी
• शुश्रूषा

(२)व्यासिर्व: - (प्रश्नननमावणम):(क)भारत्याःकोशः अपि
ू ःय |

(ि)पठने अक्षराणां स्पष्टता स्यात ् |
(ग)शश्र
ु ष
ू ायाः अथयः ‘श्रोतुशमच्छा’ |

(घ)रागस्य विलोमः त्यागः |
(ङ)पठनस्य षड्गण
ु ाः |

उत्तर
कस्या:?
केषाम ् ?
का ?
कस्य ?
कतत गुणा: ?

(४)िरद्िाजिर्वः – ( परस्परमेलनम):शीतला
िाणी
िाङ्मयम ्
सशललम ्
शीतलम ्
छाया
विद्यासमम ्
तपः
अपि
शारदा
ू ःय
मधुरभावषणी
कोशः
वप्रयहहतम ्
िाक्यम ्
सियदा
चक्षुः

८.मल्
ू यांकनम ् :-

ज्ञानात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)’शरत्कालीनः’इतत शब्दस्य को अथयः ?
(ि)बुिेः कतत गण
ु ाः ?

उत्तर:
(१)

शरद् ऋतु:
(२) षड् गण
ु ा:

बोधात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)रागशब्दस्य विलोमः कः?
(विराग:)
(ि)शारदाशब्दस्य पयायय:कः? (भारती)

अनप्र
ु योगात्मकस्तरीय प्रश्न :-

(क)शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि--० अत्र
श्लोकाधाररतं सोपानं तनमीयताम |
(ि)तपः,सियदा,माधय
य ,सशललम

् एषाम ्
ु म
शब्दानां िाक्यतनमायणं ्रिययताम|

गह
ृ काययम ् :(१)अन्िय सहहत श्लोकाथय शलिें |
(२)िाणी के महत्त्ि पर प्रकाश डालें
|
(३) पाठ पर आधाररत तत
ृ ीया ि
पञ्चम्यन्त पदों का चयन करें |
प्रस्तुतत :
१॰ डॉ॰ अरुण कुमार शमाय
(शास्त्री)9418666205
रा॰ि॰मा॰पा॰(छात्र) सोलन (हह॰प्र॰)
२॰ डॉ॰ भप
ू ेन्र मोहन शमाय
(शास्त्री)9418488280
रा॰उ॰पा॰ मल
ू बरी(दे िनगर)
शशमला(हह॰प्र॰)


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पाठयोजना
कक्षा—दशमी
विषय:—संस्कृतम ्

उपविषय:-िाङ्मयं तपः

१.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य
व्यिहार में प्रयोग कर पाने की
क्षमता का विकास|
(२) संस्कृत शब्दों का िाचन कर
पाना|
(३) संस्कृत के
विकास करना |

प्रतत

रुचच

का

२.विशिष्ट उद्देश्य :(१) श्लोकों का सस्िर िाचन करना
|
(२) आलङ्काररक विधा का ज्ञान |
(३) मधुर िाणी एिं िाणी के तप
की महत्ता का ज्ञान |
(४) मेधा तथा पाठक के गुणों को
बतलाना |
(५) शशष्य द्िारा ज्ञान प्राप्तत के
स्रोतों का ज्ञान |

३.पूिज्ञ
व ान परीक्षण :(१)

सबसे प्राचीन विश्ि
साहहत्य के ग्रन्थ का नाम
बताये ?

(२) िाणी एिं विद्या की दे िी
कौन सी है ?
(३)िाणी की महत्ता के विषय
में आप क्या जानते हो ?
(४)मधुर एिं कटु िाणी का
क्या प्रभाि पड़ता है ?

४. अशिप्रेरणा:“िाण्येका

समलङ्करोतत परु
ु षं
या संस्कृता धाययते”

विषयिस्तु की उद्घोषणा

आज हम िाणी के
गण
ु ों के महत्त्ि पर
प्रकाश डालेंगे |
हमारा आज का
विषय है :

िाङ्मयं तपः

प्रस्तुतीकरण
श्लोकों का सस्िर आदशयिाचन
ि अनुकरणिाचन
श्लोकगायन –

शारदा शारदाम्भोजिदना िदनाम्बुजे |
सियदा सियदाऽस्माकं सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ्||१||

अन्िय:-

शारद-अम्भोज –िदना सियदा शारदा अस्माकम ् िदनअम्बुजे सियदा सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ् |

अथयः –

शरद ऋतु में खिलने िाले कमल के समान सन्
ु दर मि

िाली सब कुछ प्रदान करने िाले मां सरस्िती हमारे
मि
ु रूपी कमल में हमेशा अपने संपण
ू य िजाने सहहत
तनिास करे |
विशेष विचारणीय :सरस्िती विद्यारूपी कोष को सदा हमारे पास रिकर
हमें ज्ञानिान बनाये |

श्लोकगायन

:अपूिःय कोऽवप कोशोऽयं विद्यते ति भारतत !
व्ययतो िवृ िमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||२ ||

अन्ियः-

भारतत ! ति अयम ् कोशः कः अवप अपि
ू ःय
विद्यते | व्ययतः िवृ िम ् आयातत, संचयात ् च
क्षयम ् आयातत |

अथय :-

हे सरस्ितत ! तेरा यह िजाना कैसा
तनराला है ? जो िचय करने से िवृ ि को प्रातत
होता है और संचचत करने से तनरन्तर क्षय को
प्रातत होता है |

विशेष विचारणीय :-

सामान्य धन िचय करने पर समातत हो जाता
है ,परन्तु सरस्िती का अद्भत
ु ज्ञानरूपी धन िचय
करने से बार –बार अभ्यास में आने पर बढ़ता
ही रहता है

श्लोकगायन :-

नाप्स्त विद्यासमं चक्षुः नाप्स्त सत्यसमं तपः |
नाप्स्त रागसमं दःु िं नाप्स्त त्यागसमं सुिम ् ||३||

अन्ियः –

विद्यासमम ् चक्षुः न अप्स्त,सत्यसमम ् तपः न
अप्स्त |रागसमम ् दःु िम ् न अप्स्त,त्यागसमम ्
सि
ु म ् न अप्स्त |

अथयः –
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है |सत्य से बढ़कर
कोई तप नहीं है |राग के समान कोई दि
ु नहीं है
और न ही त्याग के समान कोई सुि है |

विशेष विचारणीय :-

विद्या ज्ञान का तत
ृ ीय नेत्र है |सत्याचरण ही परम तप
है |मोह ही दःु ि का कारण है और िैराग्य ही सुि है |

श्लोकगायन:न तथा शीतलसशललं न चन्दनरसो न शीतला छाया |
प्रह्लादयतत च परु
ु षं यथा मधरु भावषणी िाणी ||४||
अन्ियः –
यथा मधरु भावषणी िाणी परु
ु षं प्रह्लादयतत तथा
शीतल-सशललम ् न | चन्दनरसः न, शीतला छाया
च न (प्रह्लादयतत) |
अथयः –
जैसे मधुरतायुक्त िाणी मनुष्य को आनन्द प्रदान
करती है िैसा आनन्द न तो शीतल जल से शमलता
है , न चन्दन के लेप से प्रातत होता है और न ही
िक्ष
ृ की शीतल छाया से प्रातत हो सकता है |
विशेष विचारणीय :मधरु िाणी ही हृदय को आनप्न्दत कर सकती है |

श्लोकगायन :शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि ग्रहणं धारणं तथा |
ऊहापोहाथयविज्ञानं तत्त्िज्ञानं च धीगण
ु ा:
||५||
• अन्िय:• शश्र
ु ष
ू ा,श्रिणम ् च एि,ग्रहणं तथा धारणम ्
,ऊह –अपोह ,अथयविज्ञानम ्, तत्त्िज्ञानम ् च
धीगण
ु ा:(सप्न्त)|
• अथय :• सन
ु ने की इच्छा,ध्यान से सन
ु ना,समझना
तथा उस समझ को मन के अन्दर धारण
करना (संभालकर रिना )गण
ु -दोषों को
तकय-वितकय द्िारा वििेचना करना,अथय का
तनश्चय पण
ू य ज्ञान तथा मल
ू अथय और गढ़

रहस्य को जानना |ये सभी बुवि के गुण है |
• विशेष विचारणीय :• ये षड् गुण बुविविकास के हे तु तथा बुवि में
सतत स्थापनीय हैं|

श्लोक गायन :• माधय
य ाक्षरव्यप्क्तःपदच्छे दस्तु सस्
ु म
ु िर:|
• धैयं लयसमथं च षडेते पाठकगण
ु ाः||६||
• अन्ियः :माधय
य ्,अक्षरव्यप्क्तः,पदच्छे दः तु
ु म
सस्
ं ् लयसमथयम ् च एते षट्
ु िरः,धैयम
पाठकगण
ु ाःसप्न्त |
अथय:मधरु ता,अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण,पदों
का विभाजन (सप्न्ध ि समास)सन्
ु दर ि
शुि उच्चारण,गम्भीरता और लय से
युक्त होना |
ये सभी छह गण
ु पढ़ने िाले विद्याथी
के कहे गये हैं |
विशेष विचारणीय :अध्येता को इन सभीषड् गण
ु ों का
आश्रय परमािश्यक है ,क्यों्क इससे
पाठक को लय के आनन्द के साथ –
साथ साथयक पररणाम प्रातत होते हैं |

