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कक्षा
: १२ व ीं
ववषय
: हिन्दी
कववता का नाम : उषा
कवव का नाम
:शमशेर बिादरु स िीं
उषाकाल की मनोरम छटा
शब्दार्थ :
भोर- सवेरा होने से पहले का वातावर
नभ- आकाश
चौका - रसोई बनाने का स्थान
ससल – मसाला पीसने के सलये बनाया
पत्थर
केसर – ववशेष फूल
कवव का जीवन पररचय :
जन्म : १३ जनवरी १९११,दे हरादन
ू
सशक्षा : इलाहाबाद ववश्वववद्यालय से उच्च सशक्षा
मत्ृ यु :१९९३
रचनाएँ :(क)काव्य संग्रह – कुछ कववताएँ,इतने पास
अपने , बात बोलेगी|
(ख)संपादन:उदू हहन्दी कोष
(ग) ननबंध संग्रह : दोआब
(सम्मान): साहहत्य अकादे मी तथा कबीर सम्मान
ननधन:सं १९९३,हदल्ली में
केंद्रीय भाव : प्रस्तत
ु कववता उषा
सय
ू ोदय के ठीक पहले के पल-पल
पररवनतूत प्रकृनत का शब्द चचत्र है |कवव
भोर के आसमान का मक
ू दशूक ही नहीं
है | वह भोर की आसमानी गनत को
धरती के जीवन भरे हलचल से
जोड़नेवाला स्रष्टा भी है |
काव्य पींक्ततयााँ:
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है )
बहुत काली ससल जरा से लाल केसर से
कक जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या खड़ड़या चाक मल दी हो ककसी ने
नील जल में या ककसी की
गौर झिलसमल दे ह
जैसे हहल रही हो |
और ....
जाद ू टूटता है इस उषा का अब
सय
ू ोदय हो रहा है |
आशय स्पष्टीकर :
कवव सुबह का मनोहारी व न
ू करते हुए बताता है कक
सुबह का आकाश ऐसा लगता है कक मानो नीला शंख हो | वातावर में नमी प्रतीत होती है |
सुबह – सुबह आकाश ऐसा लगता है कक मानो कोई गीला चौका हो|
आगे कवव कहता है कक सूयू क्षक्षनतज से ऊपर उठता है तो हल्की लासलमा की रोशनी फैल जाती
है |ऐसा लगता है कक काले रं ग की ससल को लाल केसर से धो हदया गया है |अँधेरा काली ससल
तथा सूरज की लाली केसर के सामान लगती है |अँधेरा काली स्लेट के समान और सुबह की
लासलमा खड़ड़या चाक के समान लगता है |
कवव ने भोर के पल-पल बदलते दृश्य का सुन्दर व न
ू ककया है | सूयोदय के समय आकाश में
गहरा नीला रं ग छा जाता है | सूयू की सफ़ेद आभा हदखाई दे ने लगती है |ऐसा लगता है मानो
ककसी गोरी सुंदरी की दे ह नीले जल में हहल रही हो | धीमी हवा या नमी के कार सूयू का
प्रनतबबम्ब हहलता-सा प्रतीत होता है |
कुछ समय बाद सूयोदय होते ही ऊषा का पल पल बदलता सौन्दयू एकदम समाप्त हो जाता है |
काव्य सौन्दयू:
सरल भाषा का प्रयोग है |
कवव ने उषा का सुंदर दृश्य बबम्ब प्रस्तुत ककया है |
ग्रामी पररवेश सजीव हो उठा है |
कवव ने साहहत्त्यक खड़ी बोली का प्रयोग ककया है |
मक्
ु तक छं द है |काव्य गु : माधय
ु ू गु
अलंकार: - शंख जैसे में उपमा अलंकार है |
-“बहुत काली सील की ......मल दी हो ककसी ने’’ तथा “नील जल
में ...सूयोदय हो रहा है |
-उपमान : नीला शंख – सब
ु ह के आकाश के सलए
राख से लीपा हुआ चौका – भोर के नभ के सलए
काली सील - अँधेरे से यक्
ु त आसमान
स्लेट पर लाल खड़ड़या चाक –उगते सूयू की लाली के सलए
नीले जल में गौर झिलसमल दे ह –नीले आकाश में आता सरू ज
गह
ृ कायू :
1. उषा कववता के आधार पर सय
ू ोदय
के ठीक पहले के प्राकृनतक दृश्यों
का व न
ू कीत्जये |
2. भोर के नभ को राख से लीपा
चौका की संज्ञा दी गयी है | क्यों?
3. कववता में कौन – कौन से उपमानों
का प्रयोग ककया गया है ?
धन्यवाद !
प्रस्तुतकताथ:
योगेन्द्र कुमार
स्नातकोत्तरअध्यापक ,हहन्दी
केंद्रीय ववद्यालय सीटीपीएस,
चन्द्रपरु ा, बोकारो
राँची संभाग