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पाठयोजना
कक्षा –दशम ्
विषय-संस्कृत

उपविषय -नास्स्त त्याग समम ् सुखमम ्


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सहायक सामग्री:• संगणक यन्त्र(Computer) ि प्रसङ्गणक यन्त्र
(Projecter) का प्रयोग
,श्यामपट्ट,चाक,झाडन,संकेततका,


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सामान्त्योद्देश्य • छारों को इस योग्य बनाना कक िे पाठ गत शब्दों एिम ् िाक्यों
का शद्ध
ु उच्चारण कर सकें |
• छार पाठगत भािों एिम ् विचारों को ग्रहण कर सकें |
• संस्कृत भाषा के प्रतत छारों में अनुराग उत्पन्त्न करना |
• छारों के सस्ू क्त –भण्डार एिम ् शब्द -भण्डार में
बवृ द्ध करना |
• छारों में गद्य पठन ि अर्थबोध की योग्यता का विकास करना
|


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विशशष्टोद्देश्य• छारों को “नास्स्त त्यागसमं सखम
ु म ् ” नामक
पाठ में तनहहत त्याग भािना से पररचचत
करिाना |
• छारों को बोचधसत्त्ि के पूिथ जन्त्म की कर्ा से
पररचचत करिाना |
• छारों को पाठगत आदशों से प्रेरणा लेकर चररर
तनमाथण के शलये प्रेररत करना |


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पि
ू थ ज्ञान परीक्षण एिम ् अशभप्रेरणा
अध्यापा – विय छात्रो यह चित्र कासाा ह ?

छात्र -

(सम्भावित उत्तर ) यह चित्र महात्मा बुद्ध ाा ह |


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अध्यापा – महात्मा बुद्ध के पूिथ जन्त्म की कर्ाएं ककस पुस्तक में ह ?

छार :- (सम्भावित उत्तर )
जातकमाला पस्
ु तक में


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अध्यापा- जातकम ् शब्द का
क्या अर्थ है ?
छात्र- (सम्भावित उत्तर ) जन्त्म
से सम्बद्ध (महात्मा बद्ध
ु के पि
ू थ
जन्त्म पर आधाररत कर्ा )


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अध्यापा- महात्मा बद्ध
ु के पि
ू थ जन्त्म की
कर्ाओं में क्या शशक्षा दी गयी है ?

छात्र- (सम्भावित उत्तर ) महात्मा बद्ध
ु के
पूिथ जन्त्म की कर्ाओं में दस
ू रों के हहत के
शलये त्याग की शशक्षा दी गयी है |


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उपविषय की उद्घोषणा :वप्रय छारों! आज हम त्याग और दान की
शशक्षा
के महत्त्ि से संबस्न्त्धत आप की पाठ्य पस्
ु तक
मणणका (भाग -२ )

के चतुर्थ पाठ “नास्स्त त्याग समम ् सुखमम ्”
(त्याग के समान सखम
ु नहीं )
का अध्ययन करें गे |


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विषयोपस्र्ापन -

सवु िधा की दृस्ष्ट से पाठ को तीन

अस्न्त्िततयों में विभक्त कर अध्ययन ककया जायेगा |
१ राजीि: ----------------------------------------आयास्न्त्त स्म |
२ अर् कदाचचत ्-----------------------------------------दीयताम ् |
३ अर् स राजा ------------------------ --------तनष्ठम ् |

प्रर्मास्न्त्ितत

राजीि –सोम ! पश्य एतत ्
चचरम ्

:-


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• सोम –अतीि सन्त्
ु दरम ् |
• शोभा – एतत ् तु अजन्त्ता –गह
ु ानां चचरं प्रतीयते
राजीि –आम ! महाराष्रप्रदे शे स्स्र्ता: एता:

अजन्त्ता –गह
ु ा: एि |


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सौरभ:- अहो ! दृष्टम ् |अर तु अनेक –जातक –
चचराणण उट्टककंतातन सस्न्त्त |
दे विका :-जातकं ककं भितत ?
राजीि :-अहं न जाने ! आचायथ प्रक्ष्याम |
|


