कक्षा – ९ व ीं ( ‘ ब ’ कोर्स ) व्यावहारिक व्याकिण - २० अींक • वर्ण-ववच्छे द , वर्णनी :

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Transcript कक्षा – ९ व ीं ( ‘ ब ’ कोर्स ) व्यावहारिक व्याकिण - २० अींक • वर्ण-ववच्छे द , वर्णनी :

कक्षा – ९ व ीं ( ‘ ब ’ कोर्स )
व्यावहारिक व्याकिण - २० अींक
• वर्ण-ववच्छे द , वर्णनी : ‘ र ’ के ववभिन्न रूप , अनुस्वार ,
अनन
४
ु ाभिक , नक्
ु र्ा ( आगर् ध्वननयााँ )
• पाठों के िंदिण में उपिगण – प्रत्यय िे शब्द ननमाणर्
३
• पयाणयवाची,ववलोम,अनेकार्थी शब्द,वाक्यांशों के भलए एक शब्द
४
• वाक्यों के अंग – िरल वाक्य
३
• ववराम चचह्नों का प्रयोग
३
• मह
ु ावरों का वाक्य – प्रयोग
३
वर्ण - ववच्छे द
वणस – ववच्छे द :- िंश्ललष्ट वर्ों को अलग-अलग करना। जैिे – ‘ क ’ में क् र्र्था अ का
िंगम है । अर्: ‘ क ’ का वर्ण-ववच्छे द है – क् + अ ।
वणस - व्यवस्था के कुछ महत्तत्तवपण
ू स नियम :-
• प्रत्येक व्यंजन हलंर् िहहर् होर्ा है । जैिे – क् , ख ् , प ् , श ् आहद।
• व्यंजन का उच्चारर् स्वर के बिना नह ं ककया जा िकर्ा है । अर्: अक्षरमाला में उिे
क् + अ , ख ् + अ , प ् + अ , श ् + अ आहद रूपों में भलखा जार्ा है ।
• व्यंजन में स्वरों के योग िे ननम्नभलखखर् रूप िनर्े हैं –
क् + आ = का
क् + इ = कक
क् + ई = की
क् + ऊ = कू
क् + ए = के
क् + ऐ = कै
क् + ऋ = कृ
क् + औ = कौ
क् + ङ = कं
क् + अ: = क:
• ववशेष वर्ण िंयोग –
क् + ष = क्ष
र् ् + र = त्र
श ् + र = श्र
द् +य ्+अ = द्य
द् + व ्+ अ = द्व ह् + म ्+ अ = ह्म
र् + क् + अ = कण
ह् + न ् + अ = ह्न द्+ ध ् + अ = द्ध
क् + उ = कु
क् + ओ = को
क् + अाँ = काँ
ज ् + ञ = ज्ञ
क् + र् = अ = क्र
ल ् + ल ् + अ = ल्ल
वर्ण – ववच्छे द कीश्जए :-
उत्र्र :-
• ज्ञान …………………………………………
• ज ् + ञ ्+ आ + न ्+ अ
• श्रवर् ………………………………………
• श ् + र् + अ + व ् +अ + र् ् + अ
•
हररद्वार………………………………………
• ह् + अ + र् + इ + द् + व ् + आ + र् + अ
• उद्धार ………………………………………..
• ध्वनन ……………………………………….
• वाक्य ……………………………………….
• स्वर्ंत्र ……………………………………..
• कुरुक्षेत्र …………………………………….
• अननवायण …………………………………
• चचह्न
………………………………………..
• उ + द् + ध ् + आ + र् + अ
• ध ् + व ् + अ + न ्+ इ
• व ् + आ + क् + य ् + अ
• ि ् + व ् + अ + र् ्+ अ + न ् + र् ् +र् + अ
• क् + उ + र् +उ + क् +ष ् +ए + र् ् + र् + अ
• अ + न ्+ इ + व ् +आ + र् +य ् + अ
• च ् + इ + ह् + न ् + अ
• ह् + ड् + ड् + इ +य ् + आाँ
• द र्ण ………………………………………….
• द् + ई + र् + र् ् + अ
• उष्र …………………………………………..
• उ + ष ् + ट् + र् + अ
• ररपु ………………………………………….
• र् + इ + प ् + उ
• महत्त्व ………………………………………..
• म ् + अ + ह् + अ + र् ् + र् ् + व ् + अ
• पर क्षा ………………………………………..
• प ् + अ + र् + ई + क् + ष ् + आ
• ऋवष ………………………………………….
• ऋ + ष ्+ इ
• हहंद ……………………………………………
• ह् + इ + न ् + द् + ई
• वर्णनी ………………………………………….. • व ् + अ + र् + र् ् + अ + न ् + ई
• अभ्याि ……………………………………….. • अ + ि ् + य ् +आ + ि ् + अ
• ववद्यालय
………………………………………
• िंयुक्र्
……………………………………………
• व ् + इ + द् + य ् + आ + ल ् + अ + य ् + अ
• ि ् + अ + न ् + य ् + उ + क् + र् ् + अ
• उ + ल ्+ ल ्+ ए + ख ्+ अ
अनुस्वार और अनुनाभिक में अंर्र
• अनुस्वार ( ंं) मूलर्: अनुनाभिक व्यंजन
( ङ् , ञ ् , र् ् , न ् , म ् ) का मात्रा रूप है । इिे
िोलर्े िमय प्रलवाि – वायु नाक िे िाहर
ननकलर्ी है । उदाहरर्र्या - हं ि , र्ंट , चंपा ,
शंख आहद ।
• अनन
ु ाभिक (ंाँ ) मल
ू र्: स्वर होर्े हैं । इनका
उच्चारर् मख
ु और नाभिका दोनों िे होर्ा है ।
उदाहरर्र्या – आाँख , हाँिमख
ु , िाँिाल , िाँवार ,
‘ र ’ के ववभिन्न रूप
‘ र ’ हहन्द का ववशेष वर्ण है । इिके लेखन में िवाणचधक ववववधर्ा है ।
• ‘ र ’ पर ‘ उ ’ या ‘ ऊ ’ की मात्रा इि प्रकार लगर्ी है –
र् + उ = रु
र् + ऊ = रू
• यहद ‘ र ’ के िाद कोई व्यंजन हो र्ो ‘ र ’ अगले स्वर युक्र् व्यंजन पर श्स्र्थर् हो जार्ा है ।
उदाहरर् –
ननर् + मल = ननमणल
पुनर + रचना = पुनरण चना
ननर् + िय = ननिणय
भशरोरे खा पर जार्े िमय ‘र ’ ( रे फ़ ) मात्रा का रूप धारर् कर लेर्ा है ।
• यहद ‘र ’ ( स्वर िहहर् र ) ककिी व्यंजन की िाद आर्ा है र्ो उिके रूप भिन्न हो जार्े हैं।
पाई वाले व्यंजनों के िार्थ ‘ र ’ का रूप ननम्न प्रकार िे आर्ा है –
र् ् + र = त्र
क् + र = क्र
श + र = श्र
प ् + र = प्र
उदाहरर् – पत्र , क्रम , ग्रह , प्रकार , िद्रर्ा , िंक्रमर् , श्रवर् , नम्रर्ा आहद।
• बिना पाई वाले व्यंजन के िाद आने पर ‘ र ’ इि प्रकार रूप धारर् करर्ा है –