श्लोक गायन :आचायायत्पादमादत्ते पादं शशष्यः स्िमेधया |
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचाररशभ:||७||
अन्िय :शशष्य:आचायायत ् पादम ् आदत्ते |शशष्यः
स्िमेधया पादम ् आदत्ते,शशष्यः कालेन पादम ्
आदत्ते,शशष्यः सब्रह्मचाररशभः पादम ् आदत्ते |
अथयः –
शशष्य चतुथांश १/४ गुरु से,चतुथांश अपनी बुवि
के बल से, चतथ
ु ांश समय और पररप्स्थतत से
तथा चतथ
ु ांश अपने सहपाठयों से ज्ञानाजयन
करता है |
विशेष विचारणीय :मनष्ु य के जीिन में ज्ञानाजयन करने के ये चार
मख्
ु य स्रोत हैं |

श्लोकगायन :अनद्
ु िेगकरं िाक्यं सत्यं वप्रयहहतं च यत ् |
स्िाध्यायाभ्यसनं चैि िाङ्मयं तपः उच्यते
||८||
अन्ियः :यत ् िाक्यम ् अनद्
ु िेगकरं सत्यम ् वप्रयहहतम ्
च (तथा ) स्िाध्याय-अभ्यसनम ् च एि
िाङ्मयं तपः उच्यते |
अथय: :ऐसा िाक्य जो दःु ि उत्पन्न करने िाला न
हो, सत्ययक्
ु त हो, मधरु और हहतकारी हो
तथा तनत्य स्िाध्याय अभ्यास करना, ये
सभी िाणी के तप कहे गये हैं|
विशेष विचारणीय :सत्य, वप्रय और दःु िरहहत मधरु िाणी
काप्रयोग करना ्कसी कहठन तप से कम
नहीं |

७.समह
ू विभाजन :(१) िाल्मी्किगयः (प्रश्नोत्तराखण)(क) ‘अम्भोजः’ इतत शब्दस्य पयायय: कः ?
(ि) ‘शरत्कालीनः’ इतत कस्य अथयः ?
(ग) सरस्ित्याः कोशः कथं िधयते ?
(घ) कीदृशी िाणी परु
ु षं प्रसन्नं करोतत?
(ङ) बि
ु ेः प्रथमः गण
ु ः कः ?
उत्तर
• कमलम ्
• शारदशब्दस्य
• व्ययात ्
• मधुरिाणी
• शुश्रूषा

(२)व्यासिर्व: - (प्रश्नननमावणम):(क)भारत्याःकोशः अपि
ू ःय |

(ि)पठने अक्षराणां स्पष्टता स्यात ् |
(ग)शश्र
ु ष
ू ायाः अथयः ‘श्रोतुशमच्छा’ |

(घ)रागस्य विलोमः त्यागः |
(ङ)पठनस्य षड्गण
ु ाः |

उत्तर
कस्या:?
केषाम ् ?
का ?
कस्य ?
कतत गुणा: ?

(४)िरद्िाजिर्वः – ( परस्परमेलनम):शीतला
िाणी
िाङ्मयम ्
सशललम ्
शीतलम ्
छाया
विद्यासमम ्
तपः
अपि
शारदा
ू ःय
मधुरभावषणी
कोशः
वप्रयहहतम ्
िाक्यम ्
सियदा
चक्षुः

८.मल्
ू यांकनम ् :-

ज्ञानात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)’शरत्कालीनः’इतत शब्दस्य को अथयः ?
(ि)बुिेः कतत गण
ु ाः ?

उत्तर:
(१)

शरद् ऋतु:
(२) षड् गण
ु ा:

बोधात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)रागशब्दस्य विलोमः कः?
(विराग:)
(ि)शारदाशब्दस्य पयायय:कः? (भारती)

अनप्र
ु योगात्मकस्तरीय प्रश्न :-

(क)शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि--० अत्र
श्लोकाधाररतं सोपानं तनमीयताम |
(ि)तपः,सियदा,माधय
य ,सशललम

् एषाम ्
ु म
शब्दानां िाक्यतनमायणं ्रिययताम|

गह
ृ काययम ् :(१)अन्िय सहहत श्लोकाथय शलिें |
(२)िाणी के महत्त्ि पर प्रकाश डालें
|
(३) पाठ पर आधाररत तत
ृ ीया ि
पञ्चम्यन्त पदों का चयन करें |
प्रस्तुतत :
१॰ डॉ॰ अरुण कुमार शमाय
(शास्त्री)9418666205
रा॰ि॰मा॰पा॰(छात्र) सोलन (हह॰प्र॰)
२॰ डॉ॰ भप
ू ेन्र मोहन शमाय
(शास्त्री)9418488280
रा॰उ॰पा॰ मल
ू बरी(दे िनगर)
शशमला(हह॰प्र॰)


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पाठयोजना
कक्षा—दशमी
विषय:—संस्कृतम ्

उपविषय:-िाङ्मयं तपः

१.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य
व्यिहार में प्रयोग कर पाने की
क्षमता का विकास|
(२) संस्कृत शब्दों का िाचन कर
पाना|
(३) संस्कृत के
विकास करना |

प्रतत

रुचच

का

२.विशिष्ट उद्देश्य :(१) श्लोकों का सस्िर िाचन करना
|
(२) आलङ्काररक विधा का ज्ञान |
(३) मधुर िाणी एिं िाणी के तप
की महत्ता का ज्ञान |
(४) मेधा तथा पाठक के गुणों को
बतलाना |
(५) शशष्य द्िारा ज्ञान प्राप्तत के
स्रोतों का ज्ञान |

३.पूिज्ञ
व ान परीक्षण :(१)

सबसे प्राचीन विश्ि
साहहत्य के ग्रन्थ का नाम
बताये ?

(२) िाणी एिं विद्या की दे िी
कौन सी है ?
(३)िाणी की महत्ता के विषय
में आप क्या जानते हो ?
(४)मधुर एिं कटु िाणी का
क्या प्रभाि पड़ता है ?

४. अशिप्रेरणा:“िाण्येका

समलङ्करोतत परु
ु षं
या संस्कृता धाययते”

विषयिस्तु की उद्घोषणा

आज हम िाणी के
गण
ु ों के महत्त्ि पर
प्रकाश डालेंगे |
हमारा आज का
विषय है :

िाङ्मयं तपः

प्रस्तुतीकरण
श्लोकों का सस्िर आदशयिाचन
ि अनुकरणिाचन
श्लोकगायन –

शारदा शारदाम्भोजिदना िदनाम्बुजे |
सियदा सियदाऽस्माकं सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ्||१||

अन्िय:-

शारद-अम्भोज –िदना सियदा शारदा अस्माकम ् िदनअम्बुजे सियदा सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ् |

अथयः –

शरद ऋतु में खिलने िाले कमल के समान सन्
ु दर मि

िाली सब कुछ प्रदान करने िाले मां सरस्िती हमारे
मि
ु रूपी कमल में हमेशा अपने संपण
ू य िजाने सहहत
तनिास करे |
विशेष विचारणीय :सरस्िती विद्यारूपी कोष को सदा हमारे पास रिकर
हमें ज्ञानिान बनाये |

श्लोकगायन

:अपूिःय कोऽवप कोशोऽयं विद्यते ति भारतत !
व्ययतो िवृ िमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||२ ||

अन्ियः-

भारतत ! ति अयम ् कोशः कः अवप अपि
ू ःय
विद्यते | व्ययतः िवृ िम ् आयातत, संचयात ् च
क्षयम ् आयातत |

अथय :-

हे सरस्ितत ! तेरा यह िजाना कैसा
तनराला है ? जो िचय करने से िवृ ि को प्रातत
होता है और संचचत करने से तनरन्तर क्षय को
प्रातत होता है |

विशेष विचारणीय :-

सामान्य धन िचय करने पर समातत हो जाता
है ,परन्तु सरस्िती का अद्भत
ु ज्ञानरूपी धन िचय
करने से बार –बार अभ्यास में आने पर बढ़ता
ही रहता है

श्लोकगायन :-

नाप्स्त विद्यासमं चक्षुः नाप्स्त सत्यसमं तपः |
नाप्स्त रागसमं दःु िं नाप्स्त त्यागसमं सुिम ् ||३||

अन्ियः –

विद्यासमम ् चक्षुः न अप्स्त,सत्यसमम ् तपः न
अप्स्त |रागसमम ् दःु िम ् न अप्स्त,त्यागसमम ्
सि
ु म ् न अप्स्त |

अथयः –
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है |सत्य से बढ़कर
कोई तप नहीं है |राग के समान कोई दि
ु नहीं है
और न ही त्याग के समान कोई सुि है |

विशेष विचारणीय :-

विद्या ज्ञान का तत
ृ ीय नेत्र है |सत्याचरण ही परम तप
है |मोह ही दःु ि का कारण है और िैराग्य ही सुि है |