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(तर गत्िा )
छारा – गरू
ु िर ! जातकं ककं भितत ?
आचायथ: - जातकम ् अर्ाथत ् जन्त्म | ‘जातकमाला ’ इतत नास्म्न पस्
ु तकेभगित
बुद्धस्य पूिज
थ न्त्मन: विविधा: कर्ा: सस्न्त्त | एतासु परहहताय सिथस्िं तयक्तब्यम ्
इत्येि ,शशक्षक्षतम ् | एताहिशीं कर्ां कर्याशम |
छारा:- एिम ् ियम ् एताहिशीं कर्ां श्रोतुम ् उत्सुका |
आचायथ: - श्रूयताम ् ताित ् | बौधचायथस्य आयथशूरस्य जातकमालाया
शशविजताक आधाररता एषा कर्ा|


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“नास्स्त त्याग समम ् सखम
ु म”्
• अर् एकदा भगिान ् बोचधसत्त्ि:बहुजन्त्मस्जथत
पुण्यफलै: शशविनां राजा बभूि |स बाल्यात ् एि
िध
ृ ोपसेिी ,विनयशील:शास्र पारङ्गत च
आशीत ् | जनकल्याणकमथसु रत असौ पुरित ्
प्रजा: पालयतत स्म | कारुण्य –
औदायाथहदसद्गण
ु ोपेत स नगरस्य समन्त्तत
धन धान्त्यसमद्ध
ृ : दानशाला अकारयत ्


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तर अचर्थनां समूह अन्त्न –पान –िसन –रजत –सुिणाथहदकातन अभीष्टातन
िस्ततू न प्राप्य संतष्ु ट: अभित ् | राज्ञ दानशीलताम ् आकण्यथ दे शान्त्तरे भ्योऽवप
जना तं दे शम ् आयास्न्त्त स्म |


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गदयाांश िािन ि सरलार्थ—अध्यापक के सहयोग से
छार गद्यांश िाचन कर के सरलार्थ से अिगत होंगे |

• सरलार्थ :•











-राजीि

–हे !सोम इस चचर को दे खमो |
सोम –बहुत सुन्त्दर है |
शोभा –यह तो अजन्त्ता गुफाओं का चचर है |
राजीि –हााँ , महाराष्र प्रदे श में स्स्र्त ये अजन्त्ता की गुफायें ही ह |
सौरभ –अरे ,!मने दे खमा |यहााँ तो अनेक जातकों के चचर अंककत ह |
दे विका –जातक क्या होता है ?
राजीि –मुझे मालूम नहीं है | आचायथ जी से पूछेंगे |
(िहााँ जाकर )
छार –हे गुरु जी ! जातक क्या होता है ?
आचायथ –जातकम ् अर्ाथत ् जन्त्म |'जातकमाला ' नाम िाली पुस्तक में
भगिान बुद्ध के पूिथ जन्त्म की अनेक कहातनयां ह | इन कर्ाओं में दस
ू रे
के हहत के शलए सब कुछ छोड़ (त्याग ) दे ना चाहहए ,ऐसी शशक्षा दी गई है
| ऐसी ही एक कर्ा म सन
ु ाता हूं |


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• छार –ऐसा ,हमने पढ़ा है कक त्याग के समान सखम
ु नहीं है |हम ऐसी
कर्ा सुनने के उत्सुक ह |
• आचायथ – तो सतु नए | बौद्धाचायथ आयथशरू की जातकमाला से
शशविजातक पर आधाररत यह कर्ा है
• इसके बाद एक बार भगिान बोचधसत्त्ि अनेक जन्त्मों के प्राप्त पण्
ु य
फलों से शशवि जनपद िाशसयों के राजा बन गए |िह बचपन से ही
िद्ध
ृ लोगों की सेिा करने िाला ,विनम्र स्िभाि तर्ा शास्रों का
पस्ण्डत र्ा |लोकहहत के कामों में तत्पर होकर िह पुर के समान
(अपनी )प्रजाओं का पालन करता र्ा |दया , उदारता आहद सद्गण
ु ों
से यक्
ु त होकर उसमें नगर के चारों ओर धन धान्त्य से सम्पन्त्न
दं शालायें बनिाई |
• िहााँ याचकगण खमान –पान –िस्र ,चांदी –सोना आहद मनचाही
िस्तुओं को प्राप्त कर सन्त्तुष्ट होता र्ा |राजा की दान भािना को
सुनकर ,दस
ू रे दे शों से भी लोग उस शशवि दे श में आते र्े |