ट् + र = र
ड् + र = ड्र
‘ ऋ ’ की मात्रा का प्रयोग –
क् + ऋ = कृ ह् + ऋ = हृ म ् + ऋ = म ृ ध ् + ऋ = ध ृ
उदाहरर् - कृष्र् , मत्ृ यु , हृदय , िज
ृ न , उद्धृर् , पर्थ
ृ क , िंस्कृर् ,
दृश्ष्ट आहद।
अद्धणचंद्राकार ( ऑ ) – हहन्द में कुछ अंग्रेज़ी ध्वननयााँ स्र्थान पा
चक
ु ी हैं। कॉलेज , िॉक्टर आहद शब्दों में कुछ ऐिी ध्वननया~म
होर्ी हैं जो हहन्द के भलए नई हैं। कॉलेज के ‘ कॉ ’ में न र्ो ‘ का ’ है
न र्ो ‘ को ’। यह ‘ आ ’ और ‘ ओ ’ के िीच की ध्वनन है । इिे ( ऑ )
अधणचंद्राकार रूप में व्यक्र् ककया जार्ा है ।
उदाहरर् – कॉटे ज , मैकॉले , कॉलगेट , िॉग , िॉलर , चॉक ,
ऑकफ़ि आहद।
उदण ू की क़ , ख़ , ग़ , ज़ , फ़
नक्
ु र्ा (
.) हहन्द
ध्वननयााँ
की ध्वननयों िे भिन्न हैं।
अंग्रेज़ी में ज़ र्र्था फ़ ध्वननयााँ हहन्द की ज र्र्था फ िे भिन्न हैं।
अंग्रेज़ी र्र्था उदण ू शब्दों में ‘ ज़ ’ र्र्था ‘ फ़ ’ का प्रयोग करर्े िमय ननक्र्ा ( . )
का प्रयोग करना चाहहए। नक्
ु र्े बिना िी ये शब्द स्वीकीयण हैं। क़ , ख़ र्र्था ग़
में अिी नक्
ु र्ा लगाने की कोई ववशेष आवलयकर्ा नह ं िमझी गई।
उदाहरर् –
ज़ – इज़रायल , ररल ज़, ब्लेज़र , ज़ज , कमज़ोर , मज़दरू , श्ज़ंदगी ,
इज़्ज़र् , मर ज़ , ज़ल्
ु म , ज़रा , ज़ेवर , ज़ोरदार , ज़ल्
ु फ,
फ़ - फ़ादर , फ़ीचर , फ़्रेंच , फ़ोटो , फ़ज़ण , फ़ररयाद , फ़र्वा ,
फ़जीहर् , फ़कीर , फ़रमान , फ़रमाइश आहद।
व र्ण नी
वर्णनी :- वर्णनी का र्ात्पयण है - शब्दों में प्रयक्
ु र् वर्ों की क्रभमकर्ा। ककि शब्द में वर्ों का
क्या क्रम र्र्था स्र्थान है , इिका ननलचय वर्णनी करर्ी है । शुद्ध िाषा भलखने और पढ़ने में शुद्ध
उच्चारर् का िहुर् महत्त्व है । हहंद ध्वन्यात्मक िाषा है । इिमें जो िोला जार्ा है , वह
भलखा जार्ा है । इिभलए हहंद की वर्णनी में प्रचभलर् होने वाल अचधकांश अशुवद्धयों का कारर्
उनका अशुद्ध उच्चारर् है ।
िामान्य रूप िे प्रचभलर् अशुवद्धयााँ और उनके शुद्ध रूप :अशद्ध
ु
शद्ध
ु
अशद्ध
ु
शद्ध
ु
अशद्ध
ु
शद्ध
ु
र्ननष्ट
र्ननष्ठ
अमावलया
अमावस्या
आदिण
आदशण
धोका
धोखा
अिोक
अशोक
प्रशाद
प्रिाद
भमष्टान्न
भमष्ठान
नमलकार
नमस्कार
कलट/कस्ट
कष्ट
हहंदस्
ु र्थान
हहंदस्
ु र्ान
प्रिंिा
प्रशंिा
िमण
शमण
धंदा
धंधा
शाशन
शािन
ववषद
ववशद
मनलु य
मनष्ु य
अभिशेक
अभिषेक
रास्र
राष्र
अशद्ध
ु
शद्ध
ु
अशद्ध
ु
शद्ध
ु
अशद्ध
ु
शद्ध
ु
पब
ू स
पव
ू स
ककिि
ककिण
कृप्या
कृपा
बाण
वाण
ििभूमम
िणभूमम
कत्त्ास
क्ास
बि
वि
िामायि
िामायण
आल ्हाद
आह्लाद
बबष
ववष
प्रिाम
प्रणाम
प्रज्ज्वमल्
प्रज्वमल्
जमिाज
यमिाज
पन्
ु य
पण्
ु य
द्वींद
द्वींद्व
जजमाि
यजमाि
उदे श्य
उद्देश्य
आध ि
अध ि
जादव
यादव
उज्वल
उज्ज्वल
आजकाल
आजकल
कछा
कक्षा
कत्त्सव्य
क्सव्य
ििाज
िािाज
छबत्रय
क्षबत्रय
ब्राम्हण
ब्राह्मण
िहहए
िाहहए
छमा
क्षमा
स्वास्थ
स्वास््य
अन्थ
अन्चथ
िछत्र
िक्षत्र
चिन्ह
चिह्ि
क्योंकी
क्योंकक
लक्ष्छण
लक्षण
र्टे शि
स्टे शि
बुद्ध
बुवद्ध
अशद्ध
ु
शद्ध
ु
अशद्ध
ु
शद्ध
ु
अशद्ध
ु
शद्ध
ु
आशीवाद
आश वासद
गरू
ु
गरु
ु
कन्गि
कींगि
नििोग
ि िोग
पत्त्ति
पत्ति
दन्ड
दीं ड
बबमािी
ब मािी
रिवष
ऋवष
पत्न्ड्
पींडड्
शन्
ु य
शन्
ू य
क्षत्र य
क्षबत्रय
इस्कूल
स्कूल
अहहल्या
अहल्या
जाग्
ृ
जाग्र्
र्स्
ु वाग्
स्वाग्
अिर्
ु य
ु ा
अिर्य
ू ा
प्रभू
प्रभु
श्ींग
ृ ाि
शग
ीं ृ ाि
अींधेिा
अँधेिा
र्हस्त्र
र्हस्र
अँदि
अींदि
स्राप
श्ाप
दाीं्
दाँ्
र्ौहाद्र/र्ौहाद्रस
र्ौहादस
र्न्यार्
र्ींन्यार्
परिछे द
परिच्छे द
आींख
आँख
ववनछि
ववत्च्छन्ि
माींर्
माँर्
कमसधायस
कमसधािय
ओद्योचगक
औद्योचगक
ग्रही्
गह
ृ ी्
दष्ॄ टा
द्रष्टा
त्तयौहाि
त्तयोहाि
प्रदमशसि
प्रदशसि
अशद्ध
ु
शद्ध
ु
अशद्ध
ु
शद्ध
ु
अशद्ध
ु
शद्ध
ु
उपिोक््
उपयक्
ुस ्
जायें
जाएँ
परििाम
परिणाम
जग्गुरु
जगदगुरु
दे खखये
दे खखए
उधाहिण
उदाहिण
ििे न्दि
ििे न्द्र
महहलाऐीं
महहलाएँ
कोश श
कोमशश
र्म्मागस
र्न्मागस
िाहहये
िाहहए
पक् का
पक्का
अिाचधकाि
अिचधकाि
ब्ाइये
ब्ाइए
दाइत्तव
दानयत्तव
उ्पा्
उत्तपा्
स्थाई
स्थाय
अींन्याय
अन्याय
दिु ावस्था
दिु वस्था
उजाििा
उजाड़िा
िगन्य
िगण्य
निश्वार्
नि:श्वार्
लिाई
लड़ाई
अिुिोद
अिुिोध
र्न्मुख
र्म्मुख
हहत्न्द
हहन्दी
ववधाथी
ववद्याथी
गय
गई
पिछाय
पिछाई
भार्ा
भाषा
उत्त्िदाई
उत्त्िदाय
िािपाय
िािपाई
पयसत्ति
प्रयत्ति
पयासयवाि शब्द
एक ह अर्थण को प्रकट करने वाले एकाचधक शब्द पयाणयवाची कहलार्े हैं। यूाँ र्ो ककिी िाषा में कोई दो
शब्द िमान अर्थण वाले नह ं होर्े , उनमें िूक्ष्म – िा अंर्र अवलय होर्ा है । परं र्ु अर्थण के स्र्र पर अचधक
ननकट होने वाले शब्दों को िमानार्थी कहा जार्ा है । उदाहरर् अहं कार…. र्मंि , अभिमान , दपण , दं ि
ईलवर….