श्लोकगायन:न तथा शीतलसशललं न चन्दनरसो न शीतला छाया |
प्रह्लादयतत च परु
ु षं यथा मधरु भावषणी िाणी ||४||
अन्ियः –
यथा मधरु भावषणी िाणी परु
ु षं प्रह्लादयतत तथा
शीतल-सशललम ् न | चन्दनरसः न, शीतला छाया
च न (प्रह्लादयतत) |
अथयः –
जैसे मधुरतायुक्त िाणी मनुष्य को आनन्द प्रदान
करती है िैसा आनन्द न तो शीतल जल से शमलता
है , न चन्दन के लेप से प्रातत होता है और न ही
िक्ष
ृ की शीतल छाया से प्रातत हो सकता है |
विशेष विचारणीय :मधरु िाणी ही हृदय को आनप्न्दत कर सकती है |

श्लोकगायन :शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि ग्रहणं धारणं तथा |
ऊहापोहाथयविज्ञानं तत्त्िज्ञानं च धीगण
ु ा:
||५||
• अन्िय:• शश्र
ु ष
ू ा,श्रिणम ् च एि,ग्रहणं तथा धारणम ्
,ऊह –अपोह ,अथयविज्ञानम ्, तत्त्िज्ञानम ् च
धीगण
ु ा:(सप्न्त)|
• अथय :• सन
ु ने की इच्छा,ध्यान से सन
ु ना,समझना
तथा उस समझ को मन के अन्दर धारण
करना (संभालकर रिना )गण
ु -दोषों को
तकय-वितकय द्िारा वििेचना करना,अथय का
तनश्चय पण
ू य ज्ञान तथा मल
ू अथय और गढ़

रहस्य को जानना |ये सभी बुवि के गुण है |
• विशेष विचारणीय :• ये षड् गुण बुविविकास के हे तु तथा बुवि में
सतत स्थापनीय हैं|

श्लोक गायन :• माधय
य ाक्षरव्यप्क्तःपदच्छे दस्तु सस्
ु म
ु िर:|
• धैयं लयसमथं च षडेते पाठकगण
ु ाः||६||
• अन्ियः :माधय
य ्,अक्षरव्यप्क्तः,पदच्छे दः तु
ु म
सस्
ं ् लयसमथयम ् च एते षट्
ु िरः,धैयम
पाठकगण
ु ाःसप्न्त |
अथय:मधरु ता,अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण,पदों
का विभाजन (सप्न्ध ि समास)सन्
ु दर ि
शुि उच्चारण,गम्भीरता और लय से
युक्त होना |
ये सभी छह गण
ु पढ़ने िाले विद्याथी
के कहे गये हैं |
विशेष विचारणीय :अध्येता को इन सभीषड् गण
ु ों का
आश्रय परमािश्यक है ,क्यों्क इससे
पाठक को लय के आनन्द के साथ –
साथ साथयक पररणाम प्रातत होते हैं |

श्लोक गायन :आचायायत्पादमादत्ते पादं शशष्यः स्िमेधया |
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचाररशभ:||७||
अन्िय :शशष्य:आचायायत ् पादम ् आदत्ते |शशष्यः
स्िमेधया पादम ् आदत्ते,शशष्यः कालेन पादम ्
आदत्ते,शशष्यः सब्रह्मचाररशभः पादम ् आदत्ते |
अथयः –
शशष्य चतुथांश १/४ गुरु से,चतुथांश अपनी बुवि
के बल से, चतथ
ु ांश समय और पररप्स्थतत से
तथा चतथ
ु ांश अपने सहपाठयों से ज्ञानाजयन
करता है |
विशेष विचारणीय :मनष्ु य के जीिन में ज्ञानाजयन करने के ये चार
मख्
ु य स्रोत हैं |

श्लोकगायन :अनद्
ु िेगकरं िाक्यं सत्यं वप्रयहहतं च यत ् |
स्िाध्यायाभ्यसनं चैि िाङ्मयं तपः उच्यते
||८||
अन्ियः :यत ् िाक्यम ् अनद्
ु िेगकरं सत्यम ् वप्रयहहतम ्
च (तथा ) स्िाध्याय-अभ्यसनम ् च एि
िाङ्मयं तपः उच्यते |
अथय: :ऐसा िाक्य जो दःु ि उत्पन्न करने िाला न
हो, सत्ययक्
ु त हो, मधरु और हहतकारी हो
तथा तनत्य स्िाध्याय अभ्यास करना, ये
सभी िाणी के तप कहे गये हैं|
विशेष विचारणीय :सत्य, वप्रय और दःु िरहहत मधरु िाणी
काप्रयोग करना ्कसी कहठन तप से कम
नहीं |

७.समह
ू विभाजन :(१) िाल्मी्किगयः (प्रश्नोत्तराखण)(क) ‘अम्भोजः’ इतत शब्दस्य पयायय: कः ?
(ि) ‘शरत्कालीनः’ इतत कस्य अथयः ?
(ग) सरस्ित्याः कोशः कथं िधयते ?
(घ) कीदृशी िाणी परु
ु षं प्रसन्नं करोतत?
(ङ) बि
ु ेः प्रथमः गण
ु ः कः ?
उत्तर
• कमलम ्
• शारदशब्दस्य
• व्ययात ्
• मधुरिाणी
• शुश्रूषा

(२)व्यासिर्व: - (प्रश्नननमावणम):(क)भारत्याःकोशः अपि
ू ःय |

(ि)पठने अक्षराणां स्पष्टता स्यात ् |
(ग)शश्र
ु ष
ू ायाः अथयः ‘श्रोतुशमच्छा’ |

(घ)रागस्य विलोमः त्यागः |
(ङ)पठनस्य षड्गण
ु ाः |

उत्तर
कस्या:?
केषाम ् ?
का ?
कस्य ?
कतत गुणा: ?

(४)िरद्िाजिर्वः – ( परस्परमेलनम):शीतला
िाणी
िाङ्मयम ्
सशललम ्
शीतलम ्
छाया
विद्यासमम ्
तपः
अपि
शारदा
ू ःय
मधुरभावषणी
कोशः
वप्रयहहतम ्
िाक्यम ्
सियदा
चक्षुः

८.मल्
ू यांकनम ् :-

ज्ञानात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)’शरत्कालीनः’इतत शब्दस्य को अथयः ?
(ि)बुिेः कतत गण
ु ाः ?

उत्तर:
(१)

शरद् ऋतु:
(२) षड् गण
ु ा:

बोधात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)रागशब्दस्य विलोमः कः?
(विराग:)
(ि)शारदाशब्दस्य पयायय:कः? (भारती)

अनप्र
ु योगात्मकस्तरीय प्रश्न :-

(क)शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि--० अत्र
श्लोकाधाररतं सोपानं तनमीयताम |
(ि)तपः,सियदा,माधय
य ,सशललम

् एषाम ्
ु म
शब्दानां िाक्यतनमायणं ्रिययताम|

गह
ृ काययम ् :(१)अन्िय सहहत श्लोकाथय शलिें |
(२)िाणी के महत्त्ि पर प्रकाश डालें
|
(३) पाठ पर आधाररत तत
ृ ीया ि
पञ्चम्यन्त पदों का चयन करें |
प्रस्तुतत :
१॰ डॉ॰ अरुण कुमार शमाय
(शास्त्री)9418666205
रा॰ि॰मा॰पा॰(छात्र) सोलन (हह॰प्र॰)
२॰ डॉ॰ भप
ू ेन्र मोहन शमाय
(शास्त्री)9418488280
रा॰उ॰पा॰ मल
ू बरी(दे िनगर)
शशमला(हह॰प्र॰)


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पाठयोजना
कक्षा—दशमी
विषय:—संस्कृतम ्

उपविषय:-िाङ्मयं तपः

१.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य
व्यिहार में प्रयोग कर पाने की
क्षमता का विकास|
(२) संस्कृत शब्दों का िाचन कर
पाना|
(३) संस्कृत के
विकास करना |

प्रतत

रुचच

का

२.विशिष्ट उद्देश्य :(१) श्लोकों का सस्िर िाचन करना
|
(२) आलङ्काररक विधा का ज्ञान |
(३) मधुर िाणी एिं िाणी के तप
की महत्ता का ज्ञान |
(४) मेधा तथा पाठक के गुणों को
बतलाना |
(५) शशष्य द्िारा ज्ञान प्राप्तत के
स्रोतों का ज्ञान |

३.पूिज्ञ
व ान परीक्षण :(१)

सबसे प्राचीन विश्ि
साहहत्य के ग्रन्थ का नाम
बताये ?

(२) िाणी एिं विद्या की दे िी
कौन सी है ?
(३)िाणी की महत्ता के विषय
में आप क्या जानते हो ?
(४)मधुर एिं कटु िाणी का
क्या प्रभाि पड़ता है ?

