कृतज्ञता - Hp.gov.in

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विषय –संस्कृत
कक्षा दशम
उपविषय – ततरुक्कुरल ् –सूक्क्त
सौरभम ्
सामान्य उद्देश्य
श्रिण, िाचन, पठन, लेखन कौशल का विकास
करना |
2. श्लोकों के उच्चारण के प्रतत रुचच पैदा करना |
3. संस्कार एिं नैततक मल्
ू यों का विकास करना |
4. महापुरुषों के चररत्र के माध्यम से जीिनोपयोगी
तथ्यों की जानकारी प्राप्त करना |
1.
विशशष्ट उद्देश्य
1. श्लोकों का शद्ध
ु रूप में उच्चारण करने की ओर
प्रेररत करना |
2. श्लोकों के शब्दार्थ का ज्ञान दे कर अन्िय प्रक्रिया
को अपनाते हुए सरलार्थ करिाना |
3. श्लोकों के िास्तविक तथ्य से अिगत करिाना तर्ा
श्लोकों के अंतगथत व्याकरण प्रक्रिया का बोध
करिाना |
4. सक्ू क्तयों के महत्ि को समझाते हुए संबक्न्धत पाठ
एिं कवि का पररचय करिाना |
अशभप्रेरणा
कृतज्ञता, मधुरवाणी, ववद्या, आचार, संरक्षण एवं सख
ु ानुभतू त से संबन्धधत
चचत्रों को प्रस्तुत करते हुए प्रस्तुत पाठ के तात्पयय को स्पष्ट करना :कृतज्ञता:मधुरवाणी:ववद्या:आचार:सख
ु :-
यं सदा वपतरौ क्लेशं, सहे ते संभिे नण
ृ ाम ् |
न तस्य तनष्कृतत: कतम
ुथ ्, शक्तो िषथशतैरवप ||
वप्रय िाक्य प्रदानेन, सिे तुष्यंतत जन्ति: |
तस्मात ् वप्रयम ् हह िक्तव्यम ्, िचने का दररद्रता ||
अपूि:थ कोSवप कोषोSयम ्, विद्यते ति भारतत |
व्ययतो िवृ द्धमायातत क्षयमायातत संचयात ् ||
आचारात्लभते हह आयु:, आचारात्लभते चश्रयम ् |
आचारात ् कीततथमाप्नोतत, पुरुष: प्रेत्य चेह च ||
विद्या ददातत विनयम ्, विनयात ् यातत पात्रताम ् |
पात्रत्िात ् धनमाप्नोतत, धनात ् धमथ: तत: सख
ु म ् ||
पि
थ ान परीक्षण
ू ज्ञ
1. आभार कब प्रकट क्रकया जाता है ?
2. मधुरिाणी के प्रयोग से क्या लाभ है ?
3. विद्िान क्रकसे कहते हैं?
4. सुख प्राक्प्त का साधन क्या है ?
उपविषय की उद्घोषणा
 ततरुक्कुरल ्-सूक्क्त- सौरभम ् ततरुक्कुरल ् ग्रंर् मे
समस्त मानि के शलए जीिनोपयोगी तथ्यों का
प्रततपादन क्रकया गया है |
 ततरु शब्द “श्री” का िाचक है ततरुक्कुरल पद
का अशभप्राय है “चश्रयायक्
ु तम ् कुरल ् छंद:” अर्िा
श्रीयक्
ु तिाणी |
 आज हम ततरुिलुिर रचचत ततरुक्कुरल ् ग्रंर् के
श्लोकों का संस्कृत में िाचन एिं पठन करें गें |
ये श्लोक इतने ही पवित्र और उपयोगी हैं
क्जतने क्रक श्रीमद्भगिद्गीता के श्लोक |
 ततरुिलुिर तशमल भाषी संत रहे हैं | इनकी
रचना ततरुक्कुरल तशमल साहहत्य की उत्कृष्ट
कृतत है | इसी ग्रंर् से आठ श्लोकों को प्रस्तुत
पाठ में शलया गया है |
प्रस्ततु तकरणम ्
|श्लोक:- १
वपता यच्छतत पत्र
ु ाय बाल्ये विद्याधनम ् महत ् |
वपता अस्य क्रकम ् तप:तेपे इतत उक्क्त:तत ् कृतज्ञता ||
अन्िय:-
वपता पुत्रायबाल्ये महत ् विद्याधनं यच्छतत अस्य
वपता क्रकम ् तप:तेपे इतत उक्क्त तत्कृतज्ञता |
श्लोकार्थ:-
वपता पत्र
ु को बचपन में महान विद्या रूपी धन
को दे ता है वपता ने इस पुत्र के शलए क्रकतना तप
क्रकया? यह कर्न ही उस वपता के प्रतत कृतज्ञता है |
|
श्लोक:- २
अन्िय:-
श्लोकार्थ :-
अििता यर्ा चचत्ते तर्ा िाचच भिेद् यहद |
तदे िाहू: महात्मान: समत्िशमतत तथ्यत: ||
