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पंच परमेष्ठी के गण ु अररहन्त के 46 गुण सिद्ध के 8 गण ु आचार्य के 36 मल ू गण ु उपाध्र्ार् के 25 गुण िाधु के 28 मूलगुण अररहन्त के 46 गण ु 34 अततशर् :जन्म के 10 अततशर् :- केवलज्ञान के 10 अततशर् :- 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. रूप िुगंधधत तन पिीना नह ं तनहार नह ं हहत समत व मधरु वचन अतुल्र् बल श्वेत रुधधर िमचतुरस्र िंस्थान वज्रवष ृ भनाराच िंहनन 1008 लक्षण 8 प्राततहार्य : - १०० र्ोजन तक िसु भक्ष िमवशरण में चार मुख हहंिा नह ं उपिगय नह ं कवलाहार नह ं नख केश नह ं बढना अतनसमष दृग छार्ा रहहत ईश्वरपने की िार ववद्र्ा िहहत 10. आकाश गमन अशोक वक्ष ृ , सिंहािन, चौिठ चंवर, तीन छत्र , पुष्प वष्ृ ष्ि, दं द ु सु भ, भामंडल , हदव्र् ध्वतन 4 अनंत चतुष्िर् :- अनंत ज्ञान , अनंत दशयन , अनंत िुख , अनंत वीर्य दे वकृत 14 अततशर् :1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. अधयमागधी भाषा जीवों में आपि में समत्रता ६ ॠतु के िब फ़ल फ़ूल पथ् ृ वी कांच िमान मंद िग ु ंधधत हवा िष्ृ ष्ि हषयमर्ी गंधोदक वष्ृ ष्ि अनुकुल पवन चरण कमल के नीचे कमल तनमयल आकाश तनमयल हदसश आकाश िे जर्जर्कार धमय चक्र अष्ि मंगल द्रव्र् सिद्ध के 8 गण ु अनंत सुख अनंत ज्ञान मॊहनीर् अनंत दर्यन ज्ञानावरणी अनंत वीयय वेदनीर् आर्ु अगुरुलघुत्व अवगाहनत्व अव्याबाधत्व सूक्ष्मत्व आचार्य के 36 मल ू गण ु 12 तप [ 6 बहहरं ग ] १) अनशन २) अवमौदर्य ३) रिपररत्र्ाग ४) ववववक्तशय्र्ािन ५) व्रतीपररिंख्र्ान ६) कार्क्लेश [ 6 अंतरं ग ] १) वैर्ावत्ृ र् २) स्वाध्र्ार् ३) व्र्ुत्िगय ४) ध्र्ान ५) प्रार्ष्श्चत ६) ववनर् 5 आचार १) दशयन २) ज्ञान ३) चाररत्र ४) तप ५) वीर्य 3 गुप्तत १) मनोगुष्तत २) वचनगुष्तत ३) कार्गुष्तत 6 आवश्यक १) िामातर्क २) वंदना ३) स्ततु त ४) प्रततक्रमण ५) प्रत्र्ाख्र्ान ६) कार्ोत्िगय 10 धमय १) क्षमा २) मादय व ३) आजयव ४) ित्र् ५) शौच ६) िंर्म ७) तप ८) त्र्ाग ९) आककंचन्र् १०) ब्रह्मचर्य अन्य 8 गुण १) आचारवान २) आधारवान ३) व्र्वहारवान ४) प्रकत्ताय ) अपार्ोपार्ववदशी ६) अवपीडक ७) अपररस्रावी ८) तनर्ायपक उपाध्र्ार् के 25 गुण (11 अंग 14 पूव)य 11 अंग:1) आचार अंग, 2) ित्र ू कृतांग, 3) स्थानांग, 4) िमवार्ांग, 5) व्र्ाख्र्ाप्रज्ञष्तत, 6) नाथधमयकथा, 7) उपािकाध्र्र्न अंग, 8) अंतःकृतदशांग, 9) अनुत्तरउपपाहदक दशांग, 10) प्रश्नव्र्ाकरणांग, 11) ववपाक ित्र ू 12) दृष्ष्िवाद 1. 5 पररकमय-> चंद्रप्रज्ञष्तत, िूर्प्र य ज्ञष्तत, जम्बद् ू वीपप्रज्ञष्तत, द्वीपिागरप्रज्ञष्तत, व्र्ाख्र्ाप्रज्ञष्तत 2. िूत्र 3. प्रथमानुर्ोग 4. 5 चूसलका -> जलगता, स्थलगता, आकाशगता, मार्ागता, रूपगता 5. 