४. अशिप्रेरणा:“िाण्येका

समलङ्करोतत परु
ु षं
या संस्कृता धाययते”

विषयिस्तु की उद्घोषणा

आज हम िाणी के
गण
ु ों के महत्त्ि पर
प्रकाश डालेंगे |
हमारा आज का
विषय है :

िाङ्मयं तपः

प्रस्तुतीकरण
श्लोकों का सस्िर आदशयिाचन
ि अनुकरणिाचन
श्लोकगायन –

शारदा शारदाम्भोजिदना िदनाम्बुजे |
सियदा सियदाऽस्माकं सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ्||१||

अन्िय:-

शारद-अम्भोज –िदना सियदा शारदा अस्माकम ् िदनअम्बुजे सियदा सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ् |

अथयः –

शरद ऋतु में खिलने िाले कमल के समान सन्
ु दर मि

िाली सब कुछ प्रदान करने िाले मां सरस्िती हमारे
मि
ु रूपी कमल में हमेशा अपने संपण
ू य िजाने सहहत
तनिास करे |
विशेष विचारणीय :सरस्िती विद्यारूपी कोष को सदा हमारे पास रिकर
हमें ज्ञानिान बनाये |

श्लोकगायन

:अपूिःय कोऽवप कोशोऽयं विद्यते ति भारतत !
व्ययतो िवृ िमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||२ ||

अन्ियः-

भारतत ! ति अयम ् कोशः कः अवप अपि
ू ःय
विद्यते | व्ययतः िवृ िम ् आयातत, संचयात ् च
क्षयम ् आयातत |

अथय :-

हे सरस्ितत ! तेरा यह िजाना कैसा
तनराला है ? जो िचय करने से िवृ ि को प्रातत
होता है और संचचत करने से तनरन्तर क्षय को
प्रातत होता है |

विशेष विचारणीय :-

सामान्य धन िचय करने पर समातत हो जाता
है ,परन्तु सरस्िती का अद्भत
ु ज्ञानरूपी धन िचय
करने से बार –बार अभ्यास में आने पर बढ़ता
ही रहता है

श्लोकगायन :-

नाप्स्त विद्यासमं चक्षुः नाप्स्त सत्यसमं तपः |
नाप्स्त रागसमं दःु िं नाप्स्त त्यागसमं सुिम ् ||३||

अन्ियः –

विद्यासमम ् चक्षुः न अप्स्त,सत्यसमम ् तपः न
अप्स्त |रागसमम ् दःु िम ् न अप्स्त,त्यागसमम ्
सि
ु म ् न अप्स्त |

अथयः –
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है |सत्य से बढ़कर
कोई तप नहीं है |राग के समान कोई दि
ु नहीं है
और न ही त्याग के समान कोई सुि है |

विशेष विचारणीय :-

विद्या ज्ञान का तत
ृ ीय नेत्र है |सत्याचरण ही परम तप
है |मोह ही दःु ि का कारण है और िैराग्य ही सुि है |

श्लोकगायन:न तथा शीतलसशललं न चन्दनरसो न शीतला छाया |
प्रह्लादयतत च परु
ु षं यथा मधरु भावषणी िाणी ||४||
अन्ियः –
यथा मधरु भावषणी िाणी परु
ु षं प्रह्लादयतत तथा
शीतल-सशललम ् न | चन्दनरसः न, शीतला छाया
च न (प्रह्लादयतत) |
अथयः –
जैसे मधुरतायुक्त िाणी मनुष्य को आनन्द प्रदान
करती है िैसा आनन्द न तो शीतल जल से शमलता
है , न चन्दन के लेप से प्रातत होता है और न ही
िक्ष
ृ की शीतल छाया से प्रातत हो सकता है |
विशेष विचारणीय :मधरु िाणी ही हृदय को आनप्न्दत कर सकती है |

श्लोकगायन :शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि ग्रहणं धारणं तथा |
ऊहापोहाथयविज्ञानं तत्त्िज्ञानं च धीगण
ु ा:
||५||
• अन्िय:• शश्र
ु ष
ू ा,श्रिणम ् च एि,ग्रहणं तथा धारणम ्
,ऊह –अपोह ,अथयविज्ञानम ्, तत्त्िज्ञानम ् च
धीगण
ु ा:(सप्न्त)|
• अथय :• सन
ु ने की इच्छा,ध्यान से सन
ु ना,समझना
तथा उस समझ को मन के अन्दर धारण
करना (संभालकर रिना )गण
ु -दोषों को
तकय-वितकय द्िारा वििेचना करना,अथय का
तनश्चय पण
ू य ज्ञान तथा मल
ू अथय और गढ़

रहस्य को जानना |ये सभी बुवि के गुण है |
• विशेष विचारणीय :• ये षड् गुण बुविविकास के हे तु तथा बुवि में
सतत स्थापनीय हैं|

श्लोक गायन :• माधय
य ाक्षरव्यप्क्तःपदच्छे दस्तु सस्
ु म
ु िर:|
• धैयं लयसमथं च षडेते पाठकगण
ु ाः||६||
• अन्ियः :माधय
य ्,अक्षरव्यप्क्तः,पदच्छे दः तु
ु म
सस्
ं ् लयसमथयम ् च एते षट्
ु िरः,धैयम
पाठकगण
ु ाःसप्न्त |
अथय:मधरु ता,अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण,पदों
का विभाजन (सप्न्ध ि समास)सन्
ु दर ि
शुि उच्चारण,गम्भीरता और लय से
युक्त होना |
ये सभी छह गण
ु पढ़ने िाले विद्याथी
के कहे गये हैं |
विशेष विचारणीय :अध्येता को इन सभीषड् गण
ु ों का
आश्रय परमािश्यक है ,क्यों्क इससे
पाठक को लय के आनन्द के साथ –
साथ साथयक पररणाम प्रातत होते हैं |

श्लोक गायन :आचायायत्पादमादत्ते पादं शशष्यः स्िमेधया |
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचाररशभ:||७||
अन्िय :शशष्य:आचायायत ् पादम ् आदत्ते |शशष्यः
स्िमेधया पादम ् आदत्ते,शशष्यः कालेन पादम ्
आदत्ते,शशष्यः सब्रह्मचाररशभः पादम ् आदत्ते |
अथयः –
शशष्य चतुथांश १/४ गुरु से,चतुथांश अपनी बुवि
के बल से, चतथ
ु ांश समय और पररप्स्थतत से
तथा चतथ
ु ांश अपने सहपाठयों से ज्ञानाजयन
करता है |
विशेष विचारणीय :मनष्ु य के जीिन में ज्ञानाजयन करने के ये चार
मख्
ु य स्रोत हैं |

श्लोकगायन :अनद्
ु िेगकरं िाक्यं सत्यं वप्रयहहतं च यत ् |
स्िाध्यायाभ्यसनं चैि िाङ्मयं तपः उच्यते
||८||
अन्ियः :यत ् िाक्यम ् अनद्
ु िेगकरं सत्यम ् वप्रयहहतम ्
च (तथा ) स्िाध्याय-अभ्यसनम ् च एि
िाङ्मयं तपः उच्यते |
अथय: :ऐसा िाक्य जो दःु ि उत्पन्न करने िाला न
हो, सत्ययक्
ु त हो, मधरु और हहतकारी हो
तथा तनत्य स्िाध्याय अभ्यास करना, ये
सभी िाणी के तप कहे गये हैं|
विशेष विचारणीय :सत्य, वप्रय और दःु िरहहत मधरु िाणी
काप्रयोग करना ्कसी कहठन तप से कम
नहीं |

७.समह
ू विभाजन :(१) िाल्मी्किगयः (प्रश्नोत्तराखण)(क) ‘अम्भोजः’ इतत शब्दस्य पयायय: कः ?
(ि) ‘शरत्कालीनः’ इतत कस्य अथयः ?
(ग) सरस्ित्याः कोशः कथं िधयते ?
(घ) कीदृशी िाणी परु
ु षं प्रसन्नं करोतत?
(ङ) बि
ु ेः प्रथमः गण
ु ः कः ?
उत्तर
• कमलम ्
• शारदशब्दस्य
• व्ययात ्
• मधुरिाणी
• शुश्रूषा

(२)व्यासिर्व: - (प्रश्नननमावणम):(क)भारत्याःकोशः अपि
ू ःय |

(ि)पठने अक्षराणां स्पष्टता स्यात ् |
(ग)शश्र
ु ष
ू ायाः अथयः ‘श्रोतुशमच्छा’ |

(घ)रागस्य विलोमः त्यागः |
(ङ)पठनस्य षड्गण
ु ाः |

उत्तर
कस्या:?
केषाम ् ?
का ?
कस्य ?
कतत गुणा: ?

(४)िरद्िाजिर्वः – ( परस्परमेलनम):शीतला
िाणी
िाङ्मयम ्
सशललम ्
शीतलम ्
छाया
विद्यासमम ्
तपः
अपि
शारदा
ू ःय
मधुरभावषणी
कोशः
वप्रयहहतम ्
िाक्यम ्
सियदा
चक्षुः

८.मल्
ू यांकनम ् :-

ज्ञानात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)’शरत्कालीनः’इतत शब्दस्य को अथयः ?
(ि)बुिेः कतत गण
ु ाः ?