परमात्मा , प्रिु . जगद श , िगवान
अमर्
ृ ……
अभमय , िुधा , पीयूि , अमी
उद्यान….
उपवन , िगीचा , वाहटका , कुिम
ु ाकर
अंधेरा……
र्म , नर्भमर , अंधकार
कमल….
पंकज , नीरज , जलज , वाररज , पद्म
अनर्चर्थ…
मेहमान , पाहुन , आगंर्क
ु
कपड़ा….
वस्त्र , अंिर , विन , पट , चीर
अिरु ……
दनज
ु , दानव , राक्षि , ननशाचर
कृष्र्…..
मोहन , माधव , गोपाल , चगररधर , केशव
आकाश…
गगन , आिमान , नि , अंिर
गाय…..
गौ , धेनु , िुरभि
आाँख……
नयन , नेत्र , लोचन , दृग , चक्षु
गंगा….
िागीरर्थी , िरु नद , जाह्नवी , बत्रपर्थगा
आग……
अनल , पावक , ज्वाला , अश्नन
गर्ेश…
लंिोदर , गजानन , एकदं र् , ववनायक
र्ोड़ा….
अलव , र्ुरंग , िाश्ज , र्ोटक , हय , िैंधव
आिष
ू र्… अलंकार , गहना , ज़ेवर
र्र….
िदन , गह
ृ , ननकेर्न , आलय
पत्र
ु ….
िेटा , िर्
ु , र्नय , आत्मज , नन्दन
चााँद……
राकेश , शभश , रजनीश , इंद ु
पत्र
ु ी….
िेट , िर्
ु ा , र्नया , आत्मजा , र्नज
ु ा
चााँदनी…… ज्योत्स्ना , चंहद्रका , कौमुद
पत्र्ा….
पत्र , पर्ण , ककिलय , पल्लव
जंगल…
वन , वववपन , कानन , अरण्य
पवणर्….
नग , चगरर , पहाड़, अचल , िूधर , शैल
जल……
पानी , वारर , नीर , िभलल , अंिु
पक्षी…..
खग , ववहग , ववहं गम , पखेरु , अंिज
र्लवार…
खड्ग , अभि , करवाल , कृपार्
पनर्…..
स्वामी , नार्थ , वर , वल्लि , कांर् , िर्ाण
र्ालाि…
र्ाल , िरोवर , िर , पष्ु कर
पत्नी….
गहृ हर्ी , दारा , वधू , वल्लिा , नर्य , िायाण
दे वर्ा……
िुर , अमर , दे व , अजर , वविुध
मनुष्य…
मनुज , मानव , इंिान , जन , नर , आदमी
दध
ू …
पय , दनु ध , गोरि , क्षीर
पथ्
ृ वी….
िू , मह , धरर्ी , धरा , अवनन , विुधा
हदन…..
हदवि , वार , वािर , हदवा
फूल……
पुष्प , कुिुम , प्रिून , िुमन , पुहुप
द:ु ख…..
कष्ट , क्लेश , वेदना , पीड़ा
िंदर…..
कवप , मकणट , वानर , हरर , शाखामग
ृ
नद ….
िररर्ा , र्हटनी , र्रं चगर्ी
बिजल ….
पत्र्थर..
पाहन , प्रस्र्र , भशला , पाषार्
िाल…..
ववद्यर्
ु , दाभमनी , िौदाभमनी , चंचला ,
चपला
ब्राह्मर्…. िद
ू े व , िि
ू रु , ववप्र , द्ववज
वक्ष
ृ ….
पेड़ , र्रु , पादप , ववटप , दरख़्र् , रुक्ष
िफ़ण……
शत्र…
ु .
दलु मन , ररपु , अरर , वैर , अरानर्
िौंरा…… मधुप , मधुकर ,भ्रमर ,अभल,भमभलंद
िेना….
अनी , दल , चमू , कटक , फौज़
महादे व… भशव , शंिु , शंकर , महे श , बत्रनेत्र
िोना…. हे म , कंचन , कंु दन , स्वर्ण , हहरण्य
भमत्र……
िूरज….. हदनकर , हदवाकर , प्रिाकर , िास्कर , रवव
मेर्…
र्ष
ु ार , हहम ,र्हु हन
दोस्र् , िखा , मीर् , िहचर , िुहृद
िादल , जलद , वाररद ,अंिद
ु , पयोद िमद्र
ु ….. जलचध , उदचध , रत्नाकर , िागर , भिंधु ,
अंिुचध
महदरा… िरु ा , मधु , पय , शराि , वारुर्ी
भिंह….
केिर , हरर , शेर , व्याघ्र , मग
ृ ें द्र , मग
ृ राज
मार्ा…… मााँ , जननी , अंिा , मार् ृ
स्वगण…
िैकंु ठ ,िरु लोक ,दे वलोक , द्यल
ु ोक , अमरलोक
युद्ध…
रर् , िंग्राम , लड़ाई , िमर
स्त्री….
नार , महहला , काभमनी , वामा ,रमर्ी , अिला
राबत्र….. रार् , रजनी , ननशा ,याभमनी , ननभश िााँप……
नाग , िपण , िुजग
ं , ववषधर , व्याल , अहह
राजा….. नरे श , नरें द्र , िप
िंिार…..
ू , मह प , िूपाल
जगर् , जग , दनु नया , ववलव , िव
लहू….
रक्र् , ख़न
हार्थ….
ू , रुचधर , शोखर्र्
कर , हस्र् , पाखर्
वाय.ु .
पवन , हवा , िमीर , अननल , मारुर् हार्थी…..
ववलोम शब्द
शब्द
ववलोम
शब्द
अस्र्..
उदय
अक्षम..
शब्द
ववलोम
अनर्वश्ृ ष्ट.. अनावॄश्ष्ट
आदर
ननरादर
िक्षम
अनरु ाग..
ववराग
आहार
ननराहार
अर्थण..
अनर्थण
अनुकूल
प्रनर्कूल
आयार्
ननयाणर्
अनार्थ..
िनार्थ
अंधेरा
उजाला
आकषणर्
ववकषणर्
अपना..
पराया
अवननर्
उन्ननर्
आद्रण
शष्ु क
अमर्
ृ ..
ववष
अल्पायु
द र्ाणयु
आश्स्र्क
नाश्स्र्क
अल्पज्ञ..