14 पूवय –> 1) उत्पादपूव,य 2) अग्रार्णीपूव,य 3) वीर्ायनुवादपूव,य 4) अष्स्तनाष्स्तप्रवाद पूव,य 5) ज्ञानप्रवाद पव ू ,य 6) ित्र्प्रवाद पूव,य 7) आत्मप्रवाद पूव,य 8) कमयप्रवाद पूव,य 9) प्रत्र्ाख्र्ान पूव,य 10) ववद्र्ानव ु ादपव ू ,य 11) कल्र्ाणानुवादपूव,य 13) प्राणवाद पूव,य 14) कक्रर्ाववशालपूव,य 15) त्रत्रलोकत्रबन्दि ु ार पूवय उपाध्र्ार् के 25 गुण (11 अंग 14 पूव)य 11 अंग:- आचार अंग: मतु नर्ों के आचरण का वणयन है , िसमतत गष्ु तत आहद ित्र ू कृतांग: ित्र ू के माध्र्म िे िमस्त वस्तु का वणयन,ष्जनेन्द्र के श्रत ु के आराधन करने की ववनर्कक्रर्ा का वणयन 3. स्थानांग: छः द्रव्र्ों के एक अनेक स्थानों का वणयन, छः द्रव्र्ों का िंख्र्ा के आधार पर ववभाजन 4. िमवार्ांग: जीवाहद पदाथों का द्रव्र्, क्षेत्र, काल, भाव की िमानता की अपेक्षा िे वणयन 5. व्र्ाख्र्ाप्रज्ञष्तत: गणधर द्वारा तीथंकर के तनकि ककर्े गर्े 60,000 प्रश्नो का वणयन 6. नाथधमयकथा: गणधर दारा ककर्े गर्े प्रश्नों के उत्तररूप जीवाहद द्रव्र्ों के स्वभाव का वणयन 7. उपािकाध्र्र्न अंग, श्रावक की कक्रर्ाओं का वणयन,११ प्रततमा व्रत, शील आहद का वणयन 8. अंतःकृतदशांग: एक एक तीथंकर के तीथयकाल में 10-10 मतु न उपिगय िहहत होकर िंिार का अंत करके तनवायण प्रातत ककर्ा , उनका वणयन है 9. अनत्ु तरउपपाहदक दशांग: 1-1तीथंकर के तीथयकाल में 10-10 मतु न घोर उपिगय िहकर दे वो द्वारा पष्ू जत होकर िमाधधमरण करके पांच अनत्ु तर ववमानो मे उत्पन्न हुए , उनका वणयन है 10. प्रश्नव्र्ाकरणांग: जीवन-मरण का, िख ु -दख ु का, लाभ-हातन के प्रश्नों के भत ू भववष्र्त वतयमान की अपेक्षा िे वणयन 11. ववपाक ित्र ू कमों के उदर्, उद रणा और ित्ता का वणयन है 12. दृष्ष्िवाद समथ्र्ादशयन को दरू करने का वणयन -------------------------------1. 2. 5 पररकमय-> चंद्रप्रज्ञष्तत (चंद्रमा की हदशाओं, कलाओं, गतत, आर्ु, वैभव का वणयन है ), िूर्प्र य ज्ञष्तत: िूर्य की हदशाओं, कलाओं, गतत, आर्ु, वैभव का वणयन है जम्बूद्वीपप्रज्ञष्तत: जम्बूद्वीप िम्बन्धी क्षेत्र, पवयत, िरोवर नद आहद का वणयन 4. द्वीपिागरप्रज्ञष्तत: अिंख्र्ात द्वीप िमुद्रों का, मध्र् लोक के अकृत्रत्रम ष्जन मंहदरों का, भवनवािी,व्र्ंतर, ज्र्ोततष आहद दे वों के आवाि का वणयन है 5. व्र्ाख्र्ाप्रज्ञष्तत: जीव, पुद्गलाहदक द्रव्र् का वणयन है िूत्र: एकांतवाद 363 मतों का वणयन, एकांतवाहदर्ों द्वारा जीव के स्वरूप का एक पक्ष की अपेक्षा मात्र िे वणयन कैिे होता है र्े बतार्ा है प्रथमानुर्ोग: 63 शलाका महापुरुषों के चाररत्र का वणयन जैिे तीथंकर, चक्रवती, 1. 2. 3. 1. 2. 