उत्तर:
(१)

शरद् ऋतु:
(२) षड् गण
ु ा:

बोधात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)रागशब्दस्य विलोमः कः?
(विराग:)
(ि)शारदाशब्दस्य पयायय:कः? (भारती)

अनप्र
ु योगात्मकस्तरीय प्रश्न :-

(क)शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि--० अत्र
श्लोकाधाररतं सोपानं तनमीयताम |
(ि)तपः,सियदा,माधय
य ,सशललम

् एषाम ्
ु म
शब्दानां िाक्यतनमायणं ्रिययताम|

गह
ृ काययम ् :(१)अन्िय सहहत श्लोकाथय शलिें |
(२)िाणी के महत्त्ि पर प्रकाश डालें
|
(३) पाठ पर आधाररत तत
ृ ीया ि
पञ्चम्यन्त पदों का चयन करें |
प्रस्तुतत :
१॰ डॉ॰ अरुण कुमार शमाय
(शास्त्री)9418666205
रा॰ि॰मा॰पा॰(छात्र) सोलन (हह॰प्र॰)
२॰ डॉ॰ भप
ू ेन्र मोहन शमाय
(शास्त्री)9418488280
रा॰उ॰पा॰ मल
ू बरी(दे िनगर)
शशमला(हह॰प्र॰)


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पाठयोजना
कक्षा—दशमी
विषय:—संस्कृतम ्

उपविषय:-िाङ्मयं तपः

१.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य
व्यिहार में प्रयोग कर पाने की
क्षमता का विकास|
(२) संस्कृत शब्दों का िाचन कर
पाना|
(३) संस्कृत के
विकास करना |

प्रतत

रुचच

का

२.विशिष्ट उद्देश्य :(१) श्लोकों का सस्िर िाचन करना
|
(२) आलङ्काररक विधा का ज्ञान |
(३) मधुर िाणी एिं िाणी के तप
की महत्ता का ज्ञान |
(४) मेधा तथा पाठक के गुणों को
बतलाना |
(५) शशष्य द्िारा ज्ञान प्राप्तत के
स्रोतों का ज्ञान |

३.पूिज्ञ
व ान परीक्षण :(१)

सबसे प्राचीन विश्ि
साहहत्य के ग्रन्थ का नाम
बताये ?

(२) िाणी एिं विद्या की दे िी
कौन सी है ?
(३)िाणी की महत्ता के विषय
में आप क्या जानते हो ?
(४)मधुर एिं कटु िाणी का
क्या प्रभाि पड़ता है ?

४. अशिप्रेरणा:“िाण्येका

समलङ्करोतत परु
ु षं
या संस्कृता धाययते”

विषयिस्तु की उद्घोषणा

आज हम िाणी के
गण
ु ों के महत्त्ि पर
प्रकाश डालेंगे |
हमारा आज का
विषय है :

िाङ्मयं तपः

प्रस्तुतीकरण
श्लोकों का सस्िर आदशयिाचन
ि अनुकरणिाचन
श्लोकगायन –

शारदा शारदाम्भोजिदना िदनाम्बुजे |
सियदा सियदाऽस्माकं सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ्||१||

अन्िय:-

शारद-अम्भोज –िदना सियदा शारदा अस्माकम ् िदनअम्बुजे सियदा सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ् |

अथयः –

शरद ऋतु में खिलने िाले कमल के समान सन्
ु दर मि

िाली सब कुछ प्रदान करने िाले मां सरस्िती हमारे
मि
ु रूपी कमल में हमेशा अपने संपण
ू य िजाने सहहत
तनिास करे |
विशेष विचारणीय :सरस्िती विद्यारूपी कोष को सदा हमारे पास रिकर
हमें ज्ञानिान बनाये |

श्लोकगायन

:अपूिःय कोऽवप कोशोऽयं विद्यते ति भारतत !
व्ययतो िवृ िमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||२ ||

अन्ियः-

भारतत ! ति अयम ् कोशः कः अवप अपि
ू ःय
विद्यते | व्ययतः िवृ िम ् आयातत, संचयात ् च
क्षयम ् आयातत |

अथय :-

हे सरस्ितत ! तेरा यह िजाना कैसा
तनराला है ? जो िचय करने से िवृ ि को प्रातत
होता है और संचचत करने से तनरन्तर क्षय को
प्रातत होता है |

विशेष विचारणीय :-

सामान्य धन िचय करने पर समातत हो जाता
है ,परन्तु सरस्िती का अद्भत
ु ज्ञानरूपी धन िचय
करने से बार –बार अभ्यास में आने पर बढ़ता
ही रहता है

श्लोकगायन :-

नाप्स्त विद्यासमं चक्षुः नाप्स्त सत्यसमं तपः |
नाप्स्त रागसमं दःु िं नाप्स्त त्यागसमं सुिम ् ||३||

अन्ियः –

विद्यासमम ् चक्षुः न अप्स्त,सत्यसमम ् तपः न
अप्स्त |रागसमम ् दःु िम ् न अप्स्त,त्यागसमम ्
सि
ु म ् न अप्स्त |

अथयः –
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है |सत्य से बढ़कर
कोई तप नहीं है |राग के समान कोई दि
ु नहीं है
और न ही त्याग के समान कोई सुि है |

विशेष विचारणीय :-

विद्या ज्ञान का तत
ृ ीय नेत्र है |सत्याचरण ही परम तप
है |मोह ही दःु ि का कारण है और िैराग्य ही सुि है |

श्लोकगायन:न तथा शीतलसशललं न चन्दनरसो न शीतला छाया |
प्रह्लादयतत च परु
ु षं यथा मधरु भावषणी िाणी ||४||
अन्ियः –
यथा मधरु भावषणी िाणी परु
ु षं प्रह्लादयतत तथा
शीतल-सशललम ् न | चन्दनरसः न, शीतला छाया
च न (प्रह्लादयतत) |
अथयः –
जैसे मधुरतायुक्त िाणी मनुष्य को आनन्द प्रदान
करती है िैसा आनन्द न तो शीतल जल से शमलता
है , न चन्दन के लेप से प्रातत होता है और न ही
िक्ष
ृ की शीतल छाया से प्रातत हो सकता है |
विशेष विचारणीय :मधरु िाणी ही हृदय को आनप्न्दत कर सकती है |

श्लोकगायन :शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि ग्रहणं धारणं तथा |
ऊहापोहाथयविज्ञानं तत्त्िज्ञानं च धीगण
ु ा:
||५||
• अन्िय:• शश्र
ु ष
ू ा,श्रिणम ् च एि,ग्रहणं तथा धारणम ्
,ऊह –अपोह ,अथयविज्ञानम ्, तत्त्िज्ञानम ् च
धीगण
ु ा:(सप्न्त)|
• अथय :• सन
ु ने की इच्छा,ध्यान से सन
ु ना,समझना
तथा उस समझ को मन के अन्दर धारण
करना (संभालकर रिना )गण
ु -दोषों को
तकय-वितकय द्िारा वििेचना करना,अथय का
तनश्चय पण
ू य ज्ञान तथा मल
ू अथय और गढ़

रहस्य को जानना |ये सभी बुवि के गुण है |
• विशेष विचारणीय :• ये षड् गुण बुविविकास के हे तु तथा बुवि में
सतत स्थापनीय हैं|

श्लोक गायन :• माधय
य ाक्षरव्यप्क्तःपदच्छे दस्तु सस्
ु म
ु िर:|
• धैयं लयसमथं च षडेते पाठकगण
ु ाः||६||
• अन्ियः :माधय
य ्,अक्षरव्यप्क्तः,पदच्छे दः तु
ु म
सस्
ं ् लयसमथयम ् च एते षट्
ु िरः,धैयम
पाठकगण
ु ाःसप्न्त |
अथय:मधरु ता,अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण,पदों
का विभाजन (सप्न्ध ि समास)सन्
ु दर ि
शुि उच्चारण,गम्भीरता और लय से
युक्त होना |
ये सभी छह गण
ु पढ़ने िाले विद्याथी
के कहे गये हैं |
विशेष विचारणीय :अध्येता को इन सभीषड् गण
ु ों का
आश्रय परमािश्यक है ,क्यों्क इससे
पाठक को लय के आनन्द के साथ –
साथ साथयक पररणाम प्रातत होते हैं |

श्लोक गायन :आचायायत्पादमादत्ते पादं शशष्यः स्िमेधया |
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचाररशभ:||७||
अन्िय :शशष्य:आचायायत ् पादम ् आदत्ते |शशष्यः
स्िमेधया पादम ् आदत्ते,शशष्यः कालेन पादम ्
आदत्ते,शशष्यः सब्रह्मचाररशभः पादम ् आदत्ते |
अथयः –
शशष्य चतुथांश १/४ गुरु से,चतुथांश अपनी बुवि
के बल से, चतथ
ु ांश समय और पररप्स्थतत से
तथा चतथ
ु ांश अपने सहपाठयों से ज्ञानाजयन
करता है |
विशेष विचारणीय :मनष्ु य के जीिन में ज्ञानाजयन करने के ये चार
मख्
ु य स्रोत हैं |