िहुज्ञ
अनज
ु
अग्रज
आलिी
पररश्रमी
आकाश
पार्ाल
आशा
ननराशा
अपव्यय.. भमर्व्यय
ववलोम
ववलोम शब्द
शब्द
ववलोम
शब्द
ववलोम
शब्द
ववलोम
आवलयक अनावलयक इच्छा
अननच्छा
उचचर्
अनुचचर्
आय
व्यय
इहलोक
परलोक
उत्र्र
दक्षक्षर्
आगर्
ववगर्
उत्र्र
प्रलन
उत्कषण
अपकषण
आदशण
यर्थार्थण
उग्र
शांर्
उपयोगी
अनप
ु योगी
आहद
अनाहद
उपकार
अपकार
एक
अनेक
आिश्क्र्
ववरश्क्र्
उत्र्थान
पर्न
ऐश्च्छक
अननवायण
आयण
अनायण
उदार
अनद
ु ार
ऋजु
वक्र/कुहटल
आरोह
ववरोह
उत्कॄष्ट
ननकृष्ट
उवणरा
ऊिर
ववलोम शब्द
शब्द
ववलोम
शब्द
ववलोम
शब्द
उद्धर्
ववनीर्
खल
िज्जन
जीवन/जन्म मरर्/मत्ृ यु
उद्दं ि
ववनम्र
गर्
ु
दोष/अवगर्
ु
र्ामभिक
िाश्त्वक
कटु
मधुर
गह
ृ स्र्थ
िंन्यािी
दाएाँ
िाएाँ
कायर
वीर
र्र्
ृ ा
प्रेम
दल
ण
ु ि
िल
ु ि
कननष्ठ
ज्येष्ठ/वरर
ष्ठ
चंचल
श्स्र्थर
दे व
दानव
जय
पराजय
धनी
ननधणन
जड़
चेर्न
धष्ृ ट
ववनीर्
जहटल
िरल
ननंदा
प्रशंिा
कठोर
कृबत्रम
कृर्ज्ञ
नरम/मद
ृ ु
प्राकृनर्क
ववलोम
ववलोम शब्द
शब्द
ववलोम
शब्द
ववलोम
शब्द
ववलोम
ननिणल
ििल
गरु
ु
भशष्य/लर्ु
ध्वंि
ननमाणर्
ननमणल
मभलन
ग्रामीर्
शहर
नवीन
प्राचीन
नूर्न
पुरार्न
जागरर्
ननद्रा
नरक
स्वगण
पक्ष
ववपक्ष
जीववर्
मर्
ृ
ननरर्थणक
िार्थणक
क्रय
ववक्रय
ठोि
र्रल
नीरि
िरि
कीनर्ण
अपकीनर्ण
र्ीव्र
मंद
पक्षपार्ी
ननष्पक्ष
खरा
खोटा
दज
ण
ु न
िज्जन
प्रवश्ृ त्र्
ननवश्ृ त्र्
गहरा
उर्थला
दोषी
ननदोष
पंडिर्
मख
ू ण
ववलोम शब्द
शब्द
ववलोम
शब्द
ववलोम
शब्द
ववलोम
िुराई
िलाई
रक्षक
िक्षक
प्रौढ़
भशशु
िद्र
अिद्र
रुनर्
स्वस्र्थ
िंधन
मोक्ष/मश्ु क्र्
महान
क्षुद्र
लौककक
अलौककक
िष
ू र्
दष
ू र्
मान
अपमान
ववरोध
िमर्थणन
मौखखक
भलखखर्
महात्मा
दरु ात्मा
वैध
अवैध
याचक
दार्ा
यश
अपयश
शुद्ध
अशुद्ध
रहहर्
िहहर्
यर्थार्थण
कश्ल्पर्
िफल
ववफल
राजा
रं क
योगी
िोगी
प्रत्यक्ष
परोक्ष
रुदन
हास्य
ववलोम शब्द
शब्द
ववलोम
शब्द
ववलोम
शब्द
ववलोम
ररक्र्
पूर्ण
िंक्षेप
ववस्र्ार
िदाचार
दरु ाचार
व्यश्ष्ट
िमश्ष्ट
िजीव
ननजीव
िश्ृ ष्ट
प्रलय/ववनाश
लप्ु र्
प्रकट
ित्य
अित्य
स्वर्ंत्र
परर्ंत्र
ववष
अमर्
ृ
िमीप
दरू
स्र्थल
ू
िक्ष्
ू म
वरदान
अभिशाप
िगर्
ु
ननगर्
ुण
िेवक
स्वामी
शीर्
ग्रीष्म
स्र्थायी
अस्र्थायी
िंयोग
ववयोग
शांर्
क्षुब्ध
स्वदे श
ववदे श
ह्रस्व
द र्ण
शोक
हषण
िाकार
ननराकार
िंचध
ववग्रह
अनेकार्थी शब्द
अक्षर.. नष्ट न होने वाले , ईलवर ,
वर्ण
अंिर
कपड़ा , आकाश , कपाि
अर्थण
धन , मर्लि , उद्दे लय
अभल
िौंरा , िखी , कोयल
अंक
गोद , गर्ना के अंक , मध्य
आम
एक फल , िामान्य , मामल
ू
उत्र्र
जवाि , एक हदशा , िाद का
कनक
िोना , धर्ूरा , गेहाँ
कर
हार्थ ,ककरर्, हार्थी की िाँि
ू , टै क्ि
कल
मशीन , चैन , िीर्ा हुआ कल
काल िमय , मॠत्यु
कक्षा छात्रों का िमह
ू , पररचध , िमह
ू
कुल
िि , वंश
गरु
ु
िड़ा , महान ् , भशक्षक
र्ट
र्ड़ा , शर र , हृदय
र्न
िादल , हर्थौड़ा , अचधक िड़ा
ठाकुर दे वर्ा , स्वामी , क्षबत्रय
पय
र्ार
पष्ृ ठ पन्ना , पीठ , िर्ह , पीछे का िाग
दं ि
उद्धार , लोहे या चािनी का
र्ार
िंिा , िज़ा , व्यायाम , िंठल
दध
ू , पानी , अमर्
ृ
िर्
ू
प्रेर् , िीर्ा हुआ , प्रार्ी
दक्षक्षर् हदशा , दाहहना , अनक
ु ूल
मर्
राय , िंप्रदाय , ननषेध
द्ववज दााँर् , ब्राह्मर् , पक्षी
मधु
मीठा , शहद , शराि
नाग
िााँप , हार्थी
मद्र
ु ा
मोहर , भिक्का , मख
ु का िाव
ननशान चचह्न , ध्वज , िंका
वर्ण
जानर् , रं ग , अक्षर
पर्ंग िय
ू ण , कीड़ा , कनकौआ
िोना शयन , एक धार्ु
पत्र
पद
हरर
हार
चचट्ठी , पत्र्ा , िमाचारपत्र
ववष्र्ु , िय
ू ण , इंद्र , िपण , भिंह
पराजय , माला
अनेक शब्दों के भलए एक शब्द
• जो नह ं मरर्ा है
• अमर
• जो िि कुछ जानर्ा हो
• िवणज्ञ
• जो किी िढ़
ू ा न होर्ा हो
• अजर
• जो र्थोड़ा जानर्ा हो
• अल्पज्ञ
• मांि खाने वाला
• मांिाहार
• जो िहुर् कुछ जानर्ा हो
• िहुज्ञ
• शाक-िाजी खाने वाला
• शाकाहार
• श्जिका िानय अच्छा हो
• िानयशाल
• जो ईलवर को मानर्ा हो
• आश्स्र्क
• िहुर् अचधक वषाण
• िहुवश्ृ ष्ट
• जो ईलवर को न मानर्ा हो
• नाश्स्र्क
• िहुर् कम वषाण
• अल्पवश्ृ ष्ट
• जो पहले किी न हुआ हो
• अिर्
ू पव
ू ण
• जि वषाण न हो
• अनावश्ृ ष्ट
• जो पहले हुआ हो
• िर्
ू पव
ू ण
• नीचे की ओर आना
• ननम्नगामी
• स्वयं पैदा होने वाला
• स्वयंिू
• ऊपर की ओर आना
• ऊध्वणगामी
• श्जिका कोई शत्रु न हो
• अजार्शत्रु
• र्ाि काटने वाला
• र्भियारा
• जो शत्रओ
ु ं का नाश करर्ा हो
• शत्रघ्
ु न
• लकड़ी काटने वाला
• लकड़हारा
अनेक शब्दों के भलए एक शब्द
• जानने की इच्छा रखने वाला
• श्जज्ञािु
• श्जिमें िंदेह न हो
• नन:िंदेह
• श्जि पर ववलवाि ककया जा िके
• ववलवािी
• जो ऊपर कहा गया हो
• उपयक्
ुण र्
• जो िहुर् िोलर्ा हो
• वाचाल
• ििको एक-िा दे खने वाला
• िमदशी
• पंद्रह हदनों में होने वाला
• पाक्षक्षक
• श्जिका आकार हो
• िाकार
• श्जिका मूल्य िहुर् अचधक हो
• मूल्यवान
• जो आाँखों के िामने हो
• प्रत्यक्ष
• उपकार को न मानने वाला
• कृर्घ्न
• अच्छे आचरर् वाला
• िदाचार
• उपकार को मानने वाला
• कृर्ज्ञ
• काम िे जी चरु ाने वाला
• कामचोर
• िप्र्ाह में एक िार होने वाला
• िाप्र्ाहहक
• जो कम खार्ा हो
• अल्पाहार
• श्जिके आने की नर्चर्थ ननश्लचर् न हो • अनर्चर्थ
• जो इि लोक में न हो
• अलौककक
• बिना िोचे-ववचारे ककया हुआ ववलवाि •
अंधववलवाि
• श्जिे क्षमा न ककया जा िके
• अक्षम्य
• श्जिे कहा न जा िके
• अकर्थनीय
• जहााँ जाना आिान हो
• िुगम
ववराम चचह्न
लेखक के िावों और ववचारों को स्पष्ट करने के भलए श्जन चचह्नों का प्रयोग
वाक्य में ककया जार्ा है , उन्हे म ‘ ववराम चचह्न ’ कहर्े हैं। इििे वाक्यववन्याि और िावों की अभिव्यश्क्र् में स्पष्टर्ा आ जार्ी है और िौंदयण िी
िढ
जार्ा
।
हहन्द
मेंहैप्रचभलर्
प्रमख
ु ववराम चचह्न ननम्नभलखखर् हैं –
•
•
•
•
•
•
•
•
•
•
पर्
ू ण ववराम
अल्पववराम
अद्णधववराम
प्रलनिच
ू क
ववस्मयाहदिोधक
योजक
ननदे शक (िैि)
अवर्रर् चचह्न
कोष्ठक
हं िपद
(।)
(,)
(;)
(?)