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समूह विभाजन –

छार चार समूहों में पाठ से सम्बस्न्त्धत कायथ करें गे |
• ााललदास समह
ू –गद्यांश पर आधाररत प्रश्नों के उत्तर शलखमें |
१भगिान ् बोचधसत्त्ि केषां राजा बभि
ू ?
२ राजा का पर
ु ित ् पालयतत स्म ?
३ कस्य समन्त्तात ् राजा दानशाला: अकारयत ् ?
४ केषां समह
ू : संतुष्ट: अभित ् ? |



उत्तर :१




शशिीनाम ् |
प्रजा:|
नगरस्य |
अचर्थनाम ्


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व्यास समूह – कहठन शब्दों का अर्थ शलखमें |
१ उट्टङ्ककतातन २ जातकम ् ३ बोचधसत्त्िम ् ४ शशिीनाम ्
६ सद्गुण-उपेत |

५ िध्
ृ दोपसेिी

उत्तर – १ अंककत २ जन्त्म से सम्बद्ध (महात्मा बद्ध
ु के पि
ू थ
जन्त्म पर आधाररत कर्ा )३ महात्मा बद्ध
के पि
थ न्त्म का

ू ज
नाम ४ शशविजनपद ५ बूढों की सेिा करने िाला ६ श्रेष्ठ
गण
ु ों से युक्त


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भास समह
ू - उचचत अव्यय पद का प्रयोग करें |
(तर ,एकदा ,समन्त्तत:,अर् कदाचचत ् )
१-........भगिान ् बोचधसत्त्ि राजा बभि
ू |
२ -.......अचर्थनाम ् समह
ू : संतष्ु ट: अभित ् |
३-........दानशालासु विचरन ् राजा अचचन्त्तयत ् |
४- स नगरस्य....... दानशाला: अकारयत ् |
उत्तर :१. एकदा २. तर ३. अर् कदाचचत ् ४. समन्त्तत:


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िाल्मीका समह

को शलखमें |
१.प्रतीयते |
२........... |
३............ |
४........... |
५........... |

:-गद्यांश में आए किया पदों

६................
७................
८................
९................
१०..............

|
|
|
|
|

उत्तर :- २ सन्तत ३ ४ िक्ष्याम: ५ ार्यालम ६ बभि
ू ७ आसीत ् ८ पालयतत ९
अाारयत ् १० अभित ्


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द्वितीयास्न्त्ितत :अर् कदाचचत ् दानशालासु विचरन ् स राजा बहुधनलाभेन संतस्
ु तनाम ् अचर्थनां
विरलसंखयां विलोक्य अचचन्त्तयत ् ‘मम अचर्थन तु धनलाभमारेण संतोषं
भजन्त्ते |नन
ू ं ते दानिीरा: सौभाग्यशाशलन यान ् याचका शरीरस्य अङ्गातन
अवप याचन्त्ते |
’एिं राज्ञ स्िेषु गारेषु अवप
तनरासस्क्तं विज्ञाय सकलं
ब्रह्माण्डं व्याकुलं सञ्जातम ् |
राक्षज्ञ एिं विचारयतत सतत तस्य
दानशीलतां परीक्षक्षतंु दे िाचधपतत
शि नेरहीनयाचकस्य रूपं धारतयत्िा
तत्पुरुत अिदत ्


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• –हे राजन ् !भित दानिीरताम ् आकण्यथ आशास्न्त्ित भित्समीपं
आगतोऽशम |दे ि ! रवि –शशश –तारा –मण्डलभवू षतं जगत ् एतत ्
कर्शमि पश्येयम ् चक्षुहीन |