श्लोकगायन :अनद्
ु िेगकरं िाक्यं सत्यं वप्रयहहतं च यत ् |
स्िाध्यायाभ्यसनं चैि िाङ्मयं तपः उच्यते
||८||
अन्ियः :यत ् िाक्यम ् अनद्
ु िेगकरं सत्यम ् वप्रयहहतम ्
च (तथा ) स्िाध्याय-अभ्यसनम ् च एि
िाङ्मयं तपः उच्यते |
अथय: :ऐसा िाक्य जो दःु ि उत्पन्न करने िाला न
हो, सत्ययक्
ु त हो, मधरु और हहतकारी हो
तथा तनत्य स्िाध्याय अभ्यास करना, ये
सभी िाणी के तप कहे गये हैं|
विशेष विचारणीय :सत्य, वप्रय और दःु िरहहत मधरु िाणी
काप्रयोग करना ्कसी कहठन तप से कम
नहीं |

७.समह
ू विभाजन :(१) िाल्मी्किगयः (प्रश्नोत्तराखण)(क) ‘अम्भोजः’ इतत शब्दस्य पयायय: कः ?
(ि) ‘शरत्कालीनः’ इतत कस्य अथयः ?
(ग) सरस्ित्याः कोशः कथं िधयते ?
(घ) कीदृशी िाणी परु
ु षं प्रसन्नं करोतत?
(ङ) बि
ु ेः प्रथमः गण
ु ः कः ?
उत्तर
• कमलम ्
• शारदशब्दस्य
• व्ययात ्
• मधुरिाणी
• शुश्रूषा

(२)व्यासिर्व: - (प्रश्नननमावणम):(क)भारत्याःकोशः अपि
ू ःय |

(ि)पठने अक्षराणां स्पष्टता स्यात ् |
(ग)शश्र
ु ष
ू ायाः अथयः ‘श्रोतुशमच्छा’ |

(घ)रागस्य विलोमः त्यागः |
(ङ)पठनस्य षड्गण
ु ाः |

उत्तर
कस्या:?
केषाम ् ?
का ?
कस्य ?
कतत गुणा: ?

(४)िरद्िाजिर्वः – ( परस्परमेलनम):शीतला
िाणी
िाङ्मयम ्
सशललम ्
शीतलम ्
छाया
विद्यासमम ्
तपः
अपि
शारदा
ू ःय
मधुरभावषणी
कोशः
वप्रयहहतम ्
िाक्यम ्
सियदा
चक्षुः

८.मल्
ू यांकनम ् :-

ज्ञानात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)’शरत्कालीनः’इतत शब्दस्य को अथयः ?
(ि)बुिेः कतत गण
ु ाः ?

उत्तर:
(१)

शरद् ऋतु:
(२) षड् गण
ु ा:

बोधात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)रागशब्दस्य विलोमः कः?
(विराग:)
(ि)शारदाशब्दस्य पयायय:कः? (भारती)

अनप्र
ु योगात्मकस्तरीय प्रश्न :-

(क)शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि--० अत्र
श्लोकाधाररतं सोपानं तनमीयताम |
(ि)तपः,सियदा,माधय
य ,सशललम

् एषाम ्
ु म
शब्दानां िाक्यतनमायणं ्रिययताम|

गह
ृ काययम ् :(१)अन्िय सहहत श्लोकाथय शलिें |
(२)िाणी के महत्त्ि पर प्रकाश डालें
|
(३) पाठ पर आधाररत तत
ृ ीया ि
पञ्चम्यन्त पदों का चयन करें |
प्रस्तुतत :
१॰ डॉ॰ अरुण कुमार शमाय
(शास्त्री)9418666205
रा॰ि॰मा॰पा॰(छात्र) सोलन (हह॰प्र॰)
२॰ डॉ॰ भप
ू ेन्र मोहन शमाय
(शास्त्री)9418488280
रा॰उ॰पा॰ मल
ू बरी(दे िनगर)
शशमला(हह॰प्र॰)


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पाठयोजना
कक्षा—दशमी
विषय:—संस्कृतम ्

उपविषय:-िाङ्मयं तपः

१.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य
व्यिहार में प्रयोग कर पाने की
क्षमता का विकास|
(२) संस्कृत शब्दों का िाचन कर
पाना|
(३) संस्कृत के
विकास करना |

प्रतत

रुचच

का

२.विशिष्ट उद्देश्य :(१) श्लोकों का सस्िर िाचन करना
|
(२) आलङ्काररक विधा का ज्ञान |
(३) मधुर िाणी एिं िाणी के तप
की महत्ता का ज्ञान |
(४) मेधा तथा पाठक के गुणों को
बतलाना |
(५) शशष्य द्िारा ज्ञान प्राप्तत के
स्रोतों का ज्ञान |

३.पूिज्ञ
व ान परीक्षण :(१)

सबसे प्राचीन विश्ि
साहहत्य के ग्रन्थ का नाम
बताये ?

(२) िाणी एिं विद्या की दे िी
कौन सी है ?
(३)िाणी की महत्ता के विषय
में आप क्या जानते हो ?
(४)मधुर एिं कटु िाणी का
क्या प्रभाि पड़ता है ?

४. अशिप्रेरणा:“िाण्येका

समलङ्करोतत परु
ु षं
या संस्कृता धाययते”

विषयिस्तु की उद्घोषणा

आज हम िाणी के
गण
ु ों के महत्त्ि पर
प्रकाश डालेंगे |
हमारा आज का
विषय है :

िाङ्मयं तपः

प्रस्तुतीकरण
श्लोकों का सस्िर आदशयिाचन
ि अनुकरणिाचन
श्लोकगायन –

शारदा शारदाम्भोजिदना िदनाम्बुजे |
सियदा सियदाऽस्माकं सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ्||१||

अन्िय:-

शारद-अम्भोज –िदना सियदा शारदा अस्माकम ् िदनअम्बुजे सियदा सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ् |

अथयः –

शरद ऋतु में खिलने िाले कमल के समान सन्
ु दर मि

िाली सब कुछ प्रदान करने िाले मां सरस्िती हमारे
मि
ु रूपी कमल में हमेशा अपने संपण
ू य िजाने सहहत
तनिास करे |
विशेष विचारणीय :सरस्िती विद्यारूपी कोष को सदा हमारे पास रिकर
हमें ज्ञानिान बनाये |

श्लोकगायन

:अपूिःय कोऽवप कोशोऽयं विद्यते ति भारतत !
व्ययतो िवृ िमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||२ ||

अन्ियः-

भारतत ! ति अयम ् कोशः कः अवप अपि
ू ःय
विद्यते | व्ययतः िवृ िम ् आयातत, संचयात ् च
क्षयम ् आयातत |

अथय :-

हे सरस्ितत ! तेरा यह िजाना कैसा
तनराला है ? जो िचय करने से िवृ ि को प्रातत
होता है और संचचत करने से तनरन्तर क्षय को
प्रातत होता है |

विशेष विचारणीय :-

सामान्य धन िचय करने पर समातत हो जाता
है ,परन्तु सरस्िती का अद्भत
ु ज्ञानरूपी धन िचय
करने से बार –बार अभ्यास में आने पर बढ़ता
ही रहता है

श्लोकगायन :-

नाप्स्त विद्यासमं चक्षुः नाप्स्त सत्यसमं तपः |
नाप्स्त रागसमं दःु िं नाप्स्त त्यागसमं सुिम ् ||३||

अन्ियः –

विद्यासमम ् चक्षुः न अप्स्त,सत्यसमम ् तपः न
अप्स्त |रागसमम ् दःु िम ् न अप्स्त,त्यागसमम ्
सि
ु म ् न अप्स्त |

अथयः –
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है |सत्य से बढ़कर
कोई तप नहीं है |राग के समान कोई दि
ु नहीं है
और न ही त्याग के समान कोई सुि है |

विशेष विचारणीय :-

विद्या ज्ञान का तत
ृ ीय नेत्र है |सत्याचरण ही परम तप
है |मोह ही दःु ि का कारण है और िैराग्य ही सुि है |

श्लोकगायन:न तथा शीतलसशललं न चन्दनरसो न शीतला छाया |
प्रह्लादयतत च परु
ु षं यथा मधरु भावषणी िाणी ||४||
अन्ियः –
यथा मधरु भावषणी िाणी परु
ु षं प्रह्लादयतत तथा
शीतल-सशललम ् न | चन्दनरसः न, शीतला छाया
च न (प्रह्लादयतत) |
अथयः –
जैसे मधुरतायुक्त िाणी मनुष्य को आनन्द प्रदान
करती है िैसा आनन्द न तो शीतल जल से शमलता
है , न चन्दन के लेप से प्रातत होता है और न ही
िक्ष
ृ की शीतल छाया से प्रातत हो सकता है |
विशेष विचारणीय :मधरु िाणी ही हृदय को आनप्न्दत कर सकती है |

श्लोकगायन :शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि ग्रहणं धारणं तथा |
ऊहापोहाथयविज्ञानं तत्त्िज्ञानं च धीगण
ु ा:
||५||
• अन्िय:• शश्र
ु ष
ू ा,श्रिणम ् च एि,ग्रहणं तथा धारणम ्
,ऊह –अपोह ,अथयविज्ञानम ्, तत्त्िज्ञानम ् च
धीगण
ु ा:(सप्न्त)|
• अथय :• सन
ु ने की इच्छा,ध्यान से सन
ु ना,समझना
तथा उस समझ को मन के अन्दर धारण
करना (संभालकर रिना )गण
ु -दोषों को
तकय-वितकय द्िारा वििेचना करना,अथय का
तनश्चय पण
ू य ज्ञान तथा मल
ू अथय और गढ़