1) 2) 3) 4) 5) 6) 7) 8) 9) 10) 11) 12) 13) 14) 5 चूसलका -> जलगता(जल व अष्नन िे िंबधं धत मार्ा, मंत्र-तंत्र आहद का वणयन), स्थलगता(जमीन मे चलने रूप और भसू म मे प्रवेश िे िंबधं धत मार्ा, मंत्र-तंत्र आहद का वणयन), आकाशगता, मार्ागता, रूपगता 14 पव ू य –> उत्पादपूवय जीवाहद द्रव्र्ों के(अनेक प्रकार की नर् वववक्षा िे और उत्पाद,व्र्र्, ध्रौव्र् िहहत) स्वभाव का भूत,भववष्र्त वतयमान की अपेक्षा िे वणयन अग्रार्णीपूव:य िात तत्त्व,छ्ह द्रव्र्, नौ पदाथय, िात िौ नर् आहद का वणयन वीर्ायनव ु ादपव ू :य आत्मा का स्व वीर्य, पर वीर्य, क्षेत्र वीर्य,काल वीर्य,भाव वीर्य, तप वीर्य,द्रव्र्-गण ु -पर्ायर्ों का शष्क्त रूप वणयन अष्स्तनाष्स्तप्रवाद पूव:य छः द्रव्र्ों का स्व द्रव्र्, क्षेत्र, काल, भाव अपेक्षा आष्स्त और पर द्रव्र्, क्षेत्र, काल भाव अपेक्षा नाष्स्त आहद का वणयन ज्ञानप्रवाद पूव:य पाच िम्र्कज्ञान , तीन अज्ञान (कुमतत, कुश्रुत, ववभंग) इनका स्वरूप, िंख्र्ा, ववपर्, फ़ल की अपेक्षा प्रमाण - अप्रमाण रूप भेद िहहत वणयन ित्र्प्रवाद पव ू :य वचन गष्ु तत,वचन िंस्कार के कारण, वक्ता के भेद, १२ भाषा, दि प्रकार िे ित्र् और अनेक अित्र्ों का वणयन आत्मप्रवाद पूव:य आत्मा जीव है , मूततयक है , ज्ञानी है , कत्ताय है आहद अथायत आत्मा के िवय गुणों का वणयन कमयप्रवाद पूव:य कमों के बंध, उदर्, ित्ता आहद १० अवस्थाओं का वणयन, ईर्ायपथ तपस्र्ा, अधःकमय आहद का वणयन प्रत्र्ाख्र्ान पूव:य नाम, स्थापना, द्रव्र् क्षेत्र काल भाव की अपेक्षा जीवों के िंहनन, बल आहद के अनि ु ार काल की मर्ायदा िहहत त्र्ाग, उपवाि ववधध, 5 िसमतत तीन गुष्तत आहद का वणयन ववद्र्ानुवादपव ू :य 700 अल्प ववद्र्ा, 500 महाववद्र्ाओं का स्वरूप, िामथ्र्य, फ़ल की शष्क्त और 8 प्रकार के तनसमत्त ज्ञान का वणयन कल्र्ाणानुवादपव ू :य तीथंकर आहद के गभय आहद कल्र्ाणकों, 16 कारण भावनाओं, चंद्र िूर्य आहद की गतत,ग्रहण, शकुन, फ़ल आहद का वणयन प्राणवाद पव ू :य शर र की धचककत्िा, आर्व ु ेद आहद का वणयन कक्रर्ाववशालपव , य िं ग ीत शास्त्र आहद 72 कलार्े, सशल्प ववज्ञान िम्र्क्दशयन ू आहद की 108 कक्रर्ाऐं, 25दे व-वंदनाहद कक्रर्ार्ें व तनत्र्-नैसमष्त्तक कक्रर्ाओं का वणयन त्रत्रलोकत्रबन्दि ु ार पूवय तीनो लोको का स्वरूप, 26 पररकमय, 8 व्र्वहार, 4 बीज आहद गणणत, मोक्ष का स्वरूप,मोक्ष गमन की कक्रर्ा, मोक्ष िुख का वणयन िाधु के 28 मूलगुण 5 महाव्रत १) अहहंिाणुव्रत २) ित्र्ाणुव्रत ३) अचौर्ायणुव्रत ४) ब्रह्मचर्ायणुव्रत ५) अपररग्रहाणुव्रत 5 इंद्रिय-ववजय १) स्पशय २) रि ३) गंध ४) वणय ५) कणय 5 सममतत १) ईर्ाय २) भाषा ३) ऎषणा ४) आदानतनक्षेपण ५) व्र्त्ु िगय/प्रततष्ठापना 6 आवश्यक १) िामातर्क २) वंदना ३) स्तुतत ४) प्रत्र्ाख्र्ान ५) प्रततक्रमण ६) कार्ोत्िगय 7 अन्य १) नननता २) अस्नान ३) केश-लोंच ४) अदं त-धवन ५) एक बार आहार ६) खडे-खडे आहार ७) भसू म-शर्न