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राजा उिाच –भगिान ् !भिन्त्मनोरर्ं परू तयत्िा आत्मानम ् अनुगह
ुथ ्
ृ ीतं कतम
इच्छाशम | आहदश्यताम ् ,ककं करिाणण ? विप्र उिाच –यहद भिान ् प्रीत
,तदा त्ित्त: एकस्य चक्षुष: दानम ् इच्छाशम येन मम लोकयारा तनबाथधा
भिेत ् | तत ् श्रुत्िा राजा अचचन्त्तयत ् “लोके चक्षुदानं दष्ु करमेि |
• नूनम ् ईदृशं दानं इच्छन ् अयं याचक केनावप प्रेररत स्यात ् !अर्िा भितु
नाम |ककं बहू चचन्त्तनेन |” | इतत विचायथ राजा अभाषत-भो शमर ! ककमेकेन
चक्षुषा ,अहं भिते चक्षुद्थियमेि प्रयच्छाशम इतत |राज्ञ नेरदानार्ं तनश्चयं
ज्ञात्िा अमात्या: विषण्णा भूत्िा अिदन ् –महाराज!अलम ् एतािता
दस्
ु साहसेन ,प्रभूतं धनमेि दीयताम ्


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गदयाांश िािन ि सरलार्थ—अध्यापक के सहयोग से छार गद्यांश िाचन कर
के सरलार्थ से अिगत होंगे |


सरलार्थ :-

• तब एक हदन दानशालाओं में घूमते हुए उस राजा ने अचधक धन की
प्रास्प्त से प्रसन्त्न हुए याचकों की कम हुई संखया को दे खम कर सोचा
–मेरे याचक तो केिल धन प्रास्प्त से ही सन्त्तष्ु ट हो जाते ह |तनश्चय
ही िे दानिीर अचधक सौभाग्यशाली ह , स्जनसे याचक उनके शरीर
के अंग भी मांग लेते ह | इस प्रकार राजा की अपने अंगों के प्रतत
अनासस्क्त जानकर सारा संसार व्याकुल हो गया |
• राजा के ऐसा विचार करने पर उसकी दानशीलता की परीक्षा लेने के
शलए दे िताओं का स्िामी इन्त्ि अंधे याचक का रूप बनाकर उसके
सामने (आकर) बोला- हे राजन ! म आपकी दानिीरता को सन
ु कर
आशा के सार् आपके पास आया हूाँ |हे महाराज !म आखमों का अंधा
सूयथ ,चन्त्ि और तारा समूह से सुशोशभत इस संसार को कैसे दे खम
सकता हूाँ |


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• राजा ने कहा –हे भगिन ् !आपके मनोरर् को परू ा करके
म स्ियं को अनग
ु ह
ृ ीत करना चाहता हूाँ |
• आदे श दें ,म क्या करूं ?ब्राह्मण (इन्त्ि )बोला –अगर आप
मुझसे प्रसन्त्न ह , तो तम
ु से एक आाँखम का दान चाहता हूाँ ,
स्जस से मेरी जीिन यारा कष्टरहहत बन सके | यह सुनकर
राजा ने सोचा – संसार में नेर दान अत्यंत कहठन है
|तनश्चय ही ऐसे दान को चाहने िाला यह याचक ककसी से
प्रेररत ककया गया हो सकता है अर्िा होने दो, अचधक सोच
विचारने से क्या लाभ ?यह सोच कर राजा बोला –हे शमर
!एक
आाँखम से क्या लाभ ?म आपको अपनी दोनों ही
आाँखमें दे ता हूाँ |राजा के नेर दान के तनश्चय को जान कर
मंरी गण दखम
ु ी होकर बोले –हे महाराज ! इतना द ु साहस
रहने दो |आप इसे अत्यचधक धन ही दे दें |


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समह
ू विभाजन –
छार चार समह
ू ों में पाठ से सम्बस्न्त्धत कायथ करें गे |
ााललदास समह
ू –तनम्नललखित
पदों ाा सन्ति विच्छे द ारें –
१ गात्रेष्िवप = गात्रेषु + अवप
२ ममाचर्थनस्तु =
३.दे िाचिपततिः =
४ जगदे तत ् =
५ आगतोऽन्स्म =
६.मनोरर्िः =
७.ाेनावप =

उत्तर :-

२ मम +अचर्थन +तु ३ दे ि + अचधपतत ४ जगद् +एतत ्
५ आगत +अस्स्म ६ मनस ् +रर्: ७ .केन +अवप


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व्यास समूह






:- गदयाांश में आए क्तत्िा ित्यातत श्द ललिें

िारतयत्िा
...............
...............
...............