(!)
(-)
(– )
( ‘…..’ ) ( “ ….” )
( )
( /\ )
१ . पर्
ू ण ववराम - िामान्य कर्थन वाले ििी प्रकार के वाक्यों – िरल , िंयक्
ु र्
और भमश्र के अंर् में पर्
ू ण ववराम का चचह्न लगाया जार्ा है ।
जैिे – (क) आओ। (ख) राम अच्छा लड़का है ।
२. प्रलनिच
ू क चचह्न - प्रलनवाचक वाक्यों के अंर् में लगाया जार्ा है ।
जैिे – र्म्
ु हारा क्या नाम है ?
यहद एक ह वाक्य में कई प्रलनिच
ू क उपवाक्य हों र्ो परू े वाक्य की िमाश्प्र्
पर ह प्रलनिच
ू क चचह्न लगाया जार्ा है । जैिे – र्म
ु कहााँ गए र्थे , कैिे आए
और क्या चाहर्े हो ?
३. ववस्मयाहदिोधक / िम्िोधनिच
ू क चचह्न - हषण , ववषाद , र्र्
ृ ा , आलचयण ,
िय , प्रार्थणना आहद शब्दों , पदिंधों , उपवाक्यों र्र्था वाक्यों के अंर् में लगाया
जार्ा है ।
जैिे - (क) आह ! उिे ककर्नी पीड़ा हो रह है । ( शब्द )
(ख) इर्नी लंिी द वार ! ( पदिंध )
(ग) कैिा िद
ंु र दृलय है ! ( वाक्य )
(र्) िाचर्थयो ! आज िभलदान का िमय आ गया है । ( िंिोधन )
४. अल्प ववराम - यह वाक्य के िीच में लगाया जार्ा है ।
(क) एक ह प्रकार के कई शब्दों के िाद , लेककन अंनर्म शब्द के पहले
‘ और ’ का प्रयोग होर्ा है । जैिे – हदल्ल , मम्
ु िई , चेन्नई और
कोलकार्ा िारर् के िड़े शहर हैं।
(ख) एक ह प्रकार के कई पदिंधों या उपवाक्यों के िाद , लेककन अंनर्म
पदिंध के पहले ‘ और ’ का प्रयोग होर्ा है । जैिे – जि हम िोचर्े हैं ,
ववचार करर्े हैं और मनन करर्े हैं र्िी हमारा ज्ञान िढ़र्ा है ।
(ग) वाक्य के प्रारं ि में आने वाले ‘ हााँ ’ , ‘ नह ं ’ के िाद । जैिे – हााँ , र्म
ु
ठीक कहर्े हो। नह ं , मैं ऐिा नह ं कर िकर्ा।
(र्) िंिोधन िच
ू क शब्द के िाद। जैिे – मोहन ! र्म
ु इधर आओ।
(ङ) पर ,परं र्ु , ककंर्ु , लेककन , क्योंकक , िश्ल्क , इिभलए , कफर , वरन ्
आहद िमच्
ु चयिोधक अव्यय िे पहले।जैिे – उिने ने िहुर् मेहनर्
की , परं र्ु िफल न हो िका।
(च) र्ार ख के िार्थ मह ने का नाम भलखने के िाद। जैिे – १५ अगस्र् ,
१९४७ को िारर् स्वर्ंत्र हुआ र्था।
(छ) िंयुक्र् एवं भमश्र वाक्यों में । जैिे – (१) र्ुम जानर्े हो , मैं र्ूमनाकफरना पिंद करर्ा हूाँ। (२) नौकर कमरा झाड़र्ा है , बिस्र्र बिछार्ा है
और िाज़ार िे िौदा लार्ा है ।
(ज) अवर्रर् चचह्न के िाद । जैिे – उिने कहा , “ मैं यह किी नह ं मान
िकर्ा।”
(झ) पत्र में िंिोधन के िाद । जैिे – महोदय , पज्
ू य वपर्ाजी , वप्रय भमत्र ,…।
५. अवर्रर् / उद्धरर् चचह्न - इिके दो रूप हैं – इकहरा ‘……..’ और दोहरा
“……..” ।
(१) कवव या लेखक का उपनाम , पाठों का शीषणक , पस्
ु र्क/िमाचार-पत्र आहद
का नाम भलखने में इकहरे अवर्रर् चचह्न का प्रयोग होर्ा है । जैिे –
िय
ण ांर् बत्रपाठी ‘ ननराला ’ ने ‘ पररमल ’ ग्रंर्थ की रचना की। दि
ू क
ू रा अध्याय
पढ़ो , श्जिका शीषणक है , ‘ वार्ी का महत्त्व ’। ‘ िाल –िारर्ी ’ िच्चों की
पबत्रका है ।
(२) िश्ू क्र्यों या कहावर्ों को स्पष्ट करने के भलए काव्य-पंश्क्र्यों , पदिंधों
और उपवाक्यों में िी इकहरे अवर्रर् चचह्न का प्रयोग होर्ा है । जैिे – उि
िालक पर यह कहावर् लागू होर्ी है , ‘ होनहार बिरवान के होर् चचकने पार् ’
। र्ुलिीदाि ने ित्य ह भलखा है , ‘ बिनु िय होइ न प्रीनर् ’।
(३) लेखक या वक्र्ा के कर्थन को ज्यों का त्यों भलखने के भलए दह
ु रे अवर्रर्
चचह्न का प्रयोग होर्ा है । जैिे – प्राचायण ने कहा , “ ववद्याचर्थणयों को अनश
ु ािन
मे रहकर अध्ययन करना चाहहए।”
६ . योजक चचह्न:-िामाभिक पदों या पन
ु रुक्र् और यनु म शब्दों के मध्य यह
चचह्न लगाया जार्ा है । जैिे – िारर्-रत्न, िख
ु -दख
ु , र्न-मन-धन , र्र-र्र
।
७. ननदे शक चचह्न :- यह योजक चचह्न िे र्थोड़ा िड़ा होर्ा है । वाक्याशों र्र्था
वाक्यों के िीच इिका प्रयोग होर्ा है । (१) ककिी कर्थन के पहले :- र्ल
ु िीदाि
का कर्थन है – “ राम नाम की महहमा अपार है ।” (२) ककन्ह ं वस्र्ओ
ु ं , कायों
आहद का ब्योरा दे ने में । जैिे – वह ननम्नभलखखर् िामान लाया – मिाले ,
दालें , फल , मरु ब्िा , चटनी और अचार।
८. कोष्ठक :- (१) क्रमिच
ू क अंकों या अक्षरों के िार्थ। जैिे- हदशाएाँ चार होर्ी हैं –
(क) पव
ू ण (ख) पश्लचम (ग) उत्र्र (र्) दक्षक्षर्।
(२) किी-किी व्याख्यात्मक शब्दों को कोष्ठक में रखा जार्ा है ।
जैिे – िरर् (दशरर्थ के पुत्र) महार्पस्वी र्थे।
९. हं िपद :-भलखर्े िमय कोई शब्द छूट जाने की श्स्र्थनर् में िंिंचधर् स्र्थान पर हंिपद
लगाकर छूटे शब्द को ऊपर या हाभशए में भलख हदया जार्ा है ।
कक
जैिे - रमेश ने राजू िे कहा /\ र्ुम र्र चले जाओ।
वाक्य के अंग र्र्था िरल वाक्य