रहस्य को जानना |ये सभी बुवि के गुण है |
• विशेष विचारणीय :• ये षड् गुण बुविविकास के हे तु तथा बुवि में
सतत स्थापनीय हैं|

श्लोक गायन :• माधय
य ाक्षरव्यप्क्तःपदच्छे दस्तु सस्
ु म
ु िर:|
• धैयं लयसमथं च षडेते पाठकगण
ु ाः||६||
• अन्ियः :माधय
य ्,अक्षरव्यप्क्तः,पदच्छे दः तु
ु म
सस्
ं ् लयसमथयम ् च एते षट्
ु िरः,धैयम
पाठकगण
ु ाःसप्न्त |
अथय:मधरु ता,अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण,पदों
का विभाजन (सप्न्ध ि समास)सन्
ु दर ि
शुि उच्चारण,गम्भीरता और लय से
युक्त होना |
ये सभी छह गण
ु पढ़ने िाले विद्याथी
के कहे गये हैं |
विशेष विचारणीय :अध्येता को इन सभीषड् गण
ु ों का
आश्रय परमािश्यक है ,क्यों्क इससे
पाठक को लय के आनन्द के साथ –
साथ साथयक पररणाम प्रातत होते हैं |

श्लोक गायन :आचायायत्पादमादत्ते पादं शशष्यः स्िमेधया |
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचाररशभ:||७||
अन्िय :शशष्य:आचायायत ् पादम ् आदत्ते |शशष्यः
स्िमेधया पादम ् आदत्ते,शशष्यः कालेन पादम ्
आदत्ते,शशष्यः सब्रह्मचाररशभः पादम ् आदत्ते |
अथयः –
शशष्य चतुथांश १/४ गुरु से,चतुथांश अपनी बुवि
के बल से, चतथ
ु ांश समय और पररप्स्थतत से
तथा चतथ
ु ांश अपने सहपाठयों से ज्ञानाजयन
करता है |
विशेष विचारणीय :मनष्ु य के जीिन में ज्ञानाजयन करने के ये चार
मख्
ु य स्रोत हैं |

श्लोकगायन :अनद्
ु िेगकरं िाक्यं सत्यं वप्रयहहतं च यत ् |
स्िाध्यायाभ्यसनं चैि िाङ्मयं तपः उच्यते
||८||
अन्ियः :यत ् िाक्यम ् अनद्
ु िेगकरं सत्यम ् वप्रयहहतम ्
च (तथा ) स्िाध्याय-अभ्यसनम ् च एि
िाङ्मयं तपः उच्यते |
अथय: :ऐसा िाक्य जो दःु ि उत्पन्न करने िाला न
हो, सत्ययक्
ु त हो, मधरु और हहतकारी हो
तथा तनत्य स्िाध्याय अभ्यास करना, ये
सभी िाणी के तप कहे गये हैं|
विशेष विचारणीय :सत्य, वप्रय और दःु िरहहत मधरु िाणी
काप्रयोग करना ्कसी कहठन तप से कम
नहीं |

७.समह
ू विभाजन :(१) िाल्मी्किगयः (प्रश्नोत्तराखण)(क) ‘अम्भोजः’ इतत शब्दस्य पयायय: कः ?
(ि) ‘शरत्कालीनः’ इतत कस्य अथयः ?
(ग) सरस्ित्याः कोशः कथं िधयते ?
(घ) कीदृशी िाणी परु
ु षं प्रसन्नं करोतत?
(ङ) बि
ु ेः प्रथमः गण
ु ः कः ?
उत्तर
• कमलम ्
• शारदशब्दस्य
• व्ययात ्
• मधुरिाणी
• शुश्रूषा

(२)व्यासिर्व: - (प्रश्नननमावणम):(क)भारत्याःकोशः अपि
ू ःय |

(ि)पठने अक्षराणां स्पष्टता स्यात ् |
(ग)शश्र
ु ष
ू ायाः अथयः ‘श्रोतुशमच्छा’ |

(घ)रागस्य विलोमः त्यागः |
(ङ)पठनस्य षड्गण
ु ाः |

उत्तर
कस्या:?
केषाम ् ?
का ?
कस्य ?
कतत गुणा: ?

(४)िरद्िाजिर्वः – ( परस्परमेलनम):शीतला
िाणी
िाङ्मयम ्
सशललम ्
शीतलम ्
छाया
विद्यासमम ्
तपः
अपि
शारदा
ू ःय
मधुरभावषणी
कोशः
वप्रयहहतम ्
िाक्यम ्
सियदा
चक्षुः

८.मल्
ू यांकनम ् :-

ज्ञानात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)’शरत्कालीनः’इतत शब्दस्य को अथयः ?
(ि)बुिेः कतत गण
ु ाः ?

उत्तर:
(१)

शरद् ऋतु:
(२) षड् गण
ु ा:

बोधात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)रागशब्दस्य विलोमः कः?
(विराग:)
(ि)शारदाशब्दस्य पयायय:कः? (भारती)

अनप्र
ु योगात्मकस्तरीय प्रश्न :-

(क)शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि--० अत्र
श्लोकाधाररतं सोपानं तनमीयताम |
(ि)तपः,सियदा,माधय
य ,सशललम

् एषाम ्
ु म
शब्दानां िाक्यतनमायणं ्रिययताम|

गह
ृ काययम ् :(१)अन्िय सहहत श्लोकाथय शलिें |
(२)िाणी के महत्त्ि पर प्रकाश डालें
|
(३) पाठ पर आधाररत तत
ृ ीया ि
पञ्चम्यन्त पदों का चयन करें |
प्रस्तुतत :
१॰ डॉ॰ अरुण कुमार शमाय
(शास्त्री)9418666205
रा॰ि॰मा॰पा॰(छात्र) सोलन (हह॰प्र॰)
२॰ डॉ॰ भप
ू ेन्र मोहन शमाय
(शास्त्री)9418488280
रा॰उ॰पा॰ मल
ू बरी(दे िनगर)
शशमला(हह॰प्र॰)


Slide 20

पाठयोजना
कक्षा—दशमी
विषय:—संस्कृतम ्

उपविषय:-िाङ्मयं तपः

१.सामान्य उद्देश्य :(१) संस्कृत भाषा का सामान्य
व्यिहार में प्रयोग कर पाने की
क्षमता का विकास|
(२) संस्कृत शब्दों का िाचन कर
पाना|
(३) संस्कृत के
विकास करना |

प्रतत

रुचच

का

२.विशिष्ट उद्देश्य :(१) श्लोकों का सस्िर िाचन करना
|
(२) आलङ्काररक विधा का ज्ञान |
(३) मधुर िाणी एिं िाणी के तप
की महत्ता का ज्ञान |
(४) मेधा तथा पाठक के गुणों को
बतलाना |
(५) शशष्य द्िारा ज्ञान प्राप्तत के
स्रोतों का ज्ञान |

३.पूिज्ञ
व ान परीक्षण :(१)

सबसे प्राचीन विश्ि
साहहत्य के ग्रन्थ का नाम
बताये ?

(२) िाणी एिं विद्या की दे िी
कौन सी है ?
(३)िाणी की महत्ता के विषय
में आप क्या जानते हो ?
(४)मधुर एिं कटु िाणी का
क्या प्रभाि पड़ता है ?

४. अशिप्रेरणा:“िाण्येका

समलङ्करोतत परु
ु षं
या संस्कृता धाययते”

विषयिस्तु की उद्घोषणा

आज हम िाणी के
गण
ु ों के महत्त्ि पर
प्रकाश डालेंगे |
हमारा आज का
विषय है :

िाङ्मयं तपः

प्रस्तुतीकरण
श्लोकों का सस्िर आदशयिाचन
ि अनुकरणिाचन
श्लोकगायन –

शारदा शारदाम्भोजिदना िदनाम्बुजे |
सियदा सियदाऽस्माकं सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ्||१||

अन्िय:-

शारद-अम्भोज –िदना सियदा शारदा अस्माकम ् िदनअम्बुजे सियदा सप्न्नचधं सप्न्नचधं ्रिययात ् |

अथयः –

शरद ऋतु में खिलने िाले कमल के समान सन्
ु दर मि

िाली सब कुछ प्रदान करने िाले मां सरस्िती हमारे
मि
ु रूपी कमल में हमेशा अपने संपण
ू य िजाने सहहत
तनिास करे |
विशेष विचारणीय :सरस्िती विद्यारूपी कोष को सदा हमारे पास रिकर
हमें ज्ञानिान बनाये |

श्लोकगायन

:अपूिःय कोऽवप कोशोऽयं विद्यते ति भारतत !
व्ययतो िवृ िमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||२ ||

अन्ियः-

भारतत ! ति अयम ् कोशः कः अवप अपि
ू ःय
विद्यते | व्ययतः िवृ िम ् आयातत, संचयात ् च
क्षयम ् आयातत |