उत्तर :२ पूरतयत्िा, ३ ज्ञात्िा ,४ भूत्िा


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भास समूह

:- पदयाांश पर आिाररत िश्नोत्तर ललिे
१ सांतुष्टानाम ् अचर्थनाां विरलसांखयाां विलोक्तय ािः अचिततयत ् ?

:-

उत्तर :२ शक्रिः ास्य रूपां ित्ृ िा राज्ञ: दानशीलताां परीक्षितुां समागतिः ?
उत्तर :३ मम ाा तनबाथिा भिेत ् ?
उत्तर :४ लोाे काम ् दष्ु ारमेि ?

उत्तर :१ राजा ,२ नेत्रहीन यािास्य ३ लोायात्रा ४ ििुदाथनां


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िाल्मीका समूह
पद
१.शालासु
२ लाभेन
३ अचर्थनाम ्
४ राज्ञ:
५ गारेषु
६ स्िेषु

:- गदयाांश में आए तनम्न पदों ाा पद पररिय दें
शब्द
शाला

उत्तर :२ लाभ तत
ृ ीया एक िचन
३ अचर्थन ् षष्ठी बहु िचन
४ राजन ् षष्ठी एक िचन
५ गार
सप्तमी बहु िचन
६ स्ि
सप्तमी बहु िचन

विभस्क्त
सप्तमी

िचन
बहुिचन


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तत
ृ ीयास्न्त्ितत :• अर् स राजा तान ् उिाच –
दास्याशमतत प्रततज्ञाय योऽन्त्यर्ा कुरुते मन |
कापथण्यातनस्श्चतमते:क स्यात ् पापतरस्तत ||
• नाहं स्िगं न मोक्षं िा कामये ककन्त्तु आत्ताथनां पररराणाय एि मे तनश्चय |अस्य
याञ्चा िर्
ृ ा मा अस्तु | इत्युक्त्िा स राजा िैद्योक्तविचधना नीलोत्पलम ् इि एकं
चक्षु शनै अक्षतम ् उत्पाट्य प्रीत्या याचकाय समवपथतिान ् |स अवप तत ् नेरं
यर्ास्र्ानम ् अस्र्ापयत ् |ततो महीपाल द्वितीयं नेरमवप शनै तनष्कास्य तस्मै ददौ
|अर् विस्स्मत शि अचचन्त्तयत ् –
• अहो धतृ त !अहो सत्त्िम ् !
अहो सत्त्िहहतैवषता!


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नायम ् चचरं पररक्लेशम ् अनभ
ु वितम
ु ् अहथतत |अत प्रयततष्ये
चक्षुषोऽस्य पन
ु प्रत्यारोपणाय इतत |
कततपयै हदनै व्रणविरोपणे जाते एकदा
राजा सरोिरस्य समीपे विहरतत स्म |
तदा तस्य परु त पन
ु दे िराज शि
उपस्स्र्त: भत्ू िा तस्य त्यागिस्ृ त्तं
प्रशंसन ् अिदत ् –


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शिोऽहमस्स्म दे िेन्त्िस्त्ित्समीपमुपागत |
िरं िण
ु यताम ् ||
ृ ीष्ि राजषे! यहदच्छशस तदच्
एिम ् उक्तेन राज्ञा नेरार्ं प्राचर्थते सतत शिस्य
प्रभािेण आत्मन सत्यपुण्यबलेन च तस्य
प्रर्मम ् एकं चक्षु प्रतत प्रततस्ष्ठतम ् अभित ्
तत द्वितीयमवप |भय
ू प्रीत शि िरम ्
अददात ् –


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शतयोजनपयथन्त्तं शैलानां पारं च िष्टुं समर्थ भि इतत |इतत उक्त्िा शि
तरैि अन्त्तहहथत: अभित ् |
अत सत्यमेि उक्तम ् –
धनस्य तन सारलघो:स सारो
यद् दीयते लोकहहतोन्त्मुखमेन ,
तनधानतां यातत हह दीयमानम ्
,अदीयमानं तनधनैकतनष्ठम ् ||