वाक्य के अंग :- वाक्य छोटा हो या िड़ा , उिके दो ह अंग होर्े हैं – उद्दे श्य ्था
ववधेय। प्राय: उद्दे लय वाक्य के प्रारं ि में और ववधेय वाक्य के
अंर् में होर्ा है । जैिे –
उद्दे श्य
ववधेय
( श्जिके िारे में िार् कह जाए )
१. िागर्ा हुआ चोर
२. प्रेमचंद का कहाननयााँ
( जो िार् कह जाए )
र्रु ं र् पकड़ा गया।
िड़ी रुचच िे पढ़ जार्ी हैं।
िरल वाक्य :- श्जि वाक्य में एक ह ववधेय र्र्था एक ह िमावपका कक्रया होर्ी
है , उिे िरल वाक्य कहर्े हैं। जैिे –
१. राम आया । २. मोहन ने खाना खाया। ३. एक लड़का और
चपरािी पहुाँच गए। ४. मोहन , िोहन और िल म आ गए हैं।
पहले दो वाक्यों में एक-एक उद्दे लय है , र्ीिरे में दो उद्दे लय हैं और चौर्थे
में र्ीन उद्दे लय हैं , परं र्ु चारों वाक्यों में एक-एक ह ववधेय हैं और एकएक ह िमावपका कक्रया हैं। ये िि िरल वाक्य हैं।
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मह
ु ावरे एवं
लोकोश्क्र्यााँ
अंग-अंग ढ ला होना ( िहुर् र्थक जाना )
हदन िर की दौड़-धप
ू िे मेरा अंग-अंग ढ ला हो रहा है ।
अंग-अंग मस्
ु कराना ( िहुर् प्रिन्न होना )
पर क्षा में प्रर्थम आने के कारर् उिका अंग-अंग मस्
ु करा रहा र्था।
अपना उल्लू िीधा करना (अपना मर्लि ननकालना )
आजकल के नेर्ा िि अपना उल्लू िीधा करने में लगे रहर्े हैं।
कोल्हू का िैल ( हदन –रार् काम में जट
ु े रहने वाला )
िरस्वर्ी दे वी की िहू र्ो कोल्हू के िैल की र्रह काम में लगी रहर्ी है ।
खून – पिीना एक करना ( कठोर पररश्रम करना )
ककिान खून-पिीना एक करके अनाज उगार्े हैं।
चैन की िंिी िजाना ( िख
ु िे रहना )
कपड़े का व्यापार अच्छा चलने के कारर् मोहन चैन की िंिी िजा रहा है ।
झक मारना (िेकार में िमय ििाणद करना )
आलिी और ननकम्मे लोग र्र में खाल िैठकर झक मारर्े हैं।
ढाक के र्ीन पार् (कोई फकण न पड़ना )
खेर्ों में खि
ू खाद िाला,पर फ़िल पहले जैिी हुई। वह ढाक के र्ीन पार्।
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दौड़-धप
ू करना (कहठन पररश्रम करना )
नौकर पाने के भलए मोहन ने काफ़ी दौड़-धूप की।
मश्क्खयााँ मारना (िेकार िैठना )
आजकल अचधकांश पढ़े -भलखे नौजवान मश्क्खयााँ मार रहे हैं।
श्रीगर्ेश करना (आरं ि करना )
आज हम अपनी नई दक
ु ान का श्रीगनेश कर रहे हैं।
गुदड़ी का लाल (िाधारर् ककंर्ु गुर्ी व्यश्क्र् )
अपने वंश में प्रेमचंद गद
ु ड़ी के लाल र्थे।
गागर में िागर िरना (र्थोड़े शब्दों में िहुर् कुछ कह दे ना )
बिहार ने अपने दोहों में गागर में िागर िर हदया है ।
नर्ल का र्ाड़ िनाना (छोट िार् को िड़ा कर दे ना )
पत्रकार लोग नर्ल का र्ाड़ िना दे र्े हैं ।
चल्
ु लू िर पानी में िूि मरना (शमण के मारे मर जाना )
र्ुम जैिे ओछे व्यश्क्र् को र्ो चुल्लू िर पानी में िूि मरना चाहहए।
र्ोड़े िेचकर िोना (गहर नींद में िोना )
वह र्ो ऐिे िो रहा है जैिे र्ोड़े िेच कर िो रहा हो।
गुड़ गोिर होना ( िना िनाया काम बिगड़ जाना )
उिके यहााँ आने िे िारा गड़
ु गोिर हो गया ।
उल्ट गंगा िहाना (प्रनर्कूल कायण करना )
िार-िार एक ह िार् कहकर आप क्यों उल्ट गंगा िहा रहे हैं।
िहर्ी गंगा में हार्थ धोना ( अच्छा मौका दे खकर फ़ायदा उठा लेना )
वहााँ मुफ़्र् में कंप्यूटर भिखाया जार्ा है , र्ुम िी िहर्ी गंगा में हार्थ धो लो।
दध
ू का दध
ू , पानी का पानी (उचचर् न्याय करना )
अदालर् में जाने पर िि कुछ दध
ू का दध
ू , पानी का पानी हो जाएगा।
• अपने माँह
ु भमयााँ भमट्ठू िनना (अपनी िड़ाई आप करना )
• अज्ञानी लोग अपने माँह
ु भमयााँ भमट्ठू िनर्े रहर्े हैं।
• अक्ल पर पत्र्थर पड़ना ( िवु द्ध खराि हो जाना )
• र्ुम्हार अक्ल पर र्ो पत्र्थर पड़ गए हैं, कोई िार् र्ुम्हार िमझ में आर्ी ह नह ।ं
• दाल में कुछ काला होना ( कुछ गड़िड़ होना )
• रोहहर् को आज यहााँ आना र्था, पर वह नह ं आया। ज़रूर दाल में कुछ काल है ।
• दााँर् खट्टे करना ( िुर र्रह हराना )
• रानी लक्ष्मीिाई ने अंग्रेज़ों के दााँर् खट्टे कर हदए।
• चचकना र्ड़ा ( िेशमण )
• वह चचकना र्ड़ा है , लाख िमझाओ, मानर्ा नह ं।
• कलई खुलना (रहस्य खुलना )
• ढोंगी िाधु की हरकर्ों िे उिकी कलई खुल गई।
• ऊाँट के माँह
ु में जीरा ( ज़्यादा खाने वाले को कम दे ना )
• िीम के भलए दि रोहटयााँ ऊाँट के माँह
ु में जीरा के िमान है ।
• अपने पैरों पर खड़ा होना ( स्वावलम्िी होना )
• पर क्षा पाि करके नौकर पा जाओ, र्ो र्ुम अपने पैरों पर खड़े हो िकर्े हो।
• अपनी खखचड़ी अलग पकाना (ििके िार्थ न चलना )
• अरे िाई ! यहद िि लोग अपनी-अपनी खखचड़ी अलग पकाएाँगे , र्ो दे श की उन्ननर् कैिे होगी ?