अथय :-

हे सरस्ितत ! तेरा यह िजाना कैसा
तनराला है ? जो िचय करने से िवृ ि को प्रातत
होता है और संचचत करने से तनरन्तर क्षय को
प्रातत होता है |

विशेष विचारणीय :-

सामान्य धन िचय करने पर समातत हो जाता
है ,परन्तु सरस्िती का अद्भत
ु ज्ञानरूपी धन िचय
करने से बार –बार अभ्यास में आने पर बढ़ता
ही रहता है

श्लोकगायन :-

नाप्स्त विद्यासमं चक्षुः नाप्स्त सत्यसमं तपः |
नाप्स्त रागसमं दःु िं नाप्स्त त्यागसमं सुिम ् ||३||

अन्ियः –

विद्यासमम ् चक्षुः न अप्स्त,सत्यसमम ् तपः न
अप्स्त |रागसमम ् दःु िम ् न अप्स्त,त्यागसमम ्
सि
ु म ् न अप्स्त |

अथयः –
विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है |सत्य से बढ़कर
कोई तप नहीं है |राग के समान कोई दि
ु नहीं है
और न ही त्याग के समान कोई सुि है |

विशेष विचारणीय :-

विद्या ज्ञान का तत
ृ ीय नेत्र है |सत्याचरण ही परम तप
है |मोह ही दःु ि का कारण है और िैराग्य ही सुि है |

श्लोकगायन:न तथा शीतलसशललं न चन्दनरसो न शीतला छाया |
प्रह्लादयतत च परु
ु षं यथा मधरु भावषणी िाणी ||४||
अन्ियः –
यथा मधरु भावषणी िाणी परु
ु षं प्रह्लादयतत तथा
शीतल-सशललम ् न | चन्दनरसः न, शीतला छाया
च न (प्रह्लादयतत) |
अथयः –
जैसे मधुरतायुक्त िाणी मनुष्य को आनन्द प्रदान
करती है िैसा आनन्द न तो शीतल जल से शमलता
है , न चन्दन के लेप से प्रातत होता है और न ही
िक्ष
ृ की शीतल छाया से प्रातत हो सकता है |
विशेष विचारणीय :मधरु िाणी ही हृदय को आनप्न्दत कर सकती है |

श्लोकगायन :शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि ग्रहणं धारणं तथा |
ऊहापोहाथयविज्ञानं तत्त्िज्ञानं च धीगण
ु ा:
||५||
• अन्िय:• शश्र
ु ष
ू ा,श्रिणम ् च एि,ग्रहणं तथा धारणम ्
,ऊह –अपोह ,अथयविज्ञानम ्, तत्त्िज्ञानम ् च
धीगण
ु ा:(सप्न्त)|
• अथय :• सन
ु ने की इच्छा,ध्यान से सन
ु ना,समझना
तथा उस समझ को मन के अन्दर धारण
करना (संभालकर रिना )गण
ु -दोषों को
तकय-वितकय द्िारा वििेचना करना,अथय का
तनश्चय पण
ू य ज्ञान तथा मल
ू अथय और गढ़

रहस्य को जानना |ये सभी बुवि के गुण है |
• विशेष विचारणीय :• ये षड् गुण बुविविकास के हे तु तथा बुवि में
सतत स्थापनीय हैं|

श्लोक गायन :• माधय
य ाक्षरव्यप्क्तःपदच्छे दस्तु सस्
ु म
ु िर:|
• धैयं लयसमथं च षडेते पाठकगण
ु ाः||६||
• अन्ियः :माधय
य ्,अक्षरव्यप्क्तः,पदच्छे दः तु
ु म
सस्
ं ् लयसमथयम ् च एते षट्
ु िरः,धैयम
पाठकगण
ु ाःसप्न्त |
अथय:मधरु ता,अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण,पदों
का विभाजन (सप्न्ध ि समास)सन्
ु दर ि
शुि उच्चारण,गम्भीरता और लय से
युक्त होना |
ये सभी छह गण
ु पढ़ने िाले विद्याथी
के कहे गये हैं |
विशेष विचारणीय :अध्येता को इन सभीषड् गण
ु ों का
आश्रय परमािश्यक है ,क्यों्क इससे
पाठक को लय के आनन्द के साथ –
साथ साथयक पररणाम प्रातत होते हैं |

श्लोक गायन :आचायायत्पादमादत्ते पादं शशष्यः स्िमेधया |
कालेन पादमादत्ते पादं सब्रह्मचाररशभ:||७||
अन्िय :शशष्य:आचायायत ् पादम ् आदत्ते |शशष्यः
स्िमेधया पादम ् आदत्ते,शशष्यः कालेन पादम ्
आदत्ते,शशष्यः सब्रह्मचाररशभः पादम ् आदत्ते |
अथयः –
शशष्य चतुथांश १/४ गुरु से,चतुथांश अपनी बुवि
के बल से, चतथ
ु ांश समय और पररप्स्थतत से
तथा चतथ
ु ांश अपने सहपाठयों से ज्ञानाजयन
करता है |
विशेष विचारणीय :मनष्ु य के जीिन में ज्ञानाजयन करने के ये चार
मख्
ु य स्रोत हैं |

श्लोकगायन :अनद्
ु िेगकरं िाक्यं सत्यं वप्रयहहतं च यत ् |
स्िाध्यायाभ्यसनं चैि िाङ्मयं तपः उच्यते
||८||
अन्ियः :यत ् िाक्यम ् अनद्
ु िेगकरं सत्यम ् वप्रयहहतम ्
च (तथा ) स्िाध्याय-अभ्यसनम ् च एि
िाङ्मयं तपः उच्यते |
अथय: :ऐसा िाक्य जो दःु ि उत्पन्न करने िाला न
हो, सत्ययक्
ु त हो, मधरु और हहतकारी हो
तथा तनत्य स्िाध्याय अभ्यास करना, ये
सभी िाणी के तप कहे गये हैं|
विशेष विचारणीय :सत्य, वप्रय और दःु िरहहत मधरु िाणी
काप्रयोग करना ्कसी कहठन तप से कम
नहीं |

७.समह
ू विभाजन :(१) िाल्मी्किगयः (प्रश्नोत्तराखण)(क) ‘अम्भोजः’ इतत शब्दस्य पयायय: कः ?
(ि) ‘शरत्कालीनः’ इतत कस्य अथयः ?
(ग) सरस्ित्याः कोशः कथं िधयते ?
(घ) कीदृशी िाणी परु
ु षं प्रसन्नं करोतत?
(ङ) बि
ु ेः प्रथमः गण
ु ः कः ?
उत्तर
• कमलम ्
• शारदशब्दस्य
• व्ययात ्
• मधुरिाणी
• शुश्रूषा

(२)व्यासिर्व: - (प्रश्नननमावणम):(क)भारत्याःकोशः अपि
ू ःय |

(ि)पठने अक्षराणां स्पष्टता स्यात ् |
(ग)शश्र
ु ष
ू ायाः अथयः ‘श्रोतुशमच्छा’ |

(घ)रागस्य विलोमः त्यागः |
(ङ)पठनस्य षड्गण
ु ाः |

उत्तर
कस्या:?
केषाम ् ?
का ?
कस्य ?
कतत गुणा: ?

(४)िरद्िाजिर्वः – ( परस्परमेलनम):शीतला
िाणी
िाङ्मयम ्
सशललम ्
शीतलम ्
छाया
विद्यासमम ्
तपः
अपि
शारदा
ू ःय
मधुरभावषणी
कोशः
वप्रयहहतम ्
िाक्यम ्
सियदा
चक्षुः

८.मल्
ू यांकनम ् :-

ज्ञानात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)’शरत्कालीनः’इतत शब्दस्य को अथयः ?
(ि)बुिेः कतत गण
ु ाः ?

उत्तर:
(१)

शरद् ऋतु:
(२) षड् गण
ु ा:

बोधात्मकस्तरीय प्रश्न :(क)रागशब्दस्य विलोमः कः?
(विराग:)
(ि)शारदाशब्दस्य पयायय:कः? (भारती)

अनप्र
ु योगात्मकस्तरीय प्रश्न :-

(क)शश्र
ु ष
ू ा श्रिणं चैि--० अत्र
श्लोकाधाररतं सोपानं तनमीयताम |
(ि)तपः,सियदा,माधय
य ,सशललम

् एषाम ्
ु म
शब्दानां िाक्यतनमायणं ्रिययताम|

गह
ृ काययम ् :(१)अन्िय सहहत श्लोकाथय शलिें |
(२)िाणी के महत्त्ि पर प्रकाश डालें
|
(३) पाठ पर आधाररत तत
ृ ीया ि
पञ्चम्यन्त पदों का चयन करें |
प्रस्तुतत :
१॰ डॉ॰ अरुण कुमार शमाय
(शास्त्री)9418666205
रा॰ि॰मा॰पा॰(छात्र) सोलन (हह॰प्र॰)
२॰ डॉ॰ भप
ू ेन्र मोहन शमाय
(शास्त्री)9418488280
रा॰उ॰पा॰ मल
ू बरी(दे िनगर)
शशमला(हह॰प्र॰)