यर्ा अििता चचत्ते तर्ा यहद िाचच भिेद्
महात्मान:तथ्यत: समत्िम ् इतत आहु: |
यहद जैसी सरलता मन में हो िैसी ही
िाणी में भी हो तो महात्मा लोग उसे
सच्चे रूप में समानता कहते हैं |
श्लोक -३
अन्िय :-
श्लोकार्थ:-
त्यक्त्िा धमथप्रदाम ् िाचं परुषाम ् योsभ्यद
ु ीरयेत ् |
पररत्यज्य फलं पक्िं भंक्
ु तेsपक्िं विमढ
ू धी: ||
य: धमथप्रदाम ् िाचं त्यक्त्िा परुषाम ् (िाचं) अभ्यद
ु ीरयेत ्,
(स ्:)विमढ
ंु ते |
ू धी: पक्िं फलं पररत्यज्य अपक्िं (फलं) भक्
जो मढ़
ू बुवद्ध िाला धमथ को प्रदान करने िाली िाणी को
छोड़कर कठोर िाणी बोलता है िह पके हुए फल को
छोड़कर कच्चे फल को खाता है |
श्लोक:- ४
विद्िांस एि लोकेsक्स्मन ् चक्षुष्मन्त: प्रकीततथता:|
अन्येषां िदने ये तु ते चक्षुनामनी मते ||
अन्िय :- अक्स्मन ् लोके विद्िांस: एि चक्षुष्मन्त: प्रकीततथता:,
अन्येषां िदने ये (चक्षुषी) ते चक्षुनामनी मते|
श्लोकार्थ:- इस संसार में विद्िान लोग आँखों िाले कहे गये हैं,
दस
ू रों के मुख पर जो ऑ ंखें हैं िे तो नाम मात्र की
ऑ ंखें कही गई हैं |
श्लोक:- ५
यत ् प्रोक्तं येन केनावप तस्य तत्िार्थ तनणथय:|
कतुुं शक्यो भिेद् येन स वििेक इतत ईररत:||
अन्िय :- येन केन अवप यत ् प्रोक्तं तस्य तत्िार्थ तनणथय:
येन कतुुं शक्य: भिेत ् स: वििेक: इतत ईररत: |
श्लोकार्थ:-
क्जस क्रकसी के भी द्िारा जो कुछ कहा गया है ,
उसके िास्तविक अर्थ का तनणथय क्जसके द्िारा
क्रकया जा सकता है , उसे वििेक कहते हैं |
श्लोक:- ६ िाकपटु: धैयि
थ ान ् मंत्री सभायामप्यकातर: |
स केनावप प्रकारे ण परै : न
पररभय
ू ते ||
अन्िय :- य: मंत्री िाकपटु: धैयि
थ ान ् सभायाम ् अवप अकातर:
(अक्स्त) स: परै : केन अवप प्रकारे ण न पररभूयते |
श्लोकार्थ:- जो बोलने में कुशल, धैयश
थ ाली, सभा में भी
तनडर रहकर अपना परामशथ दे ने िाला होता है , िह
शत्रओ
ु ं के द्िारा क्रकसी भी प्रकार पराक्जत नहीं होता |
श्लोक:- ७
य इच्छत्यात्मन: श्रेय: प्रभत
ू ातन सख
ु ातन च |
न कुयाथदहहतं कमथ स परे भ्यः कदावप च ||
अन्िय :- य आत्मन: श्रेय: प्रभत
ू ातन सख
ु ातन च इच्छतत,
स: परे भ्यः अहहतं कमथ कदावप न कुयाथत ् |
श्लोकार्थ:- जो अपने कल्याण तर्ा अत्यचधक सख
ु ों को
चाहता है , िह कभी भी दस
ू रों के शलए बरु ा
काम नहीं करे |
श्लोक:- ८
आचार: प्रर्मो धमथ: इत्येतद् विदष
ु ां िच: |
तस्माद् रक्षेद् सदाचारम ् प्राणेभ्य: अवप विशेषत: ||
अन्िय :- आचार: प्रर्मो धमथ: इतत एतत ् विदष
ु ां िच:,
तस्माद् प्राणेभ्य: अवप सदाचारम ् विशेषत: रक्षेद् |
श्लोकार्थ:-
सदाचार सिथप्रर्म धमथ है , ऐसा विद्िानों का िचन
है | इसशलये प्राणों से भी विशेष रूप से सदाचार
की रक्षा करनी चाहहए |
सामहू हक कायथ
प्रर्म समह
ू :-
वपता यच्छतत पत्र
ु ाय बाल्ये विद्याधनम ् महत ् |
वपता अस्य क्रकम ् तप:तेपे इतत उक्क्त:तत ् कृतज्ञता ||
प्रश्न संख्या -1 वपता पुत्राय बाल्ये क्रकम ् यच्छतत ? (एकपदे न उत्तरत)
प्रश्न संख्या -2 अस्य वपता तप: तेपे इतत उक्क्त: क्रकम ् भितत ? (पण
ू थ िाक्येन उत्तरत)
प्रश्न संख्या -3 इतत उक्क्त:तत ् कृतज्ञता इत्यस्य संचधरुपम ् क्रकम ् ?