• कान िरना ( भशकायर् करना )
• र्म
ु उिके ववरुद्ध मेरे कान मर् िरो।
• हर्थेल पर िरिों जमाना ( अिंिव कायण करके हदखाना )
• अगर मेहनर् करो र्ो र्ुम िी अपने हार्थों पर िरिों जमा िकर्े हो।
• र्ाट-र्ाट का पानी पीना ( काफ़ी अनि
ु वी होना )
• र्ुम उिे उल्लू नह ं िना िकर्े, उिने र्ाट-र्ाट का पानी पी रखा है ।
अशुद्ध वाक्यों का शोधन
•
अशद्ध
शद्ध
ु
ु
•---------------------------------------------------------------------------------------------------------------• वह नावों पर िवार र्था।
वह नाव पर िवार र्था।
• दि लड़की पढ़ रह हैं।
दि लड़ककयााँ पढ़ रह हैं।
• लयाम ने मझ
लयाम ने मझ
ु े आगरा हदखाई।
ु े आगरा हदखाया।
• लर्ा िड़ा मीठा गार्ा है ।
लर्ा िड़ा मीठा गार्ी है ।
• महादे वी वमाण िड़ी ववद्वान हैं।
महादे वी वमाण िड़ी ववदष
ु ी हैं।
• मैंने हाँि पड़ा।
मैं हाँि पड़ा।
• मेरे को र्र जाना है ।
मुझे र्र जाना है ।
• यमन
यमन
ु ा के अंदर पानी िरा है ।
ु ा में पानी िरा है ।
• श्जर्नी करनी वैिी िरनी।
जैिी करनी वैिी िरनी।
• गुफ़ा में िड़ा अंधेरा है ।
गुफ़ा में र्ना अंधेरा है ।
• िेड़ और िकररयााँ चर रह हैं।
िेड़ और िकररयााँ चर रहे हैं।
• आप वहााँ अवलय जाओ।
आप वहााँ अवलय जाइए।
• शत्रु िर कर दौड़ गया।
शत्रु िर कर िाग गया।
• मैंने अपनी कलम मेरे िाई को दे द ।
मैंने अपनी कलम अपने िाई को दे द ।
• चार दशरर्थ के पुत्र र्थे।
दशरर्थ के चार पुत्र र्थे।
• मैं आगामी वषण हदल्ल गया र्था।
मैं गर् वषण हदल्ल गया र्था।
• िार् एक कठोर जानवर है ।
िार् एक ियानक जानवर है ।
• िज्जन व्यश्क्र् ककिी का अहहर् नह ं
िज्जन ककिी का अहहर् नह ं चाहर्े।
चाहर्े।
उनका िहुर् िम्मान हुआ।
• उनका िहुर् िार िम्मान हुआ।
वे लौट आए हैं।
• वे वापि लौट आए हैं।
• िाकू परस्पर एक-दि
ू रे को िंदेहकी नज़र िे
दे खर्े हैं।
• र्माम दे श िर में िार् फैल गई।
• मेरा नाम श्री रामदाि जी है ।
• मुझे दे खर्े ह उिका चेहरा चगर गया।
• कृपया आप ह यह िमझाने का अनुग्रह करें ।
• अभिनेत्री नत्ृ यकला का व्यायाम कर रह है ।
• उिे मत्ृ युदंि की िज़ा भमल है ।
• मैं िाधु का दशणन करने आया हूाँ।
• उिने िंिई जाना है ।
• रोगी ने प्रार् त्याग हदया।
• वह पागल आदमी हो गया।
• वह कहा कक मैं पत्र अवलय भलखग
ूाँ ा।
• यह िार् राम को पूछो।
• रमेश को अनेकों कहाननयााँ याद हैं।
• मैंने यह काम नह ं करा।
• यहााँ शुद्ध गाय का दध
ू भमलर्ा है ।
• वह कलाकार आदमी है ।
• मेले में िच्चा खो गई।
• मुझे केवल पााँच रुपए मात्र चाहहए।
• हम नह ं पढ़े हैं ये पुस्र्कें।
• प्रधानाचायण आ रहा है ।
िाकू एक-दि
ू रे को िंदेहकी नज़र िे
दे खर्े हैं।
दे श िर में िार् फैल गई।
मेरा नाम रामदाि है ।
मुझे दे खर्े ह उिका चेहरा उर्र गया।
आप ह यह िमझाने का अनुग्रह करें ।
अभिनेत्री नत्ृ यकला का अभ्याि कर रह है ।
उिे मत्ृ युदंि भमला है ।
मैं िाधु के दशणन करने आया हूाँ।
उिे िंिई जाना है ।
रोगी ने प्रार् त्याग हदए।
वह आदमी पागल हो गया।
उिने कहा कक मैं पत्र अवलय भलखूग
ाँ ा।
यह िार् राम िे पूछो।
रमेश को अनेक कहाननयााँ याद हैं।
मैंने यह काम नह ं ककया।
यहााँ गाय का शुद्ध दध
ू भमलर्ा है ।
वह कलाकार है ।
मेले में िच्चा खो गया।
मुझे केवल पााँच रुपए चाहहए।
ये पुस्र्कें हमने नह ं पढ़ ं।
प्रधानाचायण आ रहे हैं।
उपिगण - प्रत्यय िे शब्द ननमाणर्
( पाठ्य – पस्
ु र्क िे )
१. ननम्नभलखखर् शब्दों के उपिगण छााँहटए :उदाहरर् – ववज्ञावपर् – वव (उपिगण) ज्ञावपर्
(क) िंिगण – िम ् + िगण (ख) उपमान – उप + मान (ग) िंस्कृनर् – िम ् :+ कृनर्
(र्) दल
ण – दरु ् + लि (ङ) ननद्णवंद्व – ननर्+ द्वंद्व ( च) प्रवाि – प्र + वाि
ु ि
( छ) दि
ु ाणनय – दरु ् + िानय (ज) अभिजार् – अभि + जार् ( झ) िंचालन – िम ् + चालन ।
२. ननम्नभलखखर् शब्दों में उपिगण लगाइए :जैिे - पुत्र – िुपुत्र
(क) वाि – प्रवाि (ख) व्यवश्स्र्थर् – अव्यवश्स्र्थर् (ग) कूल – प्रनर्कूल/अनुकूल (र्) गनर् –
प्रगनर् (ङ) रोहर् – आरोहर् (च) रक्षक्षर् – आरक्षक्षर् ।
३. ननम्न उपिगों का प्रयोग कर दो-दो शब्द िनाइए :(१) ला - लाइलाज़ , लाज़वाि (२) बिला – बिलावज़ह , बिलाकुव्वर्
(३) िे – िेभमिाल , िेवज़ह (४) िद – िदनाम , िदककस्मर् (५) ना – नाखुश ,
नामम
ु ककन (६) खश
ु – खश
ु ककस्मर् , खश
ु निीि (७) हर – हर पल , हरहदन
(८) ग़ैर – ग़ैरहाश्ज़र , ग़ैरकानन
ू ी
४. ‘ त्व ’ प्रत्यय लगाकर पााँच शब्द िनाइए :(१) दे वत्व (२) ममत्व (३) अपनत्व (४) गरु
ु त्व (५) लर्ुत्व (६) महत्त्व
५. ‘ इक ’ प्रत्यय लगाकर शब्दों का ननमाणर् कीश्जए :(१) िप्र्ाह + इक = िाप्र्ाहहक (२) िाहहत्य + इक = िाहहश्त्यक (३) व्यश्क्र् + इक = वैयश्क्र्क
(४) राजनीनर् + इक = राजनैनर्क (५) अर्थण + इक = आचर्थणक (६) धमण + इक = धाभमणक
(७) माि + इक = माभिक (८) वषण +इक = वावषणक ।
६. हदए गए उपिगों का उपयुक्र् प्रयोग करर्े हुए शब्द िनाइए :(१) अ = अ + िंिव = अिंिव (२) नन = नन + िर = नीिर
(३) अन = अन + आकषणक = अनाकषणक
(४) दरु ् = दरु ् + िानय = दि
ु ाणनय (५) वव = वव + क्रय = ववक्रय
(६) कु = कु + मागण = कुमागण (७) पर = पर + लोक = परलोक
(८) िु = ि+ु आगर् = स्वागर् (९) अचध = अचध+ नायक = अचधनायक
नक्
ु र्ा (.)