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गदयाांश िािन ि सरलार्थ—अध्यापक के सहयोग से छार गद्यांश
िाचन कर के सरलार्थ से अिगत होंगे |

इसके बाद िह राजा उन मंत्ररयों से कहने लगा –
म दान करूंगा , ऐसी प्रततज्ञा करके , जो अपने मन
को बदल लेता है अर्ाथत ् प्रततज्ञा को तोड़ दे ता है ,
कायरता के कारण अतनस्श्चत बवु द्धिाले उस व्यस्क्त से
बड़ा पापी और (दस
ू रा )कौन हो सकता है ? भाि यह है
कक सोच –समझ कर शलए गए तनश्चय को बदलना
नहीं चाहहए |
म न स्िगथ चाहता हूाँ अर्िा न मोक्ष चाहता हूाँ ,ककन्त्तु
दीन –द:ु णखमयों की रक्षा के शलए ही मेरा तनश्चय है
|इसकी याचना व्यर्थ नही होनी चाहहए |

सरलार्थ :-


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• यह कहकर उस राजा ने चचककत्सकों द्िारा बताए उपाय
से अपनी नीलकमल जैसी एक आाँखम धीरे से त्रबना
नक
थ याचक को सौंप दी
ु सान के तनकल कर ,प्रेम पूिक
|उसने भी उस आाँखम को यर्ास्र्ान रखम हदया |तब
राजा ने दस
ू री आाँखम भी धीरे से तनकाल कर उसे दे दी
|तब आश्चयथ से आकवषथत हृदय हो कर इन्त्ि सोचने
लगा –
• अहो इसका कैसा धैयथ है ,कैसी मानशसक शस्क्त है
,कैसी प्राणणयों के कल्याण की कामना है ? यह (राजा )
तो अपनी धारणा को प्रत्यक्ष कमथ में बदल रहा है |भाि
यह है कक प्रततज्ञा पण
ू थ करने िाले राजा जैसे लोग , जो
संकल्प उनके मन में होता है , उसे प्रत्यक्ष करके
हदखमाते ह |


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समह
ू विभाजन –
छार चार समह
ू ों में पाठ से सम्बस्न्त्धत कायथ करें गे |
• ााललदास समह
ू :- अधोशलणखमत संस्कृत िाक्यों को
घटनािमानुसार शलणखमए –
१ शि अन्त्तहहथत अभित ् |
२.असौ पुरित ् प्रजा पालयतत स्म |
३ याचक चक्षुष:दानम ् अयाचत ् |
४ एक: शशविनां राजा बभि
ू |
५ शि याचकस्य रूपेण तर आगच्छत ् |
६ राजा प्रसन्त्नतया नेरं याचकाय समवपथतिान ् |
७ शि प्रसन्त्न: अभित ् |
८. स दानी अवप च आसीत ् |


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उत्तर :१ एक: शशविनां राजा बभूि |
२ असौ पर
ु ित ् प्रजा पालयतत स्म |
३ स दानी अवप च आसीत ् |
४ शि याचकस्य रूपेण तर आगच्छत ् |
५ याचक चक्षुष:दानम ् अयाचत ् |
६ राजा प्रसन्त्नतया नेरं याचकाय समवपथतिान ् |
७ शि प्रसन्त्न: अभित ् |
८ शि अन्त्तहहथत अभित ् |


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व्यास समह


:-स्र्ूल पद के आधार पर प्रश्न तनमाथण करें

• १ .स राजा तान ्





उिाच |

२ नेरोत्पाटन – विचध िदयेन
३ विस्मयािस्जथत हृदय: शक्रिः
४ शक्रस्य प्रभािेण एकं चक्षु
५ महहपाल: द्वितीयं नेरमवप
तस्म ददौ |

उक्ता |
अचचन्त्तयत ् |
प्रततस्ष्ठतम ् अभित ् |
शनै उत्पाट्य तनष्कास्य च


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उत्तर :• १ .स राजा कान ् उिाच ?
• २ नेरोत्पाटन – विचध केन उक्ता ?
• ३ विस्मयािस्जथत हृदय: क अचचन्त्तयत ् ?
• ४ कस्य प्रभािेण एकं चक्षु प्रततस्ष्ठतम ् अभित ् ?
• ५ महहपाल: द्वितीयं नेरमवप शनै उत्पाट्य
तनष्कास्य च
कस्मै ददौ ?