द्वितीय समूह:- य इच्छत्यात्मन: श्रेय: प्रभूतातन सुखातन च |
न कुयाथदहहतं कमथ स परे भ्यः कदावप च ||
उपयक्
ुथ त श्लोकस्य अन्ियम ् स्पष्टम ् कुरुत |
तत
ू : - पाठांतगथत श्लोकों में आये क्रिया पद, शब्द रूपों को छांटों |
ृ ीय समह
चतुर्थ समूह: - स्र्ूल पदातन आधत्ृ य प्रश्न तनमाथणम ् कुरुत |
प्रश्न संख्या -1 तत्िार्थस्य तनणथय: वववेकेन कतुम
थ ् शक्य: |
प्रश्न संख्या -2 साधूनाम ् चचत्ते िाचच च सरलता भितत |
मल्
ू यांकन
ज्ञानात्मक स्तर:प्रश्न संख्या-1 अक्स्मन ् लोके के एि चक्षुष्मन्त: प्रकीततथता: | (एकपदे न उत्तरत)
प्रश्न संख्या-2 शब्दै : सह प्रत्ययम ् योजयत :विद्या + मतप
ु ् = ............... |
नीतत + मतुप ् =................. |
प्रश्न संख्या-3 वपता विद्या धनम ् कस्मै यच्छतत| (पूणथ िाक्येन उत्तरत)
बोधात्मक स्तर:प्रश्न संख्या-1 यच्छतत, भिेत, पत्र
ु ाय, सख
ु ातन, चचत्ते का पद पररचय दो |
प्रश्न संख्या-2 अहहतम ्, तत्िार्थतनणथय: का विग्रह पूिक
थ समास का नाम शलखो |
विश्लेषणात्मक
प्रश्न संख्या-1
प्रश्न संख्या-2
प्रश्न संख्या-3
स्तर:विमूढ़धी: ि वििेकी शब्दों में शभन्नता स्पष्ट करो |
सध
ु ी:, तनचध:, मंदधी: शब्दों में अंतर स्पष्ट करो |
हहत ि अहहत कायों से आप क्या समझते हैं,स्पष्ट करो |
अनप्र
ु योगात्मक स्तर :प्रश्न संख्या-1 पाठांतगथत श्लोकों में आये पुत्राय ि यच्छतत पद के समान आप चार पद शलखकर
उनका पद पररचय प्रस्तत
ु करें |
प्रश्न संख्या-2 पाठांतगथत श्लोकों में से आप को क्रकस श्लोक ने अचधक प्रभावित क्रकया और क्यों?
सज
ृ नात्मक स्तर:- श्लोकों में से सक्ू क्तयों को छांटकर शलखें तर्ा उनसे संबक्न्धत अन्य सक्ू क्तयों
को शलखें |
गह
ृ कायथ
 श्लोकों का सस्िर िाचन करना |
रुचच के अनस
ु ार क्रकसी एक श्लोक के अर्थ को ध्यान
में रख कर चचत्रांकन प्रस्तुत कर संबक्न्धत श्लोक को
अर्थ सहहत शलखना |
प्रस्तत
ु कताथ
डॉ0 हे म प्रकाश शमाथ (शास्त्री)
रा0 ि0 मा0 पा0 लालपानी
क्जला शशमला (हह0 प्र0)|
डॉ0 दन
ु ीचंद शमाथ (शास्त्री)
रा0 ि0 मा0 पा0 सपाटू
क्जला सोलन (हह0 प्र0)|