१.
२.
३.
४.
राज़ (शािन )
जरा ( िढ़
ु ापा )
फलक ( आकाश )
फन ( िााँप का फन )
राज़ ( रहस्य )
ज़़़रा ( र्थोड़ा )
फ़लक ( लकड़ी का र्ख्र्ा )
फ़न ( कला / कौशल )
मह
ु ावरे
१. टुकड़े चिाना – गर ि ,भिखार टुकड़े चिाकर ह जीवन बिर्ार्े हैं।
२. पगड़ी उर्ारना – ककिी गर ि की पगड़ी उर्ारना उचचर् नह ं।
३. मरु द होना – अभमर्ाि के अभिनय – कला के िि मरु द हो गए।
४. ज़ान वारना – िैननक ने दे श पर अपनी ज़ान वार द ।
५. र्ेग मारना – िंपश्त्र् के भलए िाई –िाई एक-दि
ू रे पर र्ेग
मारर्े
हैं।
६. आड़े हार्थों लेना – भशक्षक ने िदमाश छात्र को आड़े हार्थों भलया ।
७. दााँर्ों र्ले अंगल
ु दिाना – र्ाजमहल दे खकर लोग दााँर्ों र्ले
अंगल
ु दिा लेर्े हैं।
८. लोहे के चने चिाना – हहमालय पवणर् पर चढ़ना लोहे के चने
चिाने के िमान है ।
९. अस्र् हो जाना – िुिह की पहल ककरर् के स्पशण के िार्थ ह
चगल्लू का जीवन-िय
ू ण अस्र् हो गया।
१०. मंत्र-मनु ध करना – वववेकानंद ने अपने िाषर् िे ििको मंत्रमुनध कर हदया।
ववलोम शब्द
१. िग
ण
२. धमण – अधमण
३. ईमान – िेईमान
ु म- दग
ु म
४. िाधारर् – अिाधारर् ५. स्वार्थण – परमार्थण ६. दरु
ु पयोग –
िदप
ु योग ७. ननयंबत्रर् – अननयंबत्रर् ८. स्वाधीनर्ा – पराधीनर्ा
९. अनक
ु ू ल – प्रनर्कूल १०. ननयभमर् – अननयभमर् ११. आरोह –
अवरोह १२. िुंदर – अिुंदर १३. ववख्यार् – कुख्यार् १४. ननश्लचर् –
अननश्लचर् १५. िशक्र् – अशक्र् १६. ठोि – र्रल १७. दे शी – ववदे शी
१८. आकषणर् – ववकषणर् ।
१.
२.
३.
४.
५.
पयाणयवाची शब्द
चााँद – चंद्रमा , शभश , राकेश , रजनीश
श्ज़क्र – वर्णन , ब्योरा , चचाण
आर्ार्- चोट , हमला , आक्रमर्
ऊष्मा – गमी , ऊष्र्र्ा , र्ाप
अंर्रं ग – अभिन्न , वप्रय , कर िी
िमानदशी शब्दों के अर्थण में अंर्र
१. प्रमार्
प्रर्ाम
-
२. धारर्ा धारर् -
मोहन चोर है , इिका क्या प्रमार् है ।
हमें िड़ों को िदा प्रर्ाम करना चाहहए।
ऐिी ग़लर् धारर्ा मन में मर् रखखए।
हमें िाफ़-िर्थ
ु रे वस्त्र ह धारर् करना
चाहहए।
३. पव
ण र्ी - १० की पव
ण र्ी िंख्या ९ है ।
ू व
ू व
परवर्ी - ९ की परवर्ी िंख्या १० है ।
४. पररवर्णन - िंिार में ननर् नए पररवर्णन होर्े रहर्े हैं।
प्रवर्णन - ईिा मिीह ने ईिाई धमण का प्रवर्णन ककया।
शब्द – युनम
१.
िख
ु -िवु वधा
हर मनष्ु य िख
ु -िवु वधा चाहर्ा है ।
२.
अच्छा-खािा
राम इि कंपनी में अच्छा – खािा कमा रहा है ।
३.
प्रचार-प्रिार
हहन्द िाषा का प्रचार-प्रिार करना हर नागररक का कर्णव्य है ।
४.
आि-पाि
हमारे ववद्यालय के आि-पाि हर -िर पहाडड़यााँ हैं।
५.
गाने-िजाने
मझ
ु े गाने-िजाने का शौक है ।
६.
टे ढ़ -मेढ़
टे ढ़ -मेढ़ पगिंडियों िे होकर मझ
ु े अपने र्र र्क जाना पड़र्ा है ।
७.
गहरे -चौड़े
इन गहरे – चौड़े नालों में हमेशा पानी िरा रहर्ा है ।
८.
हक्का-िक्का
र्ाजमहल को दे खकर मैं हक्का-िक्का रह गया।
९.
इधर-उधर
भशक्षक ने कहा , “ यह ं खड़े रहो , इधर – उधर मर् जाओ।
१०. लंिे-चौड़े
लंिे – चौड़े िीमकाय पहलवान को दे खकर मेर नर्नर्ी िाँध गई।
१.
छन्नी-ककना
गर ि मााँ ने अपना छन्नी-ककना िेचकर िेटे को पढ़ाया – भलखाया।
२.
अढ़ाई-माि
अि वववाह को केवल अढाई – माि ह रह गए हैं।
३.
पाि-पड़ोि
हमें अपने पाि – पड़ोि वालों िे भमल-जुलकर रहना चाहहए।
४.
दअ
ु न्नी-चवन्नी
भिखार लोग दअ
ु न्नी-चवन्नी के भलए दर-दर िटकर्े हैं।
५.
मुाँह-अंधेरे
ककिान को मुाँह-अंधेरे ह काम पर जाना होर्ा है ।
६.
झाड़ना-फूाँकना
ओझा ने आर्े ह झाड़ना-फूाँकना शुरु कर हदया।
७.
फफक-फफककर
पर क्षा में फ़ेल हो जाने के कारर् मोहन फफक-फकककर रो पड़ा।
८.
बिलख-बिलखकर
िूख िे िच्ची बिलख-बिलखकर रोने लगी।
९.
र्ड़प-र्ड़पकर
ठीक िमय पर दवा न भमलने पर रोगी र्ड़प-र्ड़पकर मर गया।
१०. भलपट-भलपटकर
िच्चा अपनी मााँ की लाश िे भलपट-भलपटकर रो रहा र्था।
११. िेटा-िेट
हर मााँ-िाप को अपने िेटा-िेट पर िमान रूप िे ध्यान दे ना
चाहहए।
पाठ र्र्था रचनाकार
• रामववलाि शमाण --------------• यशपाल --------------------• िचें द्र पाल------------------ • शरद जोशी---------• धीरं जन मालवे-----------
• धूल
• द:ु ख का अचधकार
• एवरे स्ट: मेर भशखर यात्रा
• र्म
ु कि जाओगे , अनर्चर्थ
• वैज्ञाननक चेर्ना के वाहक चंद्रशेखर
वें कट रामन ्
• काका कालेलकर-------------- • कीचड़ का काव्य
• गर्ेश शंकर ववद्यार्थी--------- • धमण की आड़
• स्वामी आनंद------------• शक्र
ु र्ारे के िमान
• रै दाि----------• पद
• रह म------------------• दोहे
• नज़ीर अकिरािाद ------• आदमीनामा
• भियारामशरर् गप्ु र्---------- • एक फूल की चाह
• रामधार भिंह ‘ हदनकर ’------ • गीर्-अगीर्
• हररवंशराय िच्चन------------- • अश्नन पर्थ
• अरुर् कमल-------------• नए इलाके में
• खलु िू रचर्े हैं हार्थ
प्रस्र्ुनर्
आर.िािरू ाज जैन
हहंद प्रभशक्षक
ज.न.वव. पुदच्
ु चेर
धन्यवाद !