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भास समह


:- समास विग्रह ाे अनस
ु ार उचित समस्त
पदों ाो ललिें :-

िद्ध
ृ ोपसेिी ,विनयशील ,धान्त्यसमद्ध
ृ ा:,तनबाथधा ,
समास विग्रह:
१ तनगथता बाधा यस्या:सा
२ धान्त्येन समद्ध
ृ ा:ये ते
३ विनय: शीलं यस्य स:
४ िद्ध
ु ् शीलं यस्य स:
ृ ान ् उपसेवितम

समस्तपदातन
तनबाथधा
..........
..........
...........

उत्तर :२ धान्त्यसमद्ध
ृ ा:,३ विनयशील ४ िद्ध
ृ ोपसेिी


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िाल्मीका समह










पद

:-

कापथण्य –अतनस्श्चतमते:
आत्ताथनाम ्
िैद्योक्तविचधना
अक्षतम ्
व्रणविरोपणे
िण
ृ ीष्ि
अन्त्तहहथत

तनम्नललखित ाठिन श्दों ाे अर्थ ललिें :-

= .....................
=......................
= .....................
=......................
=......................
=.......................
=.....................

अर्थ

उत्तर :१ कायरता के कारण अतनस्श्चत बुवद्ध िाले का , २ दीनद ु णखमयों
के ३ चचककत्सकों द्िारा बताये गये तरीके से ४ त्रबना नक
ु सान
के ५ घाि के ठीक हो जाने पर ६ मांगो ७ अन्त्तधाथन (ओझल हो
गया ) हो गया


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पन
ु रािस्ृ त्त अध्यापक छारों के सार् पाठ की सार रूप में चचाथ करके पाठ से शमलने िाली शशक्षा
के बारे में बताएगा कक दस
ू रे के हहत में दान की गयी र्ोड़ी - सी िस्तु का भी
अत्याचधक महत्त्ि होता है अत हमें दानशील बनना चाहहए |स्जससे हम एक दस
ू रे
के काम आकर अच्छे समाज का तनमाथण कर सकें | समाज में प्रत्येक व्यस्क्त को
अन्त्न दान , धन दान

अतन दान ,

िन दान


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श्रम दान ,रक्त दान तर्ा नेर दान आहद के
शलये स्ियं आगे आना चाहहये|
श्रम दान
रक्त दान
नेर दान


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मल्
ू यांकन


















:- प्रत्येक समह
ू से दो- दो प्रश्न पच्
ू छे जाएंगे

भगिान ् बोचधसत्त्ि केषां राजा बभि
ू ?
राजा का: पुरित ् पालयतत स्म ?
राजा केभ्य दानम ् ददातत स्म ?
केषाम ् समह
ू : संतष्ु ट: अभित ् ?
नेर उत्पाटन विचध: केन उक्ता ?
तनधनैकतनष्ठम ् ककम ् ?
कस्य प्रभािेण एकं चक्षु प्रततस्ष्ठतम ् अभित ् ?
लोके ककं दष्ु करमेि ?

-


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उत्तर :१ शशविनाम ्
२ प्रजा
३ याचकेभ्य:
४ अचर्थनाम ्
५ िैद्येन
६ अदीयमानम ् (िस्त)ु
७ शिस्य
८ चक्षुदाथनम ्


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गह
ृ कायथम ् :• १ '' नेर दान '' की महहमा पर पांच िाक्य
शलखमें |
• २ '' रक्तदान महादान'' के विषय पर चाटथ
बनायें |


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प्रस्तत
ु कत्ताथ :• १ डा. शशिराम प्रिक्ता संस्कृत
रा.ि.मा.वि.कुठे ड़ा स्जला त्रबलासपुर
हहमाचल प्रदे श |
• २ हे मराज प्रिक्ता संस्कृत
रा.ि.मा.वि.खमरगा स्जला कुल्लु
हहमाचल प्रदे श |


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सौजन्त्य :-

• राष्रीय माध्यशमक शशक्षा अशभयान
हहमाचल प